________________
निरयावलिका सूत्र ...........................................................
अर्थात् - आर्य जम्बू अनगार को तत्त्व के विषय में श्रद्धा (जिज्ञासा) हुई, संशय हुआ, कुतूहल हुआ, विशेष रूप से श्रद्धा हुई, विशेष रूप से संशय हुआ, विशेष रूप से कुतूहल हुआ, श्रद्धा उत्पन्न हुई, संशय उत्पन्न हुआ, कुतूहल उत्पन्न हुआ, विशेष रूप से श्रद्धा उत्पन्न हुई, विशेष रूप से संशय उत्पन्न हुआ, विशेष रूप से कुतूहल उत्पन्न हुआ, तब वह उत्थान करके उठ खड़े हुए
और उठ करके जहाँ आर्य सुधर्मा स्थविर थे वहाँ आये। आकर आर्य सुधर्मा स्वामी की तीन बार प्रदक्षिणा की, प्रदक्षिणा करके वाणी से स्तुति की और काया से नमस्कार किया। स्तुति और नमस्कार करके आर्य सुधर्मा स्थविर से न बहुत दूर और न बहुत नजदीक अर्थात् उचित स्थान पर स्थित होकर सुनने की इच्छा करते हुए और नमस्कार करते हुए सन्मुख दोनों हाथ जोड़ कर । विनयपूर्वक पर्युपासना करते हुए ...।
सुधर्मा स्वामी ने जम्बू स्वामी की शंका का समाधान करते हुए फरमाया कि उपांगों के पांच वर्ग कहे हैं। उसमें से प्रथम वर्ग निरयावलिका के दस अध्ययनों में इन दस कुमारों का वर्णन है१. कालकुमार २. सुकालकुमार ३. महाकाल कुमार ४. कृष्णकुमार ५. सुकृष्णकुमार ६. महाकृष्णकुमार ७. वीरकृष्णकुमार ८. रामकृष्णकुमार ६. पितृसेनकुमार और १०. महासेनकुमार।
निरयावलिका आदि पांच उपांग कालिक श्रुत है। इनमें निरयावलिका अंतकृतद्दशांग सूत्र का उपांग है, कल्पावतंसिका अनुत्तरौपपातिक अंग का उपांग है, पुष्पिका प्रश्नव्याकरण सूत्र का, पुष्पचूलिका विपाक सूत्र का और वृष्णिदशा दृष्टिवाद का उपांग है।
इन पांचों में से प्रथम निरयावलिका सूत्र में नरकावासों तथा उनमें उत्पन्न होने वाले मनुष्यों का वर्णन हैं।
उपांगों के प्रथम वर्ग निरयावलिका के दस अध्ययन कहे हैं, उसमें से प्रथम अध्ययन का वर्णन इस प्रकार हैकालकुमार नामक प्रथम अध्ययन
कालकुमार का परिचय . जइ णं भंते! समणेणं जाव संपतेणं उवंगाणं पढमस्स वग्गस्स णिरयावलियाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स णिरयावलियाणं समणेणं जाव संपत्तेणं के अढे पण्णते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org