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निरयावलिका सूत्र
तए णं से सेणिए राया अभयं कुमारं एवं वयासी-पत्थि णं पुत्ता! से केइ अढे जस्स णं तुमं अणरिहे सवणयाए, एवं खलु पुत्ता! तव चुल्लमाउयाए चेल्लणाए देवीए तस्स ओरालस्स जाव महासुमिणस्स तिण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं जाव जाओ णं मम उयरवलीमंसेहिं सोल्लेहि य जाव दोहलं विणेति, तए णं सा चेल्लणा देवी तंसि दोहलंसि अविणिजमाणंसि सुक्का जाव झियाइ, तए णं अहं पुत्ता! तस्स दोहलस्स संपत्तिणिमित्तं बहूहिं आएहि य जाव ठिई वा अविंदमाणे ओहय० जाव झियामि॥२३॥
कठिन शब्दार्थ - सवणयाए - सुनने योग्य, चुल्लमाउयाए - छोटी माता। __ भावार्थ - तत्पश्चात् श्रेणिक राजा ने अभयकुमार से कहा- "हे पुत्र! ऐसी तो कोई बात नहीं है जिसे तुम सुनने योग्य नहीं हो। हे पुत्र! तुम्हारी छोटी माता चेलना देवी को उस उदार यावत् महास्वप्न को देखे तीन माह व्यतीत होने पर यावत् ऐसा दोहद उत्पन्न हुआ है कि जो माताएं मेरी उदरावलि के शूलित आदि मांस से अपने दोहद को पूर्ण करती है वे धन्य हैं आदि। लेकिन चेलना देवी उस दोहद के पूर्ण नहीं हो सकने के कारण शुष्क यावत् चिंतित है। इसलिए हे पुत्र! मैं उस दोहद की संपूर्ति के उपायों यावत् स्थिति को नहीं समझ सकने के कारण भग्न मनोरथ, आर्तध्यान करता हुआ यावत् चिंतित हो रहा हूँ।"
अभयकुमार द्वारा पिता को सान्त्वना तए णं से अभए कुमारे सेणियं रायं एवं वयासी-मा णं ताओ! तुब्भे ओहय० जाव झियाह, अहं णं तहा जत्तिहामि जहा णं मम चुल्लमाउयाए चेल्लणाए देवीए तस्स दोहलस्स संपत्ती भविस्सइत्तिकट्ट सेणियं रायं ताहिं इट्ठाहिं जाव वग्गूहिं समासासेइ समासासित्ता जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता अभिंतरए रहस्सियए ठाणिज्जे पुरिसे सद्दावेइ सद्दावित्ता एवं वयासी-गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया! सूणाओ अल्लं मंसं रुहिरं बत्थिपुडगं च गिण्हह॥२४॥
कठिन शब्दार्थ - अम्भिंतरए - आभ्यंतर (गुप्त), रहस्सियए - रहस्यों के, सूणाओ - सूनागार (वधस्थान), अल्लं - आर्द्र (गीला), बत्थिपुडगं - वस्तिपुटक-पेट का भीतरी भाग, आंतें।
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