Book Title: Nirayavalika Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 33
________________ निरयावलिका सूत्र ........................................................... विवेचन - काली रानी ने जब प्रभु के मुखारविन्द से अपने पुत्र कालकुमार की मृत्यु का समाचार सुना तो पुत्र वियोग की दारुण वेदना से मूर्छित हो वह जमीन पर गिर पड़ी और शोक सागर में डूब गई। शीतलोपचार से जब रानी की मूर्छा दूर हुई तो प्रभु को वंदन नमस्कार कर विनयपूर्वक भगवान् के वचन का आदर करती हुई स्वस्थान लौट गयी। गौतम स्वामी की जिज्ञासा व प्रभु का समाधान भंते! त्ति भगवं गोयमे जाव वंदइ णमंसइ वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी-काले णं भंते! कुमारे तिहिं दंतिसहस्सेहिं जाव रहमुसलं संगाम संगामेमाणे चेडएणं रण्णा एगाहच्चं कूडाहच्चं जीवियाओ ववरोविए समाणे कालमासे कालं किच्चा कहिं गए कहिं उववण्णे? गोयमाइ समणे भगवं० गोयमं एवं वयासी-एवं खलु गोयमा! काले कुमारे तिहिं दंतिसहस्सेहिं जाव जीवियाओ ववरोविए समाणे कालमासे कालं किच्चा चउत्थीए पंकप्पभाए पुढवीए हेमाभे णरगे दससागरोवमट्टिइएसु णेरइएसु णेरइयत्ताए उववण्णे॥ १३॥ भावार्थ - हे भगवन्! ऐसा सम्बोधन कर गौतम स्वामी श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को वंदन नमस्कार करते हैं। वंदन नमस्कार करके इस प्रकार निवेदन किया-'हे भगवन्! काल कुमार तीन हजार हाथियों से यावत् रथमूसल संग्राम में युद्ध करता हुआ चेटक राजा के एक ही प्रहार से जीवन रहित होकर काल के समय काल करके कहाँ गया है? कहाँ उत्पन्न हुआ है?' "हे गौतम!" इस प्रकार संबोधित कर भगवान् ने कहा-हे गौतम! तीन हजार हाथियों के साथ यावत् युद्ध करता हुआ वह कालकुमार कालमास में काल करके चौथी पंकप्रभा नामक पृथ्वी के हेमाभ नामक नरक में दस सागरोपम की स्थिति वाले नैरयिकों में नैरयिक रूप में उत्पन्न हुआ है। काले णं भंते! कुमारे केरिसएहिं आरंभेहिं केरिसएहिं समारंभेहिं केरिसएहिं आरंभसमारंभेहिं केरिसएहिं भोगेहिं केरिसएहिं संभोगेहिं केरिसएहिं भोगसंभोगेहिं केरिसेण वा असुभकडकम्मपन्भारेणं कालमासे कालं किच्चा चउत्थीए पंकप्पभाए पुढवीए जाव णेरइयत्ताए उववण्णे? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org


Page Navigation
1 ... 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174