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वर्ग १ अध्ययन १ जंबू स्वामी की जिज्ञासा व समाधान ........................................................... . विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के अंतेवासी (शिष्य) आर्य सुधर्मा स्वामी के राजगृह नगर में पदार्पण, जनसमूह के आगमन, धर्मदेशना और परिषद् के लौटने का वर्णन है।
- सुधर्मा स्वामी भगवान् महावीर के पांचवें गणधर और जम्बू स्वामी के गुरु थे। सुधर्मा स्वामी के लिये 'अज्ज' - आर्य विशेषण दिया गया है जिसकी व्याख्या इस प्रकार है - . "अर्यते भविभिगम्यते कल्याणप्राप्तये यः स आर्य। अथवा हेयधर्मात् आरात् यायतेदूरेण स्थीयते येन स आर्यः अथवा कर्मरूप काष्ठच्छेदेकत्वाद्रत्नत्रयरूपमारम्, तदयाति-प्राप्नोति यः स आर्यः।" ___अर्थात् - भव्य प्राणी अपने कल्याण के लिये जिनकी सेवा करते हैं अथवा हेय त्याज्य पदार्थों से जो दूर रहते हैं। अथवा कर्मरूप काष्ठ का छेदन करने के लिये रत्नत्रय रूप आरा जिन्होंने प्राप्त कर लिया है उनको आर्य कहते हैं। प्राकृत में 'आर्य' शब्द की इस प्रकार व्याख्या मिलती है -
अजइ भविहिं आरा, जाइज्जइ हेयधम्मओ जो वा। रयणत्तय एवं वा, आरं जाइत्ति अज्ज इय वुत्तो॥
इस प्रकार आर्य शब्द का प्रयोग सर्व गुण सम्पन्नता का द्योतक है। सूत्रकार सुधर्मा स्वामी में आर्य विशेषण लगा कर उनमें अहिंसा सत्य, क्षमा, निर्लोभता आदि सभी सद्गुणों का अस्तित्व प्रकट करना चाहते हैं। - आर्य सुधर्मा जाति = मातृपक्ष, कुल = पितृपक्ष, बल, रूप, विनय, ज्ञान, दर्शन, चारित्र, लज्जा, लाघव सम्पन्न तथा ऋद्धि, रस और साता गारव से रहित थे।
आर्य सुधर्मा स्वामी का परिचय देने के लिये केशीकुमार श्रमण का उल्लेख किया गया है। केशी कुमार श्रमण का विस्तृत वर्णन राजप्रश्नीय सूत्र में किया गया है। वह समस्त वर्णन आर्य सुधर्मा स्वामी के लिए भी समझना चाहिये।
. जंबू स्वामी की जिज्ञासा व समाधान ... तेणं कालेणं तेणं समएणं अजसुहम्मस्स अणगारस्स अंतेवासी जंबूणामं अणगारे समचउरंससंठाणसंठिए जाव संखित्तविउलतेउलेस्से अनसुहम्मस्स अणगारस्स अदूरसामंते उहुंजाणू जाव विहरइ। तए णं से जंबू जायसले जाव पजुवासमाणे एवं
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