Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
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10.
or.
४६ हरिणीचेडीहिं नम्मयासुंदरीए हरणं, तीए पलावं च । [५११-५२४ ]
लद्धावसरा घेत्तुं दाहिणपाणि भणेइ- 'ते सुहय । मुद्दारयणमपुवं कुऊहलं एरिसे मज्झ ॥ भणइ य नियंचेडिं तो- 'दंसेहि इमं सुवनयारस्स । एयाए घडणीए मुदं सिग्धं घडावेहि ॥
५१२ उहिउकामो एसो आगंतवं अओ तुरियतुरियं ।'
इय भणिय पुवचेडी पट्टविया गहियसंकेया ॥ ५१३ [हरिणीचेडीहिं नम्मयासुंदरीए हरणं, तीए पलावं च ]
वेडीवंद्रसमेया पत्ता सहस त्ति पोयठाणम्मि । दिट्ठा य सुहनिसन्ना असहाया नम्मया ताहिं ॥ ५१४ 'भद्दे ! सो तुह वणिओ हरिणीभवणम्मि संठिओ संतो। जाओ अपडुसरीरो तेण तुमं सिग्घमाहूया ॥ तुह पञ्चयजणणत्थं मुद्दारयणं इमं तु पट्टवियं ।' एवं भणमाणाहिं समप्पिया मुद्दिया तीसे ॥ ५१६ सोऊण इमं वयणं संभंता नम्मया विचिंतेह । 'न घडइ तायस्स इमं अलियं जपंति एयाओ॥ अहवा पयइअणिच्चे संसारे एरिसं पि संभवइ । अन्नह मुद्दारयणं कीस इमं पेसियं तेण ॥
५१८ तह वि न जुत्तं गंतुं असहायाए इमाइ सह मन्स । मग्गेमि ता सहाय परियणमझे जणं के पि॥ उढेइ निहालेइ य पुणो पुणो निययमाणुसं के पि। भवियचयानिओ[ प. १७ B]या न य दिट्ठो को वि कत्थावि ॥५२० किंकायद्यविमूढा ठाउं गंतुं च नेव चाएइ । तो ताहिँ पुणो भणिया- 'न एसि जइ मुंच ता अम्हे ॥ ५२१ चिंतह पुणो वि एसा अगयाए नूण रूसिही ताओ। जाणइ जुत्ताजुत्तं सो चेव किमम्ह चिंताए।
५२२ पुवकयासुहकम्मेहिँ चोइया तासिमग्गओ ठाउं । संचलिया सा बाला बलवं खलु कम्मपरिणामो॥ ५२३ ताहिँ परिवेढिया सा नाया केणावि ने वचंती।
भूमीगिहम्मि छूढा पिहियं दारं च तो ताहि ॥ ५२४ भापी. २ तिव्य'. ३ °साहूया. ४ गुत्तं. ५ किं. ६ वलंब. . नेय.
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