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. वर्ग १ अध्ययन १ दोहद पूर्ति का उपाय
भावार्थ - श्रेणिक राजा के भावों को सुन कर अभयकुमार बोले- 'हे तात! आप भग्न मनोरथ यावत् चिंतित न हों। मैं ऐसा कोई उपाय करूंगा कि जिससे मेरी छोटी माता चेलना देवी के दोहद की पूर्ति हो जाय ।' इस प्रकार अभयकुमार ने श्रेणिक राजा को इष्ट यावत् मधुर वचनों से सांत्वना
| श्रेणिक राजा को आश्वस्त करके अभयकुमार अपने भवन में आया । आकर गुप्त रहस्यों के जानकार अपने विश्वस्त पुरुषों को बुलाया और बुलाकर उनसे कहा- 'हे देवानुप्रियो ! तुम जाओ और वधस्थान में जाकर वस्तिपुटक (पेट के भीतरी भाग ) के साथ गीला मांस लाओ।'
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दोहद पूर्ति का उपाय
तए णं ते ठाणिज्जा पुरिसा अभएणं कुमारेणं एवं वुत्ता समाणा हट्ठतुट्ठ० जाव पडणेत्ता, अभय कुमारस्स अंतियाओ पडिणिक्खमंति पडिणिक्खमित्ता जेणेव सूणा तेणेव उवागच्छंति उवागच्छित्ता अल्लं मंसं रुहिरं वत्थिपुडगं च गिव्हंति गिव्हित्ता जेणेव अभए कुमारे तेणेव उवागच्छंति उवागच्छित्ता करयल० तं अल्लं ii हिरं बत्थिysi च उवणेंति ।। २५ ।।
भावार्थ - वे गुप्त पुरुष अभयकुमार के इस प्रकार कहे जाने पर हर्षित एवं संतुष्ट हुए यावत् विनय से उनके वचन को स्वीकार कर वहाँ से निकले और निकल कर जहाँ वधस्थान था वहाँ पहुँचे और वहां से गीला मांस, रक्त एवं वस्तिपुटक को ग्रहण किया। ग्रहण करके जहाँ अभ वहाँ आये। आकर दोनों हाथों को जोड़ कर यावत् उस वस्तिपुटक को देते हैं।
अभ कुमतं अल्लं मंसं रुहिरं कप्पणी (अप्प) कप्पियं करेइ करेत्ता जेणेव सेणिए राया तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता सेणियं रायं रहस्तिगयं सयणिज्जुंसि उत्ताणयं णिवज्जावेइ णिवज्जावेत्ता सेणियस्स उयरवलीसु तं अल्लं मंसं हिरं विरds विरवेत्ता बत्थिपुडएणं वेढेइ वेढेत्ता सवंतीकरणेणं करेइ करेत्ता चेल्लणं देविं उप्पिं पासाए अवलोयणवरगयं ठवावेइ ठवावेत्ता चेल्लणाए देवीए अहे सपक्खं सडिदिसिं सेणियं रायं सयणिज्जंसि उत्ताणगं णिवज्जावेइ, सेणियस्स रण्णो उयरवलिमसाई कप्प (णि) णीकप्पियाई करेइ करेत्ता से य भायणंसि पक्खिवइ ।
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