Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 78
________________ ७१६ [७१४-७२६] नम्मयासुंदरीकहा। पुणरवि तहेव नयरे वियरइ कयगीयनचणपयासी । अन्नदिणे घरदारे गायइ एयारिसं गीयं ॥ ७१४ 'पभणइ लोगो गहिल्लिया सुस्सुइया ण अहं गहिल्लिया। जोएमि निरवजभिक्खयं जा नासइ सयलं पि दुक्खयं ॥ ७१५ [ नम्मयासुंदरीए जिणदेवेण सह मिलणं] एवं तीए गीयं निसुयं आसन्नमंदिरगएणं । सुस्सावएण केणइ अचंतं विम्हियमणेणे ॥ एयमउवं गीयं सम्मं हिययम्मि भावयतेण । निरवजसद्दसुणणा 'नायं न णु नम्म[प.२४ A ]या एसा ॥ ७१७ कारणवसेण केणइ एरिसनेवच्छधारिणी एसा । 10 तो निच्छयनाणत्थं पुच्छिजइ छन्नभासाए ॥' ७१८ इयं चिंतिऊण पुच्छइ - 'रे गह ! तं कस्स संतिओ तस्स(१) । पूएसि कं च देवं अवयरिओ किमिह पत्तम्मि ? ॥ ७१९ तीए वुत्तं'सव्वजगजगडणपरो जेण हओ मोहदाणवो चंडो। तस्संतिओ गहो हं लीलाए एत्थ निवसामि ॥ तं चेव महादेवं सूरं धीरं जमुत्तमं वीरं । पूएमि भत्तिसारं किं न मुणसि सावओ तं सि ॥ ७२१ अवयरणकारणं पुण नाहं साहेमि तह वि नाओ सि ।। वचंति अणिट्ठमणा बहवें सागारिया लोया ॥' भणियं च सावएण वि- 'जइ वि न साहेमि तह विनाओ सि । हिंडसु जह मणइ8 किं अम्हं तुम्ह वुत्तीए ।' ७२३ इय जंपंतो सहसा ओसरिओ सावओ तओ ठाणा । चिंतइ 'न हु सञ्चगहो कारिमयं चेड्डयं एयं ॥ ७२४ साहिउकामा वि इमा न कहइ सच्चं जणस्स संकाए । ता पइरिकं गंतुं पुच्छिस्सं एत्थ परमत्थं ।' ७२५ तो अणुमग्गं तीए हिंडइ केणइ अणजमाणो सो। इयरी वि गहियभिक्खा विणिग्गया भोयणं काउं॥ ७२६ . पयास. २ °मणेणा. ३ नेच्छय. ४ एय. ५ किंचि. ६ गणो. ७ विच्चंति. ८ वहावे. 15 ७२० ७२० गा ।' ७२२20 25 नम०९ Jain Education International For Private & Personal use only. www.jaine www.jainelibrary.org

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