________________
वर्ग १ अध्ययन १ जबू स्वामी की जिज्ञासा व समाधान
यावत् मुक्ति प्राप्त भगवान् महावीर स्वामी ने प्रथम उपांग निरयावलिका के दस अध्ययन प्रतिपादित किये हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं - १. कालकुमार २. सुकालकुमार ३. महाकालकुमार ४. कृष्णकुमार ५. सुकृष्णकुमार ६. महाकृष्णकुमार ७. वीरकृष्णकुमार ८. रामकृष्णकुमार ६. पितृसेनकुमार और १०. महासेन कृष्णकुमार।
विवेचन - आर्य जम्बूस्वामी ने वीर संवत् १ में सोलह वर्ष की उम्र में आर्य सुधर्मा स्वामी के पास निग्रंथ प्रव्रज्या ग्रहण की। बारह वर्ष तक सुधर्मा स्वामी के सान्निध्य में आगम वाचना ग्रहण की। वीर संवत् १३ में सुधर्मा स्वामी के केवली होने के बाद आचार्य बने। आठ वर्ष तक युग प्रधान पद पर रहे। वीर संवत् २० में केवलज्ञान पाया और ४४ वर्ष केवली अवस्था में धर्मप्रचार करते रहे। वीर संवत् ६४ में ८० वर्ष की उम्र में मथुरा नगरी में निर्वाण प्राप्त किया। __ आगमों में जंबू स्वामी के गुणों का वर्णन इस प्रकार मिलता है-आर्य जम्बू काश्यप गोत्र वाले . थे। उनका शरीर सात हाथ प्रमाण था। ये समचउरस्रसंस्थान-पालथी मार कर बैठने पर शरीर की ऊंचाई और चौड़ाई बराबर हो ऐसे संस्थान-वाले थे। इनका वज्रऋषभनाराच संहनन था। सोने की रेखा के समान और पद्मराग के समान वर्ण वाले थे। उग्र तपस्वी थे। दीप्त तपस्वी-कर्म रूपी गहन वन को भस्म करने में समर्थ तप वाले थे। तप्त तपस्वी-कर्म संताप का विनाशक तप करने वाले थे। महान् तपस्वी थे। उदार-प्रधान थे-आत्म शत्रुओं को विनष्ट करने में निर्भीक थे। दूसरों के द्वारा दुष्प्राप्य गुणों को धारण करने वाले थे। घोर तपस्वी थे। कठिन ब्रह्मचर्य व्रत के पालक थे। शरीर पर भी ममत्व नहीं था। तेजो लेश्या-विशिष्ट तपोजन्य लब्धि विशेष को संक्षिप्त किए हुए थे। चौदह पूर्वो के ज्ञाता थे। चार ज्ञान के धारक थे। इनको समस्त अक्षर संयोग का ज्ञान था। ये उत्कुटुक आसन लगाकर नीचा मुख करके धर्म तथा शुक्लध्यान रूप कोष्टक में प्रवेश किये हुए थे अर्थात् धर्मध्यान में लीन थे। ऐसे आर्य जम्बू अनगार आर्य सुधर्मा स्वामी के पास तप संयम से अपनी आत्मा को भावित करते हुए विचर रहे थे। ____ 'जायसहें' के बाद आये हुए ‘जाव' शब्द से निम्न पाठ का ग्रहण हुआ है -
जायसढे जायसंसए जायकोउहल्ले, संजायसले संजायसंसए संजायकोउहल्ले, उप्पण्णसङ्के उप्पण्णसंसए उप्पण्णकोउहल्ले, समुप्पण्णसढे समुप्पण्णसंसए समुप्पण्णकोउहल्ले, उट्ठाए उढेइ जेणामेव असुहम्मे थेरे तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ करित्ता वंदइ णमंसइ वंदित्ता णमंसित्ता अञ्जसुहम्मस्स थेरस्स णञ्चासणे णाइदूरे सुस्सूसमाणे णमंसमाणे अभिमुहे पंजलिउडे विणएणं '.पञ्जुवासमाणे.....
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org