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वर्ग १ अध्ययन १ कोणिक का शोक और चंपागमन
३७ .......................................................... पडिणिक्खमइ पडिणिक्खमित्ता जेणेव चंपाणयरी तेणेव उवागच्छइ, तत्थवि णं विउलभोगसमिइसमण्णागए कालेणं अप्पसोए जाए यावि होत्या॥४३॥ ___कठिन शब्दार्थ - पिइसाएणं - पितृ शोक से, आसत्थे - आश्वस्त-मूर्छा रहित, रोयमाणे - रोते हुए, कंदमाणे - आक्रंदन करते हुए, सोयमाणे - शोक करते हुए, विलवमाणे - विलाप करते हुए, अधण्णेणं - अधन्य, अपुण्णेणं - अपुण्य, अकयपुण्णे - अकृतपुण्य, इड्डीसक्कारसमुदएणं - ऋद्धि, सत्कार एवं अभ्युदय से, णीहरणं - नीहरण-दाह संस्कार, मयकिच्चाई - मृत क्रियाएं।
भावार्थ - तत्पश्चात् कोणिकराजा जहाँ कैदखाना (कारावास) था वहाँ आता है आकर श्रेणिक राजा को निष्प्राण, निश्चेष्ट और निर्जीव देखता है देख कर पिता के मरणजन्य असहनीय कष्ट से आक्रान्त हो तीक्ष्ण कुठार से काटे हुए चम्पक वृक्ष की तरह धडाम से भूमि पर गिर पड़ता है। . कुछ समय पश्चात् कोणिककुमार आश्वस्त-मूर्छा रहित होने के बाद रोता हुआ, करुणाजनक शब्द से आर्तनाद करता हुआ शोक करता हुआ, विलाप करता हुआ इस प्रकार बोला- "मैं अधन्य हूँ, पुण्यहीन हूँ, पापी हूँ, मैंने बुरा कार्य किया है जो देवगुरुजन के समान परम उपकारी और स्नेह अनुराग से अनुरक्त अपने पिता राजा श्रेणिक को बंधन में डाला। मेरे कारण ही इनकी मृत्यु हुई है।" ऐसा कह कर ऐश्वर्यशाली पुरुषों तलवर यावत् संधिपालों के साथ रुदन, आक्रन्दन, शोक और विलाप करते हुए महान् ऋद्धि, सत्कार और अभ्युदय के साथ श्रेणिक राजा का नीहरण-दाहसंस्कार करता है और अनेक लौकिक मृत क्रियाएं करता है।
तत्पश्चात् कोणिककुमार इस महान् मानसिक दुःखों से दुःखी होने के कारण किसी समय अन्तःपुर परिवार भण्डोपकरण वस्त्र पात्रादि के साथ राजगृह से निकला। निकल कर जहाँ चंपा नगरी थी वहाँ आया। वहाँ विपुल भोगों को भोगते हुए कुछ समय बाद शोक से रहित हो गया।
- विवेचन - पूर्व भव कृत निदान के फलस्वरूप कोणिक के मन में अपने देव गुरु के समान पूजनीय पिता के प्रति कुत्सित भावना उत्पन्न हुई। जब माता के मुख से पिता के स्नेहभाव व उपकार को सुना तो कोणिक को अपने किये हुए कृत्य का बड़ा पश्चात्ताप हुआ। वह कुल्हाड़ा लेकर अपने पिता की बेड़ियाँ तोड़ने चला।
श्रेणिक ने कोणिक को कुल्हाड़ा लेकर आते हुए देखा तो समझा कि इस दुष्ट ने अब तक मुझे नाना प्रकार से कष्ट दिये हैं, अब न जाने क्या कष्ट देने यह आ रहा है ? इस विचार से श्रेणिक ने तालपुट विष खा कर आत्महत्या कर ली। जब कोणिक पिता के पास पहुँचा तो उसे पिता का निर्जीव
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