Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
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नम्मयासुंदरीए पुव्वभववण्णणा। [८६४-८७७ ] लोहमहागहगहिओ सिरिपालो संठवेइ नियदइयं । 'नाहं करेमि एवं दइए ! तं चेट्ट सुविसत्था ॥ ८६४ अकहित्ता घरणीए रयणीए निग्गओ सगेहाओ। सहस त्ति ताण धाडी पडिया हियइच्छिए गामे ॥ सन्नद्धा गामभडा पयट्टमाओहणं महाघोरं । भग्गा य तहा धाए अणुलग्गा पिट्ठओ कुढिया ॥ दहणं हम्ममाणे नियजोहे कोवजलणपञ्जलिओ। चलिओ तेसिं समुहो सिरिपालो साहससहाओ ॥ ८६७ सो एगोऽणेगेहिं समंतओ बाणघायजजरिओ। पडिओ मेइणिवीढे संपत्तो दीहरं निदं ॥
८६८ आयन्निऊण एवं सिरिप्पहा मुच्छिया गया धरणि । कहकह वि लद्धसन्ना कासि पलावे बहुपयारे ॥ ८६९ तत्तो वि सुन्नपु(वु?)ना अड्डवियड्डा वणंतरे भमिरी । कालिंजरंगिरिमूले संपत्ता आसमं एगं ॥ दिट्ठा य तावसीहिं दयापहाणाहिँ महुरवयणेहिं । बोलाविऊण भणिया- 'भद्दे ! किं इत्थ रुन्नेण ॥ ८७१ जइ रुयसि जइ वि विलवसि तिलं तिलं जइ वि कप्पसे अप्पं । सह वि न वलंति पुरिसा विहिणा उद्दालिया जे उ॥' ८७२ तो सा जंपइ- 'भयवइ ! न कयाइ वि मग्ग(ज्झ) खंडिया आणा। ता कीस सो पउत्थो मए तहा वारिओ संतो ? ॥ ८७३
___ तावसीए भन्नइ'जइ वि न ग(इ?)च्छइ गंतुं वारिजइ जइ वि निबंधूहिं । तह वि हु वच्चइ पुरिसो पगडिओ कालपासेहिं ॥ ८७४ किं तस्स सोइयत्वं धम्मिणि ! चिंतेहि अप्पणो धम्मं ।। जम्मंतरे वि जत्तो दुक्खाण न भायणं होसि ॥ एसो चिय वणवासो मूलं सवेसि होइ सुक्खाणं । पियविप्पओगदुक्खं सुविणे वि न दीसए एत्थ ॥ ८७६ न सुगंति फरुसवयणं आणं न सुणंति कस्सइ कयाई।
न मुणंति कलहवयणं वणवासी सबहा [प. २९ A] धन्ना ॥ ८७७ १ दहण, २ कालिनर. ३ फरस. ४ कयाइं.
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