Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
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[१०५९-१०७३] नम्मयासुंदरीकहा ।
सवगुणसंगया वि हु बालत्ते केइ जंति पंचत्तं । अन्ने नवतारुन्ने तेसिं पि हु दुल्लहो धम्मो ॥ १०५९ चिरजीवीण वि बुद्धी धम्मे विरलाण होइ केसिंचि । गुरुसंपओगविरहा बहूण न हु साफलं होइ॥ १०६० धम्मे मई कुणंता अन्नाणपासंडिगोयरावडिया । भामिजंति अणेगे जह चक्कं कुंभयारेण ॥
१०६१ कारिजंति अधम्मं बाला धुत्तेहिं धम्मबुद्धीए । भोइज्जंति विसन्नं नूणं चिरजीवियनिमित्तं ॥ १०६२ गुरुणा वि कहिजंते धम्मे बोहिं न केइ पार्वति । चिक्कणनाणावरणस्स कम्मणो हंदि उदएण ॥ १०६३ 10 बुद्धे वि धम्मरूवे न सदहाणं बहूण संभवइ । मिच्छत्तमोहणिजे तिचे उदयम्मि संपत्ते ॥
१०६४ सद्दहमाणा वि नरा धम्मं जिणदेसियं विगयसंग । न कुणंति समणधम्मं [प. ३४ A] गिद्धा गिहदेसविसएसु ॥१०६५ दुलहं गुणसंदोहं लद्धं पि हु ते पमायदोसेण । हारिति मंदभग्गा धमियं कणयं व फुकाए ॥ १०६६ जह सागरम्मि पडिओ कीलयकज्जेण भिंदई नावं । इय विसयकए जीवो हारइ पत्तं पि सामग्गि ॥
१०६७ जह कोदवाण छित्ते छित्तुं कप्पूरतरुवरसमूहं । वाडी करेइ एवं भोगत्थी चयइ जो धम्मं ॥ कहकह वि दुक्खपत्तं कप्पतरूं कोई पत्थइ बोरे । पत्ते पुवगुणोहे एवं विसएसु जो रमइ ॥
१०६९ अत्थो अणत्थमूलं बंधुजणो बंधणं विसं विसया। पसमसुहामयभारओ संजमरयणायरो एगो ॥
१०७० जरमरणवारिपूरे विओगरोगाइगाहगहणम्मि । मा पडह भवसमुद्दे चरित्तपोयं समारुहह ॥' १०७१ देसणमिमं सुणित्ता संबुद्धा तत्थ पाणिणो बहवे ।
संसारभउबिग्गा जाया समणा समियमोहा ॥ १०७२ [ महेसरदत्तस्स जणणीसहियस्स चरणपडिवत्ती] सो वि महेसरदत्तो संपावियभावचरणपरिणामो ।
30 आलोइयदुचरिओ जणणीसहिओ ठिओ चरणे ॥ १०७३ १ पंपत्ती. २ मयं. ३ जीवीय'. ४ कम्मुणो, ५ आदएण. ६ कंजेण, ७ पोह.
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