Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
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नम्मयासुंदरीए पुव्वभववण्णणा। [८९२-९०५] परिचिंतिऊण सहसा मुंचइ अट्टहासमइभीमं । गुहकुहरुट्टियपडिरवसंरावियसयलजीवं [व ?] ॥ ८९२ दट्टण तं अभीयं ताहे दंसेइ घोरसदले । गुंजारवभरियनहे विगरालमुहे समुहमिते ॥ सुनिरुद्धदिटिपसए(र)स्स तस्स तव(न व ) ते भयंकओ जाया । ताहे उक्खिविऊणं मुंचइ तं जलहिमज्झम्मि ॥ ८९४ तुच्छम्मि जलहिनीरे सव्वत्तो परिमिलंतगुरुवेले। तत्थ वि य अवीहंतं नेई [पुण] पुवठाणम्मि ॥ ८९५
तत्थ य दंसेइ पुणो पुलिंदवंदाई भीमरूवाई।। ___ 10 'छेदह भिंदह [ मारह ]' भणमाणाई अणेगाई ॥ ८९६
[एस ] भएण [ण ] जिप्पइ कलिऊण करेइ चित्तहरणत्थं । उब्भडवेसविलासिणिरूवं चाडूणि कुणमाणं ॥ ८९७ . तेणावि अकयखोहं पसंतहिययं महामुणिं नाउं । उव[ प. २९ B]संतमणा देवी सपच्छयावा विचिंतेइ ॥ ८९८ 'एसो कोइ महप्पा तीरइ नहु चालिङ गुमाणाओ। किं वट्ट(ह)इ सिहरिनाहो पहओ वि पयंडपवणेहिं ॥ ८९९ तो दुहुँ मए विहियं किलेसिओ एस जं महासत्तो । नीसेससत्तसुहओ वढ्तो सुद्धझाणम्मेि ॥ कोउगमित्तेण मए इमस्स झाणंतरायमारद्धं । कीलस्स कए नूणं पीलियं तुंगदेवउलं ॥
९०१ उत्तमसत्तो धीरो चलिओ न वि एस सुद्धझाणाओ। पत्तं च मए पावं पावेकमणाइ पावाए ॥'
९०२ एवं पच्छायावं उच्वहमाणी मुणिस्स चलणाणं । पुरओ कयप्पणामा खामेइ मुणिं सुपरिणामा ॥ ९०३ 'भयवं ! खमाहि मज्झं अवराहमिमं महामहंतं पि । पक्खित्तं नियसीसं मया तुहंके महाभाय ! ॥ ९०४ धिद्धी मह देव[त्ते माहप्पमुक्खिऊण तुह जीए।
खलियारणा खलाए कया पयट्टस्स सिवमग्गे ॥ ९०५ ... गिह°. २ सुसुनि. ३ °वेलो. ४ नेइ. ५ °वंडाइ. ६ चाद्भणि. ७ सपच्छाया. ८ दु१. ९°माणम्मि. १० तुंम. ११ उत्तग. १२ खमाणि. १३ °भाया. १४ माहप्पमउरिक.
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