________________
वर्ग १ अध्ययन १ काली की जिज्ञासा का समाधान
आभूषणों से विभूषित हो अनेक कुब्जा दासियों यावत् महत्तरक वृन्द से घिरी हुई अन्तःपुर से निकली। निकल कर जहाँ बाहरी उपस्थानशाला थी जहाँ श्रेष्ठ धार्मिक यान था वहाँ आयी, आकर श्रेष्ठ धार्मिक यान पर सवार होकर अपने परिजनों के साथ चंपा नगरी के बीचोंबीच होकर निकली, निकल कर जहाँ पूर्णभद्र चैत्य था वहाँ आयी, आकर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के छत्रादि अतिशयों को देखते ही यावत् श्रेष्ठ धार्मिक रथ को रोका। रथ रोक कर उस धार्मिक यान से नीचे उतरी, उतर कर कुब्जा आदि दासियों यावत् महत्तरकवृन्द से घिरी हुई जहाँ श्रमण भगवान् महावीर स्वामी थे वहां आयी, आकर उन्हें तीन बार वंदना की, वंदना करके वहीं स्थित होकर सपरिवार धर्मोपदेश सुनने की इच्छा करती हुई नमस्कार करती हुई विनयपूर्वक दोनों हाथों को जोड़ कर पर्युपासना करने लगी।
भगवान् की देशना तए णं समणे भगवं जाव कालीए देवीए तीसे य महइमहालियाए धम्मकहा भाणियव्वा जाव समणोवासए वा समणोवासिया वा विहरमाणे आणाए आराहए भवइ ॥१०॥
भावार्य - तत्पश्चात् श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने काली देवी और उस महती (विशाल) परिषद् को धर्मकथा कही। धर्मकथा का वर्णन औपपातिक सूत्र के अनुसार कह देना चाहिए यावत् श्रमणोपासक और श्रमणोपासिका आज्ञा के आराधक होते हैं। - काली की जिज्ञासा का समाधान
तए णं सा काली देवी समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्म सोच्चा णिसम्म हट्ठ जाव हियया समणं भगवं तिक्खुत्तो जाव एवं वयासी-एवं खलु भंते! मम पुत्ते काले कुमारे तिहिं दंतिसहस्सेहिं जाव रहमुसलं संगामं ओयाए, से णं भंते! किं जइस्सइ? णो जइस्स जाव काले णं कुमारे अहं जीवमाणं पासिज्जा? . __ कालीइ समणे भगवं महावीरे कालिं देविं एवं वयासी-एवं खलु काली! तव पुत्ते काले कुमारे तिहिं दंतिसहस्सेहिं जाव कूणिएणं रण्णा सद्धिं रहमुसलं संगामं संगामेमाणे हयमहियपवरवीरघाइयणिवडियचिंधज्झयपडागे णिरालोयाओ दिसाओ करेमाणे चेडगस्स रण्णो सपक्खं सपडिदिसि रहेणं पडिरहं हव्वमागए, तए णं से
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org