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"सामदंड भेय उवप्पयाण - णीतिसुप्पउत्तणय- विहण्णू ईहापोह मग्गणगवेसण अत्यसत्यमई, विसारए, उप्पत्तियाए, वेणइयाए, कम्मइयाए, पारिणामियाए चउव्विहाए बुद्धीए उववेए सेणियस्स रण्णो बहुसु कंजेसु य कुडुंबेसु य मंतेसु य गुज्झेसु य रहस्सेसु य णिच्छएसु य आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्ज़े मेढी पमाणं, आहारे, आलंबणभूए, पमाणभूए आहारभूए चक्खुभूए, सव्वकजेसु य सव्वभूमियासु य लद्धपच्चए विइण्णवियारे रज्जधुरए चिंतए यावि होत्या ।। "
अर्थात् - वह साम, दंड, भेद एवं उपप्रदान नीति तथा व्यापार नीति की विधि का ज्ञाता था । ईहा, अपोह, मार्गणा, गवेषणा तथा अर्थ शास्त्र में कुशल था । औत्पत्तिकी, वैनयिकी, कार्मिकी तथा पारिणामिकी इन चार बुद्धियों से युक्त था। वह श्रेणिक राजा के लिए बहुत से कार्यों में, कौटुम्बिक कार्यों में, मंत्रणा में, गुह्य कार्यों में, रहस्यमय मामलों में निश्चय करने में एक बार और बार-बार पूछने योग्य था । वह सब के लिए मेढीभूत था, प्रमाण था, आधार था, आलंबन रूप तथा प्रमाणभूतं था, आधारभूत था, चक्षुभूत था । सब कार्यों और सब स्थानों में प्रतिष्ठा प्राप्त करने वाला था । सब को विचार देने वाला था तथा राज्य की धुरा को धारण करने वाला था । अर्थात् वह स्वयं ही राज्य, राष्ट्र, कोश, कोठार, बल और वाहन तथा पुर और अन्त: पुर की देखभाल करता था ।
चेलना का स्वप्न - दर्शन
रियालिका
तणं सा चेल्लणा देवी अण्णया कयाइ तंसि तारिसयंसि वासघरंसि जाव सहं सुमि पारित्ताणं पडिबुद्धा, जहा पभावई जाव सुमिणपाढगा पडिविसज्जिया जाव चेल्लणा से वयणं पडिच्छित्ता जेणेव सए भवणे तेणेव अणुपविट्ठा ।। १५॥
कठिन शब्दार्थ - वासघरंसि वासघर (भवन) में, सुमिणपाढगा - स्वप्न पाठकों । भावार्थ - किसी समय वह चेलना देवी शयनगृह में सुख शय्या पर सोते हुए प्रभावती देवी के समान सिंह का स्वप्न देख कर जागृत हुई यावत् स्वप्न पाठकों को विदा किया यावत् चेलना देवी ने उनके वचनों को स्वीकार किया और जहाँ अपना वासगृह था, वहाँ प्रवेश किया।
विवेचन - "पासित्ताणं पडिबुद्धा जहा पभावई जाव सुमिणपाढगा" इन पदों से सूत्रकार ने महारानी चेलना के तथारूप वासगृह में स्वप्न का देखना, राजा से स्वप्न कहना, राजा द्वारा स्वप्न पाठकों को बुलाना आदि वृत्तान्त भगवती सूत्र शतक ११ उद्देशक ११ में वर्णित महारानी प्रभावती के वर्णन के अनुसार बताया है।
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