Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 61
________________ 10 ४८ वीरदासस्स नम्मयासुंदरीगवेसणा, गिहं पइ पयाणं च । [५४०-५५३] जह वग्घाओ भीया सहसा सीहस्स पडइ उच्छंगे। तह मोइया वि तुमए इमम्मि दुहसंकडे पडिया ॥ ५४० नूणं मुणिवरसावो अज वि न हु निरवसेसओ होइ। उवणयमेरिसदुक्खं पुणरवि जं दारुणं मज्झ ॥ ५४१ अंगीकयमरणाओ किं काही मज्झ आवई एसा। न हु रिस महाणुभावो झिजिस्सई मह कए ताओ॥ ५४२ पाणेहिंतो वि पिया तस्साहं आसि भुत्त प. १८ . सुत्ता वि। मह विरहदुक्खिओ सो पाविस्सइ किं न याणामि ॥ ५४३ एयाणि य अन्नाणि य पलवंती पुणु पुणो वि मुच्छंती । करुणसरं रुयमाणी अच्छइ घरए नरयतुल्ले ॥ ५४४ दासीहिँ पुणो गंतुं हरिणीहत्थे समप्पिया मुद्दा । भणियं च-'तूस सामिणि ! अम्हेहिँ कओ तुहाएसो॥ ५४५ तो भणइ वीरदासो-'मयच्छि! [ग]च्छामि निययमावासं। नन्न ति भणंतीए पत्तो सो पोयठाणम्मि । ५४६ 15 [वीरदासस्स नम्मयासुंदरीगवेसणा, गिहं पइ पयाणं च] पढम चिय परिखिवई दिढि सो नम्मयापडकुडीए । न य दीसई त्ति पुच्छइ-'कत्थ गया नम्मया कहह ॥ ५४७ पडिभणइ परियणो सो- 'जाणामो अत्थि पडकुडीमज्झे। अन्नत्थ सा न गच्छइ निरूवियाँ तो न अम्हेहिं ॥ ५४८ 'नूणं मज्झ पएहिं हरिणीगेहम्मि सा गया होही ।' गंतूण तत्थ पुच्छइ ताओ पभणंति – 'नाऽऽयाया ॥ ५४९ ताहे अड्डवियड्डो(इं?) तमनिस्सन्तो पुणो भण(म)इ तुरियं । भणइ य परियणमित्ते- 'गवेसिमो नम्मयं दड्डे ॥ सबत्तो अन्नेसिया सबहिरभंतरे पुरे तम्मि । पुच्छंतेहि वि नूणं पउत्तिमेत्तं पि नो पत्तं॥ तो गंतूण नरिंदो भणिओ- 'दावेहि पडहयं देव।। जो मह दंसइ धूयं तस्स पसन्नो अहं सामि। ॥ ५५२ जेत्तियमेत्तं च तुला तुलइ पयच्छामि तित्तियं कणयं । इत्तियअत्थेण पुरे कारिजउ घोसणं देव ! ॥ , झिनिस्सइ. २ पाणिहतो. ३ दीसय. . निरुविया. ५ तमनिस्सो . मनि ५५१ ५५३ सिया. ७ व. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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