Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
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[१०८९-११०३
नम्मयासुंदरीकहा।
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असुइवसमंससोणियचम्मट्टिण्हारुवारवीभत्थं । मोत्तण तणुं तणमिव उववन्नो मासभत्तंते ॥ कप्पे सणंकुमारे अइसयरमणेञ्जसुरविमाणम्मि । सुरविसरकयाणंदो सुरिंदसामाणिओ देवो ॥ कडयमणिमउडकुंडलतुडियाभरणेहि भूसियावयवो । हारहारवत्थो(च्छो) दीहररेहंतवणमालो ॥ विनायपुत्वजम्मो काउं सवाइँ देवकिच्चाई। अच्छरगणमज्झगओ विलसइ एगंतसच्छंदो ॥ एव महेसरदत्तो साहू साहूण सनिहाणेण । भत्तपरिन्नाणसणं काअणाराहिऊणं तो ॥ तत्थेव देवलोए सुरवइसामाणियत्तमणुपत्तो। अवगयचारित्तफलो विलसइ सम्मत्तथिरचित्तो॥
[नम्मयासुंदरिए सग्गगमणं] कालेण कालकालं पवत्तिणी नम्मया वि नाऊण । उच्चरियसबसल्ला सयलं संघ खमावित्ता । समणीण सावियाण य विसेसओ वागरेइ उवएसं । 'आसायणं मुणीणं मगसा वि हु मा करेजाह ॥ जो हीलइ साहुजणं स हीलणिजो भवे भवे होइ। अकोसंतो वहबंधणाइ पावेइ पइजम्मं ॥ जो पुण देइ पहारं समत्तजियबंधवाण साहूण । वजग्गिघोरजालावलीसु सो पञ्चए नरए ॥ तत्थेव अत्थहाणी होइ मुणीणं अवन्नवायाओ। इट्ठजणविप्पओगो [अ]कालमरणं च जीवाणं ॥ अहव असज्झो देहे संजायइ कोइ दारुणो वाही । हसिया वि रोवियवे होंति निमित्तं न संदेहो ।' एवं भणिऊण फुडं कहेइ नीसेसमप्पणो चरियं । जेण निसुएण जाओ संवेगो समणसड्ढीणं ॥ ताहे मतपरिवं सम्म पालेइ मासपरिमाणं । जीवियमरणासंसप्पओगपरिवजियमईया ॥ चइऊण तणुकरंकं पत्ता तत्थेव तइयकप्पम्मि ।
सुरनाहसमाण परियरआयप्पमायोहिं ।। १ द्वियाहारु. २ °चिर'. ३ °सल्लो. ४ दाणी.
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