Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
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सिरिमहिंदसूरिकहिया
नम्म या सुंदरी कहा
[ पत्थावणा ]
'जय भुवईवो' सर्व्वन्नू जस्स नाणजुन्हाए । लक्खिज्जइ भवभवणे कालत्तयसंभवं वत्थु ॥ अविरयनमंतसुरवरमणिरयण किरीडको डिकोडीहिं । मसिणी यपयवीढा जयंति तित्थेसरा सर्व्व ॥ उवसग्गपरी सहसत्तवाहिणी वाहिणी तिहुअणस्स । एगेण जेण विजियाँ सो जयउ जिणो महावीरो निम्महियमयणकरिणो कुमयकुरंगप्पयारनिडवणा । वरसीहा हुंति सहाया सया मज्झ ॥ काउं सरस्सईए सरणं हरणं समत्थविरघाणं । वोच्छामि नम्मयासुंदरीऍ चरियं मणभिरामं ॥ भणियं चिय फुडमेयं विशुद्धबुद्धीऍ पुत्रपुरिसेहिं । तह वि य गुणाणुराया ममावि भणणुजमो जाओ ॥ बहुसो वि भन्नमाणं सुणिजमाणं पि धम्मियजणस्स । कभरसायणमेयं एगंतसुहावहं होइ ॥
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गुणवत्रयेण उत्तमजणस्स झिज्यंति असुहकम्माई | जवसमइ दाहमंगे लग्गंतो चंदकिरणोहो || सुपुत्रं पि सुणि सुहयरमेयं महासईचरियं । यि विसरणो मंतो कन्नेसु पविसंतो ॥ उत्तमकुलप्पस्या निम्मलसम्मत्तनिचलसुखीला | अणुचिमणधम्मा न वनणिजा कह णु एसा ॥ ता होऊण पसन्ना सभावमज्झत्थमाणसा सुयणा । निसुह पावहरणं चरियमिणं मे भणितं ॥ जह जाया उबूढा चत्ता य समुदमज्झदीवम्मि | चुल्लपो य मिलिया पुणो वि चुक्का जहा तचो ॥
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+ The Ms. begins with ॥ ६ ॥ ॐ नमो वीतरागाय ॥
Wherever the text is corrected the original readings of the Ms. are noted in the foot-note :- १ पईवो. २ वत्थं. ३ विजया ४ अणुविज्ञ
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