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वर्ग १ अध्ययन १ श्रेणिक द्वारा निर्भर्त्सना ।
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गिण्हेत्ता जेणेव असोगवणिया तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता तं दारगं एगंते उक्कुरुडियाए उज्झाइ।
तए णं तेणं दारगेणं एगंते उक्कुरुडियाए उज्झिएणं समाणेणं सा असोगवणिया उज्जोविया यावि होत्या॥ २६॥ ____ भावार्थ - तत्पश्चात् उस दासी ने चेलना देवी की इस आज्ञा को सुन कर दोनों हाथ जोड़ कर यावत् चेलना देवी की इस आज्ञा को विनयपूर्वक स्वीकार किया। स्वीकार करके उस बालक को हथेलियों में लिया। लेकर वह अशोकवन में आती है और बालक को एकान्त में कूड़े कर्कट पर फैंक दिया। - उस बालक को एकान्त कूड़े करकट (उकरडी) पर फैंके जाने पर वह अशोकवन (वाटिका) प्रकाश युक्त हो गया।
श्रेणिक द्वारा निर्भर्त्सना तए णं से सेणिए रायां इमीसे कहाए लद्धढे समाणे जेणेव असोगवणिया तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता तं दारगं एगते उक्कुरुडियाए उज्झियं पासेइ पासित्ता आसुरुत्ते जाव मिसिमिसेमाणे तं दारगं करयलपुडेणं गिण्हइ गिण्हित्ता जेणेव चेल्लणा देवी तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता चेल्लणं देविं उच्चावयाहिं आओसणाहिं आओसइ आओसित्ता उच्चावयाहिं णिन्भच्छणाहिं णिन्भच्छेइ एवं ऊद्धंसणाहिं उद्धंसेइ उद्धंसित्ता एवं वयासी-किस्स णं तुम मम पुत्तं एगते उक्कुरुडियाए उज्शावेसि? तिकट्ट चेल्लणं देविं उच्चावयसवहसावियं करेइ करेत्ता एवं वयासी-तुमं णं देवाणुप्पिए! एवं दारगं अणुपुवेणं सारक्खमाणी संगोवेमाणी संवट्लेहि ॥ ३०॥
कठिन शब्वार्थ - उच्चावयाहिं - ऊंचे नीचे शब्दों से, आओसणाहिं - आक्रोश पूर्वक, णिम्भच्छणाहिं - निर्भर्त्सना, उद्धंसणाहि - उद्धर्षणा।
भावार्थ - तत्पश्चात् जब श्रेणिक राजा को इस बात का पता लगा तो वह अशोक वन में आया। आकर उस बालक को एकान्त में उकरडी पर पड़ा हुआ देख कर क्रोध के मारे लाल पीला होकर दांत पीसता हुआ उस बालक को अपनी हथेलियों में लिया, लेकर जहाँ चेलना देवी थी वहां आता है। आकर चेलना देवी को ऊँचे नीचे आक्रोश भरे शब्दों से निर्भर्त्सना की। आक्रोश से
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