Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
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महेसरदत्तस्स जणणीसहियस्स चरणपडिवत्ती। [१०७४-१०८८]
संजाया कयकिच्चा पवत्तिणी णाणचरणलाभेण । संवेगमावियाई तिन्नि वि तप्पंति तवमुग्गं ।। १०७४ छट्ठाओ अट्टमाओ तह य दसमओ मासओ अद्वमासा
अंतं पंतं [च रुक्खं ] तणुजवणकए किं पि भुंजंति भत्तं । सीयं उन्हं च तन्हं खुहमवि बहुसो भावसारं सहते
सोसेउं पावपंकं गुरुपयकमले भिंगरूवं वहंता ॥ १०७५ अट्टेण रुद्देण य दूरियाई धम्मेण सुक्केण य संजुयाई ।। सुत्तेण अत्थेण य ताणि नूणं भावेंति अप्पाणमहोनिसिं पि॥ १०७६
एवं विहरंताई कयाइँ पत्ता नम्मयपुरम्मि । परितुट्ठो बंधुजणो सबो भणिउं समाढत्तो ॥ १०७७ 'धन्नाई पुन्नाई तुब्भे तुम्हाण जीवियं सहलं ।। सामन्नमणन्नसमं जाई पालेह एयं ति ॥
१०७८ अम्ह कुले जायाणं जुत्तं एवंविहं अणुढाणं । सयलो वि अम्ह वंसो अलंकिओ नूण तुम्भेहिं ॥ १०७९ अइधन्ना सि पवत्तिणि ! रिसिदत्ता ठाविया जओ तुमए । पुवं सावगधम्मे इन्हिं पुण दुक्करे चरणे ।'
१०८० एवमुववृहिया वंदिया य सयणेहिँ हट्टतुटेहिं । सेसो वि नयरलोगो जाओ तदंसणे मुइओ ॥ १०८१ तीए तत्थ ठियाए जाओ धम्मुञ्जओ सयललोगो। पचाविओ य विहिणा सयणजणो सेसलोगो वि ॥ १०८२ ता जत्थ जत्थ विहरइ सूभगआएजकम्मजोगेण । पडिबोहइ भवजणं कुमुयज(व)णं चंदलेह व ।। १०८३ पावेइ केइ चरणं अन्ने ठावेइ देशविग्यम्मि । गाहेइ केइ सम्म उप्पायइ बोहिबीयाई ॥ सासगमुब्भासंती विहरइ सा जत्थ जत्थ देसम्मि । जायइ लोगो गुणगहणवावडो तत्थ सवत्थ [ प. ३४ । ] ॥१०८५ अह अन्नया कयाई एगारसअंगधारिणी होउं । तवनियमसोसियंगी रिसिदत्ता गुरुअणुन्नाया ॥ १०८६ आलोइयपडिकंता सम्म संघस्स खामणं काउं। भत्तपरिन्नपइन्नामंदरसिहरं समारूढा ॥
१०८७ चउसरणगमणवु(दु?)कडगरिहासुकडाण(णु)मोयणं काउं ।। झायंती य सुणंती पंचनमोकारमविरामं ॥
१०८८ 1 °सार. २ 'रूत्र. ३ धनायं. ५ पुनायं. ५ संता.
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