Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 104
________________ [ १०३० - १०४४ ] नमयासुंदरी कहा | जायइ धस्स नासो जणस्स पुवंतराय दोसाओ । तेण परिंदाईणं रूसइ लोगो मुहा सवो || अन्नाणंधा जीवा करेंति कूराइँ ताइँ कम्माई | नासंतरुयंतस्स व अणुमग्गं जाइँ धावंति ॥ भो भो ! महाणुभावो वीरजिविंदस्स सासणे लीणा । काऊण समणधम्मं दुक्खाण जलंजलिं देह ||' पभणइ महेसरो तं - 'जं पत्तं बब्बरे तुमे दुक्खं । तं सोउं पि न सको किं पुण सोढुं जणो अन्नो ॥ तस्स वि अहं निमित्तं हा ! धिद्धी निग्विणो महापावो । पाविज किं कयाई सोहिं बोहिं च जिणधम्मे ॥' पण पवत्तिणी तं - ' वारं वारं किमेवमुल्लवसि १ । नत्थ असझं किंचि वि सावग ! जिणभणियदिक्खाए ।। १०३५ सुबइ दढप्पहारी चोरो अचंतकूरकम्मो वि । सामन्नाओ पत्त सुद्धिं सिद्धिं च सुक्रयाओ ॥ १०३३ १०३४ 10 १०३६ १०३७ ही सुहत्थरी निम्मलसुयनाणलोयणो एत्थ | नीसेस पाणिपरिणाम जाणओ तस्समीवम्मि ॥ आलोइऊण पावं पालिज्जसु निम्मलं समणधम्मं । सोहिउवाओ एसो मा धरसु मणम्मि संदेहं ॥ भुता तुम भोगा मुणियं संसारवासने गुन्नं' । भुते पत्तलिचाओ संपइ गिहवासचाओ ते ||' रिसिदत्ता विरुयंती वृत्ता - 'जइ वल्लहा अहं अंबे ! | लग्ग ममाणुमग्गं मग्गे वाणनयरस्स || अन्नह रुन्नं सुन्नं नेहो वि हु कित्तिमो व पडिहार | जलमिवसइ लोगो सद्धिं खलु वल्लहजणेणं ॥ तुम्हाणमेव बोहणनिमित्तमहमागया इह पुरम्मि । yas सत्थे जओ इ धम्मम्मि जोइजा ||' नम्म पवत्तिणी पवत्तियाई दुवे वि वयगहणे । सोच्चि सच्चो मित्तो जो पावाओ नियत्तेइ ॥ [ सुहत्थिरिया धम्मदेसणा इत्थंतरम्मि पत्तो सुहत्थिसू प. ३३ ]री महामुणी तत्थ । आवासिओ य रम्मे उज्जाणे नंदणवणम्मि || २ भावो. ३ गुत्तं. ४ लमासु. ५] सिद्धि. १ सुहा. Jain Education International For Private & Personal Use Only ९१ १०३० १०३१ १०३२ १०३८ १०४० १०३९ २० १०४१ १०४२ १०४३ 5 १०४४ 15 25 30 www.jainelibrary.org

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