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वर्ग १ अध्ययन १ कालकुमार का परिचय
जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे चंपा णामं णयरी होत्या, रिद्ध० । पुण्णभद्दे चेइए। तत्थ णं चंपाए णयरीए सेणियस्स रण्णो पुत्ते चेल्लणाए देवीए अत्तए कूणिए णामं राया होत्था, महया० । तस्स णं कूणियस्स रण्णो पउमावई णामं देवी होत्या, सोमालपाणिपाया जाव विहरइ ॥ ४ ॥
कठिन शब्दार्थ - अत्तए - अंगजात - आत्मज, सोमालपाणिपाया सुकोमल हाथ पैर वाली। भावार्थ - हे भगवन्! यदि श्रमण यावत् मोक्ष प्राप्त भगवान् महावीर स्वामी ने उपांगों के प्रथम वर्ग निरयावलिका के दस अध्ययन कहे हैं तो हे भगवन्! निरयावलिका के प्रथम अध्ययन में प्रभु ने क्या भाव फरमाये हैं?
इस प्रकार निश्चय ही हे जम्बू ! उस काल में और उस समय में जम्बूद्वीप नामक द्वीप के भारत वर्ष में चम्पा नामक नगरी थी जो ऋद्धि आदि से संपन्न थी । उसके उत्तर-पूर्व दिशा भाग (ईशान कोण) में पूर्णभद्र नामक चैत्य - व्यंतरायतन था । उस चम्पा नगरी में श्रेणिक राजा का पुत्र एवं देवी का अंगजात कोणिक नाम का राजा था जो महामहिमाशाली था । उस कोणिक राजा के पद्मावती नाम की रानी थी जो सुकोमल अंग प्रत्यंगों वाली यावत् मानवीय कामभोगों का उपभोग करती हुई विचरण करती थी ।
तत्थ णं चंपाए णयरीए सेणियस्स रण्णो भज्जा कूणियस्स रण्णो चुल्लमाउंया काली णामं देवी होत्या, सोमालपाणिपाया जाव सुरूवा । तीसे णं कालीए देवीए पुत्ते काले णामं कुमारे होत्था, सोमालपाणिपाया जाव सुरूवे ॥ ५ ॥
भावार्थ - उस चंपा नगरी में श्रेणिक राजा की रानी और कोणिक राजा की छोटी माता काली नामक देवी थी जो सुकुमाल यावत् सुरूपा थी । उस काली देवी का पुत्र काल नामक कुमार था जो सुकुमाल यावत् सुरूप था ।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में वर्णित चम्पा नगरी का वर्णन राजगृह नगर के अनुसार एवं पूर्णभद्र चैत्य का वर्णन गुणशील चैत्य के अनुसार समझना चाहिये । 'सोमालपाणिपाया जाव सुरूवे' में प्रयुक्त शब्द से निम्न पाठ का ग्रहण हुआ है -
"अहीण पडिपुण्ण पंचिंदिय सरीरे, लक्खण वंजण गुणोंववेए माणुम्माणप्पमाण पडिपुण्ण सुजाय सुव्वंगसुंदरंगे ससिसोमागारे कंते पियदंसणे"
अर्थ - उसकी पांचों इन्द्रियाँ पूर्ण एवं निर्दोष थीं। उसका शरीर विद्या, धन और प्रभुत्व आदि
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