Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिं घी जैन ग्रन्थ मा ला --*-----*-* [ ग्रन्यांक ४८ ]**-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-******* संस्थापक ख० श्रीमद् बहादुर सिंहजी सिंघी संरक्षक श्री राजेन्द्र सिंह सिंघी तथा श्री नरेन्द्र सिंह सिंघी प्रधान सम्पादक तथा संचालक | आचार्य जि न विजय मुनि ®ம் बाडलवटकानाचा प्रामहेन्द्रसूरि-विरचिता [प्राकृतभाषा-निबद्धा] नम्मया सुन्दरी कहा संपादनकत्री कुमारी प्रतिभा त्रिवेदी, एम्. ए. (प्राध्यापिका भा. वि. भवन कोलेज, बम्बई) *-*-*-*-*-*-*-*-*[प्रकाशनकर्ता] *-*---*-*-*-*-*-*-*-*---*-*-*-* सिंघी जैन शास्त्र शिक्षा पीठ भारतीय विद्या भवन, बम्बई. ७ ---- ---- - - -- - -- --- ------- ------- ----- --*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*--*-*-*-*-*- * वि. सं. २०१६] Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वर्गवासी साधुचरित श्रीमान् डालचन्दजी सिंघी बाबू श्री बहादुर सिंहजी सिंधीके पुण्यश्लोक पिता स्वर्गवास-वि. सं. १९८४, जन्म-वि. सं. १९२१, मार्ग. वदि ६ Keo Se 華石 पोष सुदि ६ Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दानशील - साहित्यरसिक - संस्कृतिप्रिय स्व० बाबू श्री बहादुर सिंहजी सिंघी Jain Education Intemali अजीमगंज - कलकत्ता जन्म ता. २८-६-१८८५ ] [ मृत्यु ता. ७-७-१९४४ Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिंघी जैन अन्य मा ला ti t ute. [ग्रन्थाङ्क ४८]-trette..... श्रीमहेन्द्रसूरि-विरचिता [प्राकृतभाषा-निषद्धा] नम्म यासुन्दरी कहा IR DALCH AND DISTIC JOJOULILAIMIMONITI - - श्रीटाटा गिधी m SINGHI JAIN SERIES ......[NUMBER.48] ni t NAMMAYA SUNDARI KAHĀ ÇA PRAKRIT WORK ] OF MAHENDRA SŪRI Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कलकत्ता निवासी साधुचरित-श्रेष्ठिवर्य श्रीमद् डालचन्दजी सिंघी पुण्यस्मृतिनिमित्त प्रतिष्ठापित एवं प्रकाशित सिंघी जैन ग्रन्थ मा ला [जैन आगमिक, दार्शनिक, साहित्यिक, ऐतिहासिक, वैज्ञानिक, कथात्मक - इत्यादि विविधविषयगुम्फित प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश, प्राचीनगूर्जर, राजस्थानी आदि माना भाषानिबद्ध सार्वजनीन पुरातन वाङ्मय तथा नूतन संशोधनात्मक साहित्य प्रकाशिनी सर्वश्रेष्ठ जैन ग्रन्थावलि ] प्रतिष्ठाता श्रीमद् - डालचन्दजी - सिंघीसत्पुत्र स्व० दानशील - साहित्यरसिक - संस्कृतिप्रिय श्रीमद् बहादुर सिंहजी सिंघी SRIBABADUR SINGHAR SING प्रधान सम्पादक तथा संचालक आचार्य जिन विजय मुनि अधिष्ठाता, सिंघी जैन शास्त्र शिक्षापीठ निवृत्त ऑनररि डायरेक्टर भारतीय विद्या भवन, बम्बई * संरक्षक श्री राजेन्द्र सिंह सिंघी तथा श्री नरेन्द्र सिंह सिंघी प्रकाशक अधिष्ठाता, सिंघी जैन शास्त्र शिक्षा पीठ भारतीय विद्या भवन, बम्बई जयन्तकृष्ण ह. दवे, ऑनररी डायरेक्टर, भारतीय विद्या भवन, चौपाटी रोड, बम्बई, नं. ७, द्वारा प्रकाशित तथा - लक्ष्मीबाई नारायण चौधरी, निर्णयसागर प्रेस, २६-२८ कोलमाट स्ट्रीट, बम्बई, नं. २, द्वारा मुद्रित Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री महेन्द्रसूरि - विरचिता [ प्राकृत भाषा - निबद्धा ] नम्म या सुन्दरी कहा [ देवचन्द्रसूरिकृत संक्षिप्त प्राकृत कथा, जिनप्रभसूरिकृत अपभ्रंशभाषामय नमयासुन्दरी सन्धि, तथा मेरुसुन्दरकृत गुर्जरभाषागद्यमय बालावबोधसमन्वित ] * संपादन कर्त्री कुमारी प्रतिभा त्रिवेदी, एम्. ए. प्राध्यापिका भा. वि. भवन कोलेज, बम्बई विक्रमाब्द २०१६ ] प्रथांक ४८ ] भारतीय प्रकाशनकर्ता सिं 'घी जैन शास्त्र शिक्षा पीठ भारतीय विद्या भवन, बम्बई www बंबई भवन 8 प्रथमावृत्ति - पंचशतप्रति [१९६० खिस्ताब्द [ मूल्य रु. ४/४० Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - किंचित् प्रास्ताविक महेन्द्रसूरि रचित 'नम्मयासुन्दरी कहा' (सं० नर्मदासुन्दरी कथा )नी मूळ प्रति, मने सन् १९४२-४३ मां जैसलमेरना ज्ञानभंडारोन अवलोकन अने संशोधन करती वखते दृष्टिगोचर थई हती । कागळ पर लखेली ए प्रति कोई ५०० वर्ष जेटली प्राचीन जणाती हती । में ते वखते तेना परथी प्रतिलिपि करावी लीधी । सिंघी जैन ग्रन्थमालामा विशिष्ट रचनावाळी प्राकृत कृतिओ प्रकट करवानो जे उपक्रम में कर्यो हतो, तेमां आ कथाने पण प्रकट करी देवानो मारो विचार थयो अने तदनुसार प्रेस माटे कोपी तैयार करवा मांडी। ए दरम्यान, विदुषी कुमारी प्रतिभा त्रिवेदी एम्. ए. ए, मारा मार्गदर्शन नीचे, बम्बई युनिवर्सिटीमां पीएच्. डी. माटे पोतानुं रजीस्ट्रेशन नोंधाव्युं अने भारतीय विद्याभवनमा प्रविष्ट थई अध्ययन करवानी इच्छा व्यक्त करी । में ए बहेनने पोताना थिसीझ माटे प्रस्तुत कथानुं विशिष्ट परीक्षणात्मक संपादन करवानुं कार्य सूचव्यु, जे एमणे बहु उत्साहथी स्वीकार्यु अने मारा मार्गदर्शन प्रमाणे, एमणे बहु ज खंतथी पोतानुं अध्ययन चालु कयु। ___ जूना हस्तलिखित ग्रन्थोनी लिपि वांचवा-उकेलवामां अने शास्त्रीय संपादननी दृष्टिए प्राचीन ग्रन्थोना पाठो विगेरेनी अशुद्धि-शुद्धि आदि माटे केवी दृष्टिए काम लेवू विगरे विषयमां, ए बहेने सारो श्रम उठाव्यो अने तेमां योग्य प्रावीण्य मेळव्यु । प्रस्तुत कथानी मूळ वाचना बराबर तैयार थई गया पछी में एने प्रेसमां छापवा आपी दीधी अने धीरे धीरे एनुं मुद्रण कार्य थतुं रघु । बीजी बाजू कुमारी त्रिवेदीए, एना अंगेना परीक्षणात्मक विवेचननी संकलना करवानुं काम चालु राख्यु । केटलोक समय व्यतीत थतां एमनी शारीरिक स्थिति जरा अस्वस्थताजनक रहेवा लागी अने तेथी एमर्नु अध्ययनात्मक कार्य अटकी पड्यु । ए दरम्यान मारो पण बम्बईनो निवास अस्थिर बन्यो अने हुं राजस्थाननी नूतन राजधानी जयपुरमां, मारा निर्देशन नीचे स्थापवामां आवेल 'राजस्थान पुरातत्त्व मन्दिर 'नी रचना अने व्यवस्था माटे वारंवार त्यां जवा-आववामां व्यस्त रहेवा लाग्यो । वच्चे वच्चे, ज्यारे ज्यारे, बम्बई आववानो प्रसंग आवतो त्यारे ए बहेनने पोताना थिसीझनुं काम पूर्ण करवा सूचना करतो रहेतो। परंतु समयनुं व्यवधान थई जवाथी तेम ज ते पछी भारतीय विद्याभवनमा संस्कृत भाषाना अध्यापन- कार्य पण स्वीकारी लेवाथी, एमने पोताना थिसीझनुं कार्य हाल तरत पूर्ण करवा जेटलो अवकाश अने उत्साह बंने न जणावाने लीधे, में आ कथाने अत्यारे आम मूळ रूपे ज प्रकट करी देवार्नु उचित धायुं छे । जो ए बहेन नजीकना भविष्यमा पोतानुं थीसीझ पूर्ण करशे तो ते, एना परिशिष्ट रूपे बीजा भागमा प्रकट करवानी व्यवस्था थशे. Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नर्मदा सुन्दरी कथा आ पुस्तकमां, सर्वप्रथम महेन्द्रसूरिरचित प्राकृत 'नम्मयासुन्दरीकहा' मुद्रित करवामां आवी छ । एनी कुल १११७ गाथा छ । वच्चे बच्चे केटलोक गद्यभाग पण छे। तेथी एकंदर एनो ग्रन्थान परिमाण १७५० श्लोकप्रमाण छे- एम एनी मूळ प्रतिना अन्ते ज लखेलं मळे छे । एनी रचना महेन्द्रसूरि नामना आचार्य विक्रम संवत् ११८७ मा करेली छे । महेन्द्रसूरिए करेला उल्लेख प्रमाणे मूळ ए कथा एमणे शान्तिसूरि नामना आचार्यना मुखथी सांभळी हती। महेन्द्रसूरिनी आ रचना बहु ज सरल, प्रासादिक अने सुबोधात्मक छे । कथानी घटना आबाल जनने हृदयंगम थाय तेवी सरस रीते कहेवामां आवी छे । वच्चे बच्चे लोकोक्तिओ अने सुभाषितात्मक वचनोनी पण छटा आपवामां आवी छ । प्राकृत भाषाना अभ्यासिओ माटे आ एक सुन्दर अध्ययनने योग्य रचना छ । ए मुख्य कथाना परिशिष्ट रूपे, एना पछी श्रीदेवचन्द्र सूरिनी रचेली पण एक कथा आपवामां आवी छ । देवचन्द्र सूरि ते सुप्रसिद्ध कलिकालसर्वज्ञ गणाता आचार्य हेमचन्द्रना गुरु छे । तेमणे पोताना पूर्वगुरु, आचार्य प्रद्युम्नसूरिरचित 'मूलशुद्धिप्रकरण' नामना प्राकृत ग्रन्थ उपर विस्तृत टीकानी रचना करी छे । ए टीकामां उदाहरण रूपे, अनेक प्राचीन कथाओनी संकलना करी छे, तेमां प्रस्तुत 'नम्मयासुन्दरी' अर्थात् नर्मदासुन्दरीनी कथा पण, प्रसंगवश, संक्षेपमा आलेखी छे । देवचन्द्र सूरिनी आ रचना लगभग २५० जेटली गाथामां ज पूरी थाय छे । पण कथागत मूळ वस्तुनुं परिज्ञान मेळववा माटे आ रचना पण बहु उपयोगी छे। खरी रीते महेन्द्रसूरि वाळी कथानो मूलाधार आ देवचन्द्र सूरिनी ज रचना होवानो संभव छ । देवचन्द्र सूरिना अन्तिम उल्लेख प्रमाणे नर्मदासुन्दरीनी मूळ कथा वसुदेवहिंडी नामना प्राचीन कथाग्रन्थमां गूंथेली छे अने तेना ज़ आधारे देवचन्द्र सूरिए पोतानी रचना करेली छे । देवचन्द्र सूरिनी कृति पछी जिनप्रभ सूरिए अपभ्रंश भाषामां रचेली 'नमयासुन्दरिसन्धि' नामनी कृति मुद्रित करवामां आवी छ। आ कृति अपभ्रंश भाषाना अभ्यासनी दृष्टिए तेम ज नर्मदासुन्दरीकथागत वस्तुनुं तुलनात्मक अध्ययन करवानी दृष्टिए उपयोगी थाय तेम छे। एज रीते, ते पछी मेरुसुन्दर गणिए प्राचीन गुजराती गद्यमां लखेली 'नर्मदासुन्दरी कथा' पण मुद्रित करवामां आवी छे । मेरुसुन्दर गणिए 'शीलोपदेशमाला' नामना प्राचीन प्राकृत ग्रन्थ उपर, प्राचीन गुजराती भाषामां बहु ज विस्तृत बालावबोध नामनुं विवरण लख्यु छे, जेमा आवी अनेकानेक प्राचीन कथाओ आलेखित करवामां आवी छ । प्राकृत मूल कथाना अध्ययन अने विवेचनमा उपयोगी होवाथी आ रचना पण अहीं संकलित करवामां आवी छ। एम, २ प्राकृत रचना, १ अपभ्रंश भाषारचना, अने १ प्राचीन गुजराती गद्य रचना- मळीने ४ कृतिओनो आ सुन्दर संग्रह 'सिधी जैन ग्रन्थमाला'ना ४८ मा मणिना . Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नर्मदा सुन्दरी कथा रूपमं अभ्यासिओना करकमलमा उपस्थित करवामां आवे छे। आशा छ के ग्रन्थमालाना अन्यान्य प्रथरत्नोनी माफक आ संग्रह पण आदरणीय थशे ज । अन्तमा विदुषी कुमारी प्रतिभा त्रिवेदिए प्रस्तुत संग्रहना संपादन माटे जे परिश्रम उठाव्यो छे ते माटे एमने मारा हार्दिक अभिनन्दन आपुं छु अने साथे शुभाशीर्वाद पण आपुं छु के ए पोतार्नु थिसीझ पूर्ण करी तेने प्रकट करवा जेटलं स्वास्थ्य अने समुत्साह प्राप्त करे। भारतीय विद्याभवन बम्बई --[ता. ५.३.६०] -मुनि जिनविजय - - - Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Mmsur १० विषयानुक्रम १. महिंदसूरिरइया नम्मयासुन्दरी कहा _ प्रसंग १ पत्थावणा २ महेसरदत्तमाया-रिसिदत्ताजम्मवण्णणा ३ रुद्ददत्तस्स रिसिदत्तोवरि रागाणुभावो ४ रुद्ददत्तस्स कवडसावगधम्मांगीकरणं ५ रुद्ददत्तस्स रिसिदत्ताए सह परिणयणं ६ रिसिदत्ताए सस्सुरगिहगमणं ७ पीइगिहाओ रिसिदत्ताए संबंधविच्छेओ ८ नम्मयासुन्दरीजम्मवण्णणा ९ नम्मयानईतीरे नम्मयपुरनिवेसो १० नम्मयासुन्दरीरूववण्णणा ११ रिसिदत्ताए सपुत्तकए नम्मयासुन्दरीमग्गणा १२ महेसरदत्तस्स मायामहगिहगमणं १३ महेसरदत्तस्स नम्मयासुन्दरीपरिचयो १४ महेसरदत्तस्स नम्मयासुन्दरीअत्ये पत्थणा १५ नम्मयासुन्दरीवीवाहोसको १६ मुणिपदत्तसावप्पसंगो १७ जवणदीवं पइ पयाणं १८ महेसरदत्तस्स कुसंका १९ नम्मयासुन्दरीपरिच्चाओ २० नम्मयासुन्दरीए सुन्नदीवे पलावो २१ धम्मज्झाणेण कालगमणं २२ चुलपिउणा सह मिलणं बब्बरकूलगमणं च २३ वीरदासस्स हरिणीवेसागिहगमणं २४ हरिणीचेडीहिं नम्मयासुन्दरीए हरणं २५ वीरदासकया गवसणा गिहं पइ पयाणं च २६ हरिणीए कवडसंभासणं २७ हरिणीकयोवएसो २८ हरिणीकया कयत्थणा س س س س س Wom Mmoc W०००m س ه ه Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५ २ ६५ ६८ ७४ ७७ नर्मदा सुन्दरी कथा २९ करिणीकयं दुक्खमोयणं . ३० हरिणीमरणं नम्मयासुन्दरीए सामिणीकरणं ३१ धणेसरकहाणयं . ३२ नम्मयासुन्दरीए राइणो निमंतणं ३३ जिणदेवेण सह मिलणं ३४ नम्मयासुन्दरीए मोयणं ३५ सयणाण सह मिलणं ७१ . ३६ सुहत्थिसूरिणो नम्मयपुरे आगमणं ३७ पुत्वभववण्णणा ३८ दिक्खागहणं ३९ पवत्तिणीपयठवणा ४० कूवचन्द्रगामं पइ गमणं ४१ महेसरदत्तकयो पच्छायावो ४२ सुहत्थिसूरिकया धम्मदेसणा ४३ महेसरदत्त-तज्जणणी-चरणपडिवत्ती ४४ नम्मयासुन्दरीए सग्गगमणं २. दवेचंदसूरिकया नम्मयासुन्दरीकहा ९७-११७ ३. जिणप्पहसूरिविरइया नमयासुन्दरी सन्धि ११८-१२२ ४. मेरुसुन्दरगणिकृता प्राचीनगूर्जरभाषाप्रथित गद्यमयबालावबोधरूपा नर्मदासुन्दरी कथा १२३-१२८ * * * * ง ง ९ 8 ernational www.jainel Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिंघी जैन ग्रन्थमाला] [नम्मयासुन्दरीकहा an International प्रमाण पोरीपरिमलबदलांधातासकारीफ़ासादिवंगावीतयुसमाणुगमबहसारसम्महेजस्व प्रधानमयेनानिरंत समागमालिकालंपालियुआनयतामाधामुढाममनुबालेवहामिमहाविदादातरसाइयोधरिवाजा तिमारकंधुसम्मकोस।।।१०० रियमतामयंत्रम्मयासेती अवज्ञा दियपायडपससणियममुदवद्वाना. Amatणाणावरहियरसिएहिंसलिसरिनहितधामकदा पुगएमासाहमादिमोधाममासम्मनस्यामसूद संवनिहामि॥श्वयनंगस्मनिमिalBamaniनामुलीशकायबापालेयसीलपालवाएविनायकराबदवासका ग्राहामेलामासुपरिसादाशनम्मय क्षरिवरियनितांजरतहि विविषयमवयाएकहाकिंचिकणमहिवान! गयधमायsalaसंकायाचपएसायका हावादिसामहिंदारिहि मिययसीत्सटिशनसिएदितपणे पंपियाडतिमिदनालिहाजालिहाश्वाए। कादशाश्वासम्मोतिसिंपवयपदवीकारण्यात mi संतीकारउसंतीतियारसयलजीवलोयरस तदत संमिनाक करारारकासमतासंघाउनिम्मायाएस कहाकिमसंवनारवयातीएक्वारसदिसएदिसत्रा सीदिविसालामायासियमाश्मीएवारमिदिवसमा हस्सा लिहियाबढमायरिमा मुसिमागविसीलवेदिव|Romananlal निर्मदासंदरीकधासमाघrjupugni महेन्द्रसूरीकृत 'नम्मयासुन्दरीकहा की प्राचीन प्रतिका अन्तिम पत्र www.jainelibre Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ernational www.jainel Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिमहिंदसूरिकहिया नम्म या सुंदरी कहा [ पत्थावणा ] 'जय भुवईवो' सर्व्वन्नू जस्स नाणजुन्हाए । लक्खिज्जइ भवभवणे कालत्तयसंभवं वत्थु ॥ अविरयनमंतसुरवरमणिरयण किरीडको डिकोडीहिं । मसिणी यपयवीढा जयंति तित्थेसरा सर्व्व ॥ उवसग्गपरी सहसत्तवाहिणी वाहिणी तिहुअणस्स । एगेण जेण विजियाँ सो जयउ जिणो महावीरो निम्महियमयणकरिणो कुमयकुरंगप्पयारनिडवणा । वरसीहा हुंति सहाया सया मज्झ ॥ काउं सरस्सईए सरणं हरणं समत्थविरघाणं । वोच्छामि नम्मयासुंदरीऍ चरियं मणभिरामं ॥ भणियं चिय फुडमेयं विशुद्धबुद्धीऍ पुत्रपुरिसेहिं । तह वि य गुणाणुराया ममावि भणणुजमो जाओ ॥ बहुसो वि भन्नमाणं सुणिजमाणं पि धम्मियजणस्स । कभरसायणमेयं एगंतसुहावहं होइ ॥ गुणवत्रयेण उत्तमजणस्स झिज्यंति असुहकम्माई | जवसमइ दाहमंगे लग्गंतो चंदकिरणोहो || सुपुत्रं पि सुणि सुहयरमेयं महासईचरियं । यि विसरणो मंतो कन्नेसु पविसंतो ॥ उत्तमकुलप्पस्या निम्मलसम्मत्तनिचलसुखीला | अणुचिमणधम्मा न वनणिजा कह णु एसा ॥ ता होऊण पसन्ना सभावमज्झत्थमाणसा सुयणा । निसुह पावहरणं चरियमिणं मे भणितं ॥ जह जाया उबूढा चत्ता य समुदमज्झदीवम्मि | चुल्लपो य मिलिया पुणो वि चुक्का जहा तचो ॥ 29 ि ४ १० & 15 9 १० + The Ms. begins with ॥ ६ ॥ ॐ नमो वीतरागाय ॥ Wherever the text is corrected the original readings of the Ms. are noted in the foot-note :- १ पईवो. २ वत्थं. ३ विजया ४ अणुविज्ञ 20 N ११ 25 १२ Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महेसरदत्तमाया-रिसिदत्ताजम्मवण्णणा। [१३-२५ ] अकलंकियधम्मगुणा बब्बरदीवम्मि जह चिरं वुत्था । मोयाविया य पिउणो मित्तेण गया य कुलगेहं ॥ सोऊण भवं पुरिमं सुहत्थिररिस्स पायमूलम्मि । निक्खंता संपत्ता कमेण तह देवलोगम्मि ॥ सयलं कहंगमेयं वत्तवं इत्थ पत्थुयपबंधे । संखेव-वित्थरेणं पडुक्खरं तं निसामेह ।। www '10 15 [महेसरदत्तमाया-रिसिदत्ताजम्मवण्णणा] अत्थि सरिसेलंकाणणगामागरनगरनिवहरमणीओ। नामेण मज्झदेसो महिमंडलमं [प. १.] डणो देसो॥ १६ जत्थगामा नगरायंते नगराणि ये देवलोगभूयाणि । दट्टण व संतोसा लच्छी सयमेव अवयरिया ॥ . आवासिएहिँ निचं पए पए सत्थवाहसत्येहि । एयं विसममरनं एयं ति न नजइ विसेसो ॥ तत्थऽत्थि पुरं पयर्ड धणधनसमिद्धलोयसंपुर्ण । नामेण वड्डमाणं पवड्डमणि जणधणेहिं ॥ जिणमंदिरेसु जम्मी अणवरयपयट्टगीयनद्देसु । पत्तो पिच्छइ लोओ तणं व भावेइ सुरलोयं ॥ सालो जत्थ विसालो सुयणो व समुन्नओ परागम्मो । दीसंतो दूराओ भयंकरो वेरिवग्गस्स ॥ निसिपडिबिंबियतारा नीलायणवजियं च दिवसम्मि । गयणंगणं व रेहइ समंतओ खाइया जस्स ॥ कयधम्मंजणपसाया पासाया गयणमणुंगया जत्थ । रेहंति सुरघरा इव अच्छरसारिच्छपुत्तलिया ॥ सुयणो सरलसहावो परोवयारी कयत्थओं धीरो। निवसइ जत्थ सुसीलो सजणलोओ सया मुइओं ॥ ससिनिम्मलसीलाओ लज्जाविनाणविणयकलियाओ। जत्थ वरअंगणाओ घरंगणाई वि न पासंति"॥ . . ... २५ ग. २ माणं माणं पव्वट्ठजण. ३ गयणगणं. ४ धम्मा'. ५ पसाया. ६ सुशु.७°यचुओ. ८ सुइमो. ९ वरंगणाओ. १० घरगणाई. ११ पसंति... Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२६-३५] नम्मयासुंदरीकहा। तं नत्थि जं न दीसइ तम्मि पुरे वत्थु सुंदरसहावं । संपुभवमओ तो कह कीरइ तस्स विउसेहिं ॥ अवि यदहण अन] असमं निययसिरिं हरिसमजमत्तं व । नमचा व निच्चं पवणुडुयधयवडकरेहिं ॥ तं पुण पालेइ तया असोगसिरिनत्तुओ कुणालसुओ । मोरियवंसपसूओ विक्खाओ संपई राया ॥ पडिवो जिणधम्मो जेण सुहत्थिस्स पायमूलम्मि । संबोहिओ य पायं भरहद्धेऽणारियजणो वि ॥ काराविया य पुहवी अणेगजिणभवणमंडिया जेण । जिणमयबहुमाणाओ अकरभरा सावया य कया ॥ तत्थेव पुरे निवसइ सिट्टी नामेण उसभदत्तु त्ति । जीवाइतत्तवेई निचलचित्तो जिणमयम्मि ॥ जिणधम्मे धीरमई वीरमई नाम रोहिणी तस्स । कुंदेंदुजलसीला पिया हिया बंधुवग्गस्स ॥ ३२15 तेसि पि दुवे पुत्ता कमेण जाया गुणेहिँ संजुत्ता। कुलना प. १ B]हयलससि-रविणो सहदेवो वीरदासो य ॥ एगा य वरा कन्ना पहसियरइलच्छिरूवलावन्ना । गुणसयभूसियगत्ता जाया नामेण रिसिदत्ता ॥ उत्तमकुलुब्भवाणं कन्नाणं रूवकंतिकलियाणं । सहदेव-वीरदासा पिउणा गिन्हाविया पाणी ॥ एवं च तेसिं सबेसि कुलकमागयजिणधम्माणुपालणरयाणं इह-परलोयविरुद्धकिरियाविरयाणं जिणमुणिपूयासकारकरणुजयाणं परमयपयंडपासंडिवाइदुञ्जयाणं विसुद्धववहारोवजियपहाणपसिद्धीणं पुवभवोवजियपुनाणुभावपट्टमाणधणसमिद्धीणं सुहेण वचंति दीहा । इत्थंतरे रिसिदत्ता संपत्ता तरुणज-25 णमणमयकोवणं जोवणं-जायाइं तसियकुरंगिलोअणसरिच्छाइं चंचलाई लोयणाई, पाउन्भूओ पओहरुग्गमो, खामीभूओ मज्झभागो पसाहिओ य तीहिं वलयरेहाहिँ, समुट्ठिया य नाभिपउमस्स नालायमाणा रोमराई, — भरते. २ कुंदेदु. ३ पत्ता. ४ सिरिदत्ता. ५ एकं. ६ माणवण. .. 20 Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10 रहदत्तस्स रिसिदत्तोवरि रागाणुभावो। [३६-४५] पवित्थरियं नियंवफलय', अलंकियाओ जंघाओ हंसगमणलीलाए । किं बहुणा ? उकंठियाए व सवंगमालिंगिया एसा जोवणलच्छीए । - तओजत्तो जत्तो वच्चइ दंसणतण्हालुया नयरतरुणौ । तत्तो घोलिरमालइलयं व फुल्लंधुया जंति ॥ विहवमयाओ केई रूवमयाओ बहुत्तेंगदाओ । जायंति तं अणेगे कयविणया उसभदत्तस्स ॥ पडिभणइ उसमदत्तो-'तुब्मे सो वि सुंदरा चेव । किंतु मम एस नियमो समाणधम्मस्स दायबा॥ जं विसरिसधम्माणं न होइ परिणामसुंदरो नेहो । नेहं विणा विवाहो आजम्मं कुणा परिदाहं ॥ जो जो वणेई कन्नं तं तं इब्भो निवारए एवं । नै य कोइ नियं धम्मं कन्नाकज्जे परिचयइ ॥ [रुद्ददत्तस्स रिसिदत्तोवरि रागाणुभावो] 15 अभया समागओ तत्थ कूवचंद्राभिहाण[नयरवासी महेसरधम्माणुरतचित्तो महग्धभंडभरियजाणवाहणेहिं रुद्ददत्तो सत्थवाहपुत्तो । आवासिओ समाणगुणधम्मस्स कुबेरदत्तस्स मित्तस्स भंडागारसालासु । तया य [प. २५] तम्मि नयरे लोइओ कोइ महामहो वट्टइ । तत्थ य सविसेसुजलभूसणनेवत्थो सबलोओ समंतओ संचरह । कोऊहललोयणलोलयाए रुद्ददत्त-कुबेरदत्ता एगर्थं 20 हड्डे निविट्ठा नायरजणचिट्टियाइं निहालिउं पवत्ता । अवि यकत्थइ नचंति नडा कत्थइ कुइंति रासयं तरुणा। गायंति चच्चरीओ खिल्लावियं विविहकरणेहिं ॥ ४१ तह वटुंते रंगे पिक्खणवक्खित्तमाणसा लोया। अनोनपेल्लणेणं इओ तो तत्थ वियरंति ॥ ४२ - एत्यंतरे मणिरयणकिरणुजोइयभूरिभूसणाडंबरा सुचंगदेवंगवसणंसुयनेवच्छा समाणवयवेसाहिं सहियाहिं किंकरीहिं य परिवुडा समागया वमुद्देस रिसिदखा । सा य तम्मि जणसंवाहे पलोयणोगासमलहमाणी समारूढा १ नियनियवफलयं. २ अकलं. ३ °तरुणो. ४ बहूत. ५ कुं. ६ धणेह. नि. ४ एगहत्थ. ९ लातिय. १० °यक्खेत्त. ११ सुवंग'. १२ समाणं. १३ परिवुढा. Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [४३-५१] नम्मयासुंदरीकहा । पचासबहट्टोवरि, निचलनयणा पेच्छणाइ पलोइउं पवत्ता । तं ददृण विहियहियएण भणियं रुद्ददत्तेण- 'अहो छणपेच्छणयाणं वयंस! रम्मया, जेण गयणंगणागयाउ अच्छराओ नियच्छति ।' तओ हसिऊण भणियं कुबेरदतेण-'किं दिट्ठाओ तए कहिंचि अच्छराओ जेण पञ्चभियाणसि ।' इयरो भगइ-'न दिट्ठाओ, किंतु अस्थि जणप्पवाओ जहा "ता[ओ] अणमिसनयणाओ हवंति" । अणमिसनयणाओ एयाओ समासन्नहट्टोवरिं चिट्ठति, तेण भणामि अछराओ । न एरिसं रूवं माणुसीए संभवइ ।' पुणो पवुत्तं कुबेरदत्तेण 'गामिल्लओ कलिजसि अदिट्ठकल्लाणओ य तं मित्त ।। जो माणुसि-देवीणं स्वविसेसं न लक्खेसि ॥ एसा इन्भस्स सुया नयरपहाणस्स उसभदत्तस्स । जा देवीसंकप्पं संपायइ माणसे तुज्झ ॥ एसा य विसालच्छी लच्छी व सुदुल्लहा अहन्नाणं । जम्हा न चेव लब्भइ कुलेण रूवेण विहवेण ॥ जो जिणसासणभत्तो रंजइ चित्तं इमीइ जणयस्स । सो सधणो अधणो वा लहइ इमं ननहा कहवि ॥ ४६15 वत्थेहिं भूसणेहि य कीरइ न गुणो इमीए देहस्स । भुवणं उञ्जोयंती छाइजइ केवलं कंती ॥' । ४७ एयं निसामयंतो तं चेव पुणो पुणो पलोयंतो। सहस ति रुद्ददत्तो विद्धो मयणस्स बाणेहिं॥ ४८ परिभाविउं पवत्तो 'को णु उवाओ इमीऍ ला.प. २B]मम्मि १। 20 न हु धारेउं तीरइ जीयं विरहम्मि एयाए ॥ घेत्तुं बली न तीरइ एसा भडचडयरेण महया वि । सावगजणस्स भत्ते संपइरायम्मि जीवंते ॥ जइ मग्गिऊण पुवं अलहंतो सावयत्तणं काहं । तो डंभिउ ति काउं नियमा इच्छं नै साहिस्सं ॥ ५१ 25 [रुद्ददत्तस्स कवडसावगधम्मांगीकरणं ] एवमणेगहा परिचिंतिऊण नत्थि उवायांतरमन्नं ति कयनिच्छओ गओ धम्मदेवसरिसमीवं । कयप्पणामेण पुच्छिओ धम्मं । साहिओ तेहिं साहुधम्मो। पससिओ तेण, भणियं च- 'अहो दुकरकारया भगवंतो जेहिं एवंविहो कायर माणुस. २ लक्संसि. ३ विहरंगि. ४ तुला. ५ त. ६ साहिस्स. ७ उबायसेर'. ४९ Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रुद्ददत्तस्स कवडसावगधम्मांगीकरणं । [ ५२-६०] जगहिययउकंपकारओ 'दुरणुचरो' 'अंगीकओ समणधम्मो । कया पुण होही सो अवसरो जया अम्हे वि एरिसं धम्ममणुचरिस्सामो ? संपयं पुण करेह मे गिहत्थोचियधम्मोवएसेणाणुग्गहो' ति । साहूहिं भणियं - 5 10 15: 20 ५४ तमेवं जाणिऊण संविग्गं, सिक्खावियं साहूहिं देवगुरुवंदणविहाणं, पच्चक्वाणपुत्रं सयलं सावयसमायारं । तओ सो सविसेसदंसियसंवेगो विसिद्वयरदेवपूयाइकिच्च तहा काउमारद्धो जहा सधेसिं सावयाणं पहाणबहुमाणभायणं संतो । at 25. 'जिणपूया मुणिभत्ती जीवाइपयत्थंसदहाणं च । पालण मणुवयाणं वाया ( सावय १ ) गहिधम्मतत्तमिणं ॥ सोउं सवित्थरमिणं दंसियसंवेगसाहसो - 'भंते ! । लद्धं जं लहियवं पत्तं मे अज जम्मफलं ॥ माया पियाय तुमे बाढं परमोवयारिणो मज्झ । जेहि इमो अइदुलही मोक्खपहो दंसिओ मज्झ ॥' -५२ - अवि य 'धन्नो महाणुभावो नूणं आसन्नसिद्धिगामि त्ति । ५६ जस्सेरिसो दुरप्पो ( उदग्गो १) समुजमो धम्मकिरियासु ॥ ५५ जणमणजणियच्छेरा उदारया सुड दाणधम्मम्मि | जिणसंघपूयणासु धणं तणाओऽवमं गणइ ॥ एवं पत्तपसो सगोरखं सावएहिँ दीसंतो । सो रुद्ददत्तसड्ढो जाओ सुविक्खणो धम्मे || पवेसु सयलसंघं पूयइ वत्थाइएहिं वत्थूहिं । पडिला मेइ सुविहिए दिणे दिणे पत्तभरणेण || जिणसाहुसावयाणं चरियाई विम्हिओ निसामेइ । सिंगारकहार्स पुणो न देह कन्नं खणद्धं पि ॥ अवि पाविज्जर खलियं सुसंजयाणं सुसावयाणं पि । निउणेहिं पंडिएहि वि न तस्स मायापहाणस्स ॥ एवमाराहियइब्भपमुहसावयहिययस्स रुददत्तस्स वोलिया गिम्ह [१.३4] पाउसा । समागओ निष्पन्नसयलसस्सासासियासेसकासयजणो वियसियकमलसंडमंडियमहिमंडलो पफुल्छुमलियामा लईपमुहपसत्थकुसुमुजलुआणमणोहरो सर ६० ५३. ५७ ५८ १ दुरणचारो. २ पत्थ° ३ मायो ४ दुलहो. ५ सविसेसविसेस दं. ६ भावणं. gun. ८ कहास. ९ पडिएहिं. ५९ Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 15 [६१-७०] नम्मयासुंदरीकहा। यसमओ । तमालोइऊण पुच्छिओ रुद्ददत्तेण उसमदत्तो- 'समागओ मम जणयाएसो । तुम्हाणुनाए गच्छामि संपयं सट्ठाणं ।' इन्भेण भणियं- 'जणयसमी' पट्ठियस्स को विग्धं करेइ ? तहा वि अम्ह धम्मे चेता-ऽऽसोएसु चेइयभवणेसु समभुयभूयाओ अट्ठाहियामहिमाओ कीरंति । ताओं ताव पेच्छाहि, तओ जहिच्छमणुचेडेजासि । तेण भणियं- 'जमाइसह । एअमाइसं-5 तेहिं भवंतेहिं कओ महंतो ममाणुग्गहो । कहमन्नहा अम्हारिसाणमेरिसमहूसवदंसणं ति। धनो धनयरो हं साहम्मियसीह ! अन्ज मह तुमए । जं भवणनाहमहिमा निवेइया धम्मतिसियस्स ॥ जइ कहवि न साहिंतो गमणाभिप्पायमप्पणो तुज्झ । 10 मन्ने कल्लाणाणं अहो अहं वंचिओ होतो ॥ ६२ सा सा पभवइ बुद्धी हुंति सहाया वि तारिसा नूणं ।। जारिसया संपत्ती उवटिया होइ पुरिसस्स ॥' इच्चाइणी कनसुहावहेण वयणविन्नासेणोसभदत्तस्स हिययमाणंदिऊण अच्छिउं पवत्तों रुद्ददत्तो जाव अट्ठाहियामहिमा संपत्ता । तत्थ य ता पढम चिय उकंठियमाणसेहिँ सवेहिं । पउणीकयं समग्गं जिणिदभवणं तुरंतेहिं ॥ पढमं जिणबिंबाई विहिणा विमलीकयाइँ सयलाई । पवरेहिँ भूसणेहिं पसाहियाई जहाजोगं ॥ ससहरपंडरकोडं बहुवन्नविचित्तचित्तरमणिजं । । मणितारियाभिरामं पडिलंबिरमोत्तिओऊलं ॥ नाणाविहवत्थेहिं पटुंसुयदेवदूसपमुहेहिं । कयउल्लोयं लोयं विम्हावंतं समंतेण ॥ एयारिसमहरम्मं अमरविमाणं व कयजणपमो। इय विहियं जिणभवणं सहावरम्मं पि अहरम्मं ॥ ६८ तो रइया वरपूया जिणाण कुसुमेहि पंचवन्नेहिं । बहुविहर्वेभत्तिसारा महुयरझंकारसोहिल्ला ॥ तत्तो कुसुमकुडीओ पडिमाण कयाउ परिमलड्ढाओ । कप्पूरागरसाराउ धूवघडियाउ ठवियाओ ॥ १ तामा'. २ जाणया . ३°समीयं. ४ समभूय. ५ तीओ. ६ एमाइअसंतेहिं. ७ मप्पमाणो. ८ इवाणा. ९ पवनो. १० जिणिदं ... ११ पमाहियाइं. १२ जया. १३ कुसमेहिं. १४ °विहवु. १५ मंकार, १६ कुसम'. ७० Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रुदत्तस्स कवडसावगधम्मांगीकरणं। [७१-७९] सवत्थ विरइयाई फुल्लघराई विचित्तरूवाई। उड्डीकयपेच्छयजणमुहाइँ भमरोलिमुहलाई ॥ बहुवत्रएहिँ बहुभत्तिएहिँ बहुसत्थि [ प. ३ B]एहिँ कयचोछ । रइयं जिणाण पुरओ सुटु पहाणं बलिविहाणं ॥ खजगमोयगपमुहेहिँ विविहभक्खेहिँ रहयसिहराई । थालाई विसालाई पुरओ णेगाइँ दिन्नाई ॥ तह नालिकेरखज्जूरमुद्दियाअंबजंबपमुहाई । विविहाइँ वणफलाई पुरओ दिन्नाइँ धन्नेहिं ॥ इय निम्माणे रम्मे पूयाबेलिवित्थरे महत्थम्मि । हरिसुद्धसियसरीरो मिलिओ लोओ तओ बहुओ॥ गुमुंगुमिंतगहिरमद्दलं, वासंतकुसुमवद्दलं; कीरंतकरडरडरडं, पयट्टपडपडहपट्ट(ड १)प्पडं, वजंतसंखकाहलं, समुच्छलंतकंसालकोलाहलं, भवियजणपावरयपमजणं, पारद्धं भुवणनाहस्स मम चित्तेहिं विचित्तेहिं, उद्दामथुत्तेहिं; संजायतोसेहिं, गंभीरघोसेहि; पच्छा वियड्ढहिं, त[ ...... ] सड्ढेहिं; पम्हुट्ठसोएहि, साहम्मियलोएहिं । जणजणियमहातोसो पए पए नच्चमाणवरगेजो। मजणमहो पयट्टो तिलोयनाहस्स वीरस्स ॥ कत्थइ विविहभूसणमासिणीओ नचंति विलासिणाओ कत्थइ गायंति मंगलगीयाई सोवासिणीओ; कत्थइ लीलाए दिति तालियाओ कुद्दति रासयं कुलबालियाओ"; कत्थइ मंदमंदप्पणचिरीओ सूहवाओ दिति चचरीओ। एवं वड्डियकुड्डों बहुविच्छड्डो जणस्स सुहजणओ। विहिविहियसयलकिच्चो जिणाहमहूसवो वत्तो॥ कयसयलदिवसकिच्चो काऊण य जागरं महापूयं । पढमट्ठाहियकारी परितुट्ठो वासरे बीए ॥ साहम्मियाण पूयं करेइ तोसेइ गायणाईए । समण-समणीण विहिणा विहेइ पडिलाहणं हिट्ठो ॥ विरड्याउ. २ °सुहाई. ३ पसुहेहिं. ४ निम्माण. ५ °वलि . ६ गुसु. ७ पाई. ८°धुत्तेहिं. ९ गाईति. १० °बालिओ. ११ जिणनाण. १२ तोसेय. ७६ 25 30 . ७९ Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ८०-९१ ] १ कुणस. नमयासुंदरीका | एवं सत तिहीओ विहियाओ अट्ठमे दिणे इब्भं । विभवs रुदतो भालयलनिहित्तकरमउलो | 'तुम्मे धनसउना महाफलं जम्मजीवियं तुम्ह । जे वीयरायमहिमं करेह एवं महासत्ता ।। ता मह कुणसुं पसायं अट्ठममहिमं करेमि जहसत्ती । तुम्हाण पसाएणं करेमि नियजीवियं सहलं ॥' परिवडियपरितोसो इन्भो पडिभणइ - 'होउ एवं ति । गोरवठाणं अम्हं तुमाउ ननो मणे होई || किंतु - [ रुदन्तस्स रिसिदत्ताए सह परिणयणं ] अइविम्हिण तत्तो इब्भेण सुसावया समाहूया ! भणिया य - 'एस तुम्हें नवसड्डो केरिसो भाइ ? ।' १. ५ रिसिदत्तौ ६ 'चउवि. ...... २ सम्बीसु. ३ तम्ह. ४ सा. नम० २ असयं अ[ • ]लग्गं मोल्लेण पढमपूयाए । ततो सय सयवुड्डी जाया सवासुं पूयासु ॥ ८७ तं कुणसु जहासत्तिं सेसं अम्हाण वच्छ ! साहेज | तं चिय सफलं वित्तं जं वच्चइ तुम्हें साहेजे ||' [ प ४] इय तो सो धुत्तो ईसि हसतो भणेइ तं इब्भं । 'वं होसु सुप्पसनो तो सवं सुंदरं होही ॥' इय भणिय गए तम्मी 'तओ वि अन्नो सुसावगो कत्तो ?' । इन्भस्स मणे फुरियं 'दिजउ एयस्स रिसिदत्ता ॥' इय चिंतिऊण तुरियं पुच्छर सूरिं परेण विणएण । 'भयवं ! अहिणवसड्डो पडिहासइ केरिसो तुम्ह १ ॥' इय पुट्ठो भणइ गुरू - 'छउमत्था किं वयं वियाणामो । जतियमेतं तुब्भे जाणामो तत्तियं अम्हे || दीes अणनसरिसो सो एयस्स धम्मववहारो । परमत्थं पुण सावय ! मुणंति सवन्नुणो चैव ॥' अह अमम्मि दिवसे पूया सव्वायरेण तेण कया । तीच विहा जाओ सत्तसु पूयासु जावइओ || दीणाकयसिहाई थालाई सत्थियसु ठवियाई । जाई दट्ठूण पुणो सो विहु विम्हयं पत्तो ॥ ८० · ८१ ८२ ८३ ८४ ८५ 5 ८६ 15 ८८ ८९ 10 ९२ 20 ९१२० ९३३० Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 15 रुदत्तस्स रिसिदत्ताए सह परिणयणम् । [९४०५०४] एगेण तत्थ भणियं - 'अम्हे पुवं पमाइणो आसि । एयस्स सन्निहाणा संपइ सुस्सावया जाया ॥ .. अनेण पुणो भन्नइ - 'धणवइ ! सम्भावसावओ एसो। किं जंपि[ए]ण बहुणा न हु दुद्धे पूरा हुंति ॥ कवडेण किं कयाई इत्तियदवस्स कीरए चाओ। पजालिऊण भुवणं को किर उजालयं कुणइ १ ॥ इच्चाइ जंपियाई निसुणंतो सावयाण सोसिं । जाओ कन्नादाणे निच्छियचित्तो इमो इन्भो॥ निप्पाइया य तत्तो चरिमा अट्ठाहिया महामहिमा । इन्भेण तो तयंते निमंतिया सावया सवे ॥ सम्माणिऊण बहुहा सपुत्तसयणेण उसभदत्तेण । सो रुद्ददत्तसड्ढो एवं भणिओ सबहुमाणं ॥ 'उत्तमकुलप्पसूओ कलाकलावम्मि सुङ कुसलो ति । जिणसासणभत्तीए अम्हं साहम्मिओं जाओ॥ । जा जा कीरइ पूया उत्तमसाहम्मियस्स तुह अम्हे। सा सबा वि हु तुच्छा पडिहायइ अम्ह चित्तम्मि । ता परिगिन्हसु इन्हि कनारयणं इमं अणग्धेयं । जीवियसबस्स इमं अम्हाणं तह य सयणाणं ॥' १०२ पडिभणइ रुद्ददत्तो-'को वयणं तुम्ह अन्नहा कुणही । किं पुण मायावित्ते पुच्छिय जुत्तं इमं काउं ।।... इब्मेण पुणो भणियं-'मा गिण्हालंबणं इमं अलियं । जणएण लाभकले जम्हा इह पेसिओ तेसिं॥.. एसो परमो लाभो एयं ददुं न रूसिही जणओ। घरमायंती लच्छी सुहावहा कस्स नो होइ ? ॥ [प. ४.] १०५ 'एवं' ति तेण वुत्ते' कारियमिब्मेण हट्टतुडेण ।। लग्गे गणयविदिने विवाहकिच्चं निरवसेसं ॥ . आणंदियसयलजणो वित्ते वीवाहमंगले तुट्ठो। . हिययम्मि रुद्ददत्तो संपुनमणोरहो जाओ॥ . १०७ ठाऊण केइ दियहे सबुद्धिकोसल्लरंजिओ धणियं । तं रिसिदत्तालामं मनंतो रजलामं व ॥ १०८ सावका-२ दुहे. ...३ पुंभरा. ४. भडाहिया. ५साहम्मिम्मिमो.-पवणं. बु. ८ रतिही. ९ बुत्तो. १० °मणोहरो. 25 Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 415 [RAMER] . नम्मयासुंदरीकहा। तत्चो पसत्थदिवसे संभासियसयणपरियणं सयलं । ससुरकुलाणुमाओ संचल्लो नियपुराभिमुहो॥ संभासिया य पिउणा रिसिदत्ता नेहनिब्भरमणेण । 'सयलसुहमूलभूए सम्मत्ते निच्छिया होज॥ । चियवंदणसज्झाए पञ्चक्खाणम्मि उजुया होज । सुढे सुसीलविणीया दयालुया सवजीवेसु ॥ जह सायरमज्झगओ पोयं मोत्तूण मंदबुद्धिल्लो । जलहिम्मि दिनझंपो होइ नरो दुहसयाभागी । ११२ तह भवसायरमज्झे जिणमयपोयं सुदुल्लह मुद्धे ।। मा मुंचसु जेण न होसि भायणं दुक्खलक्खाणं ॥ ११३० एवं बहुप्पयारमणुसासिऊण [...............] । भडवंचिया(१) सपरियणेणोसभदत्तेण रिसिदत्ता ॥ ११४ जामाउगो वि भणिओ-'चिंतामणिकप्पसालसारिच्छं । ., जिणधम्मं मा मुंचसु कल्लाणपरंपराहेऊ ॥ साहम्मिणि तुह एसा धम्मसहाओ इमीइ तं होज । मुद्धजणोहसणाओ मा मुंचसु धम्मबोहित्थं ॥ इयरेण सो पवुत्तो- 'भरियं उयरं गुरूवएसेण । दिहं निसुणेसु पुणो अहयं काहं जमेत्ताहे ॥ मा कुण इमीऍ चिंतं नासी या इमा ममेयाणि । तह काहामि जहेसा न सरइ करिणी' व विंझस्स ॥ १९८20 एवं कयसंभासो सहायसहिओ इमोसमुच्चलिओ। उचियसमएण तत्तो संपत्तो कूवचंद्रमि ॥ ११९ [रिसिदत्ताए सस्सुरगिहे गमणं, सधम्मा परिभंसो य] चिरकालाओ मिलिओ उकंठियमाणसाण सयणाण । लजाएँ नेय गेण्हइ नाम पि जिर्णिदधम्मस्स ॥ १२० 25 रिसिदत्ता वि हसिजइ कुणमाणी पूयवंदणाईयं । जणएण विदिनाणं मणिकंचणघडियपडिमाणं ॥ १२१ सासूयं पिव भणिया सासु-नणंदाहिँ सा वि पुणरुतं । 'जइ चिट्ठसि अम्ह गिहे ता मुंचसु अप्पणो धम्मं ॥ १२२ रामिनहो. २ सुम्बु. ३ °एसण. ४ नासइ. ५ करणी. ६ इमी... म्मि, Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10 १२ 20 पी इगिहाओ रिसिदत्ताए संबंध विच्छेओ, पुत्तजम्मं च । [ १२३-१३४] देवयाओ नारीओ होंति जीवलोगम्मि । जं किं पि कुणइ भत्ता ताओ वि कुणंति तं धम्मं ॥ अम्हाण विधूयाओ गाओ संति सावयकुलेसु । ताओ सावयधम्मं कुणंति अम्हे न रूसामो ॥' सो पुण वृत्ततो रिसिदत्ताए वि भत्तुणो सिट्ठो । णाव त भणियं दंसियनेहं इमं वयणं ॥ 'इट्ठा सि मज्झ सुंदरि ! जीवियभूया सि सुणसु म[ह] वयणं । सयणाणं लज्जाएं न हु तीरइ पालिउं धम्मो ॥ [ प. ५4 ] तुह कजे मइँ धम्मो परिचत्तो ताव तित्तियं कालं । मम कोण पुणो तं न चयसि किं दिट्ठचेट्ठो वि ॥ एयं धरसवस्सं सवं पि समप्पियं मए तुज्झ । को जाणेइ किसोअरि ! को धम्मो सुंदरो नो वा ॥' 25 १२८ तओ सा किंचित नेहाओ, किंचि सासुय-नणंदा [ण] भयाओ, किंचि उवहासलजाए, किंचि अप्पसत्तयाए पम्हुसिऊण जणयवयणं परिचत्तजिण15 सासणकच्चा तेसिं चेव अणुट्ठाणं काउमारद्धा । अवि य - १२९ किच्छेण [ए]स जीवो ठाविजह उत्तमे गुणट्टाणे । atore चि निवst किच्छे मिच्छत्तपंकम्मि || जिणधम्मममयभूयं काउं को रमइ तुच्छमिच्छत्ते । जइ ता पुछ्कयाईं न होंति कम्माइँ गरुयाई ॥ १३० १३१ जयपावसा अमयं वमिऊण तेहिँ दोहिं पि । हालाहलं महाविसमापीयं मूढचित्तेहिं ॥ [पीइंगिहाओ रिसिदत्ताए संबंधविच्छेओ, पुत्तजम्मं च ] मग्गतेण पउत्तिं विन्नायं सवमेवमिन्भेण । सिद्धं च बंधवाणं - 'मुट्ठा भो ! तेण धुत्तेण कन्नालाभनिमित्तं सुसावगत्तं पयासियं तेणं । पेच्छ कह सयलसंघो वि मोहिओ गूढहियएण ॥ धम्मच्छण छलिया अम्हे निउणा वि तेण पावेण । ता समिणं जायं धुत्ताण वि होंति पडिधुत्ता | १. महाए. २ विवेहा. ३ नेव. ४ त्तस्स. ५ किंचा. ६ मि. १२३ १२४ १२५ १२६ १२७ १३२ १३३ १३४ Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ १३५ - १४४ ] नमयासुंदरीकहा | निद्धम्म कुलप्पसुओ' पावो सो ताव तारिसो होउ । बालत्तगहियधम्मा चुक्को कह पिच्छ रिसिदत्ता ॥ सच्चमिणं सा वरई दिन्ना अम्हेहिं तस्स पावस्स । तहवि कुलागयधम्मो तीए न हु आसि मोत्तवो ॥ ता इत्थ इमं जुत्तं तीए तत्ती न काइ कायवा । सा पुत्रं पि न जाया मया य सवेहिँ दट्ठवा | जो पुण तीसे तत्तिं' काही अम्हाण सो वि तत्तुल्लो । इय साहियम्मि तत्ते मा अम्हं को वि कुप्पिजा ।।' किंबहुना ? तह सा चत्ता तेहिं जह किर नगराणमंतरं तेसिं । जोयणदुगमेतं पिहु संजायं जोअणसयं च ॥ 'routes for तुम धम्मो चत्तो जिदिपन्नत्तो । तप्पभि च्चिय अम्हं मया तुमं किमिह बहुएण ॥' सोऊण जणयवयणं सुइरं परिरिऊण हिययम्मि । जया मणे निरासा संठवइ पुणो वि अप्पाणं || जाओ कमेण पुत्तों बहुलक्खणसंगओ कणयगोरो । नियकुलजणियाणंदो तुट्ठा दट्ठण तं माया ॥ सोऊण सुयं जायं कयाइ तूसे मज्झ जइ जणओ । इय पेसे तुरंती वद्धावयमाणवं पिउणो ॥ इन्भेण सो पत्तो - 'ज्वरस्स वद्धावओ तुमं होसु । अम्हाण नत्थि धूया रिसिदत्तानामिया कावि ॥' १ पसूओ. २ खुड्डा ३ सम्वमि ४ विरई. ५ तत्ती. ६ पर्यादि ८ या ९ पो. १० तसेज. ११ मस. १३ १३५ १३६ १३९ तओ 'जो पुतिं गहियपाहुडे पईदियहं मम पउत्तिनिमित्तं पुरिसे पेसंतो सो संग्रह मासाओ वासाओ वि न पेसई' ति मुणियजणयको वाइसया किंकायवैमूढा कालं गमेउमारद्धा रिसिदत्ता, जाया य कालेण आवन्नसत्ता । तओ दूर्यपेसणेण भणिओ तीए ताओ - ' की साहं तुम्भेहिं परिचत्ता ? | तुमेहिं चैव अहमत्थ 15 मिच्छत्तपं पक्खित्ता । ता खमसु मम एगमवराहं । नेहि ताव गिहं । तत्थडिया आएसकारिणी चिट्ठिस्सामि । अन्नं च सवाओ विलयाओ पढमं पिइगिहे पसवंति, ता कह लोयावन्नवायाओ न बीहेसि १ । इच्चाइ बहुहा भणिए[ प. ५B]ण पडिभणियमिब्भेण - १३७ १३८ १४० १४१ १४२ १४३ १४४ 5 ७ काइद 10 20 Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नम्मयासुंदरीजम्मवण्णणा। [१४५-१५८] एवं च नामकरणे बुट्टावण-मुंडणाइपयेसु । आहूओ वि न पत्तो कुलगेहाओ मणूसो वि ॥ १४५ तं चेव बालयं तो हियए आलंबणं ददं काउं। परिवालिउं पवत्ता एसा एगग्गचित्तेण ॥ [नम्मयासुंदरीजम्मवण्णणा] अह वड्डमाणनयरे जिट्ठाए उसभदत्तसुण्हाए। नामेण गुणेहिँ य सुंदरीऍ सहदेवभजाए। १४७ उववन्नो कयपुनो को वि जिओ सुंदरो [ ...... ] गन्मे ।। धणियं धम्मज्झाणे उजमा(या?) जेण संजाया ॥ १४८ परिवड्डियलायन्ना इट्टा पइणो सपरियणस्सावि । ससुरस्स सासुयाए सा जाया तो विसेसेण ॥ १४९ नवरं पंचममासे संजाओ तीऍ दोहलो एसो। नम्मय॑महानईए गंतूण करेमि मजणयं ॥ सा पुण पगिट्टदेसे गंतुं तीरइ सुहेण नो तत्थ । कजमसज्झं नाउं द[इ] यस्स वि सा न साहेइ ॥ “१५१ झिज्झई अपुजमाणे डोहलऍ सयलमंगमेईए । तत्तो तं सहदेवो दट्टणं पुच्छए एवं ॥ "किं सुयणु ! तुह मणिटुं संपजइ नम्ह मंदिरे किंचि। किं केणइ परिभूआ बाहइ किं कोइ तुह रोगो ? ॥ १५३ जेणेवं छउयंगी दरिद्दघरिणि व नासि सचिंता। साहेहि फुडं मुद्धे ! जेण पणासेमि ते दुक्खं ॥ १५४ तीए भणियं- 'पिययम ! असज्झमेयं न साहिमो तेण । वरमेगा हं झीणी किं तुह उव्वेयकरणेण? ॥' सहदेवेण पवुत्तं- 'नासझं मज्झ विजइ जयम्मि। ता कहसु फुडं अग्धं को जाणइ थवि(गि?)यरयणाई(णं ॥१५६ इय वुत्ताए ताए सब्भावो साहिओ तओ तेण । . भणियं-'कित्तियमेत्तं नियहियया दढं होसु॥ १५७ आपुच्छिऊण जणयं भणिया सवे वयंसया तेण । 'तुरियं करेह कडयं गच्छामो नम्मयं दट्ठ॥ १५८ 15 5 % A .१९ वि सह. २ गम्भो. ३°णे जाय उ. ४ नम्मइ. ५ सिजमह. ६ पीणा. किसेव. ८बियंसया. Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१५९-१६६] नम्मयासुंदरीकहा। भणियाणंतरमेव य पमोयभरनिब्भरेहि तेहिं पउणीकयाइं जाणवत्ताई, गहियाई अणेगाई कयाणगाई, सहाईकओ नाणाविहपहरणविहत्थो सुहडसत्यो । चालियाओ बहुविहाओ [प. ६ A] पयईओ । समुच्छाहिया गंधानकारया चारणगणा । पयट्टा कोउगावलोयणलालसा सयमेव पभूया लोया । तो पसत्थवासरे कयकोउयमंगला परिवारपरिवारिया पवटुंतपमोयउडुरेहिं बंध-5 वेहिं सपुत्तकलत्तेहिं मेत्तेहिं सहिया चलिया दो वि सहदेव-वीरदासा । कहं ? . गंमीरतूरघोसपडिसद्दपूरियनहंगणा, बहलधूलीपडलधूसरियपेच्छयजणा; • वअंतसंखकाहला, वणे वणे पलायमाणपुलिंदनाहला; गामे गामे पलोएजमाणा गामिएहिं, गोरविजमाणा गामसामिएहि। "कुणमाणा महन्भुयभूयाओ पूयाओ जिणिंदाणं गामनगरेसु, अट्टया(१)-10 विलंविएहिं पयाणएहि सुत्थीकयसमत्थसत्थिया सुहंसुहेण संपत्थिया । पत्ता कोण नाणावणराइरमणीयं रेवासनभूमिभागं । परितुट्टा य सुंदरी दट्टण बहलेतुरंगरंगंतकुंचकारंडवहंससारसाइविहंगसंगसंपत्तरम्मयं महा[नई ?] नम्मयं । आवासिओ य सबो कडयजणो हरिसनिब्भरो तत्थ । सहदेवसमाएसा भूभाए सग्गरमणीए॥ १५९ बीयदिणम्मि सदारा कयसिंगारा मणोहरायारा। मजणकीलाहेउं रेवातीरं गया सवे ॥ १६० . पेंच्छंति तयं सरियं महल्लकल्लोलभीसणायारं । कत्थइ अन्नत्थ तरंगभंगुरं सुप्पसन्नं च ॥ कत्थइ गहिरावत्तं कत्थइ कीलंततारुयनरोहं । .. कत्थइ मजंतमहागयंदमयसुरहिजलवाहं ॥ १६२ विंझगिरिपायपायवपगलियघणकुसुमगोच्छचिंचइयं अवियण्हलोयणाओ थिरोदयं तं दहं दटुं॥ ‘हरिसेण तं पविट्ठा उब्बुडनिब्बुडणेण कयहासा ।' विलसति ते सहेलं सम्म महिलाहिं परितुट्ठा ॥ १६४ सिंगियजलेण केई पहणंति परोप्परं पहासिल्ला । अन्ने हरियंदणपंडियाहिँ हम्मति महिलाणं ॥ १६५ परिकीलिऊण सुहरं संपत्तपरिस्समा समुसिना । तत्तो महदहाओ करिति जिणबिंवपूयाई॥ १६६ बरेहिं. २ °दसो. ३ °सवन. ४ पडितुट्ठा. ५ छहल. कारावा. • मा. ८ की. १६१ 20 M.... .. www.jaine Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ १६० नम्मयानईतीरे नम्मयपुरनिवेसो। [१६७-१७७] अइसयपमोयपडिहत्थमाणसा सुंदरी विसेसेण । कुणइ पडिमाण पूयं पडिपुन्नमणोरहा जाया ॥ १६७ एवं दियहे दियहे कीलंताणं अतित्तचित्ताणं । पोसदिवसो व सहसा मासो समइच्छिओ तेसिं ॥ [नम्मयानईतीरे नम्मयपुरनिवेसो] नाणादेसाहितो कडयं आवासियं निएऊण । विविहकयाणगकलिया पत्ता णेगे तहिं वणिया ॥ १६९ कयविकओ पवत्तो दिणे दिणे सयलकडयलोयस्स । कयपरिओसो लाभो मणोरहागोयरो जाओ। १७० संलवियं च जणेहिं - 'कयउन्नो को वि सुंदरीगन्भे । जस्स कएणऽम्हाणं पवड्डिया संपया एसा ।।' १७१ अन्ने भणंति - 'बलियं वत्थू एयस्स भूमिभाग प. ६ B]स्स । नयरनिवेसं काउं चिट्ठह भो किं ने एत्थैव ? ॥ १७२ किं तत्थ वड्डमाणे मुंडा(?) अम्हाण रोविया वाडा। चिट्ठति जेण गम्मई सुरलोयसमं इमं मोत्तुं ।' उवलद्धजणाकूओ सहदेवो सुंदर तओ भणइ । 'चिट्ठामो किं भद्दे ! रम्मम्मि इहेव ठाणम्मि ॥'. १७४ तीए भन्नइ - 'पिययम ! रेल्लंतमहंतलोलकल्लोलं । पिच्छंतीए एयं ममावि मणनिधुई जाया ॥ १७५ ता जइ रोचइ तुम्हे कुणह निवेसं इहेव ठाणम्मि । किर सबन्न लोओ जुत्ताजुत्तं फुडं मुणइ ।' १७६ ___ तओ सहदेवेण वीरदासेण सद्धिं समच्छिऊण पसत्थवासरे पारद्धो नयरनिवेसो-ठावियाई वत्थुविजावियक्खणेहिं सुत्तहारेहिं तियचउक्कचच्चराई, संठावियाओ जहाजोगं पासायभवणपंतीओ, आहूओ सबेहिं पि नियनियकडंब26 परिगरो, कारियं च सुरिंदमंदिरसुंदरं जिणमंदिरं, दिन्नं च नामं नयरस्स नमयपुरं ति । किं बहुणा ?- .. विनायसयलवत्तो संजुत्तो सयलसयणवग्गेण । का सेट्ठी वि उसभदत्तो तुरियं तत्थेव संपत्तो ॥ १७७ विकए. २ न्हाणं. ३ पट्टिया. ४ वलियं. ५ किम. ६ वट्टमाणा, • गम्मई. ८ सुंदरी. ९ सिद्धि. १० °दग्गेण. १७३ www.jainelibrar Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 15 [१७८-१९२] नम्मयासुंदरीकहा। करभरविवजियाणं अपीडियाणं परेण केणावि । वच्चइ सुहेण कालो जणाण सग्गे सुराणं व ॥ .. १७८ अह वटुंते चंदे गहबलजुत्तम्मि सुंदरे लग्गे। सा सुंदरी पसूया धूयारयणं कमलनयणं । १७९ पढमो अवञ्चलाभो पुत्तभहिया य बालिया एसा। इय पुत्तजम्मणम्मिव वद्धावणयं कयं पिउणा ॥ सयलो वि नगरलोगो जंपइ आणंदपुलइयसरीरो । 'धन्नाण इमा बाला लच्छि व [घरे समोइना ॥ १८१ छडीजागरणाई किच्चं सयलं पमोयकलिएहिं। जणएहिँ तीऍ विहियं पढमम्मिव पुत्तजम्मम्मि ॥ १८२० वत्तम्मि बारसाहे सयणसमक्खं [च ?] सुहमहुत्तम्मि । गेजंतगीयमंगलमविरयवजंतवरतूरं ॥ १८३ जं नम्मयसरियामजणम्मि जणणीऍ डोहलो जाओ। तं होउ नम्मयासुंदरि ति नामं वरमिमीएँ॥ १८४ अइसुंदरनाममिमं पस्सइ सबो वि पुरजणो मुइओ। पुनभहिओ जीवो किर कस्स न वल्लहो होइ ॥ हत्थाहत्थं घिप्पइ जणेण अन्नोन्नपेल्लणपरेण । वडइ वड्डियकंती सियपक्खे चंदलेह व ॥ १८६ बोल्लाविनइ पिउणा पंचनमोकारभणणकुड्डेण । देवगुरूण पणामं सिक्खाविजइ हसिरवयणा ॥ १८७20 सबस्स चेव इट्ठा विसेसओ वीरदासलहुपिउणो । चीवंदणाइकिच्चं पढमं सिक्खाविया तेण ॥ नारीजणोचियाई विनाणाइं तओ वि चउसही। तओ [य] समप्पिया साहुणीण सम्मत्ते प. ७Aनाणहा ॥१८९ जीवाइनवपयत्था नाया तीए विसुद्धपनाए। पढियाइँ पगरणाई वेरग्गकराई गाई॥ सरमंडलाभिहाणं तीए कुड्डेण पगरणं पढियं । नर-नारीण सरूवं गुणागुणे जेण नजंति ॥ गिण्हइ सुहेण जं जं सुणेइ पाएण एगसंघातं । पम्हुसइ नेव गहियं तहावि पढणुजमो तीसे ॥ १९२० , भरतिविजियाणं. २ पिउणो. ३ वरममीए. ४ वढिय. ५ समय नम०३ १८८ 25 १९... Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ 10 15 20 25 नम्मयासुंदरीरुववण्णा । सो वि महेसरदत्तो रिसिदत्तानंदणो निययपिउणा । बावरीकलाओ पढाविओ लोगपयडाओ ॥ [ नम्मयासुंदरी रूववण्णणा ] अह नम्मयापुराओ केई वणिया कयाणगमपुखं । घे तूण लाहहेउं संपत्ता कूवचंद्रम्म || रिसिदत्ताए पुट्ठा - 'नम्मयपुरवासिणो फुडं तुब्भे । तो उस भदासमिब्भं परियाणह निच्छ्यं नो वा ? ॥ सहदेव - वीरदासा तस्स सुया विस्सुया पुहवीढे । ते परियाणह तुम्भे तह तेसिं पुत्तभंडाई ? ||' हसिऊण तेहि भणियं - 'चंदं गुरुसुक्कसंगयगयाणं । को न वियाण सुंदरि ! जं भणियवं तयं भणसु ॥' तीए भणियं - 'नम्मय सुंदरिनामा सुबह सहदेववल्लहा धूया | वयरुवाई तीसे जड़ जाणह तो फुडं कहह ।' वणिएहिं वृत्तं' - [१९३-२०५] 'तारुन्नयकय सोहं तीसे रूवं न वनिउं सका | ताणं नियमा अलियपलावत्तणं होई || जइ सुंदरि ! भासेमो' छत्तं पिव मेहडंबरं सीसं । ता सीमंतयसोहा तीसे वि निवारिया होई || छणचंदसमं वयणं तीसे जइ साहिमो सुर्य [णु !] तुज्झ । तो तकलंकको तम्मि समारोविओ होइ ॥ संबुसमं गीवं रेहातिगसंजय ति जइ भणिमो । कर्णं सा दूसियत्ति मन्नइ जणो सो || करिकुंभविभमं जइँ तीसे वच्छत्थलं च जंपामो । तो चम्मथोरयाफासफरुसया ठाविया होई || विल्लहलकमलनालोव माउ बाहाउ तीऍ जो कहइ । सो तिक्खकंटाहिट्ठियत्तदोसं पयासेइ || किंकिल्लिपल्लवेहिं तुला करपल्लवत्ति वितेहिं । नियमा निम्मलनहमणिमंडणयं होइ अंतरियं ॥ १ नम्म ८ तुछ. ९ विहिं. १९३ १९४ १९५ १९६ १९७ १९८ १९९ २०० २०१ २०२ २०३ २०५ २ ब्वुत्तं. ३ भासेसो. ४ संवुक्क° ५ ° इगमंजुय. ६ पंकसणेण ७ नह २०४ Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२०६-२१५] नम्मयासुंदरीकहा। जइ भासिजइ तीसे रंभाथंभोवमाउ जंघाओ।। ता किर तासिमवस्सं असारया होइ बजरिया ॥ २०६ कीरते चलणाणं कुम्मुवमाणम्मि बुहजणो' भणिही । निम्मंसकक्खडाणं नणु तेसिं केरिसी सोहा १ ॥ २०७ जं जं तीसे अंगं वन्नेमो तस्स तस्स भुवणम्मि। नत्थि समं उवमाणं कह तीए वनिमो रूवं ॥ २०८ सग्गम्मि अच्छरा जइ तीए तुल्ला इमं न वत्तई । जं सा विलोलनयणा इयरीओ थदिट्ठीओ॥ २०९ [रिसिदत्ताए सपुत्तकये नम्मयासुंदरीमग्गणा] [ए]वं वणिएहिं वन्निजमाणं नम्मयाए निरुवमरूवसंपर्य निसाम[प. ७B]10 ती चिंतिउं पवत्ता रिसिदत्ता 'कह नाम तं कन्नारयणं महेसरदत्तस्स करे विलग्गिहीं? न ताव ताओ असाहम्मियस्स दाही । पडिवन्नसावगधम्मस्सावि दिद्वजणयचरिया ते न पत्तियंति । एगवारमेव कट्ठमयथालीए राइ । को दिद्वतकरहिं अप्पा मोसेइ ? न चाहं तत्थ गया दंसणमवि लहिस्सं । ताव पेसेमि पडिवत्तिवयणकुसलं कं पि दूयं ति । मा कया[इ] समागयकारुनभावा 15 ते पसीयंति' एवं संपहारिऊण पेसिओ तीए पडिवत्तिवयणकुसलो विसिट्ठप्ररिसो। संपत्तउचियसम्माणेण य भणिओ तेण इब्भो-'ताय! अबलाओ अबलाओ चेव हुंति, विसेसओ ससुरकुलगयाओ । जओ एगत्तो रडइ पई एगत्तो सासुया य परिसवइ । दूमंति नणंदाओ रूसइ सेसो वि कुललोगो॥ २१. 20 परऽहीणाणं ताणं नियधम्मो तह य कह णु निबहइ । को किर रिसिदत्ताए दोसो सम्म विभावेह ॥ अणुतावग्गिपलित्ता अवराह अप्पणो खमावेइ । मग्गइ धम्मसहायं सी नम्मयसुंदरीकन्नं ॥ २१२ काही जिणवरधम्मं तीए संगेण नत्थि संदेहो । 25 एस महेसरदत्तो कुणह इमं पत्थणं तीए॥ इन्भेण तओ भन्नह - 'पत्तिजामो न तस्स धुत्तस्स । जेण तया डंभाओ सबजणों विम्हयं नीओ ॥ जारिसओ सो जणओ तणएण वि तारिसेणं होयई । न कयावि अंबगुलिया निवडइ पासम्मि निंबस्स ॥ २१५30 पहजणो. २ इइयरीओ. ३ घट्टदि. ४ रूवंसं. ५ विलग्गही. याहं. ७ °भाता. . ८ स. ९ जणं. १० भारिसेण. २१३... २१४ Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिसिदत्ताए सपुत्तकये नम्मयासुंदरीमग्गणा [२१६-१९९] एग ता रिसिदत्ता अणवरयं दहइ माणसं अम्ह । ता जाणंता बीयं न पक्खिवामो तहिं अम्हे ॥ २१६ एवं बहुप्पयारं भणिओ रुद्रेण सत्थवाहेण । दओ विलक्खहियओ गओ निरासो नियं ठाणं ॥ २१७ सोउं यमुहाओ सयणुल्लावं सिणेहनिरविक्खं ।। 'हा सबहा वि चत्तो नियपिउणा पावकम्मा हं॥ २१८ इय सा विमुक्तकंठं रिसिदत्ता रोविउं तह पवत्ता । कारनपुनहियओ अन्नो वि जणो जह परुनो ॥ आसासिऊण बहुसो भणिया सा नंदणेण -'कि अम्मो।। किं रुअसि अणाहा इव कहेहि दुहकारणं मज् ॥ २२० तीए भणियं- 'पुत्तय ! तुह पिउणा डंमिएण होऊण । परिणित्तु इहाणीया चयाविया तह य जिणधम्मं ॥ २२१ उझियजिणधम्माए चत्ता वत्ता वि मज्ज्ञ सयणेहि । आसानडियाएँ ममावि वोलिओ एत्तिओ कालो ।। २२२ अस्थी उत्तमरूवा दुहिया तुह माउलस्स मे णिसुयं । सा दूयपेसणेणं तुह कजे जाइ[ या] वच्छ ! ॥ २२३ सा ताव न लद्ध चिय मह पिउणा निट्ठरं तहा भणियो। पुत्तऽसहिएण दूओ जहा निरासा अहं जाया ॥ २२४ अणुरूवा तुह पुत्तय ! जइ सा हत्थे न लग्गा प. ८ . ]ई वाला । किं जीविएण ता मह इय दुक्खाओ मए रुनं ॥ २२५ तेण पवुत्तं- 'अम्मो ! कयावराहाण किमिह रुनेण । कुवियसयहिं विहिओ सहियवो परिभवो' सबो ॥ अन्नं चकारणवसेण कुविया वि सजणा मंगुलं न चिंतंति । विहडंति नेव वसणे जो उ परो सो परो चेव ॥ २२७ जइ तुज्झ इमं दुक्खं ता हं गंतूण तं विवाहेमि । अवराहविरहिओ हं न कोवहेऊ जओ तेसिं ॥ २२८ कुविओ वि दढं ताओ विणीयवयणस्स तूसिही मज्झ । पजलइ नेव जलणो सिचंतो वारिधाराहि ॥ ___ २२९ हो. २ चित्ता. ३ पिउणो. ४ वहिओ. ५ परिभावो. ६ विहंति. २२६ Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२३०-२३७] नम्मयासुंदरीकहा । तीए वुत्तं- 'पुत्तय ! माइण्हियमोहिओ जणो पायं । परिहरइ दूरउ चिय महासरं नीरपडिपुग्नं ॥ २३० विणएण य चाएण य तुह पिउणा रंजिओ जणो तइया। सब्भावविणीयस्स वि पत्तियइ कहं तओ ताओ ? ॥ २३१ भणियमियरेण- 'अम्मो! पेच्छाहि ममावि ताव कोसल्लं। 5 आइससु जेण तुरियं पूरेमि मणोरहा तुज्झ ॥ २३२ पडिभणह तो हसंती रिसिदत्ता- 'पुत्त ! होउ तुह सिद्धी । समणुमाओ सि मए होउ सिवं मंगलं तुज्झ ॥' २३३ [ महेसरदत्तस्स मायामहगिहगमणं] आपुच्छिऊण जणयं महया सत्थेण सो तओ चलिओ। 10 पत्तो कमेण तत्तो अइरम्मं नम्मयानयरं॥ २३४ तओ नयररम्मयाविम्हियमणेण बहिरुजाणे संठिएणेवं पेसिओ जाणापणत्थं मायामहस्स समीवं पुरिसो । तेणावि सपुत्तपरियणो सुहनिसनो पणमिऊण भणिओ सत्थवाहो- 'एस तुम्ह नंदणीनंदणो मायामहस्स दसणुकंठिओ विविहभंडभरियजाणवाहणो समागओ महेसरदत्तो, विनवई य-15 "दंसेह कं पि भंडनिक्खेवणट्ठाणं ति" । तमायन्निऊणे तिवलीतरंगभंगमालवद्वेण सको भणिओ सत्थवाहेण- 'न किंचि अम्ह तेण पओयणं । चिट्ठउ जत्थ अने वि देसंतरवणिया चिट्ठति ।' तओ कयकरंजलिमउलिणा विनतं सहदेवेण- 'ताय ! मा एवमाणवेह । सो बालो अदिट्ठदोसों तुम्ह दंसणुकंठिओ समागओ । अबस्स वि घरमागयस्स उचियउवयारो कीरइ । जेण भणियं- 20 जेण न किंचि वि कजं तस्स वि घरमागयस्स जे सुयणा । नूर्ण पहढवयणा नियसीसं आसणं दिति ॥ २३५ ता सबहा तस्सावमाणकरणं न जुत्तं । सम्माणिओ समुप्पन्नसिणेहो मा कयाइ जिम्म पडिवजेजा। एवं होउ ति । तओ भणिओ पगंतुं [.........] सहदेव-वीरदासेहिं । 25 दंसियमरुयसणेहो पवेसिओ नयरमज्झम्मिं ॥ उत्तारियं च भंडं भंडागारेसु निरुवसग्गेसु । तओ [य] विणयमहग्धं पणओ माया प. ८ ४ ]महो तेण ।। २३७ १ इन्भाविवणीयस्स. २ संठिपणव. ३ निसन्ना. ४ विनवई. ५ तमाइनिऊण. ६ तिवली. ७ तो. ८°दोसा. ९°मग्गम्मि. Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 २२ 10 113 15 20 25 महेसरदत्तस्स नम्मयासुंदरीए सह परिचओ । [ २३८-२५१] आलिंगिऊण गाढं मायामहिगाइ चुंबिओ सीसे । दिन्ना पवराssसीसा - 'अक्खयअजरामरो होसु ॥' तो मायामहघरणीओ उ ( ताओ ? ) सहाय रेण पणमेह | लासीसो तत्तो पणमइ सवं सयणवग्गं ॥ वच्चइ चेइयभवणं तेहिँ समं नमइ मुणिवरे विहिणा । जिणबिंबसणाओ वहइ पमोयं हिययमज्झे | सुविणीओ सुहचरियो' पियंवओ वल्लहो गुरुजणस्स । जं पुण मिच्छट्टिी [ति] मणागमरुइकरं एयं ॥ भणिही सवो लोगो पारद्धं जणयचेडियमणेण । ते न सिक्ख धम्मं मामय भणिओ वि पुणरुत्तं ॥ [ महेसरदत्तस्स नम्मयासुंदरीए सह परिचओ ] उवविस्स य भणियं - 'विकंति कयाणगाइँ' हट्टेसु । मंगलमणोरमाई नियनियविभवाणुसारेण ॥ निच्छंति विक्कणंता मंगुलवयणं" ति मंगुलं वोत्तुं । कइएण उत्त सुंदर ! सुपरिक्खियं काउं ॥ १रियं २ बेडय° ३ कयाणगांई. ४ प्रयणं. ५ क्खिउं. २३८ २३९ २४० पेच्छतो रूवं सुंदरीऍ चितेइ माणसे धणियं । ' कह नाम समुल्लावो होही एयाऍ सह मज्झ ||' अनादि वच्चंती दिट्ठा अजाउवस्सए तेण । तो सोवितयणुमग्गं गओ तहिं दंसणसुहत्थी ॥ [ल ] ओणयाऍ तीए ईसिं हसिऊण सो इमं भणिओ । 'पाहुणय ! किं न वंदसि अजा अम्हाण गुरुणीओ १ ॥ २४५ 'जइ तुम्हं गुरुणीओ तुम्हे वंदेह अम्ह किं इत्थ ? ।' 'होही तुहावि धम्मो गुरुभत्तीए नमंतस्स ॥' काऊण पणामं अजियाण इयरेण सा इमं भणिया । 'तुह वयणाओ सुंदरि ! पणमामि न धम्मबुद्धीए ॥ कुलधम्मं मोचूणं सुंदरि ! अन्नोन्नधम्मनिरयाणं । २४८ संति दो विधम्मा को गच्छह दोहिं मग्गेहिं १ ॥ ' दाऊण आसणं तो भणिओ - 'निवसाहि एत्थ ख[ण]मेकं । मज्झत्थचित्तया धम्मसरूवं वियारेमो ॥' २४९ २४१ २४२ .२४३ २४४ २४६ २४७ २५० २५१ Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३ २५३ 5. २५४ [२५२-२६२ ] . नम्मयासुंदरीकहा। धम्मकयाणगमेवं परलोगसुहत्थिणा वि घेत्तत्वं । जो तत्थ वंचिओ किर सो चुक्कइ सबसोक्खाणं ॥ अम्हाणं ताव धम्मे अट्ठारसदोसवजिओ देवो । ते पुण बुहेहिँ सुंदर ! दोसा एवं पढिज्जंति ॥ अन्नाणकोहमयमाणलोहमाया रई य अरई य । निद्दासोयअलियवयणचोरिया मच्छरभया य ॥ पाणिवहपेमकीडापसंगहासा य जस्सऽमी दोसा । अट्ठारस य पणट्ठा नमामि देवाधिदेवं तं ॥ . जीवदय सञ्चवयणं परधणपरिवजणं च बंभं च । पंचिंदियनिग्गहणं आरंभपरिग्गहच्चाओ ॥ [ए]स विसिट्ठो धम्मो उवइट्ठोऽणुडिओ सयं जेण । सो अम्ह वीयराओ देवो देविंदकयपूओ ॥ [प.९५] एसो न चेव तूसइ न य रूसइ दुट्ठचिट्ठियस्सावि । सावाणुग्गहरहिओ तारेइ भवनवं नियमा ॥ २५५ २५६ 10 २५७ २५८ तहा __२५९. अवगयधम्मसरूवो सुधम्मकरणुजुओ य जो निचं ।। धम्मोवएसदाया निरीहचित्तो गुरू अम्ह ॥ एयारिसगुणहीणो देवो गुरुणो वि नऽम्ह रोयंति ।.... जइ अत्थि पहाणयरा अन्ने साहेहि तो अम्ह ॥' इय देवाइसरूवे सवित्थरं नम्मयाऍ परिकहिए। 20 कम्माण खओवसमा महेसरो मणसि पडिबुद्धो ॥ २६१ तह वि परिहाससारं पुणो वि सो नम्मयं इमं भणइ । 'अम्हाण वि देवाणं सुणसु सरूवं तुमं भद्दे ! ॥ २६२ - सुंयणु ! अम्ह संतिया देवा अप्पडिमल्ला इच्छाए हसंति, इच्छाए कीलंति गायंति नचंति । जइ रूसंति सावे य पयच्छंति, जइ तूसंति वरे [य]वियरंति । 25 तेण जुत्ता तेसिं पूयाविहाणेणाराहणा । तुम्ह संतिओ वीयरागदेवो न रुहो । निग्गहसमत्थो, न तुट्टो कस्स वि पसिजई । ता किं तस्साराहणेण ?' तो नम्मयासुंदरीए भणियं- 'एए हासतोससावाणुग्गहपयाणभावा सबजणसामन्ना, ता देवाण जणस्स य को विसेसो ? जं च भणसि "सावाणुग्गहपयाणविगलस्स किमाराहणेण ?" तत्थ सुण । मणिमंताइणो अचेयणा वि विहिसेवगस्स समी- 30 अम्हाणं. २ पुहेहिं. ३. विदेवं. ४ सवित्थुरं. ५ नम्मय. ६ पसजाइ. Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ महेसरदत्तस्स मायामहसमीवै नम्मयासुंदरीअत्थे पत्थणा । [ २६३-२६८ ] हियफलदाइणो भवति, अविहिसेवगस्स अवयारकारिणो भवंति । एवं बीयरागा वि विहिअविहिसेवगाण कल्लाणाकल्लाणकारणं संपति ।' पुणो भणियं महेसरदत्तेण - ' जड़ न रूससि ता अन्नं पि किं पि पुच्छामि ।' तीए भणियं - 'पुच्छाहि को धम्मवियारे" रूसणस्सावगासो ?" इयरेण भणियं - 'जह तुम्ह 5 देवो वीयरागोता कीस न्हाइ कीस गंधपुष्फाइनट्टगीयाई वा पडिच्छइ ।' तओ ईसि हसिऊण भणियं नम्मयाए- 'अहो निउणबुद्धीओ तुमं अओ चेव अरिहो सि धम्मवियारस्स, ता निसामेह परमत्थं । अरहंता भगवंतो मुत्तिपयं संपत्ता । न तेसिं भोगुवभोगेहिं पओयणं । जं पुण तप्पडिमाणं पहाणार कीरइ एस सो वि ववहारो सुहभावनिमित्तं धम्मियजणेण कीरह, तओ चेव सुहसंपत्ती भवई' 10. त्ति । तओ महेसरदत्तो भणइ - 'सुलहाई इत्थियाणं पडिउत्तराई । जओ पढिजइ विउसेहिं - २६३ सुंदरि ! विजिओ वाए अहं तुमए ।' सुंदरीए भणियं - ' मा एवं भणह । न 15 मए वायबुद्धी किंपि भणियं । किंतु तायाईण [प.B] अईवल्लहो तुमं, तेण इहागयस्स मए पाणेहिंतो वि पियं घरसारभूयमेयं नियधम्मपाहुडं तुहोवणीयं ।' इयरेण भणियं - 'ममावि मामयैधूया तुमं ति गोरवड्डाणं वट्टसि, ता पडिच्छियं मए तुह संतियं पाहुडे' ति भणतो उडिओ महेसरदत्तो । तप्पभिइमेव धम्मं नाउं काउं च सो समारद्धो । मूढजणोहसणार्णं कन्नमदेतो सुथिरचित्तो ॥ 20 25 दो चैव असिक्खिय पंडियाइँ दीसंति जीबलोगम्मि । कुक्कुडयाण य जुद्धं तत्थुष्पवं (?) च महिलाण ॥ २६४ २६५ [ महेसरदत्तस्स मायामहसमीवे नम्मयासुंदरीअत्थे पत्थणा ] गहिओ सावगधम्मो भणइ य मायामहं अह कयाह । 'कीर एक पसाओ दिजउ मम नम्मयं ताय ! ॥' सो याऽऽह - ' को न इच्छइ संजोगं नागवल्लिपूगाणं । नवरं तुह परिणामं अम्हे सम्मं न याणामो ॥ अम्ह कुले एस कमो घेत्तुं जो चयइ वीरजिणधम्मं । जाईकुलपंतीणं बज्झो सोsवस्स कायो || एतो चिय तुह माया चत्ताऽम्हेहिं न कोवदोसेण । को को नियदुहियं विसुद्धसीलं जए मोतुं । ॥ "वयारे, ३ : ३ ममाय, ४ वट्टसि. ५ सका. २६६ २६७ २६८ Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६९-२८३] नम्मयासुंदरीकहा। पुत्त ! पिओ सयणाणं गेहं गंतूण चयसि जइ धम्म । दिना वि इमा कन्ना तुमं च ता दूरओ होसि ॥ भणइ महेसरदत्तो-'न मए कवडेण एस पडिवनो। जिणपन्नत्तो धम्मो ता मा एवं विगप्पेह ॥' 'परिभाविऊण सम्मं जं जुत्तं वच्छ ! तं करिस्सामो। मा होसु उच्छुगों तं पुच्छामो मामए तुज्झ ॥ २७१ 'एवं ति तेण वुत्ते सिटुं गंतूण तेण एगते । इन्भेण सपुत्ताणं भणियं-'तो किमिह जुत्त'ति ॥ २७२ आह तओ सहदेवो- 'धुत्ताणं ताय ! को णु पत्तियइ । किंतु निसुणेह एगं मह वयणं एगचित्तेण ॥ २७३10 बहुजणरंजणकजे उब्भडवेसाउं होंति वेसाओ। न तहा कुलंगणाओ नियसणपरिओसरसियाओ॥ २७४ धम्मरया वि हु पुरिसा कित्तिमसाभाविया कलिज्जंति ।। अचुब्भडसाहावियकिरियाकरणेहिँ निउणेहिं ॥ २७५ जह चेव जणसमक्खं तहेव एगागिणो जइ कुणंति । .. 15 ता नजइ सुस्समणो सुसावओ वा सुबुद्धीहि ॥ २७६ . एस महेसरदत्तो जणरंजणकारि उब्भडं किं पि । न कुणइ न चेव जंपइ कुणइ विसुद्धं अणुट्ठाणं ॥ २७७ सच्चविओ सो य मए एगागी चेइयाइँ वंदंतो।। रोमंचंचियगत्तो संपुग्नविहिं अणुट्टितो' ॥ २७८० सम्भावसावगो खलु तम्हा एसो न इत्थ संदेहो। एसा वि अम्ह धूया निच्चलचित्ता जिणमयम्मि ॥ २७९ ता कीरउ संजोगो एयाण न किं चि अणुचियं मुणिमो । अहवा जं पडिहासइ तायस्स तमेव अम्हाणं ॥ सुंदर! अमोहबुद्धी सुदीहदंसी तमाउ को अन्नो। ता कीरि]उ एवमिणं' इय भणिए उसमदत्ते प. १० A. Jण ॥ २८१ जे नयरम्मि पहाणा.गणया सवे वि ते समाया। संपूइऊण भणिया 'विवाहलग्गं गणह सारं ॥ २८२ नाउं रविगुरुसुद्धिं सुमीलियं तह य जम्मरिक्खाणं । तिहिनक्खत्तपवित्चे ससिबलजुत्तम्मि दिवसम्मि॥ २८३ 30 उच्छगो. २ बेसाउ. ३ सण. ४ विही. ५ अणुटुंतो. ६ नरयम्मि. ७ गणसापरं. सुसीलियं. ९ वह. १० जस्स. १८० 25 नम०४ Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नम्मयासुन्दरी विवाहोस वो । संपुन हबलं सवसुंदरं सोहियं तहा लग्गं । सयलसुहसिद्धिजणयं एगग्गमणेहिं गणएहिं || [ नम्मयासुंदरीविवाहोसवो ] तमायनऊण नम्मयासुंदरीए विवाहो त्ति हरिसिओ नयरलोगो । उब्भियाई' घरे घरे तोरणा, ठाणे ठाणे पिणद्धाओं वंदणमालाओ, मंदिरे मंदिरे पवज्जियाई मंगलतूराई, पणच्चियाओ सूहवनारीओ, जाओ परमाणंदसमुद्दनिबुडो' इव सुहियओ पुरिसवग्गो । सहदेवेणावि तिय- चउकचच्चराईसु पवत्ति - याई अवारियसत्ताई, निमंतिओ सयलनायर लोगो, सम्माणिओ बत्थतं - . बोलाइएहिं । किं बहुणा : - २६ 10 वअंततूरमणहरं, नच्चंतलोयसुहयरं; पतभट्टचट्टयं, पए पए पयट्टयं; 15 20 25 मोहयासेसमग्गणं, जणसंवाहविसदृहारखंडमंडियघरंगणं; कीरतको [3]यमंगलसोहणं, सयलपेच्छयजणमण मोहणं; पिमा इचित्त भारनिम्महणं, संजायं नम्मयासुंदरी-मँहेस [र] दत्ताणं पाणिग्गहणं । अवि य - १ उभियांइं. ६ 'सुंदरीए महे'. [ २८४-२९१ ] २८५ २८६ दाणेण य माणेण य पिउणा तह तोसिओ जणो सबो । आसीवायसयाई अन्नत्थगओ वि जह देह || भइ जणो- 'भो सुंदर ! केहि तुमं आगओ सि सउणेहिं । जं एसा संपत्ता घरणी लच्छि व पच्चक्खा ॥' अनाओ बुड्ढाओ अक्खयमुट्ठि सिरम्मि मोत्तूण | जंपति - 'नंद मिहुणय ! णहंगणे जाव ससि-सूरा ॥' 'अणुरूवो संजोगो विहिणा घडिओ' भांति अन्नाओ । 'कोमुई - गहनाहाण य मा विरहो होज कइया वि ॥' इय नयरजणासीसे पच्छिमाणो गुरूण कयतोसो | उपाय हो नम्मयाऍ सो" संठिओ तत्थ ।। आपुच्छिय सुहिसयणो महेसरो पत्थिओ नियं नयरं । arrण दिन्नसिक्खा विसजिया नम्मया चलिया ॥ केहि विदिहिं पत्तो भडेहिँ वद्धाविया य रिसिदत्ता । कयमंगलोवयारा पच्चोणि निग्गया सयणा ॥ २९० २९१ २ पिणट्ठाओ. ३ निवुट्टो. ४ पी. ७ ° सुट्ट. ८ कोइमुइ ९ 'सीसो. २८४. १० ९माणा. ११ से. २८७ २८८ २८९ ५ चित्ताभारिमिम्महणं. Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २९२-३०३ ] नम्मयासुंदरीकहा । तओ पढमाणेहिं मंगलपाढगेहिं अग्विजमाणो पायमूले', पलोइजमाणो नयर लोएहिं, रोलंतवंदणमालं दुवारोभयपासपइडियकणयकलसं पविट्ठो समं बहू ऐ महेसरदत्तो नियमंदिरं ति । निवडिओ चलणेसु जणयस्स जणणीए सेसगुरुजणस्स य । नम्मयासुंदरी वि चलणेसु निवडा[] प १० B]णी चिरकालुकंठिया रिसिदत्ताए समालिंगिऊण दिन्नासीसा पवेसिया निहोलम्मि । परितोसियसहिसणं वद्धावणयं सवित्थरं काउं । रिसिदत्ता परितुट्टा कालं गमिउं समारद्धा ॥ चियवंदणसज्झायं कुणमाणि' नम्मयं सुणंतीओ । गोरिमिव हरिणीओ सासुरयाओ न तिप्पंति ॥ वसंतं सयलकुलं [ती]य समीवे सुणेइ जिणधम्मं । परियाणियपरमत्थं जायं धम्मुञ्जयं सवं ॥ अह अन्य कयाई [ ]यणो । भणइ महेसरदत्तो जणयं महुराऍ वाणीए ॥ 'ताय ! इमो जिणधम्मो चिंतारयणं व दुल्हो सुड्डु | लडूण कीस तुम बाले व उज्झिओ ज्झत्ति ।। जा कीर जीवदया अलियं चोरिक्कया य मुञ्चति । पालिज बंभवयं कीरइ न परिग्गहारंभो || किं इत्थ ता न जुत्तं भणियमिणं सासणेसु सर्व्वसु । पागयनरा वि एए पंच वि बाढं विबुज्झति ॥ एए जो परिवजह सो देवो सो गुरु चि किमजुतं । समदोसाणं दोन्हं तारेइ तरेइ को भणसु || विनायमिणं सवं तुमए तइया गुरुप्पसाएण । नय धरियं नियहियए चोजमिणं अम्ह पडिहाइ || आसाइयअमयरसो पिचुमंदरसस्स को नरो सरह । पत्तम्मि पुहइरजे हलियत्ते को मई कुणइ ? ॥' इय महुरगिरा भणिओ लग्गो' मग्गम्मि जिणवरुद्दिट्ठे | पच्छायावपरद्धो संविग्गो रुद्ददत्तो वि ॥ इय मुणिधम्मतत्तं सासुरयं सवमेव संपत्तं । संगेण नम्मयासुंदरीऍ गुणरयणखाणीए || १ मूलेहिं . २ विहूए. • त्रिपुरसंति. ८ भरणिओ. ३ कुणमाणी. ४ चस्सुज्झुयं. ९ लग्गे. ५ अजया. २७ २९२ २९३ .२९४ २९५ २९७ २९६ 15 २९८ २९९ ..20 ३०० 5 10 ३०२ ३०१२ ३०३ ६ पाठ. Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुणिपदत्तसावप्पसंगो। [३०१-३०४] (मुणिपदत्तसावप्पसंगी। अनदिणे भुत्तुत्तरकालं एगागिणी गवक्खम्मि । तंबोलपुनवयणा चिट्ठइ नयरं नियच्छंति ॥ ३०४ मुक्कोऽणाभोगाओ तंबोलावीलबहलगंडूसों। सहस त्ति पमायाओ हेट्ठाहुत्तं अपेहित्ता ॥ सो खल्लिवल्लिनाया इरियाउत्तस्स खवगसाहुस्स । सहस त्ति सिरे पडिओ तुरियं पि हु वच्चमाणस्स ॥ ३०६ आलिंगियं च अंगं सहसा साहुस्स सोणबिंदूहि । , अवलोइओ न कोई नियच्छमाणेणुवरिहुत्तं ॥ ३०७ 10. जाहे न कोइ उवलद्धो ताहे कोवानलपरद्धमाणसेण भणियमुच्चसई- 'जेण केणावि पक्खित्तमेसो इहेव जम्मे घोरवसणमणुभविस्सइ । ताहे को एसो त्ति संभंताए पलोयमाणीए सचविओं महारिसी । तयणु 'हद्धि कयं मए महापावं ति संभंती ओतिना पासायाओ, गहियफासुयसलिला गया . मुणिसमीवं तुरियं । पक्खालि[ प. ११ A.]ऊण मुणिअंगाई लहिऊण य 15 चोक्खवत्थेहिं कयपंचंगपणामा रोयमाणी भणिउं पवत्ता- 'भयवं महापावा हं जीए तुह सयलसत्तवच्छलस्स देवासुरमणुयपूयणेजस्स एयारिसं समायरियं ति । पमायमहागहमोहियाए नै निझाइओ भूमिभागो, ता खमाहि मे महंतमेगमवराहं ति । तुम्मे चेव खमिउं जाणह, तुन्भे चेव खमा सीला, तुम्मे चेव सबजीवहियाणुपेहिणो ।' एवं पुणो पुणो पलवमाणि पेच्छ20माणस्स य रिसिणो विज्झाओ हिययकुंडे कोवग्गी । सोमदिट्ठीए पलोयमाणस्स नमयासुंदरी एवं त्ति जायं पञ्चभिन्नाणं । तओ साणुत्ता भणिया एसा'महाणुभावे! नमयासुंदरि! न मए वियाणिया तुम कोवानलपलित्तचितेण । संपयं पुण अदुइभावा तुमं ति निच्छियं मए, ता नत्थि तुहोवरि रोसलेसो वि । ता धम्मसीले ! मा रुयाहि । कुणसु वीसत्था धम्माणुट्टाणपालणं कति । तीए भणियं- 'भय ! जहा आणवेह तुब्भे । किंतु बीहेमि दढं घोरवसणसावाओ, ता देहि मे अभयं' ति । साहुणा भणियं- 'भद्दे ! ठिई एसा सावो अमहा काउं न तीरइ ति, ता होसु तुमं देवच्चणदाणसीलतवाणुहाणपरायणा । तओ सर्व सुंदरं भविस्सई त्ति दिनपडिवयणो गओ सट्टाणं रिसी। इयरी वि सावसल्लियमाणसा विसेसओ पवत्ता धम्मकजसु । , गंदूसो. २ हट्ठाः ३°ः तस्स. ४ मश्वविओ. ५ नि. ६ सन्वे जीवदिया. ७ पलवमाणी. ८ एज्झ. ९ णुनावं. १० हिई. Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१० 10 ३११ [३०४-३१७] नम्मयासुंदरीकहा। - २९ [महेसरदत्तनम्मयासुंदरीण जवणदीवं पइ पयाणं] अनया महेसरदत्तो उजाणे कीलंतो भणिओ सिणिद्धमित्तेहिं'- 'किमह कूपदहुरेणेवादिट्ठदेसंतराण जीविएण ? किं वा जणणिसमाए जणयविढत्ताए लच्छीए परिचाएण कीरमाणेहिं चायभोगाइविलासेहिं ? अवि य नियनुयविढत्तदवो मणोरहे मग्गणाण पूरितो। विलसइ जो न जहिच्छं चलंतथाणू" न सो पुरिसो॥ ३०८ जे चिय भमंति भमरा ति चिय पावंति बहलमयरंदं । मंदपरिसकिराणं होइ रई निवकुसुमेसु ॥ ३०९ अइपंडिओ वि पुरिसो अदिट्ठदेसंतरो हवइ अबुहो। देसंतरनीईओ भासाओ वा अयाणंतो ॥ पुन्नापुनपरिच्छा कीरइ दढमप्पणो मणुस्सेहिं । हिंडंतेहिं धणजणकजे नाणाविहे देसे ॥ किं बहुणा ?होसु तुम अम्हाणं [ सहाणं] अग्गणी जवणदीवं । वचामो नाणाविहमणिमोत्तियरयणपडिहत्था ॥' ३१२15 एवं बहुप्पयारं वयंसयाणं सुणेत्तु विन्नत्तिं । आह महेसरदत्तो-'किमजुत्तं होउ एवं ति ॥ ३१३ तो आपुच्छिऊण नियनियजणए पारद्धा संजत्ती- गहियाई तद्दीवपाउग्गाई भंडाई, पउणीकयाई जाणवत्ताई, सजिया निजामया, निरूविर्य परथाणदिवसं । एत्थंतरे पुच्छिया भत्तुणा नम्मयासुंदरी- 'पिए ! बच्चामो 20 बयं जवणदीवं ।' नम्मयाए भन्नइ- 'हो प, ११ B]उ एवं, ममावि सायरदसण-:: कुडं संपू[रि].' त्ति । इयरेण भणियं- 'तुमं ताव अंब-तायपायसुस्सुसणपरा इहेब चिट्ठाहि जाव वयमागच्छामो।' पडिभणइ सुंदरी तं- 'मा एरिसमाणवेसि कइया वि । न तरामि तुह विओए पाणा धरिउं मुहुत्तं पि॥ ३१४ 25 अवि जीवइ कुंथुरिया नीरविउत्ता वि कित्तियं कालं। तुह विरहे पुण नियमा सहसा पाणेहिँ मोचामो॥ ३१५ एकपए चिय पिययम! किं एवं निडरो तुम जाओ। किं नु सुया चेव तए लोगपसिद्धा इमा गाहा ॥ ३१६ भत्ता महिलाण गई भत्ता सरणं च जीवियं भत्ता। 30 भत्तारविरहियाओ वसणसहस्साइँ पार्वति ॥ ३१७ १ मेनेहिं. २ किमिम्ह. ३ घाइ. ४ °चाणु. ५ °वयारं. ६ निरवयं. • संपुजंति. ० तु. Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२० महेसरदत्तनम्मयासुंदरीण जवणदीवं पइ पयाणं । [३१८-३२५] भणइ महेसरदत्तो- 'सुंदरि'! अचंतभीसणो जलही। तेण तुमए समाणं गमणं न हु [जु]जए काउं॥ ३१८ मा कुण बालग्गाहं मह भणियं सुयणु ! सबहा कुणसु । आणाकारि कलत्तं सलहिजई लोयमज्झम्मि ॥ ३१९ निच्छयनिवारणत्तं आयनिय नम्मया तह परुन्ना। जह निडरो वि भत्ता जाओ करुणापरो धणियं ॥ भणइ य पुणो वि- 'सुंदरि ! रोयसि तं कीस तुह दुहभएण । अहमाइसामि एवं मा मनसु कारणं अन्नं ॥' ३२१ सा साहुसावभीया विरहं दइएण सह अणिच्छंती। 10 . भणइ- 'सुहं दुक्खं वा तुमए सहिया सहिस्सामि ॥ ३२२ अहवा चिट्ट गिहे चिये अहवा में नेहि अप्पणा सद्धिं । जइ ता जीवंतीए पुणो वि मिलियाइ तुह कजं ॥ ३२३ विनायनिच्छयं तो अणुणेत्ता नम्मयं महुरवयणं । भणइ महेसरदत्तो- 'तं काहं जंपियं तुज्झ ॥' ३२४ सो नम्मयाइ सहिओ सहिओ मेत्तेहिं एगचित्तेहिं । 15 भडचडयरेण गुरुणा पत्तो सरिनम्मयाकूलं ॥ ३२५ तत्थ य पत्तेहिं संजत्तियाई पव[ह]णाई आयामेण वित्थरेणावि पावंचासहत्थपमाणाई, मुणिकुलाई व परिहरियलोहाई पहाणगुणसंजमपगिट्टकट्ठाहिद्वियाइं च, चित्तकम्माइं पिव सुनिम्मायविचित्तभूमिभागाइं बहुवन्नरूवयसंग. याई च । कओ तेसु बहुकालजोग्गजलधणधन्नाइसंगहो, निबद्धा चउसु पि दिसासु नंगरा, पवेसियाई च पसत्थवासरे गंभीरनीरे पोयपवेसठाणे । आरूढा नियनियजाणवत्तेसु संजत्तिया । महेसरदत्तो वि समारूढो सह पिययमाए विसेसरमणिज्जे उवरिमभूमिविरइए वासमंदिरे । तो कुसलनिजामगकन्नधारेहि पावियऽणुकूलपवणप्पयारेहिं विमज्जियाई पवेसियाइं च महासमुदं जाणवत्ताई। कत्थइ गिरिसिहरायमाणमहल्लंकल्लोलेहिं गयणाभिमुहं निजमाणाई, अन्नत्थ विलीयमाणेहिं तेहिं चेव पायालं पिव पवेसिज प. १२ A ]माणाई, खलिजमाणाई महामच्छेहि, पेल्लिजमाणाई जलहत्थिमत्थएहिं, आहम्ममाणाई मगरनकपुच्छच्छडाहिं, विलग्गमाणाई विड्डमवणगहणेसु, उप्पयमाणाई पिव पवणुद्धयसेयवडेहिं गयाइं अणेगाई जोयणसयाई । तओ नम्मयासुंदरी[ए] भणियं- 'सामि ! अचंतभीसणो एस समुद्दो तेण जिणसासणे संसारउवमाणं १ सुदरि. २ सलहेजइ. ३ आइन्निय. ४ दुट्ठभाएण. ५ विय. ६ गुरुणो. ७°चाहसस्थ. ... रमणेजे. ९ महल्लि. १० विलिगा. ११ बिडम'. Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ३२६-३३१ ] नया सुंदरीका | ३१ कीर । अन्नं च कत्थ गया नगरकाणणासया मेइणी, रविससिगहाइणो वि ? एए किं जलयरा जेण जले उग्गमंति जले चेव अत्थमंति?' इयरेण भणियं ' सुंदरि ! मा भाहि पभूयमत्रं वि अपुवं दट्ठवं ।' तीए भणियं - 'तए सन्निहिए कयंताओ व न बीहेमि ।' इच्चाइ समुल्लापवत्ताणं वोलिया णेगे दियहा । 5 [ महेसरदत्तस्स नम्मयासुंदरीचरियम्मि कुसंका ] अन्नया मज्झरत्तसमए कोइ पुरिसो सुइमुहयं किंपि गाइउं पवत्तो । तस्स सरं सुणमाणीए नम्मयासुंदरीए सरियं सरमंडलं पगरणं विन्नायं च तस्स सरुवं । तओ अइपरिओसाओ भणिओ भत्ता - ' जो एस पुरिसो गायइ तस्संरूवमहमि - हट्टिया चैव जाणामि ।' 'केरिसं ?' ति वुत्ते साहिउं पवत्ता - 'पिययम ! एस 10 ता वत्रेण सामी पंसुलो पंसुलजुवइवल्लहो य । अन्नं च एयस्स गुज्झदेसे rajsatan मसो अत्थि ।' तं सोऊण विम्हिएण भणियं भत्तुणा - 'कहं पुण तुममिहट्ठिया जाणासि ?' तीए भणियं - 'सर्व्वन्नुवयणाओ ।' तओ 'सच्चमेयं नव ?' त्ति गंतूण बीयदिवसे एगंते पुच्छिओ सो तेणावि 'एवमेयं' ति भणिए समुपपन्नविलीओ समालिंगिओ ईसापिसाईए असंभावणिजी इमं भाविडं पयत्तो | 15 अवि य - ईसावसेण पुरिसा हवंति धुत्तूरिय व विवरीया । न नियंति गुणं संतं दो समसंतं पि पच्छंति ॥ चिते कहं जाणइ गुज्झपएस म एस जइ ताव न परिमिलिओ पंसुलपुरिसो इमो बहुही ॥ नूण निरंतर मेसो एयाए हिययमंदिरे वसइ । are for देइ मणो एसी एयस्स गीयम्मि ॥ एसो वि महीं धुत्त गायइ उच्च निसीहसमयम्मि । जेण निसामे इमा संकेओ वा इमो दुन्हं || मोत्तूण चंदणं मच्छियाउ लग्गंति असुइदद्वेसु । पयई इह महिलाणं विलीणपुरिसेसु रजंति ॥ भणियं च - अहरूवयाण लज्जं कुणंति बीहंति पंडियजणस्स । महिला एस पई काणयँकुंटेसु रचंति || ३२६ ३२७20 ३२८ ३२९ ३३१ १. मज्झ. २ पयगरणं. ३ यस्स ०. ४ ताच. ५ जाणामि. ६ असंभावणेना. एस दियं, ८ मस. ९ बहुहण. १० एसो. ११ मुहा० १२ मिच्छियाउ, १३ काण. ३३० 25 Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ ३३६ महेसरदत्तस्स नम्मयासुंदरीपरिचाओ। [३३२-३४५] अन्नं चिंतिति' मणे पेसलवयणाइँ दिति अन्नस्स । [अन्नस्स ] निद्धदिलुि खिवंति रामंति पुण अन्नं ॥ ३३२ तह दंसिओ सिणेहो तहा तहा रंजियं मणं मज्झ । एया एरिसचरियो अहो महेलाण निउणत्तं ॥ [ प. १२ B] ३३३ एयस्स विरहमीया नूणं एसा ठिया न गेहम्मि । बहुकूडकवडभरिया नजइ पुण उजुया एसा ॥ ३३४ का होज एत्थ दुई किं नाम केयठाणमेएसि । कह नाम वंचिओ हं एयाए गूढचरियाए । मिजइ जलहिस्स जलं तोलिजइ मंदरो य धीरेहि। कूडकवडाण भरियं दुन्नेयं महिलियाचरियं ।। कुवियप्पसप्पग[सि]ओ पणट्ठसन्नो इमो दढं जाओ। पम्हट्टधम्मकम्मो परलोयभएण वि विमुक्को ॥ [महेसरदत्तस्स नम्मयासुंदरीपरिच्चाओ] विम्हारिऊण सवे गुरूवएसे पयत्तपत्ते वि । तम्मारणेकचित्तो चिंतइ कोहाउलो एवं ॥ को होज मे पयारो जेण इमा दिहिगोयरे मज्झ । चिट्ठइ न खणं पि खला मलिणियनिम्मलकुला पाा ॥ ३३९ जइ ता घाएमि सयं अवन्नवाओ तओ दढं होइ । जम्हा जणो न याणइ दुचरियं को वि पावाए। छणमग्गणत्थमच्छई गोवियकोवो विसेसियपवाओ। जइ कह वि निसातिमिरे छुभेज एयं समुद्दम्मि॥ सम[इ] कंते दियहे वटुंते रयणिपढमजामम्मि । निजामएण केणइ घुटुं उद्दामसद्देण ॥ ३४२ 'भो अत्थि जलहिमज्झे दीवं निम्माणुसं अइपमाणं । नामेण भूयरमणं तम्मि पहायम्मि गंतवं ॥ ३४३ तत्थत्थि महाहरओ गंभीरो महुरनीरपडिपुनो। घेत्तवं तत्थ जलं सुगंतु संजत्तिया सवे ॥' ३४४ सोऊण घोसणं तं महेसरो पमुइओ विचिंतेइ । 'होही सुंदरमेयं छड्डिस्सं तत्थ दीवम्मि ॥ 10 . ३३८ . 20 ३४५ . चितिति. २ एरिसं चरियं. प्रयं, ८°मपाणं, ९ पहाइम्मि. ३ °भीहा. ४ पाया. ५ संयं. मथइ. Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 15 [३४६-३६०] नम्मयासुंदरीकहा। ततो पहायसमए पोयं धरिऊण दीवनियडम्मि । जलगहणत्थं चलिओ पवहणलोगो तहिं बहुओ॥ भणइ महेसरदत्तो- 'पेच्छामो ता वयं इमं दीवं । जह रोचह तुह सुंदरि!' तीए भणियं- 'हवउ एवं ॥ ३४७ चलिया तो दुनि वि सलिलं पाऊण तम्मि हरयम्मि। 'अइरमणिजो दीवो पेच्छामो ताव एयं पि॥ इय एवं जपतो हियए दुट्ठो मुहम्मि पियवाई। परिसकिउं पवत्तो दंसिंतो तीऍ वणराई॥ ३४९ कत्थइ असोगतरुणो निरंतरं मेहवंदसारिच्छा। कोइलकलरवमुहला कत्थइ सहयारतरुनिवहा ॥ ३५० 10 फलरससित्तधराओ निरंतराओ कहिंचि सिंदीओ। नालीरीओ कत्थइ अविरललंबंतलुंबीओ ॥ ३५१ कत्था दाडिमरुक्खा कत्थइ जंबीरगहिरगुम्माई । कत्थइ दक्खामंडवछायापरिसुत्तसारंगे ॥ ३५२ दाइंतो दइयाए सुंदरवणराइराइयं दीवं । पत्तो हरयासन्नं पेच्छइ वा प. १३ A ]णगहणमइगुविलं ॥ ३५३ मालइजाईकलियं साहावियकयलिगेहकयसोहं। दहण भणइ- 'सुंदरि! संता परिसकणेण तुमं ॥ ३५४ ता माणेमो' एयं कयलीहरयं मणोहरच्छायं । तरुपल्लवेहिँ सेजं काऊण खणं पि वजामो ॥ ३५५ 20 तीए 'तह' त्ति भणिए रइयाए सुहयरी' सिजाए। सुत्ता पसनचित्ता सुविसस्था नम्मया तहियं ॥ ३५६ चेचस्स सच्छयाए परिस्समाओ सुसीयपवणाओ। भयसंभमरहियमणा वसीकया झं त्ति निदाए ॥ ३५७ इयरो वि कूरचित्तो दटुं निदापरवसं एयं । 25 सणियं ऊसरिऊणं पहाविओ वहणजणसमुहो । ३५८ दोहिँ वि करेहिँ सीसं निबिडं वच्छ[स्थ]लं च ताडितो। लल्लकमुक्कपुको 'हा हा ! मुट्ठो' ति पलवितो ॥ ३५९ सहस ति तओ भणिओ रोवंतो वारिऊण मित्तेहिं । 'सत्थवइ ! केण मुट्ठो कहिं च सा वल्लहा तुझ१॥ ३६० 30 मेहचंड. २ 'सुहला. ३ त मोणेमो. ४ जा.. ५ निविडं. ६ चि. नम.५ Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 ३४ 25 नम्मयासुंदरी सुन्नदीवम्मि पलावो । सो आह - ' इत्थ गहणे अत्थि महारक्खंसो अइपमाणो । पेच्छंतस्स य दइया खणेण कवलीकया तेण ॥ read देवनिओआ पलायमाणो इहं समायाओ । संचलह ताव तुरियं खजामो तेण मा सधे ॥' इय भेसिएहिं तेहिं सहसा परिपिल्लियाइँ वहणाई । संठाविओ य एसो रुयमाणो कह वि किच्छेण ॥ तो सो वि सुड्डु तुट्ठो चिंत 'सिद्ध' समीहियं मज्झ । निच्छूढा सा पावा निवारिओऽवन्नवाओ वि ।।' [ ३६१-३६७ ] ३६१ ३६२ [ नम्मयासुंदरी सुन्नदीवम्मि पलावो ] 10 नमयासुंदरी वि सुहरमच्छिऊण निद्दावगमे चिउद्धा, उडावणबुद्धीए भचाराभिमुहं भुयं पसारे । तत्थापेच्छंती तं दुइयपासं निरूवेइ 'नूणं सरीरचिंताइको कत्थइ गओ । मा निद्दाविग्धं ति नाहं विबोहिया, तुरियमेवेहेहि" त्ति ठिया मुहुतं । जाव नागच्छ ता 'मम धीरियं परिच्छह' ति भाविती भणह'पाणase ! कओ अबलाणं धीरिमा ? तुरियमेहि बीहेमि एगागिणी । किं 15 वा ल्हि (निलु १) कणखेडयमारद्धं । दिट्ठो सि मालइडालंतरिओ, कयलीवणे चिट्ठसि । इत्तिओ चेव परिहासो सुंदरी होइ, एहि तुरियं, बाहराहि वा जेणाहमागच्छामि ।' बहुं पि भणिए न कोई जंपर 'नूणं सत्थाभिनुहो गओ भविस्सइ ति । सत्थरोलो' वि [न] सुवइ [त्ति १]' संभवा संठविओवरिल्लकडिल्ला पहाविया, पत्ता वासङ्काणं । तं पोयट्ठाणं पि सुनं दडूण दढमाउलीहूया 20 चिंतइ 'सवमेर्यमसंभावणिजं, नूणं सुमिणय[ प १३ B ] महं पेच्छामि । भूयपेयाइणा वा केणावि विमोहिय म्हि' त्ति भीयहियया रोयमाणी विलविडं - पवत्ता | कहं ? - ' हा कंत ! नाथ ! दइय ! नाहं पेच्छामि मोहिय म्हि केणावि, देहि देहि दंसणं निग्धिणो सि एवं कहि जाओ । ३६३ ३६४ वीसरिया कीस अहं बहुजणवावारमाउलमणस्स । अहवा न घडइ एयं कहेहि ता कारणं अनं ॥ काऊण मज्झ रूवं वेलविओ किमसि [ भूय ]रूवेण । भूयरमणु ति नामं सुवइ एयस्स दीवस्स || ' मुच्छिs aणमेकं खणमेकं लद्धचेयणा रुयह । कुइ पलावे विवि खणं खणं किं पि झाएइ ॥ ३६६ ३६७ १ मेमेसिएहिं. २ सिहं. ३ 'वेहेहे. ४ वाहिराहि. ५ सत्धाराको ६ 'मेवम. मि. ३६५ Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७३ [३६८-३८१] नम्मयासुंदरीकहा। एमेव सुनपु(बु)मा वणंतराइं खणं निहालेइ । 'एएहि दइय! दइयय" वाहरइ पुणो पुणो मूढा ॥ ३६८ सोऊण य पडिसई तत्तोहुत्त पहावए तुरियं । पुणरवि अपेच्छमाणी कुणइ पलावे बहुपयारे॥ ३६९ भणइ वणदेवयाओ- 'तुम्मे जाणह फुडं कहह मज्झ ।। मोत्तूण मं पसुत्तं कत्थ पलाणो पिओ सो में१॥ सोऊण सउणविरवं एसो मं कोकई त्ति पहसंती । धावइ तत्तोहुत्तं अपिच्छमाणी पुणो रुयइ ॥ ३७१ एवं जाव दिणंते' रुयमाणिं तं तहा करुणसई । दहुमचाईतो इव सूरो बुड्डो जलहि[मज्झे] ॥ ३७२० दगुण पजंपइ - 'किं ने नियसि अंधारियं [तुमं?] भुवणं । "एगागिणी वराई कह होही सा पिया मन्झ ॥" भुजओ वि करुणसई तह रुनं तत्थ भीयहिययाए । जह दीवदेवयाओ समं परुनाउ णेगाओ ॥ ३७४ अलहंती निदसुहं ताडंती नियउरं पुणो भणइ । 'किं हियय ! वजघडिय न फुट्टसि जं एरिसे वसणे ॥ ३७५ उदहिरवं अइभीमं निसुणंती विविहसावयसरे य। कंपंतसयलगत्ता कह [वि] गमेई तयं रयणि ॥ ३७६ ताव [य] उइओ सूरो विहुणेत्ता रयणितिमिरपब्भारं । किं जियह सा वराई किंवा वि मय त्ति नाउं वा॥ ३७७२० उच्चस्थलमारूढा निज्झायंती दिसाउ सबाओ। भणइ- 'कहिं नाह ! गओ इक्कसि मे देहि पडिवयणं ॥ ३७८ बच्चामि कत्थ संपइ कं सरणमुवेमि कस्स साहेमि। पिययम ! सुन्नारने कत्तो ठाणं लहिस्सामि? ॥ ३७९ कन्ने जणे[ग] केणइ मन्ने तं नाह ! मज्झ रूसविओं। तह विपडिवन्नवच्छल! काउं न हु एरिसं जुत्तं ॥ ३८० किर जीवदयासारो उवइट्ठो मुणिवरेहिँ तुह धम्मो। सो वीसरिओ किं मं सुन्नारने चयंतस्स ॥ 15 25 ३८१ . मो. २ कोकइ. ३ विणतं ४ रुयमाणी. ५ किन्न. ६ रयणी. . तो उच्चस्थ. कहि. तसविमो. १० वि न पडि. www.jain Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10 ३०७ नम्मयासुंदरीए धम्मज्झाणेण कालगमणं [३८२-३९५ ] जह परिचत्ता अहयं दुअणवयणेहिँ मोहियमणेण ।। तह मा जिणवरधम्म एगंतसुहावहं चयसु ॥ मं मोत्तुमणो जइ ता आसि तुमं कीस जणणिजणयाणं । पासे नाहं मुक्का जम्मंतरवेरिओ किं मे ॥ ३८३ [नम्मयासुंदरीए धम्मज्झाणेण कालगमणं ] करुणं रुयमाणीए तीए उव्वेविएण मू(भू?)एण । नहयलगएण दिना फुडक्खरं एरिसा वाया ॥ 'नट्ठो सो पावपई मुद्धे । किं रुयसि कारणे तस्स ।। किं पलविएण सुंदरि ! सुनारनम्मि एयम्मि ? ॥ ३८५ तं सोऊण नम्मयाए चिंतियं'आगासगया वाया एसा सुरजाइयस्स कस्सा प. १४ A ]वि । नूणं न होइ अलियं गओ पिओ में पमोत्तूण ॥ ३८६ न कयं किं पि अजुत्तं आणा वि न खंडिया मए तस्स । तह दंसिऊण नेहं परिचत्ता कीस सुनम्मि?॥ सुयणा सरलसहावा असमिक्खियकारिणो न खलु हुंति । एमेव अहं चत्ता अहयं कह तेण विउसेण ॥ . ३८८ मुणिसावाओ भीया पडिया कह इत्थ दारुणे वसणे । कूयमिवाओ(१) तत्था खित्ता रुद्दे समुद्दम्मि ॥ धी धी अहो ! अकजं कयं अणजेण विगयलजेण । संचालिऊण गेहा एत्थाहं पाडिया दुक्खे ॥ अहवा न तस्स दोसो पुवकयं दारुणं समोइन । तह सुट्टिएण मुणिणा दिन्नो कहमनहा सावो १॥ मु[णि]णो वि नत्थि दोसो महावराहेण चोइयमणस्स । उच्छलइ जेण अग्गी चंदणकडे वि अइमहिए ॥ ३९२ किं झूरिएण संपइ आयहियं सबहा विचिंतेमि । धीरेहिँ कायरेहिँ वि सोढवं जेण सुहदुक्खं ॥ ३९३ होऊण कायरा जइ करेमि मरणं न दुकरं तं तु । किंतु अविहाणमरणं निवारियं वीरनाहेण ।। ३९४ मने ता धन्नाओ कुमारसवणीओ जीवलोगम्मि । पियविप्पओगदुक्खं जाओ सुमिणे वि न मुणंति ॥ ३९५ महई. २°मणं. ३ मो. ४ खेत्ता. ५ झुरिएण. ६ जव. ३९१ Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ३९६-४१०] नम्मयासुंदरीकहा। अहयं पि बालभावे जइ ता गेण्हेज जिणमए दिक्खं । एयारिसदुक्खाणं नाम पि न ताव जाणंती ॥ अन्ज वि जइ जीवंती जंबुद्दीवं कहं पि पाविजा। गेण्हेस्सं पद्यजं सुहत्थिमूरिस्स पामूले ॥ एसो इहेव नियमो पारिस्सं छट्ठभत्तपजंते । नियमेण एगवारं फासुयफलपत्तपुप्फेहिं ॥ संठाविऊण हिययं घेतूण अभिग्गह इमं घोरं । निहणई उदयस्स तडे संकेयपटं चिरपसिद्धं ॥ 'जिणधम्मो बोहित्थं साहू संजत्तिया सहाया मे । निजामओ जिणिंदो भवजलही दुत्तरो कह णु ॥ ४०.10 चत्तारि मंगलं मे अरहंता तह य सबसिद्धा य । सबो वि साहुवग्गो धम्मो सवन्नुपनत्तो॥ ४०१ धन्ना हैं जीय मए सामग्गी एरिसा समणुपत्ता । भवसयसहस्सदुलहं निबंधणं सग्गमोक्खाणं ॥ ४०२ ता संपइ मम देवो वीरजिणो विगयरागमयमोहो । 15 सयलसुरासुरमहिओ सहिओ अइसयसमूहेण ॥ संसारभउबिग्गा एगग्गा गुरुवएसु जा लग्गा। सेवंति सुद्धचरणं ते गुरुणो साहुणो मज्झ॥ ४०४ जीवाइए पयत्थे जिणभणिए सद्दहामि सबे वि। न रमइ एक पि खणं कुतित्थसत्थे मणं' मज्झ । ४०५२० इय दढसम्मत्ताए पत्ताए दारुणम्मि वसणम्मि । सा होज मज्झ चिंता जीवामि मरामि वा झै ति ॥ कित्सियमयं वसणं महाणुभावेहि धीरचित्तेहिं।। सहियाइँ मुणिवरेहि सुवंति जिणागमे जाई॥ ४०७ निप्फोडियाणि दोनि वि सीसावेढेण जस्स अच्छीणि। 25 नै य संजमाउं चलिओ मेयजो मं[प. १४ B]दरगिरि छ ॥ ४०८ कस्स न करेइ चोजं असमोपसमो चिलाइपुत्तस्स । दुकरकरणं पि तहा अवंतिसुकुमालमहरिसिणो॥ ४०९ धनो गयसुकुमालो" मत्थयजलिएण जस्स जलणेण। दहमसेसं सहसा कम्मवणं चिरपरूढं" पि ॥ ४१० 30 १ गेण्हेस्सा. २ अभिग्यहं ३ निनिहणइ. ४ संकेयवयं ५ खणं. ६ म. ७ साहियाई. ८ नि. ९ संजमाओ. १०°सुकमाल. ११ सुकमालो. १२ दढम. कम्मावणं. १४ °परलं. Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ B 10 15 20 ३८ नम्मयासुंदरी चुल्लपिउणा सह मिलणं बब्बरकूलगमणं च । [ ४११-४२३ ] धनो मुणिव साहू धम्मज्झाणम्मि निच्चलो धणियं । दडो' ससीसपाओ जलिएण वणे हुयासेण ॥ रिसिदत्ता - सीयाहिं अन्नाहि वि अंजणापमुक्खाहिं । सुवइ महासईहिं दुस्सहदुक्खाइँ' सोढाई || ता जीव ! मा किलम्मसु उद्देयं नियमणम्मि मा कुणसु । साहससहाय सहिया कल्लाणसयाइँ पार्वति ॥' इय बहुविहमप्पाणं अणुसासिती गमेह सा कालं । वच्च य पोयठाणं दिणे दिणे उभयकालं पि ॥ 'जइ ता लहामि कत्थइ जंबुद्दीवाणुगामियं सत्थं । मिलिऊण सजणाणं करेमि ता उत्तमं चरणं ॥' एवं चितीए वोलीणं माससत्तगं तत्थ । अमुयंतीए सत्तं सद्धिं सम्मत्तरयणेण ॥ सकाराभावाओ सीयायवपवणसोसियसरीरौ । ती तणुयंगीए संजाया केरिसी छाया ? ॥ अवि य 25 १ दड्डा. २ दुक्खाई. ३ सरीरो. ४ °यगीए ५ च. ९ भइ लगुफियं जायं भइथूलगुंफियाओ जंघाभो. उत्तत्तणयवनो देहो जो आसि पुढकालम्मि । सो लक्ख इह पडियं नवमेहखंडं वै ॥ कोहंडस्स व बिंटं कंठो तणुयत्तणेण संवुत्तो । तावससिरं वे सीसं केसेहिँ जडत्तपत्तेहिं ॥ परिसुसियनीलपंकयनालिं पिव सहइ बाहियाजुयलं । पक्का मा[स] फली व हत्थंगुलियाउ सुक्काओ || गमेत्तुवलक्खियपओहरं पयडपंसुलं वच्छं । चामुंडोयरतुलं उदरं खामत्तमुवहइ || ४२३ कमयं पिव घडियं नियंत्रफलयं अमंसलं जायं । अइथूलगुंफियाओ जंघाओ कागजंघ व ।। तं तारिसयं तीसे अंगं दड्रूण नूणमुहिग्गो । आसालग्गो जीवो न मुयइ वोढुं असत्तो वि ॥ [नम्मयासुंदरी चुल्लपिउणा सह मिलणं बब्बरकूलगमणं च ] एत्थंतरे नमयासुंदरी पुनोदयरञ्जसंदाणिओ व बब्बरकूलं उद्दिस्स चलिओ 30 नम्मयापुराओ वीरदासो | कहाणयविसेसेण संपत्तो भूयरमणदीवासनं । दट्ठणं ६ य. १० बम्वर १ ४११ ४१२ ४१३ ४१४ ४१५ ४१६ ४१७ ४१८ ४१९ ४२० ४२१ ४२२ ७ बाहिया. ८ षत्थं. Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [४२४-४२९] नम्मयासुंदरीकहा। ३९ नम्मयासुंदरीसमुन्मियं चिंधं भणिउमाढत्तो-'भो भो ! अत्थि इह दीवे कोइ भिववाहणिओ । समओ एस पोयवणियाणं, एयं मोत्तूण न गंतवं । ता ठवेह एयस्स समीवे पवहणाई । ठवियाई च तेहिं । तओ समुत्तिन्नो' समागओ हरयतीरे । दिट्ठाई च मसिणधूलीए अचिरागयाए नमयासुंदरीए पयाई । ताई च सपुबाई पिव मन्नंतो सविसेसं' पलोइऊण भणिउमाढत्तो-5 'भो भो वाणियगा! एह एह, दंसेमि किं पि कोउगं ।' समागयाणं च दंसियाई, भणियं च वीरदासे प. १५ ]ण-'न ताव एयाइं पुरिसपयाई, जओ एएसि पच्छिमभागो भारिओ इव लक्खिाइ । किं बहुणा ? एयाई नम्मयासुंदरीए संतियाई पयाई । तेहिं भणियं-'अहो अच्छेरयं । कत्थ नम्मयासुंदरी वीरदासेण भणियं- 'जइ अहमन्नो भवामि ता एयाई पि10 अनाइ भवंति । एगागिणी य एसा, जओ पुरिसपयाई नत्थि । चिरआगया ये नजइ जओ पहओ' दंडओ एस । ता एह ताव सम्मं निरिक्खिमो' ति भणंतो चलिओ दंडएण । नाइदूरगएण निसुओं जिणगुणपडिबद्धाई थुइथोचाई पढ़तीए सहो । पञ्चभिन्नाया, 'मा संखोहं गच्छिहीं' [त्ति ?] महया सद्देण भणियं-'निसीही । सा वि कहिं इत्थ चुल्लबप्पो त्ति विम्हिया अप्पाणं 15 संठविउं सम्मुही समुट्ठियो । तओ दद्रूण वीरदासं पम्हुट्ट पि दुक्खं सयणजणदंसणे पुणभव" होइ ति दुक्खभरभारिया चलणेसु निवडिऊण विमुक्ककंठं रोविउं पवत्ता । तओ खुणमेकं रुयमाणी पडिसिद्धा [सा न ] वीरदासेण । उग्गिलियहिययदुक्खा जेण सुहं कहइ नियवुत्तं ॥ ४२४20 दोहि वि करेहिँ सीसं गहिऊणुद्धीकया खणद्धेण । आलिंगिऊण गाढं निवेसिया निययअंकम्मि ॥ ४२५ भणिया-'पुत्ति ! कहिजउ काऽवत्था एरिसी इमा तुज्झ। साहिजउ वुत्तंतो असंभवो तुह कहं जाओ? ॥ ४२६ आखमरिसिसावाओ सिट्ठो तीए असेसवुत्तंतो।। 'इह ठाणम्मि पसुत्तं मोतूण, गओ पिओ जाव ॥ ४२७ अहमवि [चि]रस्स बुद्धा सुन्नमणा एत्थ घणवणे दीवे । अमुणियतण्हुण्हछुहा अवियाणियजामिणीदियहा ॥ ४२८ गहगहिया इव भमिया "हा पिययम! हा पिय" ति पलवंती । भीमम्मि एत्थ दीवे केइ दिणे तं न याणामि ॥ ४२९ 30 . वाहणीभो.. २ समुत्तिने. ३ मविसेसं. ४ इ. ५ पहउ. ६ मिसुमो. ७. वडाई. • °षपो. ९ सामुठिया. १० पम्हुदृ. ११ पुणुमवं. १२ °सावाउ. 25 Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३१ ४३५ ४० नम्मयासुंदरीए चुल्लपिउणा सह मिलणं बब्बरफूलगमणं च । [४३०-४४४] कइवयंदिणपेरते आगासगएण केणइ सुरेण । भणियं “न एत्थ भत्ता कस्स कए रुयसि तं मुद्धे ! ॥" ४३० मुणियं च मए सवं नूणं अवउझिया अहं तेण । कत्तो अवराहाओ एयं पुण नेव जाणामि ॥ परिमुक्कजीवियासा भाविय संसारविलसियं विसमं । जिणवरभणियं धम्मं करेमि ता ताय ! एगग्गा ॥ ४३२ अणवरयमेव सुबई अइघोरो एस जलहिनिग्योसो। सावयजणा अणेगे भमंति पासेसु भयजणगा॥ ४३३ कोकंति' कोल्हुर्यगणा निसासु फेकंति भसुयसंघाया। घूरुग्घुरंति' वग्घा उप्पजइ नो भयं मज्झ॥ ४३४ ताव चिय होइ भयं निवसइ हिययम्मि जाव जीवासा। सा वि मए परिचत्ता तत्तो कत्तो भउप्पत्ती ॥ झायंती वीरजिणं भाविंती विविहभावणाजालं । दूरियअट्टदुहट्टा तायाह एत्थ चिट्ठामि ॥ ४३६ ताय ! ममावि कहिजउ कहं [प. १५ B] तए जाणिया अहं इत्थ । अञ्चब्भुयं महंतं ताय ! इमं भासए मज्झ ॥ ४३७ तो भणइ चुल्लबप्पो- 'पुत्ति ! तुहावडिई इह पएसे। तह सुहियाए जाया किं न हु अञ्चब्भुयं एयं ॥ सा संपज्जइ बुद्धी हुंति सहाया वि तारिसा चेव । जारिसया जियलोए नरस्स भवियव्वया होइ ॥ न कयाइ मज्झ सुंदरि! मणोरहो आसि पोयवाणिजे । अत्थि घरे चिय विहवो सुहाइँ संतोससाराई ॥ ४४० तुह पुन्नचोइयस्स व जाया एयारिसी मई कह वि । गंतुं बब्बरकूलं करेमि अत्थजणं इण्हि ॥ ४४१ चलिओ मित्तेहिँ समं संपत्तो जाव इह पएसम्मि। दिट्ठा सायरतीरे ताव पडाया पवणविहुया ॥ तं दडे' ओइन्नो सुंदरि ! एयम्मि भूयरमणम्मि । दिट्ठाइँ तुह पयाई नायाई परिचयगुणेणे ॥ तेसिं अणुसारेणं संपत्तो सुयणु ! तुह समीवम्मि। दिट्ठा सि तुमं संपइ निहि व दारिदतविएण ॥ ४४४ १कयवय. २ मुञ्चइ. ३ कोकंति. ४ कोल्हय'. ५ धुरुधुरंति. सायंति. ७ नायाहं. ८ नो. ९ °वप्पो. १० तुहाचटिइ. ११ दह. १२ गुणाण. १५ मा ४३८ 20 ४३९ 25 ४४२ 30 Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१ ४४७ ४५० [४४५-४५३] नम्मयासुंदरीकहा। चिंतेमि तओ हद्धी सा तारिसरूपकंतिगुणकलिया। केण इमा मह धूया उवणीया एरिसमवत्थं ॥ ४४५ हा हा ! खलो अणजो निल्लज्जो निग्घिणो' महापावो । को नाम हुञ्ज पुरिसो जेण इमा पाडिया दुक्खे ॥ ४४६ नूणं न अत्थि ठाणं नरयं मोतूण तस्स पावस्स । जेण जणवल्लहगुणा एसा दुहसंकडे छूढा ॥ कह से चलिया चलणा कह वा हिययं झडं त्ति न हु फुटूं'। कह सो जीवइ लोए जेण कयं एरिसं पावं?॥ ४४८ हा बाले ! हा वच्छे ! सुलक्खणे ! सरलसुंदरसहावे । संपत्तं कह णु तए सुंदरि! एवंविहं दुक्खं १ ॥ ४४९10 अजेव तुमं जाया जाओ परमूसवो इमो अम्ह । दिट्ठा सि तुमं वच्छे ! जीवंती कह वि तं अन्ज ॥ भणियं च सुंदरीए- 'सीईभूयाइँ मज्झ अंगाई। जाया य जीवियासा तुह मुहकमलम्मि दिद्वम्मि ॥ ४५१ वसइ मम जीवलोओ विमलीभूयाइँ दिसिर्वहुमुहाई। 15 अमएण व सेत्ता हं तुह मुहकमलम्मि दिम्मि ॥ ४५२ तओ महुरवयणोदएणं निवावियदुक्खानला नीया वीरदासेण महद्दहासन्नलयाभवणे । अब्भंगिया कल्लाणतिल्लेण, उवट्टिया सुरहिसोमालेहिं उबट्टणेहिं, मजाविया तिहिं उदएहिं, अलंकिया पहाणवत्थाइएहिं, भोइया विविहोसहसणाहं सरीरसुहकारिणीमहापेजं । किं बहुणां ? महाविजेणेव विसिट्ठपत्थाइएहिं 20 तहा तहा पडियरिया जहा थेवेहिं चेव वासरेहिं जाया साहावियसरीरा। तओ भणिया तेण सहायमणुस्सा-'भो! संपन्नो अम्ह मणोरहाइरित्तो महालाभो नम्मयासुंदरिलंभेण, ता देह पच्छाहुत्तं पयाणयं । तेहिं भणियं-'मा एवं भणाहि । जओ आगया बहूणि जोयणसयाणि पञ्चासन्नं बब्बरॅकूलं वट्टइ । अन्नं च एस नम्मयालाभो उत्तमो [प. १६ A ] सउणो । अओ चेव तत्थ गयाणं 25 विसिट्ठो लाभो भविस्सइ त्ति । अओ सबहा जुत्ता बब्बरकूलजत्ता ।' एवं भणिओ दक्खिन्नसारयाए तहाविहभवियवयानिओगओ पयट्टो वीरदासो । थेवदिवसेहिँ पत्तो पेल्लिजंतोऽणुकूलपवणेण । 'पत्तो बब्बरकूले पोयट्ठाणं मणभिरामं ॥ ४५३ १ निधिणो. २ झड. ३ फुटमा. ४ बहु'. ५ दुक्खानल.. ६ हुबणा. ७ बम्बर. नम• ६ Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५४ 10 15 वीरदासस्स हरिणीवेसागिहे गमणं। [४५४-४६७ ] उत्तारिऊण भंडं संजत्तियवाडयस्स मज्झम्मि । निम्माविया य सहसा गुणलयणी भियगपुरिसेहिं॥ तीसे मझे सिजा निम्मविया नम्मयाइ पाओगा। चिट्ठइ य सुहासीणा सुत्ता वा नम्मया तत्थ ॥ ४५५ अह अस्थि तत्थ दीवे नयरं नामेण बब्बरं रम्म। मणिकणगरयणपुग्नं बब्बरलोयस्स कयतोसं ॥ ४५६ तत्थऽस्थि हरिणलंछणलंछणकिरणुजलो जसपयासो। नामेण इंदसेणो सुपयासो पुहइवीढम्मि ॥ ४५७ सो पुण हिओ पयाणं जणओ इव निययमंडलगयाणं । दीवंतरागयाणं विसेसओ पोयवणियाणं ॥ ४५८ पोयट्टाणपुराणं अंतो दोन्हें पि नाइदूरम्मि । बहुजणकयपरिओसं वेसाण निवेसणं अस्थि ॥ ४५९ विजइ य तत्थ गणिया हरिणीनामेण नयरसुपसिद्धा । नरवइकयसामित्ता गणियाण सयाण सत्तण्हं ।। ४६० गिन्हइ सा वि विढत्तं तासिं सहासिमेव दासीणं । सा वि पयच्छइ रन्नो भागं तइयं चउत्थं वा ॥ ४६१ अस्थि यं रायपसाओ तीए सोहिँ पोयनाहेहिं । अट्ठसयं दम्माणं दायवं रायभाडीए ॥ ४६२ नरवइकयप्पसाओ गई सबो जणो वहइ पायं । पर्यंईतुच्छसहावो किं पुण पन्नंगणावग्गो ॥ ४६३ सोहग्गरूवगवं समुबहती तओ विसेसेण । उम्मत्ता इव हिंडइ हीलंति न[य] रजणं सर्व ॥ ४६४ [वीरदासस्स हरिणीवेसागिहे गमणं ] निसुयं च तओ तीए जंबुद्दीवाउ आगयं वहणं । सामी उ वीरदासो तस्स त्ति जणप्पवायाओ ॥ ४६५ गोससमयम्मि ताहे महग्यवत्थाण जुवलयं घेत्तुं । पहियं चेडीजुयलं निमंतयं पोयसामिस्स ॥ ४६६ भणिओ य सप्पणामं कोसल्लियमप्पिऊण सो तेण । 'विनवइ अञ्ज ! हरिणी अम्हाणं सामिणी एवं ॥ ४६७ १ सजति'. २ मुहा'. ३ °करिणु. ४ दोवं. ५ चउहूं. वे. • पर बहता. ९हीळती. 20 25 Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७२10 15 [४६८-४८१] नम्मयासुंदरीकहा। होयबमज सामिय! अम्हाणं पाहुणेहिँ तुन्भेहिं । अम्हं रायाएसो कायचं तुम्ह पाहुन्न ।' ता भणइ वीरदासो- 'कहियवं सामिणीय तुह वयणं । मवि(दी?)यमेयं सवं कयं च तुब्मेहिँ दट्ठवं ॥ अम्ह वि रायाएसो पडिवजेयई' इमं तुम भद्दे ! ।' . भणिऊण तासिमप्पड अट्ठसयं रूढ(व.)दम्माणं ॥ गंतूण चेडियाहिं कहियं हरिणीऍ वीरसंलवियं ।' उवणीयं अट्ठसयं दम्माणं पाहुडं ताहि ॥ जाणियहिययाकूया कुविया हरिणी विचिंतई 'नूणं । आगंतु सो नेच्छइ करेइ मम माणपरिहाणि ॥ दोहग्गिणि त्ति लोए मज्झ पसिद्धी अणागए होही । ता पेसिऊण दवं कोकेमि तमेव गेहम्मि ॥ ४७३ पेसेह तओ चेडिं- 'भणिज धणमप्पिऊण तं वणियं । न हिमह धणेण कजं तुमम्मि गेहे [प. १६ B] आणितम्मि॥४७४ नो खलु रायाएसो "मुहाइ गेण्हेज तं तओ वित्तं । किंतु विणएण भामिणि! आराहिता मणं तस्स ॥" ४७५ पडिभणइ वीरदासो- 'आराहियमेव मह मणं तुमए । सम्भावसारमेयं निमंतणं कारयंतीए ॥ ४७६ भणियं चवाया सहस्समइया सिणेहनिज्झाइयं सयसहस्सं । सम्भावो सअणमाणुसस्से कोडिं विसेसेइ ॥ ता मा काहिसि भद्दे ! अम्होवरि अन्नहा मणं किंपि। इय भणिऊण सदवा विसज्जिया सा गया तुरियं ॥ ४७८ किं पुण सो नागच्छइ ताओ' अन्नाउ वयणकुसलाओ। भुजो वि पेसियाओ णेगाओ छेयचेडीओ ॥ तम्मि समयम्मि दिट्ठा आसन्ना नम्मया जणयवयणं । मुहु मूहु निज्झायंती सिणिद्धलोलेहि नयणेहिं ॥ ४८० तीए सरीरसोहं दट्टण सविम्हियाउ सबाओ । अनोमं वयणाई पलोइउं. झं त्ति लग्गाओ ॥ ४८१ , 'मन. २ बजेयकं. ३ चोडियाहिहं. ४ °याकूवा. ५ भागंतु. ६°हाणी. ७ कोकेमि. डी. पापा... 'माणुमस्स. ११भिहे. १२ नाओ. १३ च्छेय. १४. 20 ४७७ ४७९25 Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८२ 15 वीरदासस्स हरिणीवैसागिहें गमण। [४८२-४९५ ] भणंति य'ता रूववई नारी आसनं जा न होइ एयाए । सहइ गहनाहजुण्हा सूरपहा जा न अल्लियई ॥ पुणरवि सविणयमेवं भणिओ पोयस्स नायगो ताहि । 'अज ! पसीयसु हरिणि' हरिणीवयणं कुणसु कन्ने ॥ ४८३ नयणेहिँ को न दीसइ केण समाणं न हुंति उल्लावा।। हिययाणंदं जं पुणु जणेइ तं माणुसं विरलं ॥ ४८४ दिट्ठो सि न तं सुंदर! निसामिया तुह गुणा अणन्नसमा । तुह दंसणूसुयमणो तेणाहं सुटु संजाया ॥ ४८५ न धणेण मज्झ कजं किं पुण नासेइ मज्झ गुणमाणो । जइ न कुणसि नियचलणुप्पलेहिँ गेहं मम पवित्तं ॥ ४८६ नासइ तुज्झ वि नियमा गरुयत्तं मह गिहं अणितस्स । जं संलविही लोगो विहुणो(?) तिट्ठावरो एस ॥ ४८७ एवं बहुप्पयारं भणियं सोऊण तासि दासीणं । 'जणरंजणत्थगमणे धणवइ ! को नाम दोसो त्ति ॥ ४८८ इय मित्तवयणसवणा काममकामो वि पुरिसदुगसहिओ । सहस त्ति वीरदासो पत्तो गेहम्मि हरिणीए ॥ ४८९ अब्भुद्विऊण तीए पारद्धा आसणाइपडिवत्ती। एत्थंतरम्मि निहुयं पढियं एगाएँ चेडीए ॥ ४९० 'अन्नस्स बंधभोइणि ! नवपवईसेल्ल[क]यवइल्लस्स । आया(मेत्तवसिओ न कजकरणक्खमो एस ॥ ४९१ अमुणियतब्भावाए हरिणीए पुच्छिया रहे चेडी। 'साहेहि फुडं भद्दे ! भावत्थमिमस्स पढियस्स ।' तीए भणियं'एय समीवे रमणी" दिट्ठा अम्हाहिँ तत्थ पत्ताहि । उबसिरंभतिलोत्तमंगोरीणं[.............] ॥ ४९३ तरुणजणमोहकारणभुवणब्भुयभूयदेहसोहाए । तीसे पासम्मि धुवं न सहसि तं हरिणि ! हरिणि व ॥ ४९४ तं मोत्तूण न कत्थइ मणभमरो रमइ नूणमेयस्स ।। ता किं उवयारपरिस्समेण बज्झेण एयस्स ॥ ४९५ प्पहा. २ पसीयस. ३ हरिणी. ४ जाणइ. ५°मणो. ६ तिहुयं. ७ °पब्वय. ८ आयर. ९°खमो. १० दहे. ११ रमणीहिं. १२ °त्तिलोत्तिम. २० 90 Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ४९६-५१० ] नम्मयासुंदरीकहा | ४९७ भावत्थ तुह कहिओ सामिणि । एयस्स निययपढियस्स । नाऊण इमं तत्थं जं रोयइ तं करिजासु ।।' ४९६ हरिणी भइ - 'हला जइ न करिस्स [प. १७ 4] इ मज्झ इच्छियं एसो ता एनाममुहं तुह अप्पिस्तं कह वि घेत्तुं ॥ चिंघेण तेणं हरिडं आणेजह एयवल्लहं तरुणिं । पच्छिमदारेण पवेसिऊण भूमीगिहं निज || काय पडिकूलं दक्खिन्नविवज्जियस्स एयस्स ।' सामच्छिऊण एवं अल्लीणा सत्थवाहस्स || अव उज्झिनेहाण व विनाणं किंपि होइ वेसाणं । पयडंतीओ नेहं जेण जणं पत्तियावंति || अब्भंगिओ तओ सो सुगंधनेहेण नेहरहियाए । संवाहिय उट्टिय हविओ' पहाणेहिं विविहेहिं ॥ परिहाविओ य तत्तो सोमालाई महग्घवत्थाई" । आलिंपियं च अंगं गंधुकड चंदणाईहिं || काऊण कोउयाई कप्पूरागरुतुरुक्क माईहिं । विहिया से धूवणिया तस्स मणोरंजणपराए || बहुहावभावसारं नाणाविहचाडुकम्म कुसलाए । तह तह भणिओ विघणं न पवतो तीय वयणम्मि ॥ भाणीय सुंचमहरि ( भणिया च सुंदरि अहं ? ) संपइ वच्चामि अप्पणी ठाणं ।' अंसुजलल्लियवयण पुणो वि धुत्ती इमं भणइ || ५०४ ५०५२० [......] अभग्गमाणा नयरपहाणा बहुं पि झक्खंती । तुम नाहं गणिया उद्धारूढेण सुणिय छ । तह वि हु मे नयणाई निम्माणाइं न चैव तिप्पंति । तुह दंसणस्स ता कुण खणमेकं जयगोहिं पि ॥' हरिणिपरिओसहेउं पडिवनं तेण उज्जुहियएण । कंजियजलेण छलिओ धुत्तीए जुन मजारो ॥ विस्संभभावियाणं पबंधणे किमिह नाम पंडिचं । अंकपत्ते हणिएं संसिजइ केण सूरतं ॥ अह सा पट्टयाँ सारीपट्टे ठवित्तु तस्सग्गे । परिकीलिउमारद्धा चिंचियगयदंतसारेहिं || १ नेण २ भूमि ३ वि. ४ परिहारिभो. ५ 'वत्थाहिं. ६ रागर९. ९ हणिओ. ८ .. ४५ ४९८ ४९९ ५०० 10 ५०१ ५०२ ५०३ ५०६ ५०७ ५०८ 5 ५०९ 'वयणो. Pre 15 ५१०३० 25 Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10. or. ४६ हरिणीचेडीहिं नम्मयासुंदरीए हरणं, तीए पलावं च । [५११-५२४ ] लद्धावसरा घेत्तुं दाहिणपाणि भणेइ- 'ते सुहय । मुद्दारयणमपुवं कुऊहलं एरिसे मज्झ ॥ भणइ य नियंचेडिं तो- 'दंसेहि इमं सुवनयारस्स । एयाए घडणीए मुदं सिग्धं घडावेहि ॥ ५१२ उहिउकामो एसो आगंतवं अओ तुरियतुरियं ।' इय भणिय पुवचेडी पट्टविया गहियसंकेया ॥ ५१३ [हरिणीचेडीहिं नम्मयासुंदरीए हरणं, तीए पलावं च ] वेडीवंद्रसमेया पत्ता सहस त्ति पोयठाणम्मि । दिट्ठा य सुहनिसन्ना असहाया नम्मया ताहिं ॥ ५१४ 'भद्दे ! सो तुह वणिओ हरिणीभवणम्मि संठिओ संतो। जाओ अपडुसरीरो तेण तुमं सिग्घमाहूया ॥ तुह पञ्चयजणणत्थं मुद्दारयणं इमं तु पट्टवियं ।' एवं भणमाणाहिं समप्पिया मुद्दिया तीसे ॥ ५१६ सोऊण इमं वयणं संभंता नम्मया विचिंतेह । 'न घडइ तायस्स इमं अलियं जपंति एयाओ॥ अहवा पयइअणिच्चे संसारे एरिसं पि संभवइ । अन्नह मुद्दारयणं कीस इमं पेसियं तेण ॥ ५१८ तह वि न जुत्तं गंतुं असहायाए इमाइ सह मन्स । मग्गेमि ता सहाय परियणमझे जणं के पि॥ उढेइ निहालेइ य पुणो पुणो निययमाणुसं के पि। भवियचयानिओ[ प. १७ B]या न य दिट्ठो को वि कत्थावि ॥५२० किंकायद्यविमूढा ठाउं गंतुं च नेव चाएइ । तो ताहिँ पुणो भणिया- 'न एसि जइ मुंच ता अम्हे ॥ ५२१ चिंतह पुणो वि एसा अगयाए नूण रूसिही ताओ। जाणइ जुत्ताजुत्तं सो चेव किमम्ह चिंताए। ५२२ पुवकयासुहकम्मेहिँ चोइया तासिमग्गओ ठाउं । संचलिया सा बाला बलवं खलु कम्मपरिणामो॥ ५२३ ताहिँ परिवेढिया सा नाया केणावि ने वचंती। भूमीगिहम्मि छूढा पिहियं दारं च तो ताहि ॥ ५२४ भापी. २ तिव्य'. ३ °साहूया. ४ गुत्तं. ५ किं. ६ वलंब. . नेय. Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ५२५-५१९ ] नम्मयासुंदरीकहा । दिट्ठम्मि अंधयारे हरिया एयाहिँ इय परिन्नाए । मुच्छा निमीलियच्छी पडिया सहस चि धरणीए ॥ कहकह वि लद्धसन्ना विमुकपुकं सरेण करुणेण । घणमवि चिरं परुन्ना न सुया केणावि बज्झेणं ॥ 'हा हा ! अकजमेयं किं राया नत्थि कोइ इह नयरे । हरियाsहमणवराहा निव्भयचित्ताहि दासीहिं ॥ एसा णु मिल्लपल्ली किं वा चोराण एस आवासो । जमहमकयावराहा हरिया एयाहिँ रंडाहिं || किं नत्थि कोइ रक्खो सोयां वा नायपेच्छओ को है । जेणेवमणवराहा हरिया हं चोरनारीहिं || सूरपडम्म दिवसे हरिया हं पिच्छ पावविलयाहिं । सो एस छत्तहंगो जाओ रायम्मि जीवंते ॥ हा ताय ! कत्थ गओ मा मा अन्नत्थ मं गवेसेसु । अच्छामि एत्थ अहयं छूढा नरओवमे घरए || तं ताय ! कत्थ चिट्ठसि पत्ता तुह मुद्दिया कहमिमाहिं । अम्हाण व जीएणं कुसलत्तं होज तुह ताय ! ॥ १ बज्ोण. २ सोढा. ३ ओ. ४ वलियाहिं. ५ सो सए सस ७ वीओ. ● आसं. ४७ ५२५ ५२६ ५२७ ५२८ ५२९10 ५३० ५३१ तुह मुद्दादंसणओ मुट्ठा हं ताय ! जाणमाणा वि । ५३४ ४० रूस [हि ] ति ताओ भीया एयाहिँ सह चलिया ॥ ५३३ हा ! निबिड कम्मगई पत्तो बीओ न कोई तुह सत्ये । विहिणा खलेण तायय ! रुद्धा सबै वि दिसिभाया ॥ तुह दंसणेण तायय ! छुट्टा पुवं पि घोरदुक्खाओ । ता एहि एहि पुणरवि तुरियं मह दंसणं देसु ॥ आर्म भती तायय ! तं किर अचंतवल्लहो मज्झ । तं अलियं चिय जायं तुह विरहे जीवमाणीए | हा ताय ! मज्झ हिययं वज्जसिलायाहिँ निम्मियं नूणं । जं अज वि तुह विरहे न जाइ सयसिकरं सहसा ॥ हा ताय ! अहं मूढा जुत्ताजुत्तं वियाणमाणी वि । तुह कर भूसभुल्ला पडिया दुक्खद्दहे घोरे ॥ वरमासि तम्म दीवे मया अहं ताय ! सुद्धपरिणामा । संपइ इयदुक्खत्ता न याणिमो कह भविस्सामि ॥ ५३२ ५३५ ५३६ ५३७ ५३८ 15 ६ निवडा. 25 ५३९७० Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10 ४८ वीरदासस्स नम्मयासुंदरीगवेसणा, गिहं पइ पयाणं च । [५४०-५५३] जह वग्घाओ भीया सहसा सीहस्स पडइ उच्छंगे। तह मोइया वि तुमए इमम्मि दुहसंकडे पडिया ॥ ५४० नूणं मुणिवरसावो अज वि न हु निरवसेसओ होइ। उवणयमेरिसदुक्खं पुणरवि जं दारुणं मज्झ ॥ ५४१ अंगीकयमरणाओ किं काही मज्झ आवई एसा। न हु रिस महाणुभावो झिजिस्सई मह कए ताओ॥ ५४२ पाणेहिंतो वि पिया तस्साहं आसि भुत्त प. १८ . सुत्ता वि। मह विरहदुक्खिओ सो पाविस्सइ किं न याणामि ॥ ५४३ एयाणि य अन्नाणि य पलवंती पुणु पुणो वि मुच्छंती । करुणसरं रुयमाणी अच्छइ घरए नरयतुल्ले ॥ ५४४ दासीहिँ पुणो गंतुं हरिणीहत्थे समप्पिया मुद्दा । भणियं च-'तूस सामिणि ! अम्हेहिँ कओ तुहाएसो॥ ५४५ तो भणइ वीरदासो-'मयच्छि! [ग]च्छामि निययमावासं। नन्न ति भणंतीए पत्तो सो पोयठाणम्मि । ५४६ 15 [वीरदासस्स नम्मयासुंदरीगवेसणा, गिहं पइ पयाणं च] पढम चिय परिखिवई दिढि सो नम्मयापडकुडीए । न य दीसई त्ति पुच्छइ-'कत्थ गया नम्मया कहह ॥ ५४७ पडिभणइ परियणो सो- 'जाणामो अत्थि पडकुडीमज्झे। अन्नत्थ सा न गच्छइ निरूवियाँ तो न अम्हेहिं ॥ ५४८ 'नूणं मज्झ पएहिं हरिणीगेहम्मि सा गया होही ।' गंतूण तत्थ पुच्छइ ताओ पभणंति – 'नाऽऽयाया ॥ ५४९ ताहे अड्डवियड्डो(इं?) तमनिस्सन्तो पुणो भण(म)इ तुरियं । भणइ य परियणमित्ते- 'गवेसिमो नम्मयं दड्डे ॥ सबत्तो अन्नेसिया सबहिरभंतरे पुरे तम्मि । पुच्छंतेहि वि नूणं पउत्तिमेत्तं पि नो पत्तं॥ तो गंतूण नरिंदो भणिओ- 'दावेहि पडहयं देव।। जो मह दंसइ धूयं तस्स पसन्नो अहं सामि। ॥ ५५२ जेत्तियमेत्तं च तुला तुलइ पयच्छामि तित्तियं कणयं । इत्तियअत्थेण पुरे कारिजउ घोसणं देव ! ॥ , झिनिस्सइ. २ पाणिहतो. ३ दीसय. . निरुविया. ५ तमनिस्सो . मनि ५५१ ५५३ सिया. ७ व. Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ५५४-५६७ ] १ दुग्गो. ७ भार्तति. नम्मयासुंदरीकहा | तिमि य दिणाइँ रन्ना दवाविओ पडहगो उभयकालं । घोसणएण समाणं न य लद्धा कत्थइ पउत्ती ॥ सहस त्ति वीरदासो मुच्छाविहलंघलो महीवीढे । पडिओ निरासचित्तो मिलिओ य तओ सयणवग्गो' । चंदणजलेण सित्तो पवीइओ विविहवीयणाईहिं । are विलसनो ताहे पुकरिउमारो || 'मुट्ठी [ अहं ] अणाहो इत्तियलोयस्स मज्झयारम्मि | जीवियभूयं धूयं सहस च्चिय नासयंतेण ॥ अवहरियं नयणंजुयं खलेण उद्दालियं च सवस्सं । छिन्नं च उत्तिमंगं जेण हिया नम्मयाँ मझें ॥ हा पुत्ति ! कत्थ चिट्ठसि कत्तो गच्छामि कत्थ पुच्छामि । दच्छिस्सं कत्थ गओ तुह मुहचंदं कहसु वच्छे ! ॥ पत्तं महानिहाणं सहसा भूएहिं मज्झ अवहरियं । दिट्ठा वि सुन्नदीवे न दीससे जह तुमं अज || जम्मंतरम्म कस्सइ अवहरियं किं मए महारयणं । अहरिया सि किसोअरि । तेण तुमं मह अउन्नस्से ॥ दाइस्सं कस मुहं साहिस्सं कस्स निययदुच्चरियं । भट्ठे व जेण मए करट्ठियं हारियं रयणं ॥ इविवि पलवितो भणिओ मित्तेहि ईसि हसिऊण । 'पुरिसोति तुमं वुच्चसि पलवसि रंड व किं एवं ॥ किं पलविएण इमिणा एही कत्तो वि नम्मया तुज्झ १ । उज्झ कायरभावं धरेहि धीरतणं हियए || अवि य - २ नयमेजुयं. ८ दीवंसि. ९ ज. नम० ७ ५ जउनस्स. ४९ ५५४ ५५५ ५५६ ५५७ 5 ५५८10 ५५९ ५६० सिर पिट्टकुट्टणेणं जुज अह कायराण ववहारो । धीरा लढविणट्टे उवायतत्ताणि भावंति ॥ १. १८ B ]वेहि फुडं सुंदर ! चेट्ठामो जाव इत्थ दीवम्मिं । ताव नं हु होइ पयडा सुचिरेण वि नम्मया तुज्झ ॥ ता गंतूण सनयरं आगच्छामो पुणो वि पच्छन्ना । जह न वियाणइ लोओ जुत्ता अन्नाभिहाणेहिं || ५६६ ३ नम्मयो. ४ मझं. ५६१ ५६२ ५६३२० ५६४ 15 ५६५25 ५६७ ६ रुजइ. Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हरिणीए नम्मयासुंदरि पइ कवडसं भासणं । [ ५६८- ५७८ ] ताहे पेच्छेसामो' वियरंति नम्मयं न संदेहो । परियाणियपरमत्था जं जुत्तं तं करीहामो ॥' सोऊण मित्तवयणं उवायमन्नं अपिच्छमाणेण । तमि ति कलित्ता पडिवनं वीरदासेण | विणिओइऊण खिष्पं नियभंडं' गहियपउरपडिभंडा । चलिया पडिप्पणं संपत्ता नम्मयानयरं ॥ सिड्डा य बंधवाणं वत्ता मेत्तेहिं जा जहावत्ता । जो वि वीरदासो घणं परुनो सयणसहिओ ॥ रोइ चिरं सयणा सोयंता संलवंति अन्नोन्नं । 'हा ! निग्विणो हयासो पुत्ती सो रुद्ददत्तस्स || नत्थ वयणे पट्ठ एयाण कुले य निच्छओ चेव । astra (2) वि वयं पयारिया तेण पावेण ॥ अहवा सो चैव खलो निहओ केणावि असुहकम्मेण । एरिसमित्थीरंयणं उज्झइ कहमन्नहा मूढो || मा गेहह से नामं न कजमम्हाण तस्स तत्तीए । सोमी तं बालं निदोसं आवयावडियं ॥ सा पररंसंपत्ता सहिही नूणं कयत्थणा भीमा । काही न सीलभंगं पाणचाएं वि नियमेण ॥ अवि य - अवि कंपइ कणयगिरी उदेई सूरो वि पच्छिमदिसाए । उ जलम्मि अग्गी न हु खंडइ नम्मया सीलं ॥ उइयं न णु पुवक कम्मं तीए महाणुभावाए । उवरुवरिमावयाओ उवेंति जं सुसीलाए ||' ५७८ एवं च नम्मयासुंदरी दुक्खदावानलडज्झमाणमाणसो" सवो वि नम्मयापुर25 जणो दुक्खेण कालं गमंतो चिट्ठह । 5 10 15 ५० 20 ९ ५६८ ५६९ ५७० ५७१ ५७२ ५७३ ५७४ ५७५ • [ हरिणीए नम्मयासुंदरिं पइ कवडसंभासणं ] सा वि पुणे नम्मयासुंदरी तम्मि य चारगगिहे रुयमाणी विलवमाणी, दिवसे चेडीहिं उवणीयं भोयणं [ अ ] भुंजमाणी, बहुकूडकवडभरियाए हरिणी [ भणिया ] - 'वच्छे ! भुंजाहि भोयणं । न किंचि अम्हे तुहासुंदरं" २ वियरंती. ३ हियभडं. ४ घण. ५ तोइत्तु. ६ पयट्टा ७ नेच्छभो. 'सित्थी'. १ पेच्छेसामो. ८ निओ. ११ च ९. १२ उवेइ. १० परधूर. १६ सुंदर. १३ सुट्ट. १४ माणसा १५ वीय'. ५७६ ५७७ Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७९ [५७९-५८४] नम्मयासुंदरीकहा । चिंतेमो । किं तु सो तुह वाणियगो अम्ह संतियं किं' पि आहवं न देइ तेण तुममवरुद्धा सि । जया सो दाही तया तुमं पि मुच्चिहिसि । मा मन्नेसि "सो मम दत्तं न याणई" जाणेइ चेव । किं तु वणियाणं जणयाओ तणयाओ जणणीओ घरणीओ वि सयासाओ अत्थो अचंतवल्लहो होइ । तेण दायचं पि दुक्खेण देति । जइ तस्स तुमं पिया ता सिग्घमेव दाही । तुम पि मुचिहिसि ।। एस परमत्थो ।' तओ नम्मयाए चिंतियं 'एसा जंपइ महुरं हियए हालाहलं विसं वसइ । को पत्तियइ खलाए पावाए चप्फलगिराए ॥ न कयाइ मज्झ ताओ न देइ आहव्वयं मुहत्तं पि। एवभणियस्स उचियं करेमि पडिउत्तरं किं पि॥ ५८०॥ एवमालोचिऊणे भणियं नम्मयासुंदरीए- 'भोइणि! जइ एवं ता मुंचाहि मं जेण अजेव तुह [आ]हत्वं दुगुणं तिगुणं वा दवावेमि । देमि तुह दाहिण[हत्थं, अनं [प. १९ A ] वा दुक्करं सवहं कारेहि ।' तओ तीए भणियं- 'भुंजाहि जइ ते इच्छा । नाहं सवहेहि पत्तियामि त्ति भणंती उद्विऊण निग्गया हरिणी। न भुत्तं नम्मयाए । तयइदेहम्मओ( तइयदियहे मरउ ?) ताव छुहाए ति ॥ भाविती न पत्ता चेव तीए सगासं हयासा नोवणीयं च भोयणं । पुणो चउत्थे दिणे 'मा मरिहि' त्ति संकाए समागया भणिउं च पवत्ता-'निब्भग्गे ! करेहि कवलग्गहणं । जीवंतो जीवो कल्लाणभायणं भवइ त्ति ।' ताहे 'अणुकूलो" मम एस वाइओ सउणो । नूणं भविस्सइ मे जीयमाणीए सामन्नसंपत्ती । एसा वि अणुवत्तियवयणा सिसिरहियया होइ' त्ति कलिऊण वत्ताजुत्ताजुत्तवियारिणीए-2c 'मम एगंतहियया लक्खिजसि ता करेमि तुहाएसं जेण अन्नं पि में हियं तुमए चिंतियछ ति बितीएं अट्ठमभत्ताओ पाणधारणनिमित्तं भुत्तं नम्मयाए । एवं अट्ठमभत्ता पुणो पुणो पारण करेमाणी।। तम्मि घरयम्मि चिट्ठई" रुयमाणी नरयसारिच्छे ॥ ५८१ हंसी पंजरछूढा सरइ जहा अविरयं कमलसंडं । तह नम्मया वि सुमरइ निरंतर जणणिजणयाणं ॥ ५८२ न तहा बाहई तीए नियअंगे उठिया महापीडा। जह पित्तियस्स हियए भाविंतीए विरहदुक्खं ॥ पच्चासन्नावासा वग्घीए कंपइ(ए) जहा हरिणी । तह कंपमाणहियया भएण एसा वि हरिणीए ॥ ५८४ 30 .१ कि. २ सुविहिसि. ३ याणाइ. ४ उच्चियं. ५ °मालोविजण. ६ नियया. ७ भलुकूलो. ८ सम. ९ से. १० वींतीए, ११ चिट्टइ. १२ वाहइ. १३ एभा. 25 Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । नम्मयासुंदरीए गणियत्तणे हरिणीकयोवएसो। [५८५-५९०] जिणगुणगणगहियाई थुइथोत्ताई पुणो परिगुणंती । चिट्ठइ मोक्खासाए परिभाविती इमं हियए ॥ 'कइया होज दिणं तं जत्थाहं साहुणीण मज्झम्मि । धम्मज्झाणोवगया करेज सिद्धंतसज्झायं ॥' [नम्मयासुंदरीए गणियत्तणे हरिणीकयोवएसो] अनया जाणिऊण पडिगए पवहणवणिए 'सिद्धं मम वदं(कवी) ति पहट्टहियया समायाया नम्मयासुंदरिसमीवं हरिणी, भणिउं पवसा- 'हला! पेच्छ तेण वणिएण जं कयं । न दिन्नं मम देयं । तुमं पि मोसूण गट्ठो। धिरत्थु तस्स ववहारो जो तिहाए मोहिओ नियमाणुसं परिचयइ । ता भद्दे ! 10 मा तुमं तस्स कारणे खिजिहिसि । चेट्ट निया मम गिहे इमिणा मम परिय णेण सद्धिं विलसंती । नाहं तुह भाराओ बीहेमि । मम वयणकारिणीए न ते किं पि मंगुलं भविस्सइ ।' तओ 'नूणं मम पउत्तिमपाविऊण निरासीभूओ पडिगओ ताओ । होउ तस्स कुसलं ममाए मंदभग्गाए न याणामि' किं पि अणुभवियत्वं' ति चिंतिऊण पडिभणियं-'का ममानिबुई तुह समीव15 ट्ठियाए ? तुममेव मम हियाहियं चिंतेसि' त्ति वुत्ते नीणिया भूमिगिहाओ, गिहमल्ले मोकलाचारेण चेहइ त्ति । अन्नया पुणो वि भणिया हरिणीए'सुंदरि! दुल्लहो माणुसीभावो, खणभंगुरं तारुनं, एयस्स विसिट्ठसुहाणुभवणमेव फलं । तं च संपुन्नं वेसाणमेव संपडइ, न कुलंगणाणं । जओ पहाणमवि भोयणं पइदियहं भुंजमाणं न जीहाए तहा सुहमुप्पा[ए]इ, जहा नवनवं 30दि[ प. १९ B]णे दिणे । एवं पुरिसो नवनवो नवनवं भोगसुहं जणइ य । अन्नं चवियरिजइ सच्छंदं पेजइ मजं च अमयसारिच्छं । पञ्चक्खो विव सग्गो वेसाभावो किमिह बहुणा ? ॥ ५८७ तुज्झ वि रइरूवाए पुरिसा होहिंति किंकरागारा । वसियरणभाविया इव दाहिंति मणिच्छियं दवं ॥ एयाओ सबाओ अद्धं मे दिति नियविढत्तस्स । तं पुण मह इट्टयरी देजाहि चउत्थयं भायं ॥ ५८९ इय दासीधुत्तीए नाणाविहजुत्तिउत्तिनिउणाए। भणिया वि न सा भिन्ना जलेण छुहलित्तभित्ति व ॥ ५९० १ पह. २ सटिं. ३ याणिमो. ४ मणच्छियं. 25 ५८८ Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [५९१-६०३) नम्मयासुंदरीकहा। भणिउं च पवत्ता'जं जस्स जणे रूढं जुञ्जइ तस्सेव मामि! दं(तं) कम्मं । न सहइ चलणाभरणं सीसम्मि निवेसियं कह वि॥ ५९१ भणियं चजं जसु घडियं तं तसु छाइ उट्टह पाइ कि नेउरु बज्झइ । । सुङ वि भुक्खइ भुल्लउ न कुणइ कइय वि चम्मयरत्तणु गिहिवह ॥५९२ तुम्हाणं चिय सोहइ एसायारो न जाउ अम्हाणं । लजाए मह हिययं फुट्टइ व इमं सुणंतीए ॥ जं जस्स कुले रूढं तं तस्सासुंदरं न पडिहाइ । भणइ जणे चम्मयरो सुड्ड सुयंधं घरं मज्झ ।। ५९४० वुत्ता सि भए भामिणि ! सवं काहामि जं तुम भणसि । एसंजली कओ मे मा गणियत्तं समाइससु॥ पुणरवि भणेइ धुत्ती- 'एसो धम्मो जयम्मि सुपहाणो। जं बहुनराण सोक्खं कीरइ अंगप्पयाणेण ॥ अहवा धम्मे दिजइ निययसरीरेण अजिओ अत्थो। एसो वि महाधम्मो जइ कजं तुज्झ धम्मेण ॥' पडिभणइ नम्मया तं- 'धम्मो पाविजएं ण विभवेण । उप्पजह इह भामिणि ! सुणेहि इत्थं पि दिटुंतं ॥ ५९८ धत्तुरीयेबीयाओ न होइ अंबस्स उग्गमो लोए।। एवेजियदवाओ एवं धम्मो वि ना होइ ॥ ५९९० पुणरवि हरिणी' जंपइ - 'नूणं अइपंडिया सि तं बाले!। न मुणसि अत्थेण विणा कह पूरिजइ जठरपिठरी ॥ ६०० अत्थस्सेसोवाओ किलेसरहिओ सरीरसुहजणओ। विहिणा अम्हं सिद्धो तम्हा इत्थं समुञ्जमसु ।' भणियं च नम्मयाए- 'अत्थमुवजेमि जइ तुम भणसि। 15 कत्तेमि लण्हसोत्तं करेमि गंधि व धूयं वा ॥ जाणामि रसवइविहिं पक्कन्नविहिं च बहुविहं काउं। दंसेहि कंचि कम्मं एगं गणियत्तणं मोनुं ॥' 15 ५९७ हम. २ पाविजिए. ३ धुत्तीरय. ४ अवस. ५ एय?. ६ हारिणी. ."मोबालो. ९ मत्थसु. १० लण्हमोसं. . विण. Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 10 ६४ 15 20 25 हरिणीकया नम्मयासुंदरीकयत्थणा । [ हरिणीकया नम्मयासुंदरीकयत्थणा ] ६०४ ६०५ इय सोउं आरुट्ठा पाविट्ठा निरेहिं' वयणेहिं । हिययगयकालकुट्टे' सहसा उग्गरिउमारा || 'पावे ! सामेण मए भणिया न करेसि तह वि मह वयणं । नूर्ण पडदंड अज वि मग्गेसि निब्भग्गे ? | संप तं मज्झ वसे कारिस्समवस्स तो मणोभिङ्कं । किं कइया वि हासे ! लुजइ अह गड्डरा सक्सा | ' पडिभ प. २० A ]इ नम्मया तं- 'जीवंती न हु करेमि गणियतं । मारेसु व चूरेसु व जं वा रोयइ तयं कुणसु ॥' तो ती क ( दु ) डाए आरुट्ठो कामुओ समाहूओ । ६०६ ६०७ ६०९ भणिओ - 'बला वि भुंजसु इह भवणे महिलियं एगं ॥ ६०८ आलवर सुंदरी तं - 'भाय ? अहं तुज्झ भइणिया एसा । माकुणसु मज्झ दोहं जणणीसवहेण सविओ सि ॥' सो वि विलक्खो नो अने अन्ने वि सा महापावा । जे जे पेसेइ नरे ते वारइ नम्मया एवं ॥ सुअरं सा पावा कुविया दंडाहया पुयंगे व । आणवइ निययदासे' - 'रे रे ! आणेह कंवाओ ।' आणीयाओ तेहिं कणवीराईण लंबकंबाओ । भणिया - 'पहणह एयं जह चयइ पइवयावायं ॥ ते विचिरवेरिया इव तामाहंतुं तहा समारद्धा | जह सुकुमाöसरीरे तीसे तार्डिति मम्माई || जह जह सरइ सरीरा रुहिरं रत्तीभवंति कंबाओ । तह तह सा हरिसिज पावा खट्टिकघरणि व ॥ भइ य - 'अज वि पहणह जेणं सा मुयइ कुलवहूवायं । ते व जह नरयपाला तह तह ताडिंति नितिंसा || न मुई सेक्कारं पि हु ताडिजंती वि नम्मया तेहिं । चिंत 'मए वि एवं केइ जिया ताडिया विं ॥ aar yaकयाणं कम्माणं पावए फलविवागं । अवराहेसु गुणेसु य निमित्तमत्तं परो होइ ॥ ६१४ ६१५ ६१६ ६ दोसे. १ निरेहिं. २ कुटुं. ३ °भि. ४ हायासे. ५ कासुओ. ८ मंसाई. ९ 'बहू. माल.. १० सुयइ. [६०४-६१७] ६१० ६११ ६१२ ६१३ ६१७ ུ་ Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ६१८-६३१ ] १ वाहइ. नमयासुंदरीकहा | ६१९ होउ सरीरे पीडा नाहं पीलेमि अप्पणो सीलं । अकलंकियसीलाए मरणं पि [न] बाहए मज्झ ॥ बाई पुण जं एसा अयाणमाणी मणोगयं मज्झ । संतावर अप्पाणं इमे वि आणाकरे पुरिसे ॥' वारं वारं पुच्छर हरिणी - ' किं रमसि अम्ह मग्गम्मि १ ।' 'न हि न हि नहि' त्ति जंपइसा वि दढं हम्ममाणा वि ।। ६२० पण हरिणी - 'पहणह मारह चूरेह निग्विणा होउं । मुच्च जेण हयासा छिजंती अप्पणो गाहं ।' salsहिँ हि वि तह तह [ सा ] निद्दयं हया बाला । जह संपत्ता मुच्छं खणेण सुनिरुद्धनीसासा | ६२१ २ पुरिसो. ३ इह. ५५ ६२२ 10 ६२३ ' मा मरिहि' त्ति पुणो वि हु सित्ता सलिलेण दाविओ पवणो । कहकह विलसन्ना पुट्ठा तं चैव सा भणइ ॥ 'वीसमउ' ति विमुका मज्झण्हे तह पुणो दढं पहया । अवर वि तव य पहया जा पाविया मुच्छं ॥ इय कित्तियं व भन्नइ तीए पावाइ निग्विणमणाए । बहुहा कयत्थिया सा संपुन्ना तिनि जा मासा ॥ [ करिणीकयं नम्मयासुंदरी दुक्खमोयणं ] अह अस्थि तत्थ वेसा करिणी नामेण भद्दियो किंचि । दडुं कत्थणं तं जाया करुणावरा धणियं ॥ ता एगंते तीए संलत्ता नम्मया - 'तुमं भद्दे ! | किं सहसि जायणाओं एयाओ घोररूवाओ ॥ ६१८ ६२४ ६२५ B. ]ह ? | ॥ कीर हरिणीवणं कुट्टिजसि दुकरं तुमं किमि प. २० कीर सुहिओ लोओ जेण इमा हरिणिया बड्ड ( ? ) तंबोलकुसुमपमुहो भोगो सो वि सुंदरी अम्ह । ता कीस तुमं मुद्धे ! एवं वंचेसि अप्पाणं ? ॥' वजरई नम्मया तो - 'पियसहि ! नेहेण देसि मह सिक्खं । ता सामि फुडं तुह पच्छन्नं नत्थि सहियाणं ॥ जावज्जीवं गहिओ नियमो मे सुयणु ! पुरिससंगस्स । नियवायापडिवनं जीवंतो को जए चयइ १ ॥ ६३० ६३१ ४ पधणो. ५ भट्टिया. ६ जायणाउ. ७ मुद्दे. ६२६ ६२७ 55 ६२८ 15 20 ६२९ ३ Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 10 15 20 25 ५६ 30 करिणीकयं नम्मयासुंदरीए दुक्खमोयणं । [ ६३२-६४६ ६३० ६३३ कस्स व न होइ मरणं जियलोओ कस्स सासओ होइ ? | अंगीक मरणाए पियसहि ! जं होइ तं होउ ॥' पुणरवि पुच्छर करिणी - 'सुंदरि ! किं होइ तुज्झ सो वणिओ ? इयरी पभणइ - 'सुहए ! पित्तियओ मज्झ सो होइ ॥ 'जइ एवं सुविसत्था चिट्ठसु मोएमि अज दुक्खाणं ।" इय जंपिऊण पत्ता करिणी हरिणीसमीवम्मि || पभणइ - 'सामिणि ! एसा मारिज कीस बंदिणी दीणा ? । किं वस तुज्झ हियए एसा वणियस्स तस्स पिया १ ।। ६३५ सा भइ - 'सच्चमेयं एयाए मोहिएण वणिएण । नाहं खणं पि भुत्ता ता एसा वेरिणी मज्झ ॥' ६३१ ६३६ ६३७ करिणी पभणइ - 'सामिणि । मा कुणसु मणम्मि एरिसं संकं । जेण सहोयरधूया एसा भत्तिजिया तस्स || कयपुरिससंगनियमा बंभवया निच्छिएण' हियएण । अब्भुवगच्छइ मरणं न य करणं पुरिसभोगस्स || तिहि मासेहिँ न भिन्नं चित्तं एयस्स अन्नहा काउं । एत्तो' ताडिती मरइ च्चिय सवहा एसा ॥ ता मुय ईसादोसं उवरिं एईऍ कुणसु कारुनं । कुणमाणी घरकम्मं धारउ पाणे तुह पसाया | अम्हाहि एत्तियाहिं भंडागारं न पूरियं तुज्झ । किं पूरिस्सर एसा अंगीकयतणुपरिच्चाया ? | सुबह इत्थवज्झा बहुदोसा सवधम्मसत्सु । ता माकुणसु कलंकं मह विन्नत्तिं कुणसु एयं ॥' तीसे सोऊण गिरं मणयं उवसंतमच्छरा हरिणी । वाहरs' तक्खणं चिय नम्मयमेवं च भाणीया ॥ 'जइ ता घयपुन्नेहिं गल्ला फुङ्कंति तुज्झ निब्भग्गे १ । ता चेट्ठ मज्झ गेहे रसवइकिच्चाइँ कुवंती ॥' हिre अणुग्गहं सा मनंती भगइ 'होउ एवं' ति । तो तीऍ अणुन्नाया पारद्धा रंधिउं भत्तं ॥ सा आहार साहइ जह सो परियणो भणइ तुट्ठो । 'ताई चिय दबाई नजइ अमिरण सित्ताई || ४ उवएसत. ५ बाहरइ. १ नच्छिण २ पत्तो. ३ गिरिं. ६. ६३८ ६३९ ६४० ६४१ ६४२ ६४३ ६४४ ६४५ ६४६ Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५३ 15 [६४७-६६०] नम्मयासुंदरीकहा। को वि अउद्यो साओ संजाओ अज सव्ववत्थूणं । जह अम्हाणं जीहा तित्तिं न हु पावइ कहंचिं॥ ६४७ नाणावंजणपकनरंजिया हरिणियों विचिंतेइ । 'पढमं चिय किं न मए ठविया एसा इह निओए ॥ ६४८ संरोहिया य तत्तो कंबाघाया घयाइदवेहिं । भणिया- 'अजप्पभिई अभयं ते चिट्ठसु जहिच्छं॥ ६५९ चिंतेइ न.प. २१ A ]म्मया विहु 'जायं असुहस्स कालहरणं मे । जाया जीवियआसा करेमि ता निवुया धम्मं ॥ ६५० तत्तो य उभयसंझं हियए ठविऊण जिणवरं वीरं । वंदइ जायाणुना करेइ उचियं च सज्झायं ॥ ६५१ 10 भावेद भावणाओ वेरग्गकराई गुणइ कुलयाई। सवजणो अणुकूलो वाघायं को वि नो कुणइ ॥ ६५२ पहिरेइ डंडियाइं थालीमसिमंडियाइँ मलिणाई । परिकम्मेई न अंग लिंपइ य मसीऍ सविसेसं ॥ मुंजइ थोवं थोवं तहा वि चित्तस्स निबुइगुणेण । गेन्हइ उवचयमंगं उववासं कुणइ तो बहुसो॥ विसहइ सीयं तावं 'मा कंती [ होउ ] मह सरीरस्स ।' तह वि हु तणुलायन्नं न होइ से अन्नहा कह वि॥ ६५५ जइ वि सरीरं सुत्थं तावेइ तहा वि माणसं दुक्खं । रोयइ कलुणं कलुणं सुमरंती कुलहरं बहुसो ॥ ६५६ 20 [हरिणीमरणं, नम्मयासुंदरीए वेसाण सामिणिकरणं च] अह अन्नया कयाई हरिणी उग्गाइ सूलवियणाए । अभिभूया विलवंती पत्ता सहस त्ति पंचत्तं ॥ तो भणइ परियणो सो- 'महासई सेहिया हयासाए । तेण अकाले वि मया तारुनभरम्मि वढेती ॥' ६५८25 रुमा केणइ न खला न विहियमन्नं पि पेयकरणिज । दासीसुएहिँ केहि वि पक्खित्ता सा मसाणम्मि ॥ ६५९ जाणावियं च रन्नो हरिणी हरिया कयंतचोरेहिं । तेणावि समाइ8 पंचउलं जाणगं निययं ॥ कहिंचि. २ हरिणया. ३ अणुकूले. ४ घालीमसि मुंडियाई. ५ परिकाम्मइ. विहिय भ. नम०८ Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10 ५८ हरिणीमरणं, नम्मयासुंदरीए वेसाण सामिणिकरणं च । [६६१-६७४ ] भणियं- 'जा तुम्हाणं पडिहासइ रूलक्खणेहि जुया। तीसे करेह टिक' हरिणीठाणम्मि वेसाए॥ कयसिंगारो मिलिओ वेसावग्गो तहिं निरवसेसो। अहमहमियाऍ पंचउलगाण देहं पयासिंतो॥ ६६२ तेसि निरूविताणं संपत्ता दिहिगोयरं कह वि । सहस त्ति नम्मयासुंदरि उ मलमलिणतणुवसणा॥ ६६३ रूवसरूवं तीसे दट्टणं विम्हिएहि तो वुत्तं । 'धूली(लिं?)तरियं रयणं भो ! एयं किं न पेच्छेहँ ॥ ६६४ लक्खणरूवसणाही अन्ना न हि अत्थि महिलिया एत्थ । कीस निरूवह अग्गि दीवेण करम्मि गहिएण?॥ भणियाओ चेडीओ- 'उच्चट्टियमजियं इमं कुणह । परिहावेह य तुरियं वत्थाभरणाणि हरिणीए॥ ६६६ विहियं च चेडियाहिं अणिच्छमाणीए नम्मयाए तं । 'हद्धी किमेयमवरं उवट्टियमिमं ति चिंतेइ ॥ ६६७ ठविऊण हरिणियाविट्टरम्मि पंचउलिएहिँ तो तीए । मंगलतूररवड्डे कयं सिरे राणियाटिंकिं ।। भणियं च'जं किंचि हरिणितणयं भवणं दवं तहेव परिवारो। आहवं चिय सत्वं तं दिन्नं तुह नरिंदेण ॥ इय जंपिऊण ताहे पत्ता पंचउलिया नियं ठाणं । इयरी वि देवया इव दिप्पंती चिंतए एवं ॥ 'एयाहि सहायाहिं [प. २१ B] होही सवं पि सुंदरं मज्झ । तम्हा करेमि इण्हि सबाओ सुप्पसनाओं ॥ ६७१ आय(वाह ?)रिऊणं ताहे सबाओ गोरवेण भणियाओ। 'जं नियविढत्तभागं दितीओ आसि हरिणीए ॥ ६७२ सो सबो वि इयाणिं मए पसाएण तुम्ह परिमुक्को । जं पुण रन्नो देयं तं दिजह हरिणिकोसाओ ॥' ६७३ परितुट्ठाओ ताओ सबाओ नियसिरेण पयकमलं । फुसिऊण बिंति - 'सामिणि ! कम्मयरीओ वयं तुज्झ ॥ ६७४ टिकं. २ निरूचिंताणं. ३ °णमणु. ५ पेच्छेहा. ५ °सणहो. ६ ट्ठियं मिति, ७ रवटुं. ८ सुप्पसुनाओ. ९ °रिऊण. १० विति. ६६९ ६७० 25 Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नया सुंदरीका | भणिया य विसेसेणं करिणी - 'सहि ! वल्लहा अहं तुज्झ । जाणासि य मह चित्तं ता चेट्ठसु मज्झ ठाणम्मि || सवं हरिणीकिच्चं करेज सेवागयाण पुरिसाण | [ ६७५-६८६ ] ५९ ६७८ ६७९ अयं तु तुह पसाया छन्ना' चिट्ठामि गिहमज्झे ॥ ' ' एवं ' ति तीय भणिए संतुट्ठा नम्मया हिययमज्झे । नियधम्मकम्म निरया सुहझाणगया गमइ कालं ॥ [ असंतुकामुकरस राइणो कन्ने पर्जपणं ] अन्नदिवसम्म एगो कयसिंगारो नवम्मि तारुन्ने | संपत्ती तीय गिर्ह अइधणवं कामुओ' पुरिसो | पुच्छर - 'सा कत्थ गया तुम्हाणं राणिया अचिरठविया ? ।' करिणी भइ - 'अहं सा पञ्चभियाणेसि नो मुद्ध ! ॥ सो पभणइ - ' नवदिणयरसमाणतेयं मणोहरं अंगं । ती कमलच्छीए दिट्ठ चेट्ठइ मणे मज्झ || लक्खसेण वि तुला न तुमं तीए कहेहि ता सवं । अच्छा सा कम्मि गिहे संपइ दंसेहि वा झ त्ति ॥ ती कजेण मए दुक्करकम्मेहिँ अजिओ अत्थो । ता मह दंसेहि तयं पुत्रंति मणोरहा जेण || ' करिणी पुणो वि जंप - 'तुमए पच्छादिया तथा दिट्ठा । संपर सहावरूवा गामिल्लय ! कीस भुल्लो सि ? ॥' सो भइ - 'नत्थि जई सा सट्टाणं जामि तो अहं इन्हि ।' करिणी भणs - 'न अम्हे वारेमो कुणसु जं रुयइ ॥' गच्छंतेण यमग्गे कम्मयरो को वि पुच्छिओ छन्नं । 'जण सवण सविओ कहेहि सा राणिया कत्थ ? ॥' कहियं च तेण छन्नं - 'कहिंचि अच्छइ अहं न याणामि । सा कुलनारी नूणं परिवालइ अप्पणो सीलं ॥' ६८१ 15 ६८२ ६८३ ६८४ ६८५ ६८६ 25 तओ सो आसा मंगसमुपाहय महाकोवा नलडज्झमाणमाणसो तीए सीलमंडखंडणोवायमलहंतो, रायाणमुवसपिऊणे जंपिउं पवत्तो - 'देव ! निवेएमि किं पि. पियकारयं देवस्स अच्चन्भुयं ।' राइणा भणियं - ' किं तयं ?' ति । तओ सो पावकम्मो नम्माकम्मचोइओ वञ्जरिउमादत्तो - 'अत्थि इह नयरे एगा नारी । २ जाण'. ३. कासुओ. ४ नइ. ५ मुवसमपिकण. १ छिना. ६७५ ६७६ ६७७ ६८० 5 10 20 Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धणेसरकहाणयं । [६८७-६९३] सो तिलोत्तमाईणमच्छराईणमन्नयरी, सुरवइसावेण निवडिया न कस्स वि अप्पाणं दंसेइ । मन्ने पयावइणा तुह निमित्तमेव रक्खिजइ । ता किं देव ! रूवेण जोवणेण रजेण जीविएण वा जइ सा लच्छि व सयलसुहखाणी मयरद्धयमहानरिंदराय[प. २२ A ]हाणी अंतेउरं नालंकरेइ । राइणा भणियंB'का सा इयरेण भणियं- 'जा सा हरिणीठाणसन्निविद्रा।। सुओ एस वइयरो नम्मयासुंदरीए, चिंतियं च 'सच्चे केणावि पढियं आसासिजइ चक्को जलगयपडिबिंबदसणसुहेण । तं पि हरंति तरंगा पिच्छह निउणत्तणं विहिणो ॥ ६८७ वच्चामि जा न पारं दुक्खसमुदस्स कह वि एगस्स । ताऽनयरमपुवं उवडियं दारुणं वसणं ॥ ६८८ खुद्दो रुद्दो चंडो निद्धम्मो नारओ महापावो । एसो बब्बरराया गहिओ को छुट्टइ इमेण ॥ ६८९ ता इन्हि किं करेमि? कत्थ गच्छामि ? कस्स साहेमि ? के सरणं पवजामि ? सबहा नत्थि मे जीवमाणीए सीलरक्खा । हा हा कयंत ! निग्घिण! जई ता हं दुक्खभायणं रइया ।। ता कीस इमं रूवं निम्मवियं वेरियं' मज्झ१॥ ६९० सुहिए कीरइ रूवं दुहियमरूवं ति एत्थ जुत्तमिणं । लोहीए पक्कन्नं रज्झइ नहु( तह ) खप्परे छगणं ॥ ६९१ पुनस्स य पावस्स [य] वासो एगस्थ एस कीस कओ। सवगुणसंपउत्ते भत्ते विसखेवणमुजुत्तं ॥ ६९२ एवमणेगहा विलविऊण परिभाविउं पवत्ता 'मरणमेवोसहमिमस्स दुक्खस्स, नऽनहा सीलरक्खा होइ । तं पुण विहाणसेण वा विसेण वा झत्ति संभवइ । अनं च सुयपुवं मे साहुणीणं समीवे अक्खाणयं 1 [धणेसरकहाणयं] 25 वसंतपुरे नयरे धणवइसिडिसुओ धणेसरो अहेसि । सो जणणिजणए कालगए तहाविहकम्मदोसेण गहिओ दारिदविहिणा चिंतिउं पवत्तो 'चिरकालियवेरग्गो कयाइ उच्छामिया पणस्संति (१)। इय नासइ दालिदं कयाइ देसंतरगयस्स ॥ ६९३ . सा. २माईणिम'. ३ °अंतेउर. ४ रायणा. ५ सर्व. ६ बिहिणा. ताप. .. . जय. ९बेरियं. १० वामो. ११°म्मिमस्स. 15 Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ६९४-६९५ ] नमयासुंदरीका | अन्नं च - उच्च नीयं कम्मं कीरइ देसंतरे धणनिमित्तं । सहवडियाण मज्झे लजिजई नीयकम्मेण ॥' ६९४ एवमालोइऊण संठविऊण कुंडंबं दूरदेसे पत्तो एगं गामं । 'न पयाणएहिं दालिदं छिजई' त्ति ठिओ तत्थ । भणिओ गामीणेहिं - 'गोरुवाई चारेहि5 त्ति । लेभिहिसि मासंते पइगोरूवयं रूवयं' ति । सो वि [व] वसायंतरा - भावाओ चारिडं पवत्तो । तस्स य पंच पंच रूव [ य ]सयाई पइमासं मिलति । पंचहिं वासेहिं जाओ महाधणो । तओ मुत्तूर्णं गोवालत्तं लग्गो वाणेजे । दुवालसवासेहिं जाओ अणेगधण कोडिसामी, चिंतिउं च पवतो 'किं तीए लच्छीए नरस्स जा होइ अनदेसम्मि । न कुणइ सुयणाण सुहं खलाण दुक्खं च नो कुणइ ॥' ६९५ aa सो गमणमणी चिंतेइ 'अंतरा महंतमरन्नमत्थि । तत्थाणेगे भिल्लपुलिंदाइणो चोरा परिवसंति, ते महंतं पि सत्थमभिद्दवंति । ता न एसा संपया निवाहिउं तीरह' ति काउं गहि प. २२B याई [त ]ओ महग्घमोल्लाई पंच महारयणाई | ताई जुन्नचेलंचले बंधिऊण कमेण पत्तोऽन्नपच्चासन्नं । सुयं च 16 ' इत्थारने गाओ' चोरपल्लीओ । कप्पडिओ वि वच्चंतो उग्गावि - नग्गोविओ कीरह | रूयगो वि गंठिबद्धो न छुट्टह । तओ धणेसरो रय १ लज्जिजइ. Afg. २ कुणं. ३ मूत्तूण. ४ महतं. ५ गाओ. ९. महाड वि. १० भिन्नोय. ११ गहं, १२ व. ६१ - णि एत्थ ठविऊण तेहिं समाई पंच पत्थरखंडाई कछुट्टियाए गोविऊण, 'वंचे वा मए तकर' त्ति निच्छिर्यमणो, – 'एस भो ! रयणवाणिओ गच्छई' ति उच्चस घोसंतो पविट्ठो महाडविं । घोसणाणंतरमेव गहिओ तकरेहिं, 20 पुच्छिओ य - - 'कत्थ पत्थिओ सि ?' भणइ - ' रयणाणि विवेउं ।' 'कत्थ रयणाणि ते । दंसेहि' त्ति वृत्ते धणेसरेण कच्छोटियाउ कड्डिऊण दंसिओ गंठी, भणियं च - 'महग्घाणि एयाणि न तुब्भे गिरिहउं तरह ।' 'किमेएसिं मुलं ति पुच्छिण सिहं - 'एगेगा धणकोडी ।' तओ पच्चभिन्नायें पत्थरे चोरेहिं 'नूणं गहिओ एसो ' त्ति कलिऊण भणिओ तेहिं - 'तुममेव एएसिं जोग्गो सि | 25 गच्छ मणिच्छियं' ति । इयरेण भणियं - 'जह केइ गाहगा अने वि जाणह ता सिग्धं पेसिअह ।' तओ हसिऊण पडिनियत्ता चोरा । धणेसरो वि तं चैव घोसंतो चलिओ । अग्गओ पुणो वि भिल्लेहिं बुल्लाविओ । ते वि" तहेव 'गहगहिउ' ति भणिऊण गया । एवं पए पए पुलिंदाईणं दंसंतो पत्तो महाकंतारपारं । बीय दिवसे तहेव घोसंतो पडिनियत्तो" । तहेब उग्गाइओ गहग्गहिओ त्ति मुको 30 10 ६ बजे. ७ खंडांयं. १३ °मियतो. Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२ नम्मयासुंदरीए राइणो निमंतणं गहेलचेडुयकरणं य । [ ६९६ - ६९८] य। तप्यभिई' दूरट्ठिया चैव चोरा निहालयंति जाव सत्तमदिणे रयणाणि घेत्तूण गओ । सुहेण पत्तो सट्टाणं, भोयाणं च भागी संबुसो ति । तो जहा तेण धणेसरेण रयणाणि रक्खियाणि तहा अहं गल्लैवि t (as ? ) ण सीलरयणं रक्खेमि ति । मा [ कयाइ ] जीवंती कहिं पि कुलहरं 5पि पावेजा । किं तु जइ कह वि एसो राया इह एइ ता मम सरीरं पासइ तक्खणमेव भंज मे सीलं, ता न तीरइ गहिल्लत्तणं काउं, घरमज्झगया विहाणसेण मरिस्सं । अह अन्नो कोइ एही ता लद्धावसरा अवहत्थियलज्जविणया अंगीकयसरीरसंतावा गहेल्लचेड्डयैमेव पवजिस्सं । माया वि कारणे करमाणी न दोसमावहइ' त्ति निच्छियमणाए । [ नम्मयासुंदरी राइणो निमंतणं गल्लचेड्डयकरणं य ] अन्नया रुवायन्नणावजियमाणसेण राइणा पेसिओ समागओ नम्मयागिहं दंडवासिओ । परियाणियकजाए कया तस्स पडिवत्ती पुच्छिओ य - - 'किमागमणपओयणं ?' तेण भणियं - 'राइणा तुह दंसणुक्कंठिएणाहमायरेण समाइडो "हरिणीठाणडवियं राणियं सिग्घमाणेहि" ता तुरियं कीरउ गमणेण 15 पसाओ ।' नम्मयाए भणियं - 10 20 'जं इच्छंती हियए तुमए तं चैव मज्झ आइङ्कं । कं उकंठीया बीयं पुण बरहिणा लवियं || अस्थि च्चि पुन्नाई अम्हाणं नत्थि एत्थ संदेहो [ प. २३ ] जं संभरिया अजं महिवइणा इंदसेणेर्ण ||' भणिया करिणी - 'भद्दे" । सुयं तए सुभासियं - ६९८ जई कि विद्यालडउ लंघित्र अप्पाणु । तो वरि गहिलिय ! तेण सहु जो दंगडइ पहाणु ॥' करिणीए भणियं - 'सुंदरमेयं, पुजंतु मणोरहा ।' नम्मयाए भणियं - ' सलक्खणा ते जीहा । पुणो एरिसमासीवायं मम दिजाहि त्ति भणतीए 25 कारिओ दंडवासियस्स मजणभोयणाइओ उवयारो | अप्पणा वि कयमजणासिंगारा परिहिय विसे सुजलवत्थाभरणा दंडवासिओवणीय सिवियारूढा चलिया नयराभिमुहं | अंतराले दिट्ठे घडिजंतं' वहमाणं । तओ भणियं - 'तन्हाइया अहं, उत्तारेह मं जेणेत्थ सहत्थेण पाणियं पियामि ।' तओ 'जमाणवेसि' त्ति भणतेण उत्तारिया दंडवासिएण पत्ता विमलजलभरियं सारणि ं । 30 तत्थ पाऊण पाणिर्यं कुहियचेकणजंबाल भरियखड्डाए लद्वावसरा फेल्डुसमिसेण १ तप्यभिउं. २ संवोत्तो. ३ हेलं. ४ सरा. ७ भद्दा. ८ पाहाणु. ९ जंतं. १० सारणीं. ११ जंवाल ६ °सेणेगो. ५. ६९६ १२ पल्हुस ६९७ Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [६९९] नम्मयासुंदरीकहा। झड त्ति निवडिया खड्डाए । तओ कयअट्टहासाए - 'अहो ! राइणा ममेयमाभरणं पेसियं' ति भणंतीए सवमालिंपियं सरीरं । एत्थंतरे 'हा सामिणि ! किमेयं ?' ति भणमाणो समुहमागच्छंतो- 'अरे रे ! रायगिहिणि अप्पणो भारियं काउमिच्छसि त्ति जंपमाणीए पहओ कद्दमेण दंडवासिओ । 'अहो! गहो' त्ति कओ जणेण कोलाहलो । विगरालीकयलोयाँ निल्लालियजीहा सिवारवं कुणती पहाविया जणसमूहसमुहं- 'अहो ! रायभारियं गहिल्लंमुल्लवह त्ति संचल्लहँ रायउलं जेण दंसेमि दुब्भासियफलं ।' एवमालजालाई पलवंतीए दंडवासिओ रायसगासं साहिउं पयत्तो- 'देव ! सच्चमेयं अन्नह परिचिंतिजइ सहसा कंडुजुएण हियएण । परिणमइ अन्नह चिय कजारंभो विहिवसेण ॥ ६९९ 10 जओ सा वराई सयमेव देवसंगमूसुया मम विन्नत्तियं सोऊण बहलरोमंचकंचुयं" चचक्कियं तणुं तुरियं कयसिंगारं मह वयणेण समारूढा सिवियं ति । तयणंतरं “पञ्चक्खा लच्छी न हि न हि रंभा तिलोत्तमा मयणघरणि'" त्ति दिसि दिसि समुट्ठिया जणसमुल्लावा । मए पुण चिंतियं एयासिं संतियं रूवलायन्नं घेत्तूण देवस्स कए विहिणा निम्मविय त्ति । तओ देव! न याणामि 15 किं तीए चक्खुदोसो ? किं जलं पियंतीए उत्तेडियं किमपि" ? खड्डातीरेण गच्छंती धस त्ति निवडिया विगंधे जंबालमज्झे । तओ गहगहिया इव जणेण कीलाविजंती चेट्टइ।तओ राइणा संभंतेण भणिओ- 'गच्छ गच्छ सिग्धं ति, तिहुयणभूयवाइयमाणेहि५ । अहं पि एस तत्थ पत्तो चेव ।' तओ दंडवासिएण समाँहओ चेवागओ तियणो। भणिओ रन्ना- 'निरूवेहि को 20 एस गहो ? केणोवाएण नियत्तइ ?' तिहुयणेण उग्घाडिया फुडपुत्थिया, निरूवियाई गहलक्खणाई । सुचिरं परिभाविऊण संलत्तं - 'देव ! एस उवाओ नाम गहो । पुरिसित्थिया[णा]मिह माणुससंगमपाविऊण ताणमुप्पज्जइ । असज्झो मंतताणं, [प. २३ B] एयस्स इच्छाभंगो न कायबो । जं मग्गई तं चेव दिजइ, न य चंकारिजइ ति तओ कालेण सयमेव उवसमइ ति। तओ नम्म- 25 यसुंदरिभागधेयचोइएण भूयवाइएण भणिएण रन्ना उग्घोसावियं सवाहिरभंतरे नयरे- 'जो एयाए रायवल्लहाए गरुए वि अवराहे कए मंगुलं भणिस्सइ करिस्सइ वा, तमहं महादंडेण दंडिस्सामि' ति। १°मालभणं. २ ससुह. ३ °गिहिणी. ४ लोयणो. ५ सिवारयंती. ७ मंचल्लह. ८°उल. ९ दुब्भासियं. १० सहस. ११ °कंवुयं. १३ °धरणे. १४ किमंपि. १५ जंवाल. १६ °माणे हिं. १७ सामा. १९ सग्गह. २० जम्मय. ६ महिल्ल. १२ तुरिय. १८ रगहो. Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०० ७०२ ७०३ ७०५ नम्मयासुंदरीए राइणो निमंतणं गहेल्लचेडुयकरणं य । [७००-७१३ ] अह सा पञ्चयहेउं जस्स गहचेट्टियं पयासेइ । हिंडइ घरं घरेणं पप्फोडंती कुलालाई । कत्थई खप्परहत्था भिक्खं मग्गइ कहिंचि जइ लहइ । छड्डाविजइ सहसा सह हिंडतेहिं डिमेहि ॥ चेक्खल्लं दढणं लिंपइ अंगं पुणो पुणो धणियं । सीसे खिवइ कयारं छारेण य गुंडइ सरीरं ।। जरचीरचीरियाहिं वेढइ अंगाइँ दुगुणतिगुणाई । दट्टण य निम्मल्लं मुंडे माली(लं?) सिरे कुणइ ॥ जं जं रच्छाचीरं तं तं सवं पि निवसइ कडीए । कत्थई गया य नच्चइ कत्थइ फेकारवं कुणइ ॥ ७०४ गायई हसइ य कत्थइ अन्नत्थ करेइ घोरधाहाओ। नारीए पुरिसस्स व निवडइ चलणेसु पहसंती ॥ दिवसम्मि भमइ नयरे सुन्नघरे जुन्नदेउले वा वि। रत्तिं गंतुं छन्नं करेइ जिणवंदणाईयं ॥ ७०६ 'रे जीव ! मा किलम्मसु एयाए लजणेजकिरियाए । जि चिय सहिति दुक्खं ति चिय सुहभायणं होति ॥ ७०७ सीलरयणं महग्धं किच्छेण वि जइ तरिज रक्खेउं । ता होज मज्झ तुट्ठी तिहुयणरजोवलंभे व ॥ ७०८ जइ जत्थ व तत्थ व जह व तह व रे हियय ! निवुई कुणसि । ता दुकह तुह जम्मंतरे वि दुक्खं चिय न होइ ॥ ७०९ रे जीव ! भवे आसिर जत्थ व तत्थ व सुही य गयनिंद! । जेण व तेण व संतुट्ठ जीव! मुणिओ सि तं अप्पा ॥ ७१० जं सोढं जीव ! तुमे दुक्खं सुन्नम्मि तम्मि दीवम्मि । भावेसु इमं सवं कित्तियभागो इमो तस्स ॥ ७११ हरिणीगेहम्मि तुमे सोढाउँ कयत्थणाउ भीमाउ। ताओ संभरमाणो मा झूरसु जीव ! एत्ताहे ॥' । ७१२ एवं अणुसासंती अप्पाणं जामिणि' गमेऊण । पुणरवि पभायसमए जिणमुणिगुणसंथवं कुणइ ॥ ७१३ १ कथइहस्थ ख. २ मीसे. ३ मध्वं, ४ गायई. ५ निवुयं. ६ सुणिमो. ७ सोढ़ाओ. 4 °सामंती. ९ जामिणी. 15 20 25 Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१६ [७१४-७२६] नम्मयासुंदरीकहा। पुणरवि तहेव नयरे वियरइ कयगीयनचणपयासी । अन्नदिणे घरदारे गायइ एयारिसं गीयं ॥ ७१४ 'पभणइ लोगो गहिल्लिया सुस्सुइया ण अहं गहिल्लिया। जोएमि निरवजभिक्खयं जा नासइ सयलं पि दुक्खयं ॥ ७१५ [ नम्मयासुंदरीए जिणदेवेण सह मिलणं] एवं तीए गीयं निसुयं आसन्नमंदिरगएणं । सुस्सावएण केणइ अचंतं विम्हियमणेणे ॥ एयमउवं गीयं सम्मं हिययम्मि भावयतेण । निरवजसद्दसुणणा 'नायं न णु नम्म[प.२४ A ]या एसा ॥ ७१७ कारणवसेण केणइ एरिसनेवच्छधारिणी एसा । 10 तो निच्छयनाणत्थं पुच्छिजइ छन्नभासाए ॥' ७१८ इयं चिंतिऊण पुच्छइ - 'रे गह ! तं कस्स संतिओ तस्स(१) । पूएसि कं च देवं अवयरिओ किमिह पत्तम्मि ? ॥ ७१९ तीए वुत्तं'सव्वजगजगडणपरो जेण हओ मोहदाणवो चंडो। तस्संतिओ गहो हं लीलाए एत्थ निवसामि ॥ तं चेव महादेवं सूरं धीरं जमुत्तमं वीरं । पूएमि भत्तिसारं किं न मुणसि सावओ तं सि ॥ ७२१ अवयरणकारणं पुण नाहं साहेमि तह वि नाओ सि ।। वचंति अणिट्ठमणा बहवें सागारिया लोया ॥' भणियं च सावएण वि- 'जइ वि न साहेमि तह विनाओ सि । हिंडसु जह मणइ8 किं अम्हं तुम्ह वुत्तीए ।' ७२३ इय जंपंतो सहसा ओसरिओ सावओ तओ ठाणा । चिंतइ 'न हु सञ्चगहो कारिमयं चेड्डयं एयं ॥ ७२४ साहिउकामा वि इमा न कहइ सच्चं जणस्स संकाए । ता पइरिकं गंतुं पुच्छिस्सं एत्थ परमत्थं ।' ७२५ तो अणुमग्गं तीए हिंडइ केणइ अणजमाणो सो। इयरी वि गहियभिक्खा विणिग्गया भोयणं काउं॥ ७२६ . पयास. २ °मणेणा. ३ नेच्छय. ४ एय. ५ किंचि. ६ गणो. ७ विच्चंति. ८ वहावे. 15 ७२० ७२० गा ।' ७२२20 25 नम०९ For Private & Personal use only. www.jaine Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२७ 10 ७३१ 15 नम्मयासुंदरीए जिणदेवेण सह मिलणं। [७२७-७४०] नयरस्स नाइदूरे जिन्नुजाणे जणागमविहीणे । नागंघरयम्मि पत्ता उवविट्ठा बोहए जीवं ॥ 'रे जीव ! मा धरिजसु निवेयं माणसे मणागं पि। दुहरूवं पि सुह च्चिय भावेजसु सम्ममेवं च ॥ ७२८ एयाई रच्छाचीवराइँ मनिज देवदूसाई। रक्खेजइ जेहिं दढं सबावायाण तुह देहो ॥ ७२९ जं पि य अंगे लग्गं कुहियं कद्दमविलेवणं एयं । सुट्ट सुयंधं नाणसु सीलंगं कुणइ जं सुरहिं॥ ७३० एयं पि अंतपत्तं(पंत) [ अन्नं] भावेज अमयरस[ स ]रिसं ।। एएण उवग्गहिओ जं देहगिहे तुमं वससि ॥ भणउ जणो एस गहो तं चिय भावेसु एस मोक्खो त्ति । एयपसाएण तुमं जओ विमुको सि मिच्छाओ॥ ७३२ सोढवं दुहमेयं पाविजइ जा न निग्गमोवाओ। एवं वि सहतीए मे होही सुंदरं सर्च ॥ ७३३ भणियं चता निति किं पि कालं भमरा अवि कुडयवच्छेकुसुमेसु । कुसुमंति जाव चूया मयरंदुद्दामनिस्संदा ॥' ७३४ इय भाविऊण सुइरं सम्मं वेरग्गमग्गगहिया य । भुवणगुरूण जिणाणं संथवणं काउमारद्धा ॥ ७३५ 'निम्महियमोहमल्ला बंधवभूया जणाण सवेसि । जम्मजरमरणरहिया जयंतु तित्थेसरा सवे ॥ ७३६ भत्तिजुयाण जिणाणं जेसिं पयपंकयं थुणंताणं । वचंति दुरंताई दूरंदूरेण दुरियाई॥ निद्ववियकम्मरिउणो केवलवरनाणदंसणसमिद्धा । सासयसुहसंपत्ता जयंतु ते जिणवरा सवे ॥ ७३८ सवेसि सिद्धाणं आयरियाणं च गुणस[ प.२४ B]मिद्धाणं । तह य उवज्झायाणं नमो नमो होउ मे निचं ॥ ७३९ मोक्खपहसाहगाणं पाए पणमामि सवसाहूणं । सिवमग्गे सुहियस्स य नमो नमो समणसंघस्स ॥ ७४० १ नाइट्रे. २ नग'. ३ एयांई. ४ गिच्छाओ. ५ °वस्थ. ६ °रियणो. ७३७ 25 Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नम्मयासुंदरीकहा। ६७ एवं सत्थीभूयहियया जाव कवलगहणं काउमारद्धा, एत्थंतरे सो वि सावओ उजाणे पविसंति[मा]लोइऊण कयदिसालोओ दारंतरेण समागओ नागघरासन्नं । 'गीयत्थो' त्ति काऊण भणिया- 'इओ निसीही।' नम्मयासुंदरी निसीहीसहसवणाओ सूरावलोयणरहंगी व मरिउं च जीविया हरिसभरनिब्भरा संवुत्ता । तओ- 'सागयं निसीहियाए, वीसमह ताव महासावग! इह सिणि?-5 तरुच्छायाए जावाहमप्पाणं संठवेमि। ताहे अणवसरो ति नाउं निसन्नो तहाविहसिणिद्धतरुणवल्लीए । नम्मया वि तुरियं तुरियं कयकइवयकवलाहारा कालोचियविहियसरीरसंठवणा- 'एहि एहि ति भणंती निग्गया संमुही । मन्नुभरनिरुद्धकंठा निवाडिया य तस्स चलणेसु रोविच पवत्ता। सावगेणावि महुरवयणेहिं आसासिऊण भणिया- 'महाणुभावे ! किं तं रोइसि ? त्ति । 10 नम्मयाए रुयमाणीए चेव सिटुं- 'बहुकालाओ धम्मबंधवो तुमं दिट्ठो, ने य लोयावंरा(यविंदा?)ओ बीह[ माणीए ?] मए वयणमित्तेणावि तुह विणयपडिवत्ती कया ।' सावगेण वुत्तं- 'मुद्धे! मा एयनिमित्तं खेयमुबहसि । कयं चेव सवं तुमए एरिससाहम्मियपक्खवायमुवहंतीए, साहिओ तए नियभावो गूढक्खराए वाणीए । मए वि लक्खिओ चेव कहमन्नहा इत्थागओ ? 15 त्ति । ता होसु सुविसत्था । सुणाहि मम वत्तं- अहं भरुयच्छनिवासी जिणदेवो नाम वीरजिणसासणाणुरत्तचित्तो" मित्तो वीरदासस्स । सो वि इत्थ आगंतुकामेणेमेहिं घयभरियसगडेहिं संपत्तो पोयठाणं । दिट्ठो य मए तत्थ थिरधरियजाणवत्तो अंसुजलोल्लियकवोलो" वीरदासो । पुच्छिओ य मए - 'कओ भवं? किं च सोयाउरो लक्खियसि?। निवेइयं च तेण- 'मए बब्बरकूलगएण 20 हारिया नम्मयासुंदरी । गविट्ठा सा बाहिरब्भंतरे नयरे बहूणि दिणाणि । न से पउत्तिमेत्तं पि उवलद्धं, न अम्हेसु चिटुंतेसु सा पायडा होइ त्ति कलिऊण समागया वयं । एयं मे उव्वेयकारणं, गेहं गंतूण पुणो वि भायसहिऐण सिग्धं तत्थ गंतवं । तुमं पुण कत्थ पत्थिओ सि ?' मए भणियं- 'अहं पि तत्थ दीवे गमिस्सं ।' 'जइ एवं गच्छिहिसि" तुमं तत्थ [न]म्मयं तं अत्थेण सामत्थेण 25 सबस्सेण वा मोयाविजासि ।' मए भणियं-'जा तुह भायधूया सा किं मम धूया न होइ ? अच्छह तुब्भे वीसत्था जाव ममागमणं ।' अहं पुण 'तं दिट्ठममोइयं मोत्तूण न पडिनियत्तामि' त्ति कयपइन्नो चलिओ [प. २५ A] म्हि । १ पविसंती'. २ रासन्न. ३ 'रहगी. ४ संदुत्ता. ५ मिणिद्ध. ६ मंठवेमि. ७ तरुग'. ८ रोविओ. ९ ने. १० वोतं. ११ सुद्धे. १२ मोव्धहं. १३ °मावे. ५४ वि. १५ °चित्ते. १६ °भरीय. १७ हिट्ठो. १८ °कंवोलो. १९ सोयाओरो. २० बवर. २१ वच्छिहिसि. Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10 15 20 ૬૮ जिणदेव कयं नम्मयासुंदरीमोयणं । [ ७४१-७५१ ] अंतरा य मम पोओ पडिकूलपवणेण दीवंतरं' नीओ । चिरकालेणाणुकूलपवणो पाविओ । तेण चिरेणेह पत्तो म्हि । अन्नेसिया मए तुमं इत्थ, न कत्थई उवलद्धा सि । अञ्ज पुणासंभावणिजरूवा वि 'अणवजेभिक्खं माएमि त्ति सोऊण, कुओ इत्थ अणवजसो त्ति संकिरण पुच्छिया सि । तुमं पि साहेहि एत्तियदियहिं किं सुहमणुभूयं किं वा गहिल्लचेडएणं हिंडसि ?' । एवं पुट्ठाए सिद्धं नम्म [य] हरिणीओ आरम्भ वट्टमाणदिवसावसाणं नियचरियं । तं सोऊण समुट्ठियसिय (?) रोमेण भणियं जिणदेवेण - 'धन्ना सि तुमं वच्छे अइदुक्करगारिए महासत्ते ! | सोमालसरीराए जं विसहियमेरिसं दुक्खं ॥ सच्चो जण पवाओ मरइ अखुट्टे न जीवए को वि । जं तह ताडितं पाणेहि न वज्जियं अंगं ॥ धीराण तुमं धीरा जीए तह दारुणं महावसणं । सम्म महियासि सि ( ? ) न बालमरणे कया वंछा ॥ तं धना धन्नयरी धम्मीणं धम्मिणी तुमं चेव । जीए वसणसमुद्दे धम्मतरंड न परिचत्तं ॥ सीलवईणं मज्झे पढमा लेहा लिहिज्जए तुज्झ । जीए नि[य] बुद्धी मेच्छाओ रक्खिओ अप्पा ॥ [ जिणदेवकयं नम्मयासुंदरीमोयणं ] 25 30 १ दीवंतर. ७ ओ. ८ सुयह. ७४१ ७४२ ७४३ ७४४ संप सुणेहि सुंदरि ! जाया तुह मोयणम्मिँ मह बुद्धी । वित्तवयभीरूणं न हु सिज्झइ एरिसं कजं ॥ कलं च मए निसुयं एसा इट्ठा दर्द' नरिंदस्स | नयरा दूरं जंती रक्खिजइ रायपुरिसेहिं || रुम व वराहे एईए विप्पियं कुणइ जो उँ । देइ तणुं च पहारं सो पावइ दारुणं दंड || ७४८ ७४९ ता हरिउँ न हि तीरसि धणेण बहुणा वि मुयई न हु मुच्छा । नवरं तु पक्खवाई दढमेसो पोयवणियाणं ॥ तेसु सुहिएस तूसह दूमेअइ ताण दुक्खलेसेण तेसुमवराहकारिसु गाढं कोयाउरो होइ || ता हं सुणु ! पहाए रायघरासन्नचचरे भद्दे ! | ठाविस्समगाईं घयकुंभसयाइँ पंतीए ॥ २ अणविज्ज'. ३ महिलचिड्ड एण ४ 'सवणं. ५ सोयणम्मि. ७४५ ७४६ ७४७ ७५० ७५१ ६ दहं. Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ७५२-७५९] नम्मयासुंदरीकहा | घे तूण लउडयं तो ताई फोडिज निद्दया होउं । मा में पोकरमाणं गणेसु कलुणं पि कंदतं ॥' उल्लवइ नम्मया तो - 'नाहं एयारिसी महापावा । एत्तियमत्थविणासं काहं जा निययवप्पस्स ॥' जिणदेवेण वृत्तं - १ मुंचुहि. <°frat. १३ सुह ' एवं कयम्मि वच्छे ! कोवानलडज्झमाणसबंगो । मुंचीहि धुवं मिच्छो ता होही सुंदरं सवं ॥ वित्तं च तं पवित्तं जस्स वओ' कुणइ मोयणं तुज्झ । तुह लाभाउ न अन्नो गरुययरो मज्झ घणलाभो || ता कुणसु मज्झ वयणं मा चिन्तं' कुणसु अन्नहा पुत्ति ! ।' एवं कय संकेओ जिणदेवो उडिओ तत्तो ॥ काउं रिणं पभूयं संगहियं घयमिणं मए भूरि । लाभेण होउ इन्हि मूलं दावेह नरनाह ! ॥ ससिकासकु[सु]मधवलो वियरइ महिमंडले जसो तुम्हा । सो पहु ! अवस्स नासइ एयाऍ कहाइ भीमाए । आहव [इ] जस्स एसा दाविजउ तेण मज्झ घयमोल्लं । मह विन्नत्ती एसा मा कीरउ निष्फलों सामि ! ॥ २ वउ. ३ चेतं. ४ सि. ९ पवाहणाणि. १० भानणिउं. १४ पिच्छओ. १५ निफला. ५ पेणं. ६ सुहलो. ११ वणियाणमयत्र. ६९ ७५२ ७५३ ७५६ कयं च दुइयदि जहाइटुं नम्मयाए । तओ दोहि वि करेहि सो" पोट्टपिट्टणं कुणमाणो पोक्करिउमारद्धो घयसामी जाव हाहारखमुहलो मिलिओ नयर [ २५ ]लोगो । उग्घोसिओ य अन्नओ सुंकसालिए हिं- 'अहो ! भग्गो मग्गो संजत्तियाणं । अहो ! मूढो राया जो एयं महारक्खसिं दीवाओ न 15 निवाडे । एवंविहे जणुल्लावे निसामितो राया चिंतेह 'न एसग्गहो उवसमइ, किंतु अहिगयरा दोसबुड्डी भविस्सइ । इओ दीवंतरेसु अप्पसिद्धी । नागमिस्संति पवहणाणि ता जणभणियं निवारणमेवोचियमेयाए ।' एत्यंतरे बहुजणपरिवेढिओ महया सद्देण पोकारंतो समागओ रायसमीवं जिणदेवो, भणिउं" च पवत्तो - 'देव ! पोयवणियाण मइवै च्छलो त्ति पसिद्धीओ" वयं कथं - 20 तवयणं भीसणं महोय हिमोगा हिऊणेहागया । एत्थ पुण एस ववहारो, केरिसीए मुच्छायाए पडिगच्छामि ? गाईं घडसयाई लाभकर आणियाणि मे एत्थ । पिच्छउँ देवो एसा पुररच्छाए नई वूढा । ७५४ ७५५ 5 ७५८ 10 ७५७25 ७५९ ७ अन्नाओ. १२ पसिद्धिओ. Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10 15 जिणदेवकयं नम्मयासुंदरीमोयणं । [७६०-७७४ ] पडिभणइ पत्थिवो तो- 'जा पीडा सत्थवाह ! तुह अञ्ज । तत्तो अब्भहियतमा वट्टइ मह माणसे भद्द ! ॥ ७६० गहगहियाएँ इमाए कुविएहि वि किमिह तीरई काउं । एयाए अवराहे को दाविजउ धणं तुज्झ ॥ ७६१ आहवई पुण एसा मह चेव किमित्थ अन्नभणिएहिं।। दिन्ना मए तुहेसा दाउं न तरामि घयमोल्लं ॥ ७६२ जह भंडं चयमाणो मुंचइ सुंकस्स वाणिओ नियमा । तह एसा तुह दिन्ना मा कुण अम्हाणमवराहं ॥ आह पुणो जिणदेवो- 'गहगहियाए पओयणं किं मे । किंतु म सका गणिउं बला विदंता गयमुहम्मि ॥ ७६४ नायं च मए महिवइ ! एएण मिसेण निययदीवाओ। धाडेउमिम इच्छसि छड्डणमोल्लं तह वि देसु ।' ७६५ हसिऊण भणइ राया- 'जइ एवं सत्थवाह ! मह रजे । उस्सुकं तुह भंडं एसा वाया मए दिना ॥ ७६६ 'जइ एवं तो निययं कोवफलं पायडेमि एयाए।' इय भणिउं जिणदेवो दीहररजु करे घेत्तुं ॥ ৩৭৩ बंधइ जणपञ्चक्खं पहसंती सा वि तं इमं भणइ । 'किं एस चूडओ मे परिहिजइ राइणी दिन्नो ? ॥' ७६८ तो जिणदेवो जंपइ – 'अज वि फोडिज घयघडे बहुए। एरिसआभरणाई तो परिहिस्सं तुह बहूणि ॥' ७६९ एवं दंसियकोवो घेत्तुं बाहाएँ दिन्नउकोसो। जणपञ्चयजणणत्थं गओ लहं निययमावासं ॥ थाणुम्मि बंप. २६ A ]धिऊणं- 'भुंजसु दुन्नयफलाइँ' घोसंतो। नियकिच्चम्मि पवत्तो जणो वि कुड्डत्थिओ सत्थो॥ ७७१ 25 परितुट्ठो जिणदेवो ताहे तं पडकुडीय छोढूण । पक्खालइ पयकमलं अब्भंगउवट्टणं कुणइ ॥ ७७२ मजावेइ [य] विहिणा परिहावइ सुंदरा वत्थाई। अणुणेइ महुरवयणं कारेई भोयणं सुहयं ॥ ७७३ भणइ य एसो- 'जत्ता सहला मह अन्ज सुयणु ! संजाया। मन्नामि तुज्झ लाभे तिहुयणरजं मए पत्तं ॥ ৩৩৪ १ गोलं. २ रजो. ३ पायंडिमि. ४ रायणा. ५ घेत्तु वहाए. ६ किचंनि. ७°उवंटणं. ८ सुंदरांइं. ९ एसा. ७७० Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ७७५-७८७ ] नम्मयासुंदरीकहा | ७७७ चिंतेइ नम्मया विहु 'जम्मंतरबंधवो इमो नूणं । नरया उद्धरिऊणं जेणाहं ठाविया सग्गे ॥' एवं पमोयसागरपडियाण परोप्परं दुविन्हं पि । सुहावराणं वोलीणो वासरो झंति ॥ तत्तो जिर्णदेवेणं खणेण पउणीकओ निययपोओ । रयणहिचिय तहियं आरूढो नम्मयासहिओ ॥ 'पच्छायावी कयाइ भुजो वि कहं पि मा हु तु (मु ? ) चेजा ।' इय संकाय सहसा मुको पोओ महावेगो || कम्मम्मिं समर्णुकूले सवं जीवस्स होइ अणुकूलं । तत्तो य तक्खणं अणुकूलो मारुओ लग्गो || वसंतसयल विग्घो जिणदेवो वासरे हिँ थेवेहिं । संपत्ती भरुच्छे बंधवजणकय महाणंदो || ७७८ १ ज्झ. ८ लहो. १४ बोतंतं. २ जिणं. ९ स्थ ७१ ७७५ ७७६ ७८२ [ नम्मयासुंदरीए सयणाण सह मिलणं ] पट्टाविओ य तुरियं लेहो नम्मयपुरम्मि सयणाणं । लाभेण नम्मयासुंदरीवि (ऍ ? ) वद्धावणनिमित्तं ॥ परिओसनिब्भरा ओलंघि ( १ ) उ ( तु १) रंगेहि पत्रणजवणेहिं । सहदेव - वीरदासा सबंधवा तत्थ संपत्ता || सम्माणिया य सबे जिणदेवेणावि हट्टतुद्वेण | मिलिया य नम्मयाए तुट्ठा उक्कंठियमणाए ॥ काउं कंठग्गहणं परोप्परं रोवियं च तह करुणं" । उग्गिलियमणोदुक्खा जिणदेवेणावि ते भणिया ॥ 'जे समझते रुने को इत्थ किर गुणो होइ । अजं खु नम्मयासंगमम्मि नणु होह साणंदा ॥' कयवयणधोवणाई सवेसि सुहासणेसु बइठाणं । जिणदेवो वृत्तंतं" जहदिट्ठसुयं कहइ तेसिं ॥ जह हरिया दासीहिं सुचिरं सेहाविया य हरिणीए । जह सामित्तं पत्ता तासिं कवडग्गहो य कओ ॥ ७७९ 10 ७८० ७८१ 15 ७८३ ७८४ ७८५ 5 ७८७ ३ रेयणि सुहि. १४ आरुहो. ५५ कम्ममि. ६ समण'. ७ मारूओ. १० सिलिया. ११ करणं. १२ संगमि. १३ वइहाणं, ७८६ 25 20 Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८८ ७८९ 1१९० 10 ७९२ नम्मयासुंदरीए सयणाण सह मिलणं । [७८८-८०२] दुक्खेण परिन्नाया दुक्खं मोयाविया य मेच्छाओ। जिणदेवेण सवित्थरमक्खायं जा गिहागमणं ॥ तो नम्मयाइ दुक्खं सवेसु वि बंधवेसु संकंतं । ऊससियरोमकूवा सव्वे पलवंति तो एवं ॥ 'भो सोमालसरीरे ! कह एयं विसहियं तुमे दुक्खं । कन्नविवरे पइटुं अम्हे सोढुं न हि तरामो॥ सुहलालिया वि सुहपालिया वि सयणा[ प. २६ B]ण सुड्डु इट्ठा वि । हा! कह कम्मवसेणं वसणसमुद्दम्मि बुड्डा सि ॥ ७९१ किं नाम सा हयासा हरिणी तुह पुत्ववेरिणी आसि । इयनिंदियहिययाए जीए सेहाविया तं सि ॥ एरिसनिग्घिणहियया दीसइ नारी न काइ जियलोए । सा उ अणज्जा पावा संजाया एरिसी कह णु ॥ ७९३ कह बालिसंभावाए सहिया तह तारिसी तए पीडा। कह नियजणरहियाए पाणा संधारिया तुमए ॥ ७९४ कह बालिसभावाए तुमए संपाविया इमा बुद्धी । अगणियतणुदुक्खाए कवडगहो' जं कओ तुमए ॥ ७९५ धन्ना सि तुमं वच्छे ! अम्ह वि पुवाइँ अत्थि पुन्नाई। जमखंडियवयनियमा मिलिया अम्हाण जीवंती ॥ ७९६ इय सोऊणं बहुहा बहुसो उववूहिऊण गुणनिवहं । तं ठविया रुयमाणी सा बाला अंबताएहिं ॥ ७९७ अह जिणदेवो भणिओ- 'सजण ! जिणदेव ! साहु साहु कयं । अवहत्थिऊण तत्तियवित्तं जं मोइया एसा ॥ ७९८ सुयणाण तुमं सुयणो उत्तमपुरिसाण उत्तमो तं सि । धम्मीण धम्मिओ तं साहम्मियवच्छलो तं सि ॥ तुह सुंदर ! सवगुणा एगेण मुहेण वनिमो कह णु १ । जलहिम्मि व रयणाणं जेसि न पाविजई अंतो॥ साहम्मियधुरधवलो तं खलु सवस्स पूणिज्जो सि । इय गिण्हसु एयाओ बत्तीस हिरनकोडीओ ॥' इय भणिरो सहदेवो पडिओ चलणेसु बंधुणा सद्धिं । जिणदेवो वि पयंपइ - 'मा बंधव ! एकमाइसK॥ ८०२ १ गो. २ वालिस'. ३ राहो. ४ पुत्ताई. ५ पुन्नाइं. ६ जलहम्मि. ७ °माइसुसु. ७९९ ८०१ 30 Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [८०३-८१७] १ निंदणि. नमयासुंदरी कहा | ८०३ ८०९ तुह नंदिणि' त्ति भणिउं न मए मोयाविया इमा किंतु । साहम्मिणि त्ति काउं जिणसासणपक्खवाएण || साहम्मियवच्छलं महाफलं वन्नियं जिणमयम्मि । जेणे पढिजर धणवs ! जिणागमे एरिसा गाहा ॥ साहम्मियवच्छल्लम्म उज्जया उज्जया य सज्झाए । चरणकरणम्मिय हा तित्थस्स पभावणाए य ॥ जिणसासणस्स सारो जीवदया निग्गहो कसायाणं । साहम्मियवच्छलया तह भत्ती जिणवरिंदाणं ॥ एत्थ सवधम्मो साहम्मियवच्छलत्तमेगत्थ | बुद्धिलाएँ ठवियाइँ दो वि तुल्लाइँ भणियाई ॥ जो मंदमई पुरिसो न कुणइ साहम्मियाण वच्छलं । जिणसासणस्स तत्तं न मुणई सो छेयमाणी वि ॥ एवं च महापुनं समज्जियं मोयणेण एयाए । तुम्ह धणं गेण्हंतो हारेमि' न संपयं इत्थ | दीणारेणेकेणं दो पडियारा न चैव लब्भंति । एवं न होंति दोनिवि धणवइ ! अत्थो य धम्मो य ॥ आह तओ सहदेवो - 'जइ तुमए मोइया [प. २७] निययधूया । भण तत्थ किमम्हाणं तुज्झ नियं चैव तं कजं ॥ अम्हेहिं किं न कजा उत्तमसाहम्मियस्स तुह पूया । साहम्मियवच्छलं महाफलं मन्नमाणेहिं || मोयंतेण सधूयं निरीह चित्तेण अज्जियं पुनं । इन्हि पि तं निरीहो ता कह नासइ तयं तुज्झ १ ॥ ' एवं बहुप्पयारं विचित्तउत्तीहिं बोहिओ संतो । अग्गट्टिय (१) दक्खिनो जिणदेवो गाहिओ वित्तं ॥ संपूया य दोनिवि जिणदेवेणावि ते सपरिवारा । जाओ परमाणंदो एवं सवेसि सयणाणं || ठाऊण के दियहे परिवडियगुरुसणेहसंताणे । आपुच्छिय जिणदेवं सहदेवो पत्थिओ नयरं ॥ विन्नवह नम्मया तो जिणदेवं निवडिऊण चलणेसु । 'देउ मम आएसो चेट्ठामि वयामि वा ताय ! ॥' ८१० ८११ ४ सुणइ. ५ हारेगि. ६ अजियं. २ जिण. ३ 'तला ए. नम० १० . ८०४ ८०५ ८०६ ८०७10 ८०८ ८१४ 5 ८१२ 20 ८१३ ८१५ ८१६ 15 ७ देवे, 25 ८१७३० Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . ८१९ ७४ सुहत्थिसूरिणो नम्मयपुरे ओसरणं। [८१८-८२८] सो वि तयं पडिजंपइ - 'वत्थालंकारभूसियं काउं। पुत्ति ! पयट्टसु मग्गे होज विणीया गुरुजणस्स ॥ ८१८ घेत्तण नम्मयं तो सहदेवो पडिगओ सनयरम्मि । नम्मयजम्मदिणम्मि व वद्धावणयं तओ विहियं ॥ नाणाविहकोसल्लियहत्था पत्ता समत्तपुरपुरिसा । आसीवायपवत्ता अक्खयहत्था य नारिगणा ॥ पणमंति नम्मयाए पाए केई वियासिमुहकमला । कुणइ पणामं केसिंचि नम्मया नमणजोग्गाण ॥ ८२१ जो जत्तियस्स जोग्गो सम्माणं तस्स तत्तियं कुणइ । सहस त्ति वीरदासो मणपरिओसं विवāतो ॥ अट्ठाहिया य महिमा पवत्तिया जिणहरेसु ससु । पडिलाभिया य मुणिणो फासुयघयणतमा(गा)ई हिं॥ ८२३ कासी य नम्मया वि हु जिणचणं पइँदिणं तिसंझ पि । आवस्सगकरणेजं करेइ समणीण सन्निहिया ॥ ८२४ सरियअणुहूयदुक्खा अणुसमयं वड्डमाणसंवेगा। संजमगहेंणेकमणा चेइ गुरुसंगमा एसा ॥ ८२५ [सुहत्थिसूरिणो नम्मयपुरे ओसरणं ] अह अन्नया कयाई चउदसपुविस्स थूलिभद्दस्स । सीसो दसपुत्वधरो तवतविओ उज्जयविहारी ॥ ८२६ संपइरायस्स गुरू गामागरनगरपट्टणपसिद्धो । विहरंतो ओसरिओ सुहत्थिसूरी तहिं नयरे ॥ ८२७ जो सोमो वि णिकलंको, सूरो वि तवे अमंदों, समुद्दो वि खाररहिओ, मंदरागो वि जडत्तवजिओ । तहा सूरो इव पयावी, चंदो इव सोमदंसणो, सागरो इव गंभीरयाए, मंदरो इव धीरयाए, पईवो इव अन्नाणतिमिरमोहियाणं, कप्प25 पायवो धम्मोवएसफलदाणे, सारमोसहं मोहमहारोगस्स, घणाघणो कोवदावानलस्स, कुलिसपाओ माणमहीधरस्स, पक्खिराओ मायाँभुयंगीए, पवणो लोहमेह[ प. २७ B]पडलस्स । तहा संजओ वि अबंधणो, सुगुत्तो वि सयलजणपयडो, समिइपहाणो [वि] अवहत्थियपहरणो त्ति । अविय धम्माधम्मविहन्नू बंधवभूओ जियाण सवेसि । परहियकरणेकरसो जुगप्पहाणो विमलनाणो॥ १ जोगाण. २ मम्माण. ३ पयदिगं. ४ तिसज्झं. ५ °महणे. ६ पुब्धिसा. ७ रायास्स. ८ अमंढो. ९ °पाइवो. १० साया'. ११ समीइ. १२ अथह. १३ नियाण. Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७५ ८२९ 15 [८२९-८४३ ] नम्मयासुंदरीकहा। सोउं तस्सागमणं सकोउहल्लो खणेण संचल्लो । सयलो नरनारिगणो वंदणहेउं मुणिवरस्स ॥ सिट्ठी वि उसभदत्तो पमोयसमुल्लसियबहलरोमंचो। सयणसुहिपुत्तजुत्तो सविड्डीएं समुच्छलिओ॥ चलिया य नम्मयासुंदरी वि जणणीपुरस्सरा तुरियं ।। उच्छलियमहामोया रविउग्गमणे कमलिणि व॥ तिपयाहिणि करित्ता पंचंगपणामपुवयं सवे।। संसंति समणसीह कयकरयलसंपुडा एवं ॥ 'जय मुणिमहुयरसेवेजमाणलक्खणसणाहपयपउम! । दंसणमेत्तपणासियनयजणनीसेसपावमल!॥ ८३३10 संघसरोवरवररायहंस ! मिच्छत्तकोसियदिणेस । दुक्खत्तसत्तबंधव ! धवलजसापूरियदियंत ! ॥ बहुकालाओ अजं अंकुरिओ पुनपायवो अम्ह । जं दिट्टो सि महायस ! अइदुल्लहदसणो नाह ! ॥ एवं गुरु थुणंता वंदित्ता सेसमुणिवरे विहिणा। उवविट्ठो गुरुमूले वंदारुजणो जहाठाणं ॥ ८३६ उवविट्ठाण य गुरुणा नवजलहरगहिरमहुरघोसेण । पारद्धा धम्मकहा मयरसनिस्संदसुंदेरा॥ ८३७ 'भो भो ! सुणेह सम्मं चउगइसंसारसायरे बुड्डा । विसहंति जेण जीवा तिक्खाइं दुक्खलक्खाई॥ ८३८20 जह जच्चंधो पुरिसो पवंचिओ निदएहिँ धुत्तेहिं । पडइ गहिरंधकूवे कंटयमज्झम्मि जलणे वा ॥ ८३९ एवं अन्नाणंधा जीवा धुत्तेहिँ रागदोसेहिं। कयसंमोहा बहुसो नारयतिरिएसु हिंडंति ॥ ८४० पाणवहासच्चगिराचोरेकाबंभपरिगहासत्ता। अज्जियबहुपावमली पडति नरयावडे केवि ॥ ८४१ निस्सीमारंभपरिग्गहेसु गिद्धा असंति गिद्ध छ । मंसवससोणियाई के वि नरा जंति तो नरए॥ ८४२ तत्थ य छिंदणभिंदणउक्त्तणफालणाइ वि सहति । पचंति कुंभियाए वेयरणिजलम्मि छुब्भंति ॥ ८४३ 30 .. . सुकोउ'. २ सुविड्डीए. ३ °हिणी. ४ °संपुढा. ५ दुक्खंत. ६ धुत्तेहं. ७ अजिय'. ८°पावकमला. ९ हसंति. 25 Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८४४ ८४७ सुहत्थिसूरिणो नम्मयपुरे ओसरणं। [८४४-८५३ ] घोराई दुक्खाई नरएसु सहति पाणिणो जाई । कोडिसमाऊ वि नरो को बन्ने तरई ताई ॥ मायाए मुद्धजणं कूडतुलाकूडमाणभंडेहिं । वंचित्तु जंति केइ वि तिरियगई कम्मपरतंता ॥ ८४५ बहुकूडकवडनडिया लंचुकोडाइगहणतत्तिल्ला । गयकरहतुरंगाइसु वाहणतिरिएसु गच्छंति ॥ जलयरथलयरखयरा मंसासी जीवधायगा कूरा । लघृण वि तिरियत्तं हुंति पुणो नारया दीणा ॥ पत्तेयमणुयभावे जे धम्म नायरंति [प. २८ A] जिणभणियं ।। 10 नारयतिरिएसु चिरं ते वि पयटुंति बहुमोहा ॥ ८४८ जिणवयणोसहजोगा अन्नाणंधत्तमूसरइ जेसिं । वामोहिजंति न ते रागद्दोसेहिँ" धुत्तेहिं ॥ ८४९ सम्मत्तनाणचरणाभरणेहिँ अलंकिया कयपमोया। पावंति उत्तमसुहं देवत्तं पुण वि मणुयत्तं ॥ ८५० ता जाव म संपञ्जइ सुदुल्लहो खाइओ चरणजोगो। तम्मि पुणो संपत्ते नियमा पावंति निवाणं ॥ तत्थ उदाहरण न गंधो(?) उवमाइयं सुहं सयाकालं । अणुहुंति सबजीवा अपुणब्भवभावमावन्ना ॥ एवं नाऊण जणा! रागद्दोसाण निग्गहसमत्थं । पडिगिण्हहैं जिणवयणं जेणाणुत्तरेसुहं लहहा ॥ ८५३ एवं च सूरिमुहमयंकवजरियं देसणामयं कन्नंजलीहिं मायामाया(आयामा ?)वियमाणाणं खणेणावगयं मिच्छत्तविसं । संजाओ केसि चरणधरणपरिणामो, समासादियं केहिं पि बोहिबीयं ति । एत्थंतरे लद्धावसरेण पुच्छियं वीरदासेण- 'भय ! एसा अम्ह धूया भावियजिणवयणा सरयससहरकिरणपुंज25 समुज्जलसीला किमेरि]सावयाण भायणं संवुत्ता ?' ताहे भगवया विहियसुय नाणोवओगेण सम्ममवधारिऊण वजरियं- 'धम्मसीले ! संसारे जीवाणं दोन्नि भंडागाराणि संति -पुन्नागारं पावागारं च । जया च जीवस्स ठिईखएण पुनागाराउ पुनमुदयं लहइ तया जीवो सुही होइ, जया य पावागाराउ पावमुदयमेइ तया जीवो दुही होइ । जया य दो वि उदिजंति तया जीवो मिस्साइं सुहदुक्खाई १ वन्नेउ. २ तरइ. ३ गई. ४ लंबु. ५ °दोसे हिं. ६ अणुहुति. ७ अपुणु. ८ °गिण्हह. ९ °णुवर. १० °सासियं. ११ वयण. १२ °सीला. १३ जाया. १४ मुदलयं. ८५१ 20 Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [८५४-८६३ ] नम्मयासुंदरीकहा। वेएई । जं च उक्कडं तस्स ववएसो होइ । ता एयाए तुह धूयाए सुकुलजम्मो जिणवरधम्मो रूवलायनजुत्तया भोगोवभोगसंपया- एयमणग्धं पुवो(नो)दयमाहप्पं । जं पुणो भत्तुणो विरागो, सुनदीवे चागो, वेसाहि हरणं, तहाविहदारुणजायणाकरणं- एयं महाबलं पावोदयपायवफलं ति । पुणो पणमिऊण वीरदासेण पुच्छियं - 'भयवं ! कहं पुण दुग्गमेयमेयाए उवैज्जियं ? ति नाउ-5 मिच्छामि, तो विसेसेणाणुग्गहं काऊण कहिउमरिहंति मे भगवंतो त्ति । तओ भयवं तस्स अन्नेसिं च लोयाणमणुग्गहनिमित्तं साहेउमारद्धो । अवि य [नम्मयासुंदरीए पुव्वभववण्णणा] अत्थि कलिंजय(र)विसए गामो सिरिमेलउ ति नामेण । तत्थ सिरिपालनामो एगो कुलपुत्तओ होत्था ॥ ८५४ 10 तस्स य सुरूवकलिया सिरिप्पभा भारिया सिणेहवइ। गरुयाणुरायकलिया ताणं कालो सुहं जाइ ॥ अन्नदिणे सिरिपालो समाणमित्तहिँ एवमुल्लविओ। 'गंतूण अमुगगाम लूडेमो अजरयणीए ॥ जो कोइ तत्थ लाप. २८ B]भो तस्सद्धं तुज्झ सेसमम्हाणं । 15 दिजाहि जहाजोगं विभजिस्सामो य तो अम्हे ॥ ८५७ किं तस्स जीविएणं नरस्स रंड च विगयववसाओ। जो चारणेहिँ निच्चं न हु गिजइ दंतिदंतीहिं(१) ॥ ८५८ सोऊण समुल्लावं सिरिप्पभाए पिओ निओ भणिओ। 'मा नाह ! कुणसु वयणं एएसिं पावमेत्ताणं ॥ ८५९ 20 धणधन्नसमिद्धप(घ)रं मोत्तूण कुणंति रोरियमणेगे। धणसामिपहावहया चुकंति सये(गे?)हभोगाणं ॥ पेच्छई छीरं वरओ मंजारों न उण लउडयपहारं । पेच्छंति परेसि धणं निययं मरणं न पेच्छंति ॥ जे हुंति नरा दुत्था धरिउं न तरंति अन्नहा जीयं । ते खलु चोरियजूयं रमंति हरिउं व मरिउं वा ॥ तं पुण धनसउन्नो विलससु नियसंपई सया मुइओ। सट्ठाणद्वेणे सयं" अलाहि चोरेककरणेण ॥ ८६३ १ वेपद. २ एयगणग्धं. ३ पुण. ४ डवजियं. ५ तस्सधं. ६ पच्छइ. ७ रछीरं. ८ मघारो. ९ नियय गरणं. १० संपई. ११ सहाणेढेण, १२ मयं. १३ वोएवं 25 Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10 नम्मयासुंदरीए पुव्वभववण्णणा। [८६४-८७७ ] लोहमहागहगहिओ सिरिपालो संठवेइ नियदइयं । 'नाहं करेमि एवं दइए ! तं चेट्ट सुविसत्था ॥ ८६४ अकहित्ता घरणीए रयणीए निग्गओ सगेहाओ। सहस त्ति ताण धाडी पडिया हियइच्छिए गामे ॥ सन्नद्धा गामभडा पयट्टमाओहणं महाघोरं । भग्गा य तहा धाए अणुलग्गा पिट्ठओ कुढिया ॥ दहणं हम्ममाणे नियजोहे कोवजलणपञ्जलिओ। चलिओ तेसिं समुहो सिरिपालो साहससहाओ ॥ ८६७ सो एगोऽणेगेहिं समंतओ बाणघायजजरिओ। पडिओ मेइणिवीढे संपत्तो दीहरं निदं ॥ ८६८ आयन्निऊण एवं सिरिप्पहा मुच्छिया गया धरणि । कहकह वि लद्धसन्ना कासि पलावे बहुपयारे ॥ ८६९ तत्तो वि सुन्नपु(वु?)ना अड्डवियड्डा वणंतरे भमिरी । कालिंजरंगिरिमूले संपत्ता आसमं एगं ॥ दिट्ठा य तावसीहिं दयापहाणाहिँ महुरवयणेहिं । बोलाविऊण भणिया- 'भद्दे ! किं इत्थ रुन्नेण ॥ ८७१ जइ रुयसि जइ वि विलवसि तिलं तिलं जइ वि कप्पसे अप्पं । सह वि न वलंति पुरिसा विहिणा उद्दालिया जे उ॥' ८७२ तो सा जंपइ- 'भयवइ ! न कयाइ वि मग्ग(ज्झ) खंडिया आणा। ता कीस सो पउत्थो मए तहा वारिओ संतो ? ॥ ८७३ ___ तावसीए भन्नइ'जइ वि न ग(इ?)च्छइ गंतुं वारिजइ जइ वि निबंधूहिं । तह वि हु वच्चइ पुरिसो पगडिओ कालपासेहिं ॥ ८७४ किं तस्स सोइयत्वं धम्मिणि ! चिंतेहि अप्पणो धम्मं ।। जम्मंतरे वि जत्तो दुक्खाण न भायणं होसि ॥ एसो चिय वणवासो मूलं सवेसि होइ सुक्खाणं । पियविप्पओगदुक्खं सुविणे वि न दीसए एत्थ ॥ ८७६ न सुगंति फरुसवयणं आणं न सुणंति कस्सइ कयाई। न मुणंति कलहवयणं वणवासी सबहा [प. २९ A] धन्ना ॥ ८७७ १ दहण, २ कालिनर. ३ फरस. ४ कयाइं. 15 25 ८७५ Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८८० ८८१ ८८२ 10 [८७८-८९१] नम्मयासुंदरीकहा। इय पालिजइ बंभं दुहियाण जियाण कीरइ परित्ता । तप्पिजइ निच्चग्गी नवनवसमिहाहिँ पईदियह ॥ कायबा गुरुभत्ती गुरुआणापालणम्मि जइयवा(?)। इच्चाइ अम्ह धम्मो सुहकरणेजो सुहफलो य॥ एमाइ भणंतीहिं सिरिप्पभा बोहिया तहा ताहिं। जह तासिं चिय मूले सयराहं तावसी जाया ॥ तो पयणुरागदोसा परिसुद्धायारपालणुजुत्ता। विहिणा कयसन्नासा उववना वंतरनिकाए । सअगाढियपरिवारे नम्मयनइरक्खणम्मि अभिउत्ता। परिहिंडइ सच्छंदा कीलंती नम्मयतडेसु ॥ कारंडहंससारसरहंगपमुहेहि बहुविहंगेहिं । चिंतइ य जलं रेवं निज्झायंती सुहं लहइ ॥ उच्छलिय विलिजंते पिटुंती नम्मयाइ कल्लोले । चिट्ठइ पलोयमाणी अतित्तचित्ता चिरं तं पि ॥ कत्थइ हत्थिकुलाई वणमहिसिकुलाइ नम्मयजलम्मि । उब्बुड्डनिब्बुडणवावडाइँ तूसइ पलोयंती ॥ आरुहइ विंझसेले पेच्छइ विंझाडवि विसेसेण । रुरुरुज्झगवयेसूयरकुलेहिँ परिमंडिउद्देसं ॥ सर्लसरहचित्तयसीहाइजिएहिँ भीमरूवेहि । घेप्पंतपलायंतेहिँ संकुलं तं महारत्नं ॥ इच्छाएं रमइ विसे(सऍ) नचंतसिहंडिमंडलीरम्मे । निज्झायइ संझगिीरं कीलइ तत्थैव गंतूण ॥ सुचिरं परिब्भमंती केलिकि(पि)या सा कयाइ दच्छीय । विंझगिरिस्स नियंबे झाणत्थं मुणिवरं एगं ॥ नासानिरुद्धदिलु संवरियासेसइंदियपयारं । मेरुमिव निप्पकंपं एगग्गमणं महासमणं ॥ जाईए पच्चएणं कीलारसिया तओ तयं दटुं। सा परिचिंतइ 'एयं चालेमि कहंचि झाणाओ॥ ૮૮૪ 18 ८८६ ८८७20 ८८८ ८८९ 25 ८९१ १ इया. २ पयदि. ३ स्सअणा. ४ अप्पट्टनिप्पुटण. ७ तश्चत. ८संचरिया'. ९कहिंचि. ५ गयवयं. ६ इहाए. Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नम्मयासुंदरीए पुव्वभववण्णणा। [८९२-९०५] परिचिंतिऊण सहसा मुंचइ अट्टहासमइभीमं । गुहकुहरुट्टियपडिरवसंरावियसयलजीवं [व ?] ॥ ८९२ दट्टण तं अभीयं ताहे दंसेइ घोरसदले । गुंजारवभरियनहे विगरालमुहे समुहमिते ॥ सुनिरुद्धदिटिपसए(र)स्स तस्स तव(न व ) ते भयंकओ जाया । ताहे उक्खिविऊणं मुंचइ तं जलहिमज्झम्मि ॥ ८९४ तुच्छम्मि जलहिनीरे सव्वत्तो परिमिलंतगुरुवेले। तत्थ वि य अवीहंतं नेई [पुण] पुवठाणम्मि ॥ ८९५ तत्थ य दंसेइ पुणो पुलिंदवंदाई भीमरूवाई।। ___ 10 'छेदह भिंदह [ मारह ]' भणमाणाई अणेगाई ॥ ८९६ [एस ] भएण [ण ] जिप्पइ कलिऊण करेइ चित्तहरणत्थं । उब्भडवेसविलासिणिरूवं चाडूणि कुणमाणं ॥ ८९७ . तेणावि अकयखोहं पसंतहिययं महामुणिं नाउं । उव[ प. २९ B]संतमणा देवी सपच्छयावा विचिंतेइ ॥ ८९८ 'एसो कोइ महप्पा तीरइ नहु चालिङ गुमाणाओ। किं वट्ट(ह)इ सिहरिनाहो पहओ वि पयंडपवणेहिं ॥ ८९९ तो दुहुँ मए विहियं किलेसिओ एस जं महासत्तो । नीसेससत्तसुहओ वढ्तो सुद्धझाणम्मेि ॥ कोउगमित्तेण मए इमस्स झाणंतरायमारद्धं । कीलस्स कए नूणं पीलियं तुंगदेवउलं ॥ ९०१ उत्तमसत्तो धीरो चलिओ न वि एस सुद्धझाणाओ। पत्तं च मए पावं पावेकमणाइ पावाए ॥' ९०२ एवं पच्छायावं उच्वहमाणी मुणिस्स चलणाणं । पुरओ कयप्पणामा खामेइ मुणिं सुपरिणामा ॥ ९०३ 'भयवं ! खमाहि मज्झं अवराहमिमं महामहंतं पि । पक्खित्तं नियसीसं मया तुहंके महाभाय ! ॥ ९०४ धिद्धी मह देव[त्ते माहप्पमुक्खिऊण तुह जीए। खलियारणा खलाए कया पयट्टस्स सिवमग्गे ॥ ९०५ ... गिह°. २ सुसुनि. ३ °वेलो. ४ नेइ. ५ °वंडाइ. ६ चाद्भणि. ७ सपच्छाया. ८ दु१. ९°माणम्मि. १० तुंम. ११ उत्तग. १२ खमाणि. १३ °भाया. १४ माहप्पमउरिक. 15 ९०० 20 25 Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ९०६-९२० ] नमयासुंदरीकहा । ९०८ ९०९ ९१०10 डज्झइ मणो महायस ! दुच्चरियमहानलेण एएणं । विज्झवसु तं सुसंजय ! मं भीमसु ( सीचसु ? ) वारिधाराए ।। ९०६ अन्नाणमोहियाए बालिसभावाइ खमसु मे दोसं । बालकओ अवराहो कोवं म जणेइ जणयाणं ॥ ९०७ खम खमसु मर्हरिसि ! तुमं खमिउं जाणासि तं चिय न अन्नो । 5 नहि चंदमंडलाओ पडंति अंगारधाराओ ||' एवमणेगपयारं खामिति पासिऊण मुणिवसभो' । उवसंतो उवसग्गो त्ति पारए झाणमइपुनं ॥ पभणइ - 'सुसाविगे' ! मा बीहसु साहूण होइ न हु कोवो । सहयारपायवाओ न निंबगुलियाण उप्पत्ती ॥ किं च निसामेहि फुडं उवएसं वज्जरेमि जिणभणियं । जिणसाहुचेइयाई आसायंतो जणो मूढो || अजे महामोहं अनंतसंसारकारणं घोरं । जेण न पावइ अन्नं नारइतिरियाइदुरियाणं || हास जयं पि कम्मं वेयइ दुक्खेण कह वि रोयंतो । अन्नजणस्स वि विसए विसेसओ जिणमयवस || एक्कासि कए वि दोसे अणुहवइ जिओ असंखदुक्खाई । जिण साहुचेइयाणं पडणीओ होज मा कोइ ॥ जइ वि तुह नासि रो (दो १) सो तहा वि तुमए उवज्जियं पावं । इय [ पच्छ ] यापराऍ नवरं उवसामियं बहुयं ॥ तो हो इओ सुंदरि ! जिणमुणिभत्ता विसुद्धसम्मत्ता । झोसेसि जेण सवं पावं एवं पि अन्नं पि ॥' उप्पाइयसम्मत्तो सो साहू नम्मयाइ देवीए । काऊण धम्मलाभं चलिओ नियवंछियविहारं ॥ देवी संवेगपरा भवभमण भएण भावियसुभावा । सवं मुणिवरभणियं आयरइ जहट्टियं तुट्ठा ॥ पंथ परिभट्टाणं मग्गं दंसेइ समणसमणीणं । तक्करवरघाइभया सा रक्खर निच्च सन्निहिया || तण्हाछुहा[प. ३० A भिभूयं संघ द अविमज्झमि । निम्मे गोउलाई विउलाई भत्तपाणट्ठा ॥ ९१४ ९१५२० ९१९ ४ सुसावगे. ५ फयं. २ महि. नम० ११ १ महा. ३ 'वसभा. ८१ ९११ ९१२ ९१३ ९१६ 15 ९१७ ९१८ 25 ९२०३० ६ याउप ७ झाले सि. Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नम्मयासुंदरीए दिक्खागहणं । [९२१-९३३ चेइयन(ज)इपडणीयं उवसामइ देवसत्तिओ सवं । कुणइ जिणचेइएसुं तिकालं पूयमणुदियहं ॥ वेयावच्चं निच्चं वच्छल्लं तह समाणधम्माणं । कुवंतीए सावग! पुन्नं समुवजियं तीए । साहूवसग्गपभवं खवियं पावं पि ताव अइबहुयं । किंचि पुण सावसेसं न निट्ठियं चिक्कणत्तेण ॥ एत्थंतरम्मि आउक्खएण सा देवया चुया तत्तो। उववन्ना कुच्छीए एसा सहदेवघरणीए । जं नम्मयानई पइ पडिबंधो आसि तम्मि कालम्मि । तेणं चिय जणणीए जाया तम्मजणे सद्धा॥ एवं दुन्नि वि सावग! कयाइँ एयाए पुनपावाई। अइबलवंतं पुन्नं पावं पुण तारिसं नासि ॥ जेऊण आवयाओ मिलिया तुम्हाण पुन्नमाहप्पा । बलिएण दुब्बलो जं जिप्पइ तं किमिह चोजं [व?] ॥ ९२० पावं ति(वि) पुत्वभवियं इमीऍ जायं निकाइयत्तेण । जं वावियं सुपत्ते मज(हा ? )फलं होइ दाणिं च ॥ ९२८ [नम्मयासुंदरीए दिक्खागहणं] एवं च निसामिती सहस चिय नम्मया गया मोहं । जाया य समासत्था [चे]लंचलपवणसंगेण ॥ ९२९ भाणी य पणमिऊणं- 'भयवं ! तुम्भेहिँ सुट्ठ उवलद्धो।। निम्मलनाणच्छीए जहडिओ मज्झ वुत्तंतो ॥ केवलिजिणाण विरहे जुगप्पहाणेहिँ दाणि तुब्भेहिं । धा(धी?)रिजइ तत्थमणं संसयवोच्छेयदच्छेहिं ॥ ९३१ गुरुणा भन्नइ - 'सुन्नम्मि तम्मि व(र ?)न्ने सुंदरि! हिययम्मि आसि जे धरिया । तेसिं मणोरहाणं पत्थावो सुंदरो एसो ॥ ९३२ वियसंतवयणकमला वंदित्ता वयइ नम्मया- 'भयवं!। जह आणवेह तुब्भे वसइ [इमं माणसे मझं ॥ ९३३ 15 20 25 पावाए. २पमासत्था. Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ९३४-९४८ ] नमयासुंदरीका | ९४० सुगुरु' मग्गंती पत्तं तुह दंसणं मए सामि ! | अब्भुट्टियाऍ वय भारधरणबुद्धिं धरतीए ॥ आपुच्छिऊण जणए करेमि ता तुम्ह तुरियमाण त्ति ।' ret गुरू वि - 'अविग्धं मा पडिबंधं करेजासि' ॥' वज्जरइ गिहं पत्ता सर्व्वं चिय गुरुजणं विणयसारं । 'दिट्ठो नाणाइसओ सुहत्थिरिस्स तुम्भेहिं ॥ जं किंचि मज्झ अंगे मणवर्यकाएहिँ जहि जं रइयं । तं स चि नजइ समक्खमेयस्स संजायं ॥ अणुहूयबहुदुहाए सुमरियनियपुवजन्मकम्माएँ । ता एयपायमूले जुत्तं मे समणगुणधरणं ॥ ' पडिभणइ गुरुजणो तं - 'पुत्ति ! तुमं सुड वल्लहा अम्ह । किं तु तुह तम्मि वसणे अम्ह सिणेहेण किं सिहं १ ॥ सोऊण दुस्सहाई तुमए सोढाइँ दुक्खलक्खाई । मत्तं ( ? ) अम्हाणं पि हु पट्ट (च) इओ हंदि सधेसिं ॥ किं तु वयं गुरुकम्मा लतस ( न तरा ) मो दुद्धरं वयं धरिडं धन्ना य तुमं इक्का अंगीकाउं [ प. ३० B ] इमं महसि ॥ पवा][विज]हि वच्छे ! अम्हं पि य बोहणं करेजासि । भावियजिणवयणाणं वयग्रहणनिवारणमजुत्तं ॥' tय मुहियहिं दिक्खामहिमा गुरूहि पारद्धा । घोसाविया य अमरी कया य अट्ठाहिया महिमा || पडिलाभिया य विहिणा समणा समणी य फासुदवे हिं' । सम्माणिओ य सम्मं समाणधम्माण समुदाओ || दिन्नमवारियसत्तं मग्गणयगणस्स वड्ढिओ तोसो" । विहिया य विसेसेणं पूया नियसयणवग्गस्स ॥ सोहणदिणम्मि तत्तो न्हायालंकाररीरियावयवा । चलिया सिवियारूढा थुव्वंती" मह ( मागह) गणेण ॥ वज्रतगहिरतूर मंगलगीयाइँ दिसि दिसि सुणती । पत्ता वसहिसमीवं उत्तिन्ना [त]ओं [य] सिवियाओ ॥ होऊण रायचा [ ई ? ] काउं तिपयाहिणं" मुणिवईस्स । पभणति कयंजलिणा जणणीजणया मुणिगइंदं ॥ । ९४१ १ सुरं २ . गग्गंतीए. ३ जामि. ७ जिणतयणा'. ८ महरण'. ९ 'देव्वेहिं' १३ महित्तेस. ५४ °हिण. १५ 'वयस्स. ४ ° वइ. ५ कम्मगए. १० तासो. ११ 'लंकारेरी रिया'. ८३ ९३४ ९३५ ९३६ ९३७ ९३८1० ९३९ ९४२ ९४४ ९४३२० ९४५ ९४६ 5 ९४७ 15 ६ दुस्सहायं. १२ बुवंती. 25 ९४८३० Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नम्मयासुंदरीए दिक्खागहणं। [९४९-९६२ . 'भयवं! एसा अम्हं अइप्पिया नम्मया वरा धूया । संसारभउबिग्गा इच्छइ संजमभरं' वोढुं ।। एयं सीसिणिभिक्खं तं गेण्ह[ह] दिजमाणमम्हेहिं । तुम्ह सरणागयाए जं जुत्तमिमीए तं कुणह ॥ ९५० आह गुरूं- 'जुत्तमिणं धन्ना एसा पुरा सुकयपुन्ना । तुब्भे वि नूर्ण धन्ना जाण कुले वड्डिया एसा ॥ दिना य तो दिक्खा तीए पञ्चक्खमेव सयणाणं । जिणभासिएण विहिणा सुहत्थिनामेण मुणिवईणा ।। ९५२ अभिवंदिया य विहिणा तत्तो सयणेहिँ मुइयहियएहिं। दिन्नो आसीवाओ- 'नित्थारगपारगा होसु ॥ ९५३ देवगुरुपसायाओ संपुन्नमणोरहा तुम जाया । अम्हाण वि संपत्ती एरिसिया होज कइया वि ॥ ९५४ उववूहिऊण बहुसो पुणो पुणो वंदिऊण भत्तीए । वड्डियहरिसविसाओ सयणगणो पडिगओ गेहं ॥ ९५५ इयरी वि वसुमईए पवत्तिणीए समप्पिया गुरुणा । दुविहपयारं सिक्खं पगिन्हिया विणयनयनिउणा ॥ तूसइ सारिजंती अणुग्गहं मुणई वारिया संती । चोइजंती वि खरं न चेव पडिचोयणं कुणइ ॥ ९५७ दिवसेण वि जिट्ठाए विणीयवयणा करेइ सा विणयं । तवमाणगुणट्ठा(ड्डा?)णं गुरुबुद्धीए कुणइ किचं ।। ९५८ छट्टमाइरूवं तवइ तवं गुरुजणस्स आणाए । सोसेइ नियं देहं सुमरंती पुवदुक्खाई॥ ९५९ पत्ता(ना)इसया तुरियं अहिया[३] विजियदुजयपमाया । एक्कारस अंगाई पवित्तिणीए पसाएण ॥ ९६० भरभावियसुत्तत्था संतत्थाऽऽसवभवाण य दुहाणं । संजाया गुरुगोरवपयं विसेसेण समणीणं ॥ पावियसुहपरिणामा जा नम्मयसुंदरी तवं चरइ । एत्थंतरम्मि वसुमइपवत्तिणी [प. ३१ ० ] पाविया सग्गं ॥ ९६२ ९५६ 20 25 ९६१ १ गंजभसर. २ त. ३ °ममीए. ४ गुरु. ५ बुज्झे. ६ तूण. ७ वयणा. ८ मत्तो. ९ मुयहहि. १० जासी. ११ पगिम्हिया. १२ मुइणइ. Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10 [९६३-९७३ ] नमयासुंदरीकहा। [ नम्भयासुंदरीए पवत्तिणीपयठवणा] जोग्ग त्ति' जाणिऊणं ठविया गुरुणा पवत्तिणी एसा । जणयंती आणंदं समणीसंघस्स सयलस्स ॥ तो गुरुणाणुनाया साहुणिजणउचियउजय विहारा । गामनगरेसु विहरइ बोहंती धम्मिए लोए ॥ ९६४ सव्वत्थ निययचरियं सवित्थर साहिऊण संविग्गा । समणीण सावियाण य विसेसओ देइ उवएसं ॥ साहूसु साहुणीसु य- 'वयभंगमणं पि मा करेज्जासु । दुक्खेहि दारुणेहिं जइ ता पत्तेहिं न हु कजं ॥ अन्नाणमोहियाए पुत्वभवे मुणिवरो मए एगो । काउस्सग्गम्मि ठिओ खुब्भइ तवत(न य वत्ति कोडेण ॥ ९६७ उवसग्गिओ महप्पा खुभिओ मणयं पि नेव झाणाओ। बद्धं च मए पावं जस्स विवागो इमो जाओ। ९६८ वयपरिणामतवेहि किसियंगी सा चिरेण कालेण । तारिसिया संजाया सयणा वि जहा न लक्खंति ॥ ९६९1० जे आसि सिरे केसा अइकुडिलतरंगसच्छहच्छाया । ते कासकुसुमधवला विरल च्चिय केइ दीसंति ॥ आयंससमच्छाया आसि कवोला वि जे समुत्ताणा । तवसोसियदेहाए जाया खल्ला दढं ते वि ॥ सोमालमंग(स)लाओ अंगुलिओ आसि हत्थवाए । परिसुक्कक हवडिय व अन्नरूवं गया ताओ ॥ ९७२ सेयपडपाउयंगी तणुई थूलं व मुणइ न हि कोइ । सद्दो वि तारमहुरो न अन्नभावं गओ तीए ॥ ९७३ [नम्मयासुंदरीए कूवचन्द्रगामं पइ विहरणं ] इओ य जप्पभिई जाणिओ जणएहिं नम्मयापरिचागवुत्तो तप्पभिई चेव 25 अवहत्थिओ कूवचंद्रोदंतो । रिसिदत्ता वि अन्नायपुत्तावराहा न कोइ तत्ति करेइ त्ति माणेण न तेसिं वत्तमनिस्सइ । चिरस्स समागएण महेसरदत्तेण रुयमाणेण साहियं सयणाणं जहा- 'सुन्नदीवे रक्खसेण खइया मम दइया, अहं पि किच्छेण वारिवसहं सरिऊण पलाणो तेण जीविओ इन्हि ।' एयं ९७० 20 १ जोगच्छि. २ संत्रिगो. ३ सगुइ. पभियं. ५ जाणिउं. ६ °चंडोदंतो. Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नम्मयासुंदरीए कूवचन्द्रगामं पइ विहरणं । [९७४-९७७ ] सोऊण जाया सोआउरा रिसिदत्ता, रोयमाणी कहकह वि धीरविया सयणवग्गेण । तह वि तीए माणाइसएण न जाणाविओ एस वइयरो जणयगिहे । महेसरदत्तो वि कयकलत्तंतरसंगहो अपरिचत्तंसावगधम्मो नम्मयासुंदरिकारियचेइए पूयणवंदणाइ कुणमाणो चेट्टइ । परोप्परगमणागमणीभावाओ कूवचंद्रे नयरे न केणावि विनायं नम्मयासुंदरीए आगमणं' पञ्चयणं वा । एवं च काले वच्चमाणे अन्नया पवत्तिणीए सामच्छियाओ साहुणीओ- 'जइ भे रोयई ता कूवचंद्रेण विहारं करेमो ।' ताहिं भणियं - 'भयवई पमाणं ।' 'तो खाई तुम्मे तत्थ गयाओ मम नाम मा [प. ३१ । ] कहेअर्ह, “पवत्तिणी पवत्तिणी" वा अहं भाणियवा जओ अन्नायउंच्छमे( से ? )वाए मे वन्नेह किं नामविक्क10 एणं ?" तओ 'जमाणवेहि' त्ति परिवारेण वुत्ते सुहविहारेण पत्ता तत्थ । दट्ठण वंदियाओ महेसरदत्तेण, दिन्नो नियगिहास[न्ने] उवस्सओ । ठियाओ तत्थ वंदियाओ भत्तिसारं । रिसिदत्ताए दंसियाई चेइयाई, कयमुकंठियाए पवत्तिणीए विसेसेण वंदणं । विहिया विहाणेण धम्मदेसणा, आणंदिओ सावियावग्गो । एवमन्नायचरियाए विहरमाणीओ सज्झायंतीओ चेट्ठति । तत्थ 15 महेसरदत्तो वि तासिं किरियाकलावाणुरंजियमणो तासि सज्झायझुणिमेगचित्तो निसामेइ, विसेसओ पवत्तिणीए । चिंतई 'नम्मयसुंदरिसरिच्छो एसँ [स]दो । नूणमेसा तीसे माउच्छा माउच्छीदुहि[या] वा भविस्सइ । कहमनहा सद्दसमाणत्तं?' ति । अनया कयाइ पवत्तिणी" महुरवाणीए सरमंडलपगरणं परावत्तिउं पवत्ता । अवि य 'सो जयउ जिणवरिंदो जस्स मुहा म(पु)न्नचंदविंबाओ । जरमरणवाहिहरणं सिद्धंतमहामयं झरियं । ९७४ जयइ सरमंडलं तं जेणिह पढिएण बुद्धिमन्तेहिं । पुरिसाण महेलाण य गुणा य दोसा य नजंति ॥ सत्त सरा पन्नत्ता सज्जो रिसहो तहेव गंधारो। मज्झिम पंचम रेवय नेसाओ सत्तमो होइ॥ ९७६ सत्त [स]रहाणाई तत्थ य सजं तु अग्गजीहाए । रिसभं उरेण कण्ठेणं तइययं नीसवेइ सरं ।। ९७७ 25 १°चत्ता'. २ गमणीभा'. ३ आगमण, ४ रोवह. ५ भयवइ. ७ वत्तिणी. ८ भन्नायं. ९ वंसियाई. १० एवं'. ११ विरहमा'. १३ चिंतय, १४ पस. १५ वत्तिणी. १६ साजा. १७ मजं. १८ कण्हेण. ६ कहेजहा. १२ °सुणि. Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ९७८-९९२ ] नमयासुंदरीका | झिजहाए मज्झिमं तु नासाऍ पंचमं जाण । रेवय दंतो वह भमुहखे दे (वे) सायं ॥ सरवर मयूरो रिसहं पुण कुक्कुडो सरं* रवइ । हंसो गंधारसरं मज्झं तु गवेलया रवइ || पंचमयं परपुट्ठा छटुं पुण सारसा य कुंचा य । सत्तमयं तु गयंदा सत्तसरा जीवनिस्साओ || सजं वह मुहंगो गोमुह रिसहं च नदइ गंभीरं । संखो विय गंधारं मज्झिमयं झल्लरी रसइ ॥ चउचरणगोहिया पंचमं तु आडंबरो य रेवययं । सत्तमयं पुण भेरी भणिया अजीवनिस्साओ || सण सुहपवित्ती बहुपुत्तो वल्लो' य जुवईणं । रिसणं धणवंतो भणिओ सेणावई चेव || विविधण रयणभागी भणिओ गंधपिओ य गंधारे । पक्खिण कवी व य एयम्मि सरे समक्खाओ || मज्झिमसरप्पलावी सुहजीवी बहुधणो य दाया य । पंचमसर मंता पुण पुह [ई] वई हुंति सूराय || छट्ठे कुच्छिवित्ती कुवसणकुभोयणा कुजोणीया । कलहकरलेहवाहयदुहजीवां सत्तमे भणिया || पईकसिणोस अवस्स भावेइ जइ वि य समत्तं । असमत्तेessकालो गुज्झम्मि य लक्खणं रत्तं ॥ रिसहं मरगयगोरो [प. ३२ 4 ] अवस्स भावेइ परमगोरो वा । ते य सिरम्मिं तस्स य विवरीयं लक्खणं भवइ ॥ धवल गंधारसरं अवस्स भावेइ किंचि भावेण । तेय तं विवरीयं दाहिणओ लक्खणं होइ ॥ कणय हो मज्झिमयं अवस्स भावेइ जइ वि न विस ( सम ? ) त्तं | 25 तेण उदरम्मि बिंबं तविवरीयं वियाणेजा || आलोहियधवलवन्नो अवस्स भावेइ पंचमं सो उ । होय सिरम्मि पिप्पो पंकयदलसप्पभो तस्स ॥ छ कंबोय वडू (?) अवस्स भावेइ चित्तवन्नो य । तेणावि रत्तवन्नो अवस्स लिंगे मसो होइ ॥ ९८७ 20 ९८८ ९८९ ९९० १ तज्झिम. ८ कुतोयण ९ २ सज्झिमं. ३ ठवहं. ४ इसंर. ५ तलहो, ६ वद्द. जीव. १० मिरम्मि. ८७ ९७८ ९७९ ९८० ९८१ 5 ९८२10 ९८३ ९८४ ९८५ ९८६ ९९१ 15 ९९२३० ७ कुच्छीय.. Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८८ 5 10 15 20 25 १ कोहग्ग. महेसरदत्तकयपच्छायावो । [ ९९३-१००६ ] सत्तमयं सुद्ध ( ह ? )सामो पढमतिवन्नो य कुणइ नियतीए । ताण य रुक्खविरुक्खा होंति मसा चलणदेसेसु ॥' २ आन्नासु. [ महेसरदत्तकय पच्छायावो ] ९९८ एयं च पढिजंतं सवं आसन्नसंठिओडवहिओ । सुणइ महेसरदत्तो चिंतेई तो मणेणेवं ॥ 'आसि मए सुपुवं एसा सरमंडलं वियाणेड़ । सिड्डुं च तीय अहयं जाणामि जिणागमपसाया || कोर्हग्गियंगमवंफिस्स पसयलसन्नस्स । सुइगोयरं न पत्तं पडिभग्ग समग्गभग्गस्स || पहुट्टो गुणनिवहो असंतदोसा पट्टिया चित्ते । धुत्तूरियहिययस्स व विवरीया घाउणो जाया ॥ raat तीय गुणो दीसह अन्नासुं नेव नारीओ (सु) । अप्पा हु अप्पण चिय हा ! मुट्ठो दुट्ठचित्तेण || सो तारिओ विणओ सि (ति) बिय महुरक्खरा समुल्लावा । कत्थ मए लहियवा दूरीकय भागधेजेणं ॥ हा हा ! पाविडो हं जेण तहा भीसणम्मि दीवम्मि । गागणी अणाहा मुक्का निक्करुणचित्तेण ॥ महविरह भीरुहियया मए समं पन्थिया किर वराई । सो मे कओ महंतो ही सरणाओ भयं जायं ॥ ' एवं विचितयंतो संभरियासमसिणेहसम्भावो । सहस त्ति मेइणीए मुच्छाविहलंघलो पडिओ ॥ तक्खणमिलिएहिं संबंधवेहिं सहस त्ति सिसिरनीरेण । जलसिंचणपवणाओ किच्छेष सचेयणो होउं ॥ वारं वारं हत्थं गच्छ मुच्छं नियच्छमाणाणं । नीसेससजणाणं हाहारवभरियभवणाणं || नाइक्खर नियदुक्खं पुच्छंताणं पि निद्वबंधूणं । मोणवणं चेह एवं हिययम्मि झायंती || 'अप्पा हु अपण वय लज्जइ सरिएहिँ जेहिँ कम्मेहिं । कह ताणि बंधवाणं पुरओ तीरंति अक्खाउं ||' १००५ १००६ ३ 'जाग'. ४ निक्करण. ५ सगं. ९९३ ६ वराई. ९९४ ९९५ ९९६ ९९७ ९९९ १००० १००१ १००२ १००३ १००४ Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१००७-१०२१] नम्मयासुंदरीकहा। वाहरिया य सवेगं संपत्ता तो पवत्तिणी भणइ । 'किमियमयंडे चंड' सावग! वसणं समुप्पन्नं ॥ १००७ काऊण य एगंतं पभणइ - 'भयवइ ! उवढियं मरणं । देहि पसायं काउं पजंतालोयणं मज्झ ॥ १००८ [वो]त्तुमजुत्तं अन्नस्स जं पुरो निययदुक्कयमण। । तं पि गुरू[ प. ३२ B]णं नियमा साहिजइ भरणसमयम्मि ॥ १००९ इय भणियम्मि निसन्ना पवत्तिणी साहियं तओ तेण । सयल जहट्टियं जाव नम्मया उज्झिया सुत्ता ॥ 'सरमंडलसज्झायं अज सुणंतस्स मज्झ संभरियं । सा वि पढंती एवं विनायं तेण तं चिंधं ॥ १०११10 अजे ! जाणामि अहं असमिक्खिययारओ महापावो। दुक्कडमिणं सरंतो पाणे धरिलं न याएमि ॥ १०१२ ता देहि अणसणं मे कन्नेसु जवेसु जिणनमोक्कारं । . मा तुज्झ पसायाओ पाविज पुणो वि जिणधम्मं ॥ १०१३ भणई पवत्तिणी तो- 'बालुल्लावेहिँ सावग ! इमेहिं । 15 सिज्झइ न किंचि कर्ज परमत्थवियारणं कुणसु॥ १०१४ न हि मरणमित्तसज्झं एयं तुह संतियं महापावं । सुज्झइ नियमा तवसंजमेहिँ जिणवीरभणिएहिं ॥ १०१५ अन्नं चनूणं पुराणमसुहं कम्ममुइन्नं तया तुह पियाए । 20 तवसओ से नूणं समुट्टिओऽलिंजरे अग्गी ॥ पंडिय! सुसिक्खिओ तं गुरुजणउवएससा(भा ?)वियमणो हं(य)। नूणं तीए कम्मेहिं चोइओ निदओ जाओ। किं बहुणा भो सावग ! उच्वेयं मा करेसु तसिए। दुकयसुकयं च निययं भोत्तवं सबजीवेहिं ।' १०१८25 भणइ महेसरदत्तो- 'भगवइ ! तं भणसि अवितहं सर्व ।। तह वि न तरामि धरित्रं पाणे तीए अदिवाए ॥ १०१९ विनायनिच्छया तो ईसि हसंती पवित्तिणी भणइ ।। 'उवलक्खेसि न दिटुं तहावि तुह इत्तिओ नेहो ॥ १०२० नणु होमि नम्मया हं न मया निरुवकमाउया नूणं । सावय ! तुज्झ पसाया सामन्नसिरी मए पत्ता ॥ १०२१ १चंडे. २ मणज्जा. ३ °धारओ. ४ पखायाओ. ५ भणइ. ६ नहि. नम० १२ 30 Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महेसरदत्तक यपच्छायावो। [१०२२-१०२९ तुमए अणुज्झियाए कुडंबवावारवावडमणाए । को जाणइ होज न वा दुलहा जिणभणियपवजा ॥ १०२ तओ एवं सुणमाणो' महेसरदत्तो असंभवं संभव [ति] त्ति विम्हिओ, एस सा जीवई त्ति हरिसिओ, कहमेयाएं मुहं दंसेमि त्ति लजिओ, सुदरं वयम 5 णुपालेइ त्ति नियमणो, एवं संकिन्नरसमणुहवंतो महियलनिहित्तजाणुपाणि भालवट्ठो पणमिऊण भणिउमारद्धो- 'तुह सज्झाय[माय नमाणस्स ठियं मम मणे एरिसो नजइ नम्मयसुंदरिसदो, किं तु नियदुच्चेट्टियवससंभावियावस्स मरणस्स पणट्ठा जीवियसंभावणा, तो सुट्ट कयं जमज मरमाणस्स जीविर दिन्नं, खमाहि य मे पाविजिट्ठस्स दुदृचिट्टियं ।' एवं पुणो पुणो पणामपुहं 10 खामिंतो भणिओ पवत्तिणीए- 'सावय ! कुओ भावियजिणागमतत्ताणं अखमा संभवो । तइया वि मएँ सकम्मफलमेव संभावियं, कहियं च मे भगवय सुहत्थिररिणा तस्स दुरंतवसणस्स कारणं । ता मा विचित्तो भवाहि ।' पुणरवि महेसरदत्तण भणिया- 'साहेह मे अणुग्गहं काऊ प. ३३ A ]ण मए विमुक्काए तुमए केरिसं दुक्खमणुभूयं ? कहं वा तओ दीवाओ समुद्दाओ वा 15 निक्खंता सि त्ति। वुत्तं पवित्तिणीए -- 'मासेहिं सत्त संठिया तत्थ । रुन्नाइँ पलवियाई कित्तियमेत्ताइँ सुमरामि ॥ १०२३ अह कह वि दिवजोगा संपत्तो मज्झ पित्तिओ तत्थ । तेण य पयाणुसारा गवेसमाणेण दिट्ठा हं॥ १०२४ इच्चाइ सवुत्तो रिसिदत्तापमुहपरियणजुयस्स ।। सिट्ठो पवत्तिणीए जा पत्ता कूवचंद्रमि ॥ १०२५ सोऊण सद्धलोगो जाओ दुक्खाउरो दढं तत्थ । रिसिदत्ता वि परुना गणणीकंठग्गहं काउं । १०२६ झ त्ति महेसरदत्ते पडिया सयणाण नीरसा दिट्ठी । लज्जोणामियसीसो सो वि ठिओ गरुयअणुतावो॥ १०२७ वजरइ तओ अज्जा -- 'सवे जीवा सहति दुक्खाई। पुत्वजियपाववसा निमित्तमित्तं पुणो बझं" ॥ १०२८ जरसीसवेयणाओ भवंति जीवस्स पुवकम्मेहिं । अब्भक्खाणं [ ......." ] वन्माणं तेलमाईणं ॥ १०२९ १ सुणगाणो. २ जीवमइ. ३ 'मेया २. ४ दंसेगि. ५ निव्वुयामगो. ६ सए. ७ विचित्ते. ८ साहेहे. ९ °साराओ. १० रिसिदत्ता २ मुह. ११ परियणु. १२ कव. चंद्रगम्मि. १३ दुक्खाओरो. १४ यरुयन्ना. १५ वझं. 20 Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ १०३० - १०४४ ] नमयासुंदरी कहा | जायइ धस्स नासो जणस्स पुवंतराय दोसाओ । तेण परिंदाईणं रूसइ लोगो मुहा सवो || अन्नाणंधा जीवा करेंति कूराइँ ताइँ कम्माई | नासंतरुयंतस्स व अणुमग्गं जाइँ धावंति ॥ भो भो ! महाणुभावो वीरजिविंदस्स सासणे लीणा । काऊण समणधम्मं दुक्खाण जलंजलिं देह ||' पभणइ महेसरो तं - 'जं पत्तं बब्बरे तुमे दुक्खं । तं सोउं पि न सको किं पुण सोढुं जणो अन्नो ॥ तस्स वि अहं निमित्तं हा ! धिद्धी निग्विणो महापावो । पाविज किं कयाई सोहिं बोहिं च जिणधम्मे ॥' पण पवत्तिणी तं - ' वारं वारं किमेवमुल्लवसि १ । नत्थ असझं किंचि वि सावग ! जिणभणियदिक्खाए ।। १०३५ सुबइ दढप्पहारी चोरो अचंतकूरकम्मो वि । सामन्नाओ पत्त सुद्धिं सिद्धिं च सुक्रयाओ ॥ १०३३ १०३४ 10 १०३६ १०३७ ही सुहत्थरी निम्मलसुयनाणलोयणो एत्थ | नीसेस पाणिपरिणाम जाणओ तस्समीवम्मि ॥ आलोइऊण पावं पालिज्जसु निम्मलं समणधम्मं । सोहिउवाओ एसो मा धरसु मणम्मि संदेहं ॥ भुता तुम भोगा मुणियं संसारवासने गुन्नं' । भुते पत्तलिचाओ संपइ गिहवासचाओ ते ||' रिसिदत्ता विरुयंती वृत्ता - 'जइ वल्लहा अहं अंबे ! | लग्ग ममाणुमग्गं मग्गे वाणनयरस्स || अन्नह रुन्नं सुन्नं नेहो वि हु कित्तिमो व पडिहार | जलमिवसइ लोगो सद्धिं खलु वल्लहजणेणं ॥ तुम्हाणमेव बोहणनिमित्तमहमागया इह पुरम्मि । yas सत्थे जओ इ धम्मम्मि जोइजा ||' नम्म पवत्तिणी पवत्तियाई दुवे वि वयगहणे । सोच्चि सच्चो मित्तो जो पावाओ नियत्तेइ ॥ [ सुहत्थिरिया धम्मदेसणा इत्थंतरम्मि पत्तो सुहत्थिसू प. ३३ ]री महामुणी तत्थ । आवासिओ य रम्मे उज्जाणे नंदणवणम्मि || २ भावो. ३ गुत्तं. ४ लमासु. ५] सिद्धि. १ सुहा. ९१ १०३० १०३१ १०३२ १०३८ १०४० १०३९ २० १०४१ १०४२ १०४३ 5 १०४४ 15 25 30 Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुहत्थिसूरिकया धम्मदेसणा। [१०४५-१०५८ ] जाओ नयराणंदो पए पए मन्नए जणसमूहो । नूणं इमम्मि नयरे कल्लाणमुवट्ठियं किं पि॥ १०४५ जं एसो सुरमहिओ संपइरायस्स वल्लहो भयवं । संपत्तो अञ्ज इहं जणकइरवसंडनिसिनाहो ॥ १०४६ रायाइ नमोसो नियपयउचिएणे सयलविहवेण । अभिवंदिउं मुणिंदं निक्खंतो झ ति नयराओ॥ १०४७ अभिवंदिऊण विहिणा मुणिनाह साहेसत्थपरियरियं । उवविट्ठो सयलजणो नियनियउचिएसु ठाणेसु ॥ १०४८ पारद्धा धम्मकहा नवजलहरगहिरमहुरसद्देण ।। सवेसि सत्ताणं अणुग्गहत्थं अइमहत्था ॥ १०४९ 'माणुस्स कम्मभूमी आरियदेसो कुलम्मि उप्पत्ती । रूवं बलमारोगं(ग्गं) सुदीहरं आउयं बुद्धी ॥ १०५० सुहगुरुजोगो बोही सङ्घा चारित्तधम्मपडिवत्ती। दुक्खेण जए लब्भइ एसा कल्लाणरिंछोली ॥ १०५१ एगिंदिया अणंता मरिउं मरिउं पुणो वि तत्थेव । उववजंति वराया कालमणंतं सकम्मेहिं ॥ १०५२ उच्चट्टिऊण विरला बियतियचउरिदिएसु गच्छंति । तत्थ य पुणो पुणो वि य मरंति जायंति बहुकालं ॥ १०५३ पंचिंदिया वि होउं जलथलयरखयरविविहजोणीसु । चिटुंति चिरं कालं जंति पुणो पुरिसजोणीसु ॥ १०५४ विरला केइ नरत्तं लहंति तत्थ वि अणारिया बहवे । तत्तो वि हु विरलाणं आरियदेसे हवइ जम्मो ॥ १०५५ आरियदेसे वि ठिओ धीवरचंडाललुद्धयाईसु । कुच्छियकुलेसु जाया नाम न मुणंति धम्मस्स ॥ १०५६ उत्तमकुलेसु जाया काला कुंटा य पंगुला अंधा। जीवा अणिहरूवा दिक्खं न लहंति जिणभणियं ॥ १०५७ तवसंजमबलवियला धम्मं न कुणंति रूवकलिया वि । बलवंताण वि रोगाउराण धम्मे कओ सत्ती ?॥ १०५८ १ दलहो. २ ओविएण. ३ भयलविहतेण. ४ नाहो. ५ माहु. ६ °दोसा. ७ बोहा. ८ सुधा. ९ एगंदिया. १० उवहिऊण. ११ विय. १२ पंचंदिया. १३ चीवर'. १४ पुंगुला. 15 Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 16 [१०५९-१०७३] नम्मयासुंदरीकहा । सवगुणसंगया वि हु बालत्ते केइ जंति पंचत्तं । अन्ने नवतारुन्ने तेसिं पि हु दुल्लहो धम्मो ॥ १०५९ चिरजीवीण वि बुद्धी धम्मे विरलाण होइ केसिंचि । गुरुसंपओगविरहा बहूण न हु साफलं होइ॥ १०६० धम्मे मई कुणंता अन्नाणपासंडिगोयरावडिया । भामिजंति अणेगे जह चक्कं कुंभयारेण ॥ १०६१ कारिजंति अधम्मं बाला धुत्तेहिं धम्मबुद्धीए । भोइज्जंति विसन्नं नूणं चिरजीवियनिमित्तं ॥ १०६२ गुरुणा वि कहिजंते धम्मे बोहिं न केइ पार्वति । चिक्कणनाणावरणस्स कम्मणो हंदि उदएण ॥ १०६३ 10 बुद्धे वि धम्मरूवे न सदहाणं बहूण संभवइ । मिच्छत्तमोहणिजे तिचे उदयम्मि संपत्ते ॥ १०६४ सद्दहमाणा वि नरा धम्मं जिणदेसियं विगयसंग । न कुणंति समणधम्मं [प. ३४ A] गिद्धा गिहदेसविसएसु ॥१०६५ दुलहं गुणसंदोहं लद्धं पि हु ते पमायदोसेण । हारिति मंदभग्गा धमियं कणयं व फुकाए ॥ १०६६ जह सागरम्मि पडिओ कीलयकज्जेण भिंदई नावं । इय विसयकए जीवो हारइ पत्तं पि सामग्गि ॥ १०६७ जह कोदवाण छित्ते छित्तुं कप्पूरतरुवरसमूहं । वाडी करेइ एवं भोगत्थी चयइ जो धम्मं ॥ कहकह वि दुक्खपत्तं कप्पतरूं कोई पत्थइ बोरे । पत्ते पुवगुणोहे एवं विसएसु जो रमइ ॥ १०६९ अत्थो अणत्थमूलं बंधुजणो बंधणं विसं विसया। पसमसुहामयभारओ संजमरयणायरो एगो ॥ १०७० जरमरणवारिपूरे विओगरोगाइगाहगहणम्मि । मा पडह भवसमुद्दे चरित्तपोयं समारुहह ॥' १०७१ देसणमिमं सुणित्ता संबुद्धा तत्थ पाणिणो बहवे । संसारभउबिग्गा जाया समणा समियमोहा ॥ १०७२ [ महेसरदत्तस्स जणणीसहियस्स चरणपडिवत्ती] सो वि महेसरदत्तो संपावियभावचरणपरिणामो । 30 आलोइयदुचरिओ जणणीसहिओ ठिओ चरणे ॥ १०७३ १ पंपत्ती. २ मयं. ३ जीवीय'. ४ कम्मुणो, ५ आदएण. ६ कंजेण, ७ पोह. १०६८20 25 Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 15 महेसरदत्तस्स जणणीसहियस्स चरणपडिवत्ती। [१०७४-१०८८] संजाया कयकिच्चा पवत्तिणी णाणचरणलाभेण । संवेगमावियाई तिन्नि वि तप्पंति तवमुग्गं ।। १०७४ छट्ठाओ अट्टमाओ तह य दसमओ मासओ अद्वमासा अंतं पंतं [च रुक्खं ] तणुजवणकए किं पि भुंजंति भत्तं । सीयं उन्हं च तन्हं खुहमवि बहुसो भावसारं सहते सोसेउं पावपंकं गुरुपयकमले भिंगरूवं वहंता ॥ १०७५ अट्टेण रुद्देण य दूरियाई धम्मेण सुक्केण य संजुयाई ।। सुत्तेण अत्थेण य ताणि नूणं भावेंति अप्पाणमहोनिसिं पि॥ १०७६ एवं विहरंताई कयाइँ पत्ता नम्मयपुरम्मि । परितुट्ठो बंधुजणो सबो भणिउं समाढत्तो ॥ १०७७ 'धन्नाई पुन्नाई तुब्भे तुम्हाण जीवियं सहलं ।। सामन्नमणन्नसमं जाई पालेह एयं ति ॥ १०७८ अम्ह कुले जायाणं जुत्तं एवंविहं अणुढाणं । सयलो वि अम्ह वंसो अलंकिओ नूण तुम्भेहिं ॥ १०७९ अइधन्ना सि पवत्तिणि ! रिसिदत्ता ठाविया जओ तुमए । पुवं सावगधम्मे इन्हिं पुण दुक्करे चरणे ।' १०८० एवमुववृहिया वंदिया य सयणेहिँ हट्टतुटेहिं । सेसो वि नयरलोगो जाओ तदंसणे मुइओ ॥ १०८१ तीए तत्थ ठियाए जाओ धम्मुञ्जओ सयललोगो। पचाविओ य विहिणा सयणजणो सेसलोगो वि ॥ १०८२ ता जत्थ जत्थ विहरइ सूभगआएजकम्मजोगेण । पडिबोहइ भवजणं कुमुयज(व)णं चंदलेह व ।। १०८३ पावेइ केइ चरणं अन्ने ठावेइ देशविग्यम्मि । गाहेइ केइ सम्म उप्पायइ बोहिबीयाई ॥ सासगमुब्भासंती विहरइ सा जत्थ जत्थ देसम्मि । जायइ लोगो गुणगहणवावडो तत्थ सवत्थ [ प. ३४ । ] ॥१०८५ अह अन्नया कयाई एगारसअंगधारिणी होउं । तवनियमसोसियंगी रिसिदत्ता गुरुअणुन्नाया ॥ १०८६ आलोइयपडिकंता सम्म संघस्स खामणं काउं। भत्तपरिन्नपइन्नामंदरसिहरं समारूढा ॥ १०८७ चउसरणगमणवु(दु?)कडगरिहासुकडाण(णु)मोयणं काउं ।। झायंती य सुणंती पंचनमोकारमविरामं ॥ १०८८ 1 °सार. २ 'रूत्र. ३ धनायं. ५ पुनायं. ५ संता. 20 १०८४ 25 Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१०८९-११०३ नम्मयासुंदरीकहा। १०८९ १०९० १०९१ १०९२ १०९३ 10 १०९४ १०९५15 असुइवसमंससोणियचम्मट्टिण्हारुवारवीभत्थं । मोत्तण तणुं तणमिव उववन्नो मासभत्तंते ॥ कप्पे सणंकुमारे अइसयरमणेञ्जसुरविमाणम्मि । सुरविसरकयाणंदो सुरिंदसामाणिओ देवो ॥ कडयमणिमउडकुंडलतुडियाभरणेहि भूसियावयवो । हारहारवत्थो(च्छो) दीहररेहंतवणमालो ॥ विनायपुत्वजम्मो काउं सवाइँ देवकिच्चाई। अच्छरगणमज्झगओ विलसइ एगंतसच्छंदो ॥ एव महेसरदत्तो साहू साहूण सनिहाणेण । भत्तपरिन्नाणसणं काअणाराहिऊणं तो ॥ तत्थेव देवलोए सुरवइसामाणियत्तमणुपत्तो। अवगयचारित्तफलो विलसइ सम्मत्तथिरचित्तो॥ [नम्मयासुंदरिए सग्गगमणं] कालेण कालकालं पवत्तिणी नम्मया वि नाऊण । उच्चरियसबसल्ला सयलं संघ खमावित्ता । समणीण सावियाण य विसेसओ वागरेइ उवएसं । 'आसायणं मुणीणं मगसा वि हु मा करेजाह ॥ जो हीलइ साहुजणं स हीलणिजो भवे भवे होइ। अकोसंतो वहबंधणाइ पावेइ पइजम्मं ॥ जो पुण देइ पहारं समत्तजियबंधवाण साहूण । वजग्गिघोरजालावलीसु सो पञ्चए नरए ॥ तत्थेव अत्थहाणी होइ मुणीणं अवन्नवायाओ। इट्ठजणविप्पओगो [अ]कालमरणं च जीवाणं ॥ अहव असज्झो देहे संजायइ कोइ दारुणो वाही । हसिया वि रोवियवे होंति निमित्तं न संदेहो ।' एवं भणिऊण फुडं कहेइ नीसेसमप्पणो चरियं । जेण निसुएण जाओ संवेगो समणसड्ढीणं ॥ ताहे मतपरिवं सम्म पालेइ मासपरिमाणं । जीवियमरणासंसप्पओगपरिवजियमईया ॥ चइऊण तणुकरंकं पत्ता तत्थेव तइयकप्पम्मि । सुरनाहसमाण परियरआयप्पमायोहिं ।। १ द्वियाहारु. २ °चिर'. ३ °सल्लो. ४ दाणी. १०९६ 20 १०९८ १०९९ ११०० 25 ११०१ ११०२ 30 ११०३ Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९६ नम्मयासुंदरीए सग्गगमणं । [ ११०४ - १११७] तियसमहुयरालीलीढे पायारविंदो मणिकणयविचित्ता कल्लसंपत्तसो हो । पणयतियसरामारामणाखित्तचित्तो न हि मुणइ स कालं जंतमच्चंत दीहं ॥ ११०४ गीयं गंधवियाणं सुइहजणयं नूण तालाणुविद्धं न देवगणाणं नयणमणहरं अंगहाराभिरामं । 5 गंध कप्पू प. ३५]पारीपरिमलवहलो घाणसंतोसकारी फासो देवदेवी तणुसमणुगओ देहसोक्खस्स हेऊ ॥ सोक्खं एवं पयारं ते संवेयंता निरंतरं । सत्तसागरमाणं ते कालं पालितु आउयं ॥ तत्तो चहत्ता सुहसेसजुत्ता कुले पहाणम्मि महाविदेहे । 10 अणुत्तरे साहुगुणे धरित्ता जाहिंति मोक्खं धुयकम्मको || चरियमणहमेयं नम्मयासुंदरीए अबुहजणहियत्थं पायडत्थं पसत्थं । भणियम सुहबुद्धीनासणत्थं जणाणं परहियर सिएहिं संतिसू रिप्पहूहिं || धम्मका पुण एसा जम्हा इह साहिओ इमो धम्मो । सम्मत्ते जयवं सिवसुहसंपत्ति उम्मि || वयभंगस्स निमित्तं उवसग्गो नो मुणीण कायवो । पालय सीलं पाणच्चाए वि जत्तेण ॥ चऊण हवासं काय जमो सुपरिसुद्धो । नम्मय सुंदरिचरियं निरंतरं संभरंतेहिं || विविपयसंपयाए कहाइ जइ किंचि ऊणमहियं वा । भणियं पमायओ वा न संसओ तत्थ कायवो ॥ एसा य कहा कहिया महिंदसूरीहिं निययँसीसेहिं । अब्भथिएहि न उणो' पंडिच्चपयडणनिमित्तं ॥ जो लिहइ जो लिहावइ वाएइ कहेइ सुणइ वा सम्मं । तेसिं पवयणदेवी करेउ रक्खं पयत्तेण || 15 20 25 30 संति करे संती संतियरो सयलजीवलोयस्स । तह भसंतिजक्खो कयरक्खो समणसंघस्स ॥ निम्माया एस कहा विक्कमसंवच्छरे वइकंते । एक्कारसहिं सएहिं सत्तासीएहिँ वरिसाणं || आसोया सियएगारसीए वारम्मि दिवसनाहस्स । लिहिया पढमायरिसे मुणिणा गणि सीलचंदेण ॥ ॥ श्रीः ॥ इति नर्मदा सुन्दरीकथा समाप्ता ॥ ॥ ग्रंथाग्रं १७५० ॥ ४ मियय. ५ उणे. १ 'लीढे', २° गुणाण, ३ कोस. ६ संती. ११०५ ११०६ ११०७ ११०८ ११०९ १११० ११११ १११२ १११३ १११४ १११५ १११६ १११७ Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरीदेवचंदसूरिकया नम्मयासुंदरीकहा (मूलशुद्धिप्रकरणवृत्त्यन्तर्ग्रथिता) एत्थेव जंधुदीवे दीवे भरहद्धमज्झखंडम्मि । अस्थि गुणोहनिहाणं वरनयरं वद्धमाणं ति ॥ तस्स पहू सिरिमोरियवंसप्पभवो कुणालअंगरुहो। तिक्खंडपहईसामी अस्थि निवो संपई नाम ॥ अन्नो वि तत्थ नीसेसगुणमओ उसभसेणसत्थाहो । अस्थि जिणधम्मनिरओ वीरमई तस्स वरभजा ॥ तीसे य दुणि पुत्ता सहृदेवो तह य वीरदासो' त्ति । रिसिदत्ता वि यं धूया पभूयनारायणपहाणा ॥ तीसे य रूवजोवणलुद्धा वरया अयंति रिद्धिजुया । न य देइ ताणं जणओ मिच्छादिहि त्ति काऊण ॥ भणई - 'दरिद्दजुओ वि हु रूवविहीणो वि जिणवरमयम्मि । जो होही निकंपो दायबा तस्स मे एसा ॥ एवं" सुणिय पइण्णं" समागओ कूववंद्रनयराओ । नामेण रुद्ददत्तो महेसरो तत्थ सत्थेण ॥ अह संकामिय भंडं नियमित्तकुबेरदत्तगेहम्मि । तबीहीऍ निविट्ठो जावऽच्छइ ताव नयरपहे ॥ निययसहीयणजुत्तं निग्गच्छंत निएइ रिसिदत्तं । 20 तं दट्टणं एसो विद्धो मयणस्स बाणेहिं ॥ 'का मित्त ! इमा कण्णा ?" पुढे सो कहइ तस्सरुवं तु । तत्तो तल्लोहेणं गच्छइ सो सूरिपासम्मि । दीवे. २ . गुणोहनिवासं. A B गुणेहनिहाणं. C D गुणाण निवासं. ३ . उभरहसामी. ४ - दुनि. ५. दासु त्ति. ६. दत्ता वरधूया. ७ ८ जुब्वण. ८ अइंति. ९. नयरिह ताणं. १.A B मिच्छावाइ त्ति११, पभणइ. १२ विहणो. १३. निकंप्पो. १४ A B एयं. १५६ मुणिय पईवं. १६ L कूवचंद. १७ L तद्धीहीए निमित्तोविट्ठो. A B निम्विट्ठो. १८८ मयरमहे. १९ ८ नियच्छंती. २० । कना. नम० १३ ६15 Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९८ 10 15 20 सिरीदेव चंद सूरिकया जाओ य कवडसड्डो जिणगुरुपूयाइएस बहुदवं । वियर, अहवा पुरिसो रागंधो किं च न हु कुजा ॥ तो दडुं तच्चरियं अचंत्थं रंजिओ उसभसेणो । यमेव देणं' वीवाहं कुणइ रिद्धी ॥ भुंजतो वरभोए चिट्ठइ जा तत्थ रुददत्तो सो । पिउणा से लेहो आहवणत्थं तु पट्ठविओ ॥ तन्भावत्थं नाउँ ससुराओ मोइऊण अप्पाणं । रिसिदत्ताएँ 'सहिओ संपत्तो कूवम्मि || अभिनंदिओ पिइ - माईएहिँ चिट्ठइ तहिं सुहेण सो । कवडगहिय त्ति दूरं दूरेणं मुयइ जिणधम्मं || रिसिदत्ता विहु मिच्छत्तसंगदोसेण दूसिया अहियं । मोनू" जिणधम्मं धणियं" निद्वेधसा जाया ॥ तं नाउं जणएहिं वि आलावाई विवज्जियं सवं । जोयणदुगमित्तं पि हु संजायं जलैहिपारं च ( व १ ) ॥ मयमत्ताणं ताणं विसयपसत्ताण अन्नया जाओ । रिसिदत्ता पुत्तो रुवेणं सुर्रकुमारों व ॥ तस्स महेसरदत्तो "ठवियं नामं गुरूहिँ समयम्मि | काले परिणयवओ" उद्दामं जोवणं पत्तो ॥ एत्तो य वर्डेमाणे पुरम्मि रिसिदेत जिट्टभाउस्सैं । सहदेवस्स उ भजा सुंदरिनामा अणनसमा ॥ जिणधम्मरया निच्चं भुंजंती नियपियेण सह भोए । गब्भवई संजाया उप्पअर डोहलो तत्तो" | जाणामि जह पिएणं समयं मज्जामि नम्मयासलिले । बहुपरिवारसमा तम्मि अपुतए तत्तो ॥ [११-२२ ] ११ १२ १३ १४ १५ १६ १७ 224 १८ १९ २० २१ ५ नं. २८ बहुदत्तं. ३ वयरइ. ४ L अचंतं. ९ ताए समेओ. १० कूवचंडम्मि. A B जिणमुणिपूया.. ६. रिद्धिए. ७ CD तो ८ नाओ. ११ अभिनिंदिओ १२८ पियमाई. १३८ ° गहिवं ति कार्ड दूरेणं १४ प्रमुत्तणं. १५ धणियम्मि निद्धं.. १६ जणएहिं आला. १७ विसज्जियं. १९ A B सिरिकुमारो. २० La उचियं. २१ A B °यकलो. २३O D तत्तो. २४ वट्टमाणे. २५ A B सिरिदत्त भायस्स. २८ तीए. २९ वारसमेया तम्सि. १८ कलहि. २६ २२ २२८ जुवणं. २७ पिएण Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २३-३५ ] नम्मयासुंदरीकहा । कंठग्गयपाणी सा जाया अच्चं तदुब्बलेसरीरा । चिंतावन्ना चिट्ठ तं दद्धुं भणइ सहदेवो ॥ 'किं तुह पिए ! न पुजइ जं जाया एरिसा सरीरेण ? ।' भइ इमा - 'मह पिययम ! मणम्मि नणु डोहो गरुओ ॥ २४ जाओ गब्भवसेणं जड़ किरें मज्जामि नम्मर्यांसलिले । तुम सह'. तो एसो आसासिय कुणइ सामरिंग ॥ बहुवणिउसमेओ गिण्हई नाणाविहाइँ पणियाई । काऊण महासत्थं चलिओ अह सोहणदिणम्मि || अणवरयपयाणेहिं वियरंतो" अत्थवित्थरं पत्तो । नम्मयैनईऍ तीरे आवासइ सोहणपएसे || दण नम्मयं तो बहुतरलतरंगरेहिरींवचं । अइगरुयविभूईएँ पियाऍ सह मजणं कुणइ || पुणे डोहलऍ तत्थेव य नम्मयापुरं नाम । रम्मनयरं " निवेसिय कारावइ वरजिणाययणं ॥ तं सोउं सव्वत्तो आगच्छइ तत्थ भूरि वणिलोगो " । जाय ये महालाभो पसिद्धमेव पुरं जातं ॥ अह सुंदरी वि तत्थेव वरपुरे नियगिहे निवसमाणी । पसवइ पत्थदिवसे वरकन्नं तीऍ सहदेवो ॥ कारइ वद्धावणयं परितुट्ठो जेट्ठपुत्तजम्मे" व । विहियं च तीऍ नामं जइ नम्मयसुंदरी एसा ॥ कमसो परिवती जाया नीसेसवर कलाकुसला । सरमंडलं च सर्व्वं विन्नायं अह विसेसेण || पत्ता यजुव्वणं सा असे सतरुणयणमणविमोहणयं । तत्तो परा पसिद्धी संजाया तीऍ सव्वत्थ || सोऊण तीऍ रूवं रिसिदत्ता दुक्खिया विचिते । 'कह मह पुत्तस्स इमा होही भजा वरा कण्णा १ ॥ २३ २५ २६ २७10 २८ २९ ३० ३१ ३३ ३५ १ ५८ किरि. ८ कंठगणपणा. २ दुबल ३ A B 'जइ संजाया. ४८ एरिसी सरीरेण. ६ L नमया'. ७ L आसासि कुण. AB आसासइ. वणिओत्तिसमेओ. ९OD गिव्हिय. १०८ विलसंतो ११ नम्मया. १२८ रेहिंरा'. १३८ बिभूइए. १४OD पण पियाइ १५ संपुन डोहलाए. १६८ °नयरम्मिवे.. १८ जायद महा. SSC मे १७ A B वणलोगो. २०८ निवपुरे निवस. २१ प्रजिट्टपुत्तिजम्मेण. 5 ३२२० ३४ 15 25 Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 10 15 20 १०० सिरीदेवचंदसूरिकथा हा हा ! अहं अण्णां विवज्जिया जा समत्थंसयणेहिं । अहवा कित्तियमेत्तं एयं परिचत्तधम्माए | आलावो वि हु जेहिं परिचत्तो ते कहं महं कण्णं । दिति' इय माणसेणं दुक्खेणं रोवए एसा || तं दणं भत्ता पुच्छई - 'किं पिययमे ! तुहं दुक्खं । साही व ममम्मी भणसु तयं जेण अवणेमि ॥' तो सा कहे सवं तं सोऊणं पपई पुत्तो । 'तायें ! विसखेहं ममं जेणाहं तत्थ वच्चामि ॥ विणयाइएहिं” सर्व्वे" आराहित्ता मए इमा कण्णी । परिणेrasaस्सं कायवो जणणिसंतोसो ॥' तो विविपणिय भंडे हिं" पूरियं अइमहंतयं सत्थं " । काऊ जणणं विसजिओ नम्मयानयरे ॥ पत्तो य तत्थ बाहिं सत्थस्स निवेसणं करेऊणं । मायामहस्स गेहं पविसइ सुपसत्थादियहम्मि || मायामहमाईएँ सयणे दट्ठूण हरिसिओ" धणियं । गेहाrयं ति लोगट्टिई " गोरविहिं" इयरे वि" ॥ विणयाइएहिं सवे तत्थ वसंतोऽणुरंज एसो । मग य आयरेणं तं कण्णं ते वि नो तस्स दिति तओ तेण इमे अच्चत्थं " जाइया ततो" ते वि । कारविय विविहसवहे दिति तयं अन्नदियहम्मि || जाए धम्मवियारे कण्णावयणेहि साहुपडिबुद्धो । सद्धम्मभावियमई "जातो अह सावगो" परमो ॥ तो तुट्ठा जणयाई पाणिग्गहणं" विहीऍ कारेंति " भुंजइ विसिडभोए तीए समं धम्मकयचित्तो ॥ २४ २६ 1 १७ AB हरसिओ. २० AB इयरेहिं. २१ २५ L तओ. २९८ सावओ [ ३६-४७ ] ३६ ३७ ३८ ३९ ४० ४१ ४२ ४३ ४४ ४५ २८ समत्त'. ३८ मित्तं ४ कन्नं. ५ पिच्छइ. ६ AB पइम्मी. १L अपुना. 'सुतुमं जे'. विणयाईहिं. ८ सोय विस ९ CD विसजेहि L विसज्जेसि. १० समं. 99 L १२ AB सव्वं. L सव्वेहिं. १३ L कना. १४ ८ सो विविवहरणिय भंडेहिं. १५ सब्वं. १६ L मायमहमाइए. गोरवहिं. C D गोरव एहिं. २३ ८ कन्नं. २४ अचंतं. १८ लोगहिए. AB वियाई हिं. २२ रंजन. २६° सवहेहिं. २७ कन्नागणेहिं. ३० गहण ३१ कारिंति. २८ समसावियमई जाभो. ४६ ४७ Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०१ [४८-६०] नम्मयासुंदरीकहा। केण य कालेण तओ नियनयरं जाइ नम्मयासहिओ। जणयाईपडिवत्तीपुवं पविसरइ नियगेहे ॥ ४८ सासू-ससुराईणं पडिवत्तिं नम्मया विहेऊणं । चिट्ठइ विणएण तओ अप्पवसं कुणइ सवं पि ॥ सो वि महेसरदत्तो धम्मम्मि दढो कयत्थमप्पाणं । लाभेणं तीऍ मन्नइ विलसइँ नाणाविणोएहिं ॥ रिसिदत्ता वि पुणो वि हु पडिवजई पुवसेवियं धम्मं । अह अन्नया कयाई सा नम्मयसुंदरी हिट्ठा । आयरिसे नियवयणं पलोयमाणा गवक्खमारूढा। जा चिट्ठइ ता साहू तत्थ तले कह वि संपत्तो॥ ५२10 तो तीऍ पमायपरव्वसाएँ अनिरूविऊण पक्खित्ता। पिकी मुणिस्स सीसे तो कुविओ जंपए साह ॥ ५३ 'जेणाहं पिकाए भरिओ सवंगयंपि(मि) सो पावो । पियविप्पओगदुक्खं मह वयणेणं समणुभवउ ॥ बहुविहदुक्खकिलंतो पभूयकालं तु मज्झ वयणेणं ।' तं सोउं नम्मयसुंदरी वि सहस त्ति संभंता ॥ उत्तरिय गवक्खाओ निंदंती अप्पयं बहुपयारं । लूहित्ती वत्थेणं पणमइ मुणिचलणजुयलम्मि ॥ परमेणं विणएणं खामित्ता- 'भणइ जगजियाणंद ।। संसारियसीक्खाईमा मह एवं पणासेहि ॥ धिद्धी ! अहं अणजा जीई पमायाउ एरिसं काउं । बहुविहदुक्खसमुद्दे. खित्तो अइभीसणे अप्पा ॥ अजं चिय सामि ! महं सवाइँ पणट्ठयाइँ सोक्खाई। अज अहं संजाया पाविट्ठाणं पि" पावयरी ॥ तुम्हारिसा महायस ! कुणंति दुहियाण उवरि कारुण्ण। 25 ता करुणारससायर ! भयवं! अवणेहि महँ सावं ॥ ६० 15 ५७20 १L केण य कालेण इमो तओ. २ . लंभेण. ३ L विलसई. ४ A B पडिवजिय. ५ . दिट्ठा. ६ . °से णयवयणं. ७ L °माणी. ८ तो is not found in L. ९ । तीए य पमा. १० ८ पेक्खा. ११ L ता. १२ A B सव्वंगियंपि. १३ L नम्मया. १४ L °प्पयारं. १५. लहाविय वस्थे. १६ । सुखाई. १७ L जीए. १८A B सव्वाइ. १९. पणठयाई. २० । सुक्खाई. २१ A B 'हाणं तु पाव. २२ । कारनं. .. २३ 0 D मम Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 · 10 15 १०२ 20 25 सिरीदेवचंदसूरिकया इय विलवंती बहुहा भणिया उवओगपुवयं मुणिणा । ' मा मा विलवसु मुद्धे ! एवं अइदुक्खसंतत्ता ॥ कोववसमुवगएणं दिष्णो' सावो तुहं मेए भद्दे ! | संप पण्णयिओ तुह उवरिं नत्थि मे कोवो ॥ किंतु अणाभोगेर्णं विभणिओ सावो हु भाविओ एसो । तुम अन्नभवंतरसुंनिकाइयकम्मदोसेणं ॥ पियंविरह महादुक्खं अणुभवियवं तए चिरं कालं । न हु नियकयकम्माणं संसारे छुट्टए को वि ॥ वच्छे ! हसमाणेहिं जं बज्झइ पावयं इह जिएहिं । रोहिं" तयं खलु नित्थरियवं न संदेहो ।' तो नाउं परमत्थं वंदिय साहू विसजिओ तीए । तम्मि गए रुयमाणी पिएर्णे पुट्ठा कहइ सर्व्वं ॥ आसासिऊण ते विभणिया कुण जिजईण पूयाई । दुरियविधायणहेउ न हु रुन्नेणं हवइ किंपि ॥ पडिवज्जिय तवयणं" कुणइ तवं पूयए जिणाईए । कहिँ वि" दिहिं तत्तो पुणो वि भोगप्परा जाया || एवं परिगलमाणे काले मित्तेहिँ एरिसं भणिओ । सोहु महेसरदत्त एते ठविय सवेहिं ॥ 'अत्थोवणकालो मित्त ! इमो वट्टए सुपुरिसाणं । पुवपुरिसजियत्थं लजिज विलसमाणेहिं || ता गंतु जवणदीवं विढवित्ता नियभुयाहिँ बहुदवं । विलसामो' तवयणं पडिवजइ रंजिओ एसो ॥ अह महयाकट्ठेणं जणणी - जणयाणं मोकलावेउं" । गिost बहुप्पयारं जं जं भंडं तहिं जाइ ॥ भणिया य नम्मयासुंदरी वि - 'कंते " ! समुद्दपारम्मि | ini मह होही चिट्ठसु ता तं सुहेणेत्थ | ७ २ दिनो. ३ C D सावो मए तुमं भद्दे. भोगेगं भणिओ. ६ १८ दुख मह को. विरह .. १० CD तए बहुं कालं. १४ पियेण १५ कुण जईण.. १९D जणयाणि. ७ A B भावो. ११ L रोयंतेहिं. १६ L तब्वयणा. १२ १७ } ४ I °हिए तुह. ५ ८सनिकाइय ९ [ ६१-७३ ] २०८ मुकलावे. २१ ८ गिन्हइ. २२८ वि कंठे समु . ६१ ६२ ६३ ६४ ६५ ६६ ६७ ६८ ६९ ७० ७१ ७२ ७३ थि इय साहुं. १३ A B रुवमाणी. केहवि. १८ भूयाहिं. Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ७४-८६ ] नमयासुंदरीका | जम्ही अइसुकुमालं तुह देहं न हु सहिस्सई कटुं । तम्हा देव- गुरूणं भत्तिपरा चिट्ठ अणुदियहं ।' तो भइ इमा - 'पिययम ! मा जंपसु एरिसाइँ वयणाई । जम्हा उं तुझ विरहं ने समत्था विसहिउं अहयं ॥ कट्ठे पितर समयं वच्चंतीए अईव सुहजणयं । ता निच्छरण तुमए सह गंतृवं मए नाह ! ।।' तह मोहिमई पडिवज्जिय तो महंतसत्थेण । गंतूण जलहितीरे आरुहइ पहाणवहणेसु || जा जाइ जलहिज्झे पहाणअणुकूलवायजोगेण । ताव तहिं केणावि हु उग्गीयं महुरसण || तं सोऊणं बाला सरलक्खणजाणिया पहिङमुही । जंपड़ - 'एसो पिययम ! गायई कसिणच्छवी पुरिसो ॥ अइथूलपाणिजुयलो बब्बर केसो रणम्मि दुञ्जेओ । उष्णवच्छो साहस्सिओ य बत्तीसवारिसिओ" ॥ गुज्झ य रत्तमसो इमस्स ऊरुम्मिं सामला रेहा ।' इय सोउं से भक्त गयनेहो " चिंतए एवं ॥ 'नूणं इमेण समयं वसइ इमा तो" वियाणई एवं | ता निच्छएण असई एसा अच्चंतपाविट्ठा || आसि पुरा मह हियए महासई साविया इमा दइयाँ । किं तु कयं मसिकुच्चयँदाणमिमीए कुलदुगे वि ॥ ता किं खिवामि एवं उयहिम्मिं उयाहु मोडिउं गलयं । मारेमि" आरडंती किं वा घाएमि छुरियाए ।' इचि जावेसो बहुविहमिच्छावियष्पपरिकलिओ । ता कूवयट्ठियनरो" जंप - 'रे धरह वहणाई | एसो रक्खसीवो गिण्हहे इह नीरइंधणोंईयं ।' वितयं पडिवजय धरंति तत्थेव वहणाई || सरलखणजाणगा पहहमुही. ६ ८ वग्वरसा रणम्मि पुच्छेडं. १२८ ऊरम्मि. १३ ८ सत्ता. कुंच १८ L उवहिम्मि. २२ ८ गिन्दद. २३ ८ यंत्रणा. १L जंम्हा. २ L हा हु तु. ३ CD "हं असमत्था. ४ L विसहियं जंपइ पिययम गीयइ एसो जंपइ कसिण. ९ उन्नयवच्छा. १० 'वारसिओ ११ १४ I हं, १५ इमा विया मारेमे. २० L चिंतिय. १९ १०३ ७४ ७५ ७६ ७७ ७८ 10 ७९ ८० ८१ ८२ ८४ ८३ 20 ८५ 5 ८६ अहियं. ५८ ७L अइसूल. गुस्सम्मि रत्त. १६८ दईया. १७L २१ ता कूवयद्विपुरिसो. 15 9 25 Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ सिरीदेवचंदसूरिया [८७-९८] पेच्छंति' तयं दीवं गिण्हती इंधणाइयं सई । सो वि महेसरदत्तो मायाए जंपए एवं ॥ 'अइरमणीओ दीवो सुंदरि ! ता उत्तरित्तु पेच्छामों।' सा वि परितुट्ठचित्ता तेण समं भमइ दीवम्मि ॥ अण्णण्णेसे वणेसुं कमेण पिच्छति सरवरं एकं । उत्तुंगपालिसंठियनाणाविहतरुवरसणाहं ॥ अइसच्छंसाउसीयलजलपुण्णं सयलजलयरसणाहं । दट्टण तयं मजंति दो वि तत्तो वि उत्तरिउं ॥ जा तवणगहणेसुं' भमंति ता सच्चवंति" एगस्थ । रमणीयलयाहरयं तं मज्झे करिय सत्थरयं ॥ दोण्णि वि सुवण्णयाई खणेण निदावसं गया बाला । तो चिंतइ से भत्ता निग्घिणहियओ जहा 'एत्थ ॥ मुंचामि इमं जेणं मरइ सयं चेव एगिया रण्णे ।' इय चिंतिऊण सणिय सणियं उस्सकिउं" जाइ ॥ वहणेसुं विलवंतो 'माइल्लो' उच्च-उच्चसद्देहिं । सथिल्लएहिँ पुट्ठो- 'रुयसि किमत्थं ?' ति सो" भणइ ॥ ९४ 'सा मम भजा भाउय ! खद्धा घोरेण छुहियरक्खेण । .. तं दटुं भयभीओ अहमेत्थ पलाइउं" पत्तो॥ तो पूरह वहणाई मा एत्थ समागमिस्सई रक्खो। ते वि तओ भयभीया पूरंति झड त्ति वहणाई ॥ सो वि हु आहाराई दुक्खकंतो व मुर्चइ खणेण । रोवइ विलवइ कुट्टइ उरसिरमाईणि" मायाए ॥ हियएणं पुण तुट्ठो चिंतइ नणु सोहणं इमं जायं ।। जं लोगऽववाओ" वि हु परिहरिओ एव विहियम्मि ॥ ९८ 15 . . पिच्छंति. २६ गिन्हंती. ३५ °समणीओ. ४८ पिच्छामो. ५ अवसुं. ६ . कंमेण. C D अइअच्छ०. ८. सियजलपुन्न. ९ - जाव य वणगहणेसुं. १० - सव्ववंति. ११ - दुनवि सुव्वंति खणेणं. Blank space is found in A B for the lines from निद्दावसं ( inclusive) upto the letters खेमे (inclusive)of खेमेण° in verse १०१. १२, इत्थ. १३ एगया रने. १४ सयणिं. १५ओस्सकियं. १६L रूयसि. १७ । ति तो भ. १८ L छुरिय'. १९ L अहमित्थ पलाइयं. २० दुक्खकतो. व्व मुचह. २१ 0 D तइ विल . २२ 4 °माईण. २३ हियएणं परितुद्दो. २७ - जं लोगविवाओ. Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ९९-११०] नमयासुंदरीकहा | सथिल्लएहिं तत्तो पडिवोहिय भोइओ' इमो वि तओ । अहमहया कट्टेणं संजाओ विगयसोगो व ॥ पत्ता य जवणदीवं सवेसि वि हिययवंछियाओ वि । जाओ अहिओ लाभो कमेण गिहि पडिपणिए ॥ वलिऊणं खेमेणं पत्ता स वि कूवंद्र | सो वि महेसरदत्तो अक्खइ सयणाण रोवंतो ॥ जह - 'मह दइया खद्धा रक्खसदीवम्मि घोररक्खेण ।' ते व तओ दुक्खत्ता कुणंति तीसे मयगकिचं ॥ परिणाविओ य एसो अण्णं कुलबालियं अइसुरुवं । ती य बद्धनेहो भुंजइ भोगे अणण्णसमे || एत्तो" विनम्मयासुंदरी वि जा उट्ठियाँ खणद्वेण । तो न हु पिच्छे कंतं तत्थ तओ चिंतए एवं || 'नूणं परिहासेणं लुक्को" न णें होहिई महं दइओ ।' वाहरइ तओ - 'पिययम ! देसु महं" दंसणं सिग्धं ॥ माकुण बहुपरिहासं वाढं उत्तम्मएँ महं हिययं ।' जा एइ न एवं पि" हु सासंका उट्ठ" ताव ॥ परिमग्गइ सवत्तो तह वि अपिच्छंतियों सरे जाइ । भई य वणविवरेसुं कुणमाणी बहुविहे सद्दे ॥ ' हा नाह ! ममं मोत्तुं दुहियमणाहं कहिं गओ इहि सोऊणं पडिस" धावह तो " तम्मुही वाला ॥ विज्झती खरकंटएहिं पाए गलियँरुहिरोहा । गिरिविवरे भमिऊणं पुणो वि सा जाइ लहरए || एत्थंतरम्मि सूरो दट्ठूणं तीऍ तारिसमवत्थं । पडिकाउं अचयंतो लञ्जाऍ व दूरमोसरिओ " ॥ १२ २९ ง बोहिया भाइओ. २ L सो व्व. ३ सव्वे विहुहिय.. ५ वंदम्मि ६८ कुणंति नीसेसमय किञ्चं, ७L अन्नं. अननसमे. १० A B इत्तो. ११ उठिया. १२ पिक्खइ. देसि ममं. १५ १४ CD न हु हो. १९ अपिच्छंतया. २४ AB परिसदे. २८ ० D लइह'. २९ I मोसरीओ. नम० १४ १६ L उत्तस्सए. २० L समइ. २१ AB विवरेसु. २५ धाइ तओ तम्मुही. १७ २२ २६ L खाइर". २३ । १०५ ९९ १०० १०१ १०२ 5 १०३ 10 १०४ १०५ १०६ १०७ ११० ४ गिन्हितु. ८. ९ भो १३ A B ल्हिको L लिक्को. एवं वि. १८ उहिया. महं मुत्तं. २३ ८ इन्हि. गहियरुहि. २७ १०९ १०८२० 15 Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10 15 १०६ 20 25 सिरीदेवचंद सूरिया अस्थगिरीएं सूरो ल्हसिउं अवरोयहिम्मि निब्बुड्डो' । अहवा अत्थम चिय सूरो पडिकाउमचयंतो ॥ एत्थतरम्म तो सा तत्थेव लयाहरम्मि परिखिन्ना । सोगत्ता बीहंती नुवजएँ पल्लवत्थरणे ॥ उत्थर य तमनियरो सव्वत्थोवहयलोयणप्पसरो । अव पसरंति मलिर्णां परितुट्ठा मित्तनासम्मि ॥ इय जा खणंतरेकं चिट्ठइ सा दुक्खिया तहिं बाला । ता उग्गमेइ राया राय व तमारिखयकारी ॥ तं दणूंससिया मण्णइ उञ्जीवियं व" अप्पाणं" । अहवा पीऊसरुई आसासह जं किमच्छेरं ॥ तो बहुविहचिंतावाउलाई अइदुक्खियाऍ सा रयणी । चउजामनिम्मिया वि हु जामसहस्सं व वोलीणा ॥ अह उग्गयम्मिँ सूरे सा नम्मर्यसुंदरी दुगुणदुक्खा । पुण रोविउं पयत्ता सुमरिय नियनाहगुणनियरं ॥ अवि य - १ अत्थिगिरीउ. ६ A B हिम.. - हूणं स ११ भासासह तं वि मच्छेरं. 'वनय'. १८ २३ 'हा पडिवण्ण वच्छल ! दक्खिन्नयनीरपूरसरिनाह ! | हा करुणायर ! अह" कह मुक्का एक्किया रणणे" ॥" एवं विलवंती सा पुणो वि गच्छइ सरोवरं तेण । पुणरवि हिंडइ रणे पुच्छंती हरिणिमाई उरे ॥ 'किं दिट्ठो मह भत्ता कत्थई तुम्मेहिँ एत्थ भमडतो ? ।' पडिसद्दं सोऊणं पविसइ गिरिकुहरमज्झम्मि || तत्थ वि तमपेच्छंती" पुणो वि निग्गच्छई तओ एवं । वोलीणा पंच दिणा आहारविवज्जियाई दढं ॥ अह छट्ठम्मि दिणम्मी भमडंती जाइ उहितीरम्मि | जत्थाssसि पवहणाई चितइ तं सुण्णयं " दहुं ॥ ३८ इत्थं. ८ २८ विब्बुड्डो ७ L सव्वत्तो पुइयलो'. वयं तु अ १२ १५ १४ वाउलाए. णायर निय अहियं कह. १९ २१ पुण. २२ L रन्ने. २३ A B हरिणमाईए. २५८° पिच्छंती. २६८ वजियाए २७ L उवहि. L उदयस्मि. ४ L मुब्वज्जए. ५ मसिणा परिमुट्ठा. ९ मन्नइ उजीविव्वयव्य अत्ताणं. [ १११-१२२] एक्किया अहं रने. हरिर्णिमा ईणि. २८ L य वह १६ अमय. १११ ११२ ११३ ११४ ११५ ११६ ११७ ११८ ११९ १२० .१२१ १२२ उच्छर इ. तरिकं. १३८ 90 L इय विल. २० २४ CD कथय २९. सुक्षयं. Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१२३-१३४] नम्मयासुंदरीकहा। 'रे रे जीव ! अलक्खण ! मुहाएँ' किं खिजसे तुम एवं । जं अनभवोवत्तं तं को हु पणासि सत्तो ॥ १२३ रे जीव ! तया मुणिणा आइटुं जं तयं इमं मण्णे । ता सम्मभावणाए सहसु तयं किं व रुण्णेण १॥ १२४ इय चिंतिऊण तो सा गंतूण सरोवरम्मि नियदेहं । पक्खालिय संठाविय ठवणं तो वंदई देवें ॥ १२५ काऊण पाणवित्तिं फलेहिँ तो गिरिगुहार्य मज्झम्मि । मट्टियमयजिणपडिमं काउं वंदेई भत्तीए ॥ १२६ पूर्यई वरकुसुमेहिं कुणइ बलिं बहुफलेहिं पक्केहि । रोमंचंचियदेहा संथुणइ मणोहरगिराए । १२७ 10 अवि य'जय संसारमहोयहिनिबुड्डजंतूण तारणतरंड !। जय भयभीयजणाणं सरणय ! जिणनाह ! जगपणय! ॥ १२८ जय दुहियाणं दुहहर ! रागदोसाँरिविरियनिद्दलण! । जय मोहमल्लमूरण! जय चिंताचत्त ! जिणनाह ! ॥ १२९ 15 जय निद्दापरिवजिय ! छुहापिवासाजराभयविमुक्क!। मयमाएँखेयवज्जिय ! गयजम्मणमरण ! जय नहिँ ! ॥ १३० जय हिअविम्हय ! अपमाय ! देव ! सासयसुहम्मि संपत्त । सिवपुरपवेसणेणं कुणसु दयं मज्झ दुहियाए ॥ १३१ इय जिणथुइजुत्ताएं सुशिकाइयकम्ममणुहवंतीए । जा जाइ कोई कालो तो चिंतइ अन्नया एसा ॥ १३२ 'जइ कह वि भरहवासे गमणं मह होइ पुण्णजोएण। तो सवसंगचायं काऊण वयं गहिस्सामि ॥' । १३३ इय चिंतिऊण रयणायरस्स तीरम्मि उब्भियं तीए । चिंधं महामहंत' जं पयडइ भिन्नवहणं ति॥ १३४ 25 १मुहाइ. २५ °वोवनं. ३ L सियं. ४L मज्झे. ५. समभा. ६. सहस्सु. ७. रुनेणं. ८L तो वंदए देवो. ९L °गुहाए. १० L मंडियजिणबिंबं काउं ठवेइ. ११६ पूइय. १२ L कुणइ बहुभत्तिभरनिभरेहिं. १३ , भवभीय. १४ °दोसारि . १५ A B चिंतावत्त. १६ L मयसेसखेय. १७ C D °मरणपरिमुक्का भरणभरमोह. १८L हियवि. १९ A B °जत्ताए. २०L को वि कालो. २१ पुज'. २२ । उढियं. २३ - बिंबं महे महंत. २४ A B °वहणित्तं. Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___ 10 सिरीदेवचंदसूरिकया [१३५-१४५] एत्थंतरम्मि तीसे चुल्लपिया वीरदासनामो जो। बब्बरकूलं जंतो पत्तो तम्मि य पएसम्मि ॥ १३५ दट्टण तयं चिंधं लंबाविय पवहणं समुत्तरि । पयमग्गेणं पत्तो थुणइ जिणं नम्मया जत्थ ॥ सोऊण तीऍ सदं सासंको नम्मया किमेस त्ति । जा पत्तो दिहिपहे ता सहसाँ उट्ठिया बाला ॥ १३७ दट्टण चुल्लपियरं कंठम्मि विलग्गिउं घणं रुन्ना। सो वि तयं ओलर्खिय मुंचइ नयणेहिँ सलिलोहं ॥ १३८ पुट्ठा य-'किं गुणोयहि ! वच्छे ! तं इत्थ एक्किया रणे। सा वि असेसं वत्तं जं जहवत्तं परिकहेइ ॥ 'पेच्छंह विहिणो दुविलसियं' ति भणिऊण नेइ तं वहणे । व्हाणाई काराविय भुंजावइ मोयगाईहि ॥ चलिओ य ततो कमसो पत्तो अणुकूलवायजोगेण । बब्बरकूले तत्तो ताडावइ पडउर्डि" रम्मं ॥ उत्तारिय भंडाइं पडउडिमज्झम्मि नम्मयं" ठवियं । गिहिय उवायणाई" गच्छइ नरनाहपासम्मि ॥ १४२ नरवइणा सम्माणे विहिए तो जाइ निययठाणम्मि । जावऽच्छइ का वि दिणे ता जं जायं तयं सुणह ॥ १४३ अत्थि तहिं वत्थवा हरिणी नामेण सुंदरा गणिया । नीसेसकलाकुसला गोरवा नरवरिंदस्स ॥ १४४ वेसायणप्पहाणों उब्भडलावण्णजोवणुम्मत्ता। सोहग्गवरपडागी सुपसिद्धा रिद्धिपरिकलिया ॥ सा रण्णा परिभणिया- 'समत्थवेसाण भाडियविभागं । गिण्हें तुमं मझं पुण विढविसि जंत तयं देयं ॥ १४६ १४० १४५ १. इत्थं. २A B तम्मि प्पएसम्मि. 0 D जंतो संपत्तो तप्पएसम्मि. ३८त्तरियं. ४ . °प्पहे सा सहस्सा. ५विलगियं घणं रुन्नं. ६ L उलखिय. ७ तं पुत्थ एकिया रने. ८ चत्तं. ९ L पिच्छह. १० L न्हाणाई. ११ A B मोयगाईयं. १२ । तओ. १३ L °कुले. १४ L पडहउडि. १५ L नम्मया. १६ . गिन्हिय उवाइणाई. १७ । विहिपत्तो जाइ. १८ L जावस्थइ. १९ । वत्थवा. २० L °पहणा. २१ लावा. २२L पडाया. २३ रना पडिभ'. २४ भाडिपवि. २५ गिन्ह. २६.विढवासि जं जं तयं. Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४७-१५८] नमासुंदरीका | जो य इह पोयसामी आगमिही सोय अट्ठसहसं तु । दीराणं देही तुझं' मज्झ पसाए ॥' * २० १४८ १५० एसा तत्थ ववत्था वेसाणं अस्थि राइणी समयं । हरिणी तओ चेडी पट्ठविया वीरदासस्स | पासम्म तीऍ भणिओ सो जह - 'वाहरइ हरिणी (णि) या तुब्भे । तेण वि सा पडिभणिया - 'जइ वि हु रुवाइगुणकलिया ॥ १४९ afort तह व अहं भुंजामि न वजिरं नियकलत्तं ।' तीए वि तओ भणियं - 'आगंतवं तए तह वि ॥ तो जाणिय भावत्थो अप्पर दीणारसह महियं । सा वि तयं घेणं" वच्चइ हरिणीऍ" पासम्मि ॥ सा तं दहुं जंपइ - 'किमेहणा एउ वणियपुत्तो त्ति" । सा वि पुणो गंतूणं अक्खइ हरिणीऍ" जं भणियं ॥ तं सुणिय वीरदासो चिंतइ हियएण 'किं मह इमाओ । काहिंति" जओ सीलं भंजेमि" न पलयकाले वि ॥ गच्छामि ताव तहियं पच्छा काहामि जं जहाजुत्तं" । " इय चिंतिऊण गच्छइ तीए भवणं अइसुरम्मं || तो महुरमंजुलाहिं विडुभणिईहिं सानुरागाहिं । सा जंपइ सवियारं तह वि न सो चलइ मेरु व ॥ ऐत्थंतरम्मि कण्णे कहियं हरिणीऍ तीऍ चेडीए । जह - 'सामिणि ! एयघरे अच्छेई महिला अणणेसमा ।। १५६२० सा जइ कहिं वि तुब्भं आएसं कुणइ तो हु" रयणाणं" । पूरइ निस्संदेहं तुह गेहं किं च बहुएणं ॥ जम्हा हु" रूवजोवणलावण्णगुणेहि तीऍ सारिच्छा । दीसइ न मच्चलोए' तं सोउं हरिणिया बुद्धा | १५५ २ १५७ २९ 9 L जो इ ६८ रुवाइपरिक'. कह वि. ११ सहस्सम. १५ हरिणीय. १६८ मुणिय. १७ काति २०८ विभणिणि साणु. २१ इत्थं. २२८ कन्ने. भव्थइ. २५ अणन्न'. २६ A B तु आएणं कुणह वो ह रय. २८AB किं रथ बहु . २९ CD जम्हा उ. ३०८ जुव्वणलावन्न'. १०९ १४७ १५१10 १५२ १५३ १५४ ५AB रिणिया पोयसामी. २ L तुब्भं. ३ पसाएण. ४ L रायणा. ७L अन्नत्थी. ८ मि तवज्जियं. ९ भणियं गंतवं. १० CD तए १२ घितूणं. १३ ८ हरिणीइ. १४ वणीयपुत्त. १८ भुंजामि १९ जहावुत्तं. २३८ हरिणीहिं तीए. २४८ एसवरे २७ रयणाई. १५८ 15 Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५९ १६४ सिरीदेवचंदसूरिकया। [१५९-१७१ ] चिंतइ 'अवहरिऊणं आणेत्तुं धरेमि कह वि पच्छण्णं।' तत्थुप्पण्णमई सा तो भणइ तयं वणियपुत्तं ॥ 'अप्पेहि नाममुई खणमेकं जेण ईएँ सारिच्छं । अण्णं नियकरजोग्गं मुई कारेमि' तो एसो ॥ १६० अप्पइ य निवियप्पो सा वि तयं देइ दासचेडीए । हत्थम्मि ततो एसा गंतूणं नम्मयं भणइ ॥ 'सो वीरदाससेट्ठी हक्कारइ पच्चयत्थमह तेण । एयं मुद्दारयणं पट्टवियं तुज्झ ता एहि ॥ १६२ दट्टण वीरदासस्स संतियं नाममुद्दियारयणं । तो सावि निवियप्पा तीऍ समं जाइ तत्थ गिहे ॥ १६३ अवदारेण पवेसिय छूढी गुत्तम्मि भूमिहरयम्मि । मुई पि वीरदासस्स अप्पियं कुणइ पडिवत्तिं ॥ उहित्तु ततो एसो सट्टाणे जाइ तत्थ तमदडे । गविसइ सव्वत्तो चिय पुच्छंतो परियणं सवं॥ १६५ जाव ने केण वि सिहा तीए वत्ता वि तो गवेसेइ । उजाणहट्टमाइसु तत्थ वि नो" जाव उवलद्धा ॥ तो दुक्खपीडियंगो इमं उवायं विचिंतएँ एसो । 'जेणवहरिया बाला किं सो पयडेइ मह पुरओ ॥ १६७ ता वच्चामि ईओऽहं बालं पयडेइ जेण सो दुट्ठो।' इय भावणाई भंडं घेत्तुणं चलइ घरहत्तं ॥ १६८ पत्तो भरुयच्छपुरे संजत्तियवणियसंकुले रम्मे । तत्थऽत्थि तस्स मित्तो जिणदेवो नाम वरसड्डो॥ १६९ तस्सऽक्खइ सो सवं भणिओ- 'तं जाहि तत्थे वरमित्त ।। कत्थ वि गवेसिऊणं तं बालं एत्थं आणेही ॥ १७० सो वि तयं पडिवज्जिय सामगि करिय जाइ तत्थेव । जाणाविया य वत्ता नम्मयपुरिसवसयणाणं ॥ १७१ १. अणित्त. २. पच्छन्नं. ३ ६ तत्थप्पन्न. ४ L °ण एइ सा. ५ । अझं. ६ 1 °जुग्गं. ७ . निवियप्पा.८ ८ तओ. ९ । मन्नणो भ. १० । 'सिट्ठी, ११ L पच्छइस्थ. १२ L मुद्दया. १३ A B सा व नि. १४ । छुद्धा. १५ . °घरम्मि. १६ L तओ. १७ L चिय पुच्छह. १८ 0 D °यणं सयलं. १९ A B जा न वि केण. २० L केणइ सि. २१ - वि ता गवेसइ. २२ - वि तो. २३ । °यं चिंतए. २४ A B तओऽहं. २५ । पुट्टो. २६ । भावणाए, २७ , चित्तणं. २८ 4 °सट्ठो. २९ । जाहि वर. ३० । इत्थ. ३१ । पुरि सोग्व.. Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ १७२ - १८४ ] नम्मयासुंदरीकहा | सोऊण तयं ताणि वि दुक्खत्ताई रुवंति अइकरुणं । एतोय नम्मयाए जं वित्तं तं निसामेह || नाऊण वीरदासं गयं तओ हरिणियाऍ सा वृत्ता । 'भद्दे ! कुण वेसतं' माणसु विविहाइँ सोक्खाई ॥ सदरसरूवगंधे फासे अणुहवस् मणहरे निश्च्चं । मह घरवत्ता एसा सवा वि हु तुज्झतर्णिय' त्ति ॥ तं सोउं नम्मय सुंदरी वि विहुणित्तु करयले दो वि । पभणइ - ' मा भाँ भद्दे ! कुलसीलविदूसणं वयणं ॥' तो रुसिऊणं हरिणी ताडावर तं कसप्पहारेहिं । फुल्लियकिंसुयसरिसा खणेण जाया तओ एसा ॥ 'अज वि न किंचि नहं पडिवजसु मज्झ संतियं वयणं ।' इ मेहरी भणीऍ भणइ इमां - 'कुणसु जं मुणसि ॥' गाढयरं रुसिऊणं जाव पवत्ते" तिक्खदुक्खाई । सा सा ताइय सुमरइ परमिट्ठवरतं ॥ तस्स पभावेण तओ तडे त्ति पाणेहिं हरिणियाँ मुक्का | रण्णो निवेइयम्मी" तम्मरणे भणइ तो राया ॥ 'किंचि सरूवं अण्णं" तट्टाणे ठवह गुणगणसमग्गं । भो मंति ! ममाssणत्ति (त्तिं) सिग्धं संपाडस इमं 'ति ।। १८० Raण आणाए मंती जो तत्थ जाइ ता सहसौं । दहूण नम्म सो अच्तं हरिसिओ "चित्ते ॥ १७६.10 १७७ १७ १८१२० जंपs - 'मेहरियपयं भद्दे ! तुह देमि रायवयणेणं ।' सौ वितयं पडिवई परिभाविय निग्गमोवायं ॥ ठविऊण मेहरिं तं मंती वि हु जाइ निययठाणम्मि । सा वि हरिणीदवं वेसाणं देइ परितुट्टा || हु तं कहियं केणावि हु रण्णो" तेणावि जंपियं एयं । 'आह तयं एत्थं' जंपाणं जाइ तो रम्मं ॥ १L ताण. २८ भदेण कुण देसतं. ३ CD विविहाणि सोक्खाणि दुखाई ४ L तणयति. ५८ता सोउं. : L ताडावइ कसपहारेहिं. ९ भणइ मा कुण २८ तओ झडत्ति १३ L हरिणीया. १४ ८ रन्नो वसु. १७ I मंति समाणत्तं. १८८ जक्खइणो. १८ सिओ दित्तो, २२८ भावि १९ २३८ पडिवजिय. ६ सुदंरीति वि. १० पयते इ. ११ निवेवियम्मी. १९ मंत्री ता तत्थ, २४ L रन्ने, १११ १७२ १७३ १७४ १७५ १७८ १७९ १८२ १८३ १८४ विवहाइं ७ भ वेसा भा यहरी. अन्नं. 9 C D २० L सहस्सा, 5 15 25 Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११२ १८८ सिरीदेवचंदसूरिकया। [१८५-१९६] आरोविऊण तम्मिं जा पुरिसा निंति नयरमज्झेणं । ता चिंतइ 'मह सीलं को खंडइ जीवमाणीए ॥ १८५ को पुण इत्थ उवाओं' चिंतती नियई एगठाणम्मि । अइकुहियदुब्भिगंध पवहंतं गेहनिद्धवणं ॥ १८६ तं पेच्छिऊण "जंपइ - 'भो भो ! बाढं तिसाइया अहयं ।' तो मेल्लावइ जाणं जाणवई दरिसिउँ विणयं ॥ १८७ जा आणति जलं ते ताव इमा उत्तरित्तु जाणाओ। सर्वगियमप्पाणं चिक्खिल्लेणं विलिंपेइ ॥ पियइ तयं दुग्गंध' नीरं अमयं ति भाणिउं वाला । लोलऍ महीइ पंसु खिवइ सिरे देइ अक्कोसे" ॥ १८९ पभणइ य- 'अहो" लोया ! अहयं इंदाणियाँ ममं नियह ।' गायइ नच्चइ रोवइ भयभीया सीलभंगस्स ॥ पुरिसेहिँ तयं सिद्धं निवस्स सो मण्णि" गहं लग्गं । पेसेइ मंत-तंताइवाइणो तेहिं किरियाए ॥ आढत्ताए भाले चढाविउँ लोयणे फुरुफुरंती"। अक्कोसिऊणे गाढं अहिययरगर्ह पदंसेइ ॥ १९२ तो तेहिं परिचत्ता हिंडइ नयरस्स मज्झयारम्मि। डिंभेहिं परियरिया हम्मंती कट्टलिट्ठहि ॥ इय एवमाइ सवं कवडेंग्गहदंसणं पयासेइ । सीलस्स रक्खणत्थं धम्मं हियएण सरमाणी ॥ १९४ अह अण्णया कयाई बहुविहलोएण परिवुडा बाला। निम्मल्लमालियतणू गायइ जिणरासयं रम्मं ॥ १९५ तं द8 जिणदेवो पुच्छइ- 'को तं गहो सि जिणभत्तो।' सा भणइ - 'ससागारं तेण न साहेमि नियनामं ॥ १९६ १९१ 20 १. तम्मि. २ नियय एग'. ३ L अइकुहिए पूइगंधं. ४ . निव्ववणं. ५५ ते उद्दिपिण ॥ भो बाढ. ६ । अहियं. ७ , तो मित्तादइ. ८ – जाणावह हरिसिओ. ९ A B °सिउ वयणं. १० L चिक्खिलेणं. ११ L दुगंध. १२ LA B °धं अमयं नीरं ति. १३ - लोलइ महीए एसु. १४ अक्कोसो. १५ । यइहो. १६ । °णिय. १७ नियहा. १८ °स्स तो मे अयं गहं. १९ L मंततंतावेयणो. २० L चडाविउं. २१, फुरफुरंती. २२ A B आकोसि. २३ L लिट्ठकठेहिं. २४ सव्वं वडग्ग. २५ A B लोएहिं. २६ L °सालिय”. २७ A B गायइ जिणससयं धम्मं. २८ L °देवो पभणइ. Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नम्मयासुंदरीकहा । बम्म दिणे उज्जाणसंमुहं जाव चल्लिया एसा । तो डिंभाईलोगो नियत्तिउं' जाइ सट्ठाणे ॥ सा वि हु एतठियो वंदइ देवे विहीऍ जा तावँ । कत्तो वि हु जिणदेवो समागओ तो तयं दुहुं ॥ [१९७ २०९] वंदामो ति भणित्ता पणमइ सीसेण सा वि वरसड्डुं । नाऊणं नियचरियं अक्खर सर्व जहावत्तं ॥ तो जंपइ जिणदेवो - 'वच्छे ! तुह गविसंणत्थमायाओ । भरुयच्छाओ अहयं पट्टविओ वीरदासेण || जम्हा सो मह मित्तो पाणपिओ पेसिओ अहं तेण । ता परिचयसु विसायं सवं पि हु सुंदरं काहं ॥ पर किंतु हट्टमग्गे घडगसहस्सं घयस्स मंह तणयं । जं चिट्ठ तं तुम लउडपहारेहिं भेतवं" ॥' इय संकेयं" काउं दोन्नि” वि पविसंति नयर मज्झमि । विहियं च बीयदिवसे सवं जं मंतियं आसि ॥ तो निवई" हक्कारिय जिणदेवं" भणइ - 'हा कहं तुज्झ । हाणी महामहंता विहिया एयाऍ पावाए ॥ तारयणायरपारे अम्हेंऽवरोहेण खिवसु एयं ति" । जेणित्थं" अच्छंती कुणइ अणत्थंतरे बहुए ||' आएसो त्ति भणित्ता नियलाविय नेइ निययैठाणम्मि | छोडित्ता व्हावे" परिहाविय भोइयं विहिणा || वहणे चडाविऊणं पत्तो खेमेण पुण वि भरुयच्छे । "पविसित्तु निययगेहे जाणावर नम्मयपुरम्मि || जा ते संवहिऊणं" चलंति ता एइ सो तयं घेत्तुं । जणयाई दट्ठणं कंठविलग्गा रुवइ तो सा || ताँउसभसेण - सहदेव - वीरदासाइ बंधवा सवे" । सरिऊणं बालत्तं तीसे रोवंति" अइकलणं ॥ २३ १८ डिंभाइलोगो नियत्तियं. २८ हु एतद्विया. ३८°ए ता जांव. ९°स्स नभतणयं. ५ स ६ संकेडं. ११ १२ १६ AB एयाइ. ७ L गवेस. CL महु. दुनि. १३ AB विहिउं. १४ निवई. १५ १७ L रणायरपारे अम्हु. १८ ति is not found in L. २०६ आएसु. २१ नियठाणम्मि. २२८ न्हावेउं २५ संविहिऊणं. २६ घिसं. २७OD तो. नम० १५ स २८ सवे. २९ C D रावंति ११३ १९७ १९८ १९९ २०० २०१10 २०२ २०३ २०४ २०५ २०९ ४८ वेदामु. १० L भितवं. जणदेवो. १९. जेणत्थं. २३ CD भोइउं. २४८ भविसित. २०७ 5 २०६२० २०८ 15 25 Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10 15 20 25 ११४ १ सिरीदेवचंद सूरिकया पुट्ठा यहिँ सजा सा साहेइ निययवुत्ततं । सुणमाणाणं दुक्खं' सवाण वि तक्खणं' जाये || अह तीऍ संगमम्मी विहिया पूया जिणिंदचंदाणं । सम्माणिओ य संघो दिण्णाणि महंतदाणाणि ॥ विहियं वद्भावणयं विम्हयजणणं समत्थलोयाणं । जिणदेवसावओ वि हु जाइ पुणो निययनयरम्मि ॥ जा नम्मय सुंदरिसंगमम्मि दिवसा सुहेण वोलिंति । कइ वि तर्हि ती पत्तो विहरंतो साहुपरियरिओ | मोरियवंससिरोमणिसंपइनरनाहनमियपयकमलो । दसपुतधरो सिरिथूलभद्दसीसो महुरवाणी ॥ तियसाइवंदणिजो अय (इ) सयनाणेण पयडियपयत्थो । भवारविंदभाणू सूरी सिरिअञ्जहत्थिं त्ति ॥ तो नाऊणं सूरिं समागयं तस्स वंदणट्ठाएँ । भत्तिभरनिब्भराई सवाणि वि" जंति उज्जाणे ॥ वंदित्तु तओ" सूरिं नैच्चासन्नम्म सन्निविट्ठाई | सूरी वि ताण धम्मं कहेइ जिणदेसियं रम्मं ॥ जह - 'एत्थं संसारे सकम्मफलभोइणो" इमे जीवा । पाविंति सुहं दुक्खं जं विहियं अण्णजम्मम्मि ॥' तं सुणिय वीरदासो पुच्छर करसंपुढं सिरे काउं । 'भयवं ! किमण्णजम्मे विहियं मह भाइधूयाए ॥ जेणं सीलजुया वि हु पत्ता एवंविहं महादुक्खं ।' सूरी वि भणइ - 'सावय ! जं पुढं तं निसामेह " ॥ अथ ह भरहवासे मज्झिमखंडम्मि पचओ विंझो । उत्तुंग सिहरसंचयसमाउलो खलियरविपसरो ॥ तत्तो इमा पस्सूया महानई नम्मया जड़वेगा । ती य अट्ठिाइदेवी वि हु नम्मया अस्थि ॥ १६ [ २१०-२२२ ] २१० २११ २१२ २१३ २१४ २१५ २१६ २१७ २१८ २१९ २२२ 'माणाणं सव्वाण. २ C D तक्खणे. ३ दिनाणि. ४ L बिम्हहिययं. संगमेण ६ L वि बहिं तो पत्तो. ५ This verse does not occur in ABCD. १० १२८ त ८ A B जो चढविहवरमाणपयडिय'. CD जो दसपुब्वपगासपयडिय.. ९ असुहथि णठाए. ११ AB सव्वाई जंति. सध्वाण बि. धम्मं. १५८ भोयो. १६८ पायंति. १९ A B निसम्मेह, २० 'समायतो मोख लियर विएसरो. २१ जयण'. २२ द्वायग १४ १७ अन्नज. २२० २२१ १३८ तच्चास १८ किमन. Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२३-२३५ ] नमयासुंदरीका | सामिच्छत्तोवहया नम्मयतडसंठियं महासत्तं । धम्मरुईअणगारं दणं कुणइ उवसग्गे || नाणावि सुघोरे निचलचित्तं मुणिं मुणेऊण | उवसंता संजाया सम्मत्तधरा ततो' चविउं ॥ एसा हुं नम्मयासुंदरि त्ति जाया सुया उ तुम्हाणं । पुव्यभवभासेण य एईए नम्मया इट्ठा ॥ जं तइयाँ सो साहू खलीकओ ट्ठचित्तजुत्ताए । तं सुनिकाइयकम्मं तं एयाऍ दुव्विसहं ॥' तो सोउं नियचरियं संजायं तीऍ जाइसरणं तु । संवेगगयाऍ तओ गहिया दिक्खा गुरुसमीवे ॥ दुकरतवनिरयाए ओहिण्णाणं इमीऍ उप्पण्णं" । तत्तो पवत्तिणित्ते" ठविया सूरीहि जोग्ग त्ति" ॥ विहरतीय कमेणं संपत्ता कूववंद्रनगरम्मि" । रिसिदत्ताए गेहे वसहिं मग्गित्तु उत्तरिया || बहुसाहुणीहिं" सहिया कहइ य धम्मं जिणिंदपण्णत्तं" । सुइ महेसरदत्तो रिसिदत्तासंजुओ निच्चं ॥ अह अण्णम्मिँ दिणम्मी संवेगत्थं इमस्स सा गुणइ । सरमंडलं असेसं जहा इमेयारिससरेण || होइ नरो इयवनो तहा इमेयारिसेण इयवरिसो" । एवंवि य पुणो इयें आऊ होइ अवियप्पो || एवं विहसणं होइ मसो गुज्झसभायम्मि | एवं विण य पुणो रेहा ऊर (रु) म्मि संभवइ | माई अन्नं पि हु सवं सरलक्खणं सुणेऊण । सोहु महेसरदत्तो चित्तम्मि विभावए एवं || 'नूणं मह दइयाए सरलक्खणजाणियाऍ आइडो" । गुज्झएसम्म मसो रेहा वि य तस्तै पुरिसस्स ॥' १ धरी तओ. ६ तं सोडं. ७ ११ पवित्तणिते. १५A B साहुणी ए य. २० इयाभाऊ. ११५ २२३ २२४ २२५ २२६ २२७ 10 २२८ २२९ २३० २३१ २३२ २३३ २३४ ५ एवाह. २८ एसा उ. ३ ८ तईया. ४ कओ पुढच. 'चरिउं. CL गयाइ. ९ L ओहिनाणं. १० L उप्पन्नं. १२ जोगत्ति. १३८ 'रंती कम्मेणं. १४ L कूववदनयरम्मि. १६८ पनतं. १७ अन्नम्म. १८८ इयसरिसो. २१८ आयो. १९८ विहे २२ तस. २३५ 5 15 25 Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३७ 15 ११६ सिरीदेवचंदसूरिकया [२३६-२४८] तो विलविउँ' पयत्तो-'हा हा अइनिग्घिणो अहं पावो। कूरो अणजचरिओ अवियारियकजकारि त्ति ॥ २३६ जेण मए सा बाला सरलक्खणजाणिया अरण्णम्मि । एगागिणी विमुक्का ईसावसविनडियेमणेणं ॥ करपत्तं वररयणं हारवियं निच्छयं अपुण्णेणे । मरणेण विणा सुद्धी नत्थि महं किं च बहुएण ॥ २३८ इय विलवंतं सोउं भणइ इमा नम्मया- 'अहं सा उ।' कहइ य जं जहवत्तं नीसेसं अप्पणो चरियं ॥ २३९ 'तो संपइ मह भाया तुमं अओ कुणसु संजमं विउलं ।' सो वि तयं सोऊणं खामइ परमेण विणएण ॥ २४० 'खमसु तयं जं तइया अइनिद्दयकूरचित्तजुत्तेण । घोरम्मि दुहसमुद्दे पक्खित्ता सुद्धसीला वि॥' २४१ तो भणइ नम्मयासुंदरी वि- 'संतप्प मा तुमं एवं । अणुभवियव्वे कम्मे निमित्तमित्तं तुम जाओ। जंपइ तओ महेसरदत्तो- 'गिण्हामि संजमं इण्हि"। नीसेसकम्मदलणं आगच्छइ को वि जइ सूरी ॥' २४३ एत्थंतरम्मि पत्तो अजसुहत्थीगुरू तओ एसो। तस्स सयासे गिण्हई रिसिदत्तासंजुओ दिक्खं ॥ २४४ काऊण तवं दोण्णि वि पवरैविमाणम्मि सुरवरा जाया। तत्तो वि चुया कमसो मोक्खं जाहिंति गयदुक्खं ॥ २४५ मयहरिया वि हु" निययं जाणित्ता आउयस्स पजंतं । विहियं विहिणाऽणसणं तियसो तियसालये जाया ॥ २४६ तत्तो चविउं होही अवरविदेहे मणोहरो नाम । रायसुओ गुणकलिओ भोत्तुंरजं तहिं विउलं ॥ २४७ लघृण संजमसिरि उप्पाडित्ता य केवलं नाणं । संबोहिऊण भविए गच्छिस्सई सासयं ठाणं ॥ २४८ १. सो विलवियं. २ A B °णो महापावो. ३ L अरन्नम्मि. ४ L °नडीय. ५. निच्छियं अपुलेणं. ६A B किं तु बहु . C D किं व बहु. ७ °या असंसाओ. ८. य जं जं वत्तं. ९c D तो. १० गिन्हामि. ११L इन्हि. १२ - गिन्हा. १३ दुति वि वारुविमा. १४ - मुक्खं. १५ । वि हु निच्चं निययं. १६ - आऊयस्त. १७. सालए. १८ भुत्तं. १९ - भग्वे गच्छिसह. 00 25 Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२४९] ११७ नम्मयासुंदरीकहा। इय पवरसईए नम्मयासुंदरीए चरियमइपसत्थं कारयं निव्वुईए । हरिजणयसुहिंडीमज्झयाराउ किंची *लिहियमणुगुणाणं देउ सोक्खं जणाणं ॥ ॥ इति नर्मदासुंदरीकथानकं समाप्तमिति ॥ २४९ १. मुक्खं. २ इति is not found in L. ३L °नकं सम्मत्तं. * In the margin of L उद्धरित्तम् is written as a gloss on लिहियम्. Following words in different handwritting are written in L at the end: नर्मदासंदरीकथा श्रीस्तम्भतीर्थभाण्डागारे मुक्ता मु. मोहनसागरसौभाग्यसागराभ्याम् सं. १७०५ वर्षे ॥ ernational www.jainel Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिण पह सूरिरइया नमयासुंदरिसंधि अज वि जस्स पहावो वियलियपावो य अखलियेपयावो । तं वद्धमाणतित्थं नंदर भवजलहिबोहित्थं ॥ पणमिवि पणइंदह वीर जिनिंदह सिरिन मयासुंदरि गुणजलसुरसरि सिरिवद्धमाणु पुरु अस्थि नयरु तहिँ वसई सुसावगु उसहसेणु तब्भजवीर मइकुक्खिजाय सहदेव वीरदासाभिहाण नहु देइ सिट्टि मिच्छत्तिआण अह कूव चंदनयरा गएण वणिउत्तरुद्ददत्ताभिहेण अम्मापईहिं परिवजिभाइ पुरि वद्धमाणि सहदेवघरिणि उप मणो[र] हु पिअयमेण गब्भाणुभावि तहि रहिउँ चितु हि कारिउ जिणचेइउँ पवित्तु अह नमयासुंदरि सुंदरीइ लावन्नरूव निरुपमकला हिं पिअमाइपमुहु सयलु वि कुटुंब उच्छा हिउ रिसिदत्ताइ पुत्तु आवजिर्ड गुणिहिं सुसावयत्तु नमया परिणीय महेसरेण रिसिदत्त तीइ कय एगचित्तं आणंद सयलु वि नयरलोगु ओलोअणि अह निअमुहु पमत्त तंबोलपिक्क तिणि मुक्क जाव चरणकमलु सिवलच्छिकुलु । किंपि थुणिवि लिउँ जम्मफलु ॥ The original readings of the Ms. are noted here :-- १ अक्खलिय. आण. ३ धरणि. ४ उपन्नु. ५ पूरीउ. ६ रहीउ ७ ° चेई उ. ८ आवज्जीउ. १० चित्तु. ११ पडीअ. १ [ १ ] १ तहि संपइ नरवद्द धम्मपवरु । अणुदिणु जसु मणि जिणनाहवयणु । २ दो पवरपुत्त तह इक्क धूअ । रिसिदत्त पुत्ति गुणगणपद्दाण । रिसिदत्त इब्भपुत्ताइयाण । परिणीअ कवडवरसावरण । तहि पत्त चत्तधम्मा कमेण । हुउ पुत्तु महेसरदत्तु ताइ । सुंदरि नमयानइन्हाणकरणि । गन्तूण तत्थ पूरि कमेण । सहदेवहि नमयापुरु सवित्तु । मिच्छत्तरायजयपत्तु पन्तु । धूआ पसूअ गुणसुंदरी अ (इ) । तहि वद्धइ नमया निम्मलाहिँ । आणावि तहँ पुरि निव्विलम्बु । ववसाइ महेसरदत्तु पत्तु । पडिवजिउं रंजिउ ताहँ चित्तु । तउ कूवचंदि पहुतउ महेण । जिणनाहधम्मि सासुरयजुत्त । नम्मयगुणेहिं तह सयलवग्गु । दप्पणि पिक्खिवि वक्खित्तचित्त । २१ अह जंतह मुणिसिरि पडिओ ताव । २२ २० २ mr 2009 ३ ६ ७ ८ ९ १० ११ १२ १३ १४ १५ १६ १७ १८ १९ २ मिच्छती९ वज्जीउ. Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमयासुंदरिसंधि। ११९ मुणि जम्पद "कुण जि मुणिवराण आसायण होइ विओगु ताण'। २३ इ सुणिवि झत्ति उवरिमखणाउ उत्तरिवि साहु खामइ पमाउ। २४ सा नमिवि भणइ "तुम्हि खमनिहाण पहणंतथुणंतह दयपहाण। २५ सावस्स अणुग्गहु मह करेह अवराहु एकु मुणिवर ! खमेह"। २६ मुणि भणइ “भावि पिययमविओगुं निअॅनिव(बि)डपुव्वकम्मिण अभङ्गु । २७ मइँ जाणिउ नाणिण कहिउ तुज्झ नहु सावु एहु मा वच्छि! मुज्झ"। २८ ॥ घत्ता ॥ इों मुणिपहुवयणिहिँ अमिअसमाणिहिँ अप्पदुक्क्षसंवेगजुय । पिअयमि आसासिर्भ सीलि पसंसि करइ धम्मु निम्मलचरिय॥ २९ [२] अन्नया रुद्ददत्तङ्गओ चल्लए जवणदीवम्मि बहुदव्वअजणकए। १ पोअवणिजेण वञ्चंतु मुकलावए सयणवग्गं तहिं नम्मयं ठावए। २ कह वि नहु ठाइ सह चलइ नमयासई जा चलइ पवहणं कोइ ता गायई। ३ सुणिवि सरलक्खणं कहइ पइअग्गए नम्मया “गाइ जो पुरिसु सो नजए ।४ पिङ्गकेसो अ बत्तीसवरिसो इमो पिहुलवच्छत्थलो सामलो सकमो"। ५ इय सुणिवि पियअमो° चिन्तए दुद्दमा जा इमं मुणइ सा नूणमसई इमा। ६ इत्तियं कालमेसा मए जाणिआ साविआ सीलविमल त्ति सम्माणिआ। ७ कुलकलङ्कस्स हेउ त्ति मारेमि वा तिक्खसत्थेण जलहिम्मि घल्लेमि वा ।८ अलिअकुविअप्पपूरिअमणो जा गओ रक्खसद्दीवु सहस त्ति ता आगओ। ९ उत्तरिउ तत्थ पाणीअइंधणकए नम्मयासहिउ सो दीवु अवलोअए । १० तहि परिस्सन्त सरवरह पालिं गया निदहेउं पयं पुच्छए नम्मया। ११ सो वि छडुणमणो भणइ विस्सम पिएँ तरुतले सुई जा ता सणियमुट्टए। १२ सुत्तयं नम्मयं मुत्तु निट्ठरु मणे झत्ति संपत्तु मायानिही पवहणे। १३ पुट्ट परिवारि सो कहइ रोअन्तओ "भक्खिा रक्खसेणं पिआ हा हओ। १४ एअठाणाउ चालेह लहु पवहणं जा कुणइ रक्खसो तुम्ह नहुभक्खणं"।१५ इभ सुणिवि तेहि भीएहि संचारिअं पवहणं जवणदीवम्मि तं पत्तयं । १६ तत्थ विकिणिवि पणि"सलाभोगओ निअपुरं कहइ अम्मापिऊणं तओ। १७ रक्खसोवहवं नम्मयाए दुहं । पुण वि परिणाविओ भुंजए सो सुहं । १८ जग्गए नम्मया जाव इत्थन्तरे पिच्छए नेव तहिं पिअयमं परिसरे। १९ विलवए "नाह हा कंत तं कहिँ गओ असरणं मं विमुत्तूण अइ निद्दओ। २० बीससिघायमहदावपज्जालणं सुगुरुआसायणादेवधणभक्खणं । २१ पुत्वजम्मे मए किं कयं दुक्कयं अकयअवराह जंजाइ पिउ मिल्हि" ।२२ पंच उववास काऊण अह चिन्तए सरिवि मुणिवयणु इय अप्पयं बोहए। २३ "चलइ जइ मेरु उग्गमइ पच्छिमरवी टलइ नहु पुवकयकम्मु पुण कहमवी"।२४ १ ईअ. २ पीययमवीओगु. ३ नीअ. ४ ईअ. ५ अमीअ. ६ दुःख. ७ जूय. ८ आसासीअ. ९ पसंसीअ. १. पीयअमो. ११ पीए. १२ सूअइ. १३ भक्खीआ. १४ पणीअं. १५ वीससीअ.. . Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० धीरविअं चित्तमह कुणइ सा पारणं लिपमउ बिंदु ठावेवि गुहअन्तरे " रक्खसुद्दीषु मिल्हेवि जइ गम्मए इय विचिन्तेवि चिंधं जलहितीरए बब्बरे' कूलि पोषण वञ्चंतओ नम्मयं पिच्छिउं पुच्छए वइअरं जिण पहसूरिरइया संबोहिवि जुत्तिर्हि पेमपउत्तिहिँ पवहणि आरोविउ सीलि पमोइउ १ धीरवीअ. २ ववरे. ८ डच्छेदा. ९ वीरुदासु. वीरदासु तहिँ कूलि नरेसरि हरिणी वेसा तहिँ निवसेई प्रवहणप्रति दीणार सहस्सू दासि भणइ " तुम्हि सामिणि वंछइ" तत्ति धणु पेसइ तसु हत्थिहि वीरदासु एती कल (?) आणि " खोभिउ हावभावविन्नाणिहि वीरु सदार तिणि जाणिउ व (वे) सं दासि भणइ एगन्ते भयणि सुआ वा निरुवमरूवा इअ मन्तिवि तिणि मुद्दारयणू पडिछंद दिसणमिसि पेसिअ "तेडइ तुम्हि एवडअहिनाणिहि नाममुद्द पिक्व चिंतिवि बहु हरिणी गिहपच्छलि भूमीहरि मुद्दा दासिहि अप्पिअ वीरह उट्टि सिट्टि जाइ नियमंदिरि घर बाहिरि पुरिन [ल] हइ सुद्धि कड्डिय भूमिगिहाउ महासइ सयलरिद्धि " एअह तइँ सामिणि गुहु ता [म]ल्हि असग्गहु" वज्जहय व्व भणेइ महासइ सीलु सयदुक्खखर्यकारणु नरयनयर गोपुरु वेसत्तणु २६ छदिणि फलिदिँ कयदेवगुरुसुमरणं । २५ थुइ पूरइ मणु ठवइ झाणन्तरे । भरह खित्तम्मि जिणदिक्ख गिहिजए" । २७ भग्गपो अत्तसंसूअगं उभए । चिंधु पिक्खेवि पि बन्धु तहिँ आगओ । २९ कह रोअन्त सा विसु जं दुत्तरं । २८ ३० ॥ धन्ता ॥ वीरदासु तदुहदुहिउ । बब्बरि" गड नम्मय सहिउ ॥ [ ३ ] ३ ४ ६ ७ पूर्ड नमया ठावइ मन्द (न्दि ) रि । वीरपास दासी पेसेई । निवपसाइँ सा लहइ अवस्सू । वीरु सीलनिहि तहिँ नहि गच्छइ । हरिणि भणइ "अम्ह काजु न अत्थिहि । ५ भणितिभङ्गि तिणि आणिउ प्राणि । न चलिउ जिम सुरगिरि बहुपवणिहिं । कवडिहि हरिणी सो वक्खाणिउ | "नारि ज दिठ्ठा सिट्टिगिहन्ते । सा जइ वेस तु हुइँ वसि देवा" । मग अपि सिट्टि पहाणू । मुद्दा नमया (यं) दंसिअ दासिअ । वीरदासुं आवर अम्ह भुवणिहिं" सह दासिहिं नमया आविअ लहु । पुव्व सिक्ख तिणि घल्लिअ निट्टुरि । नमया दोसु देइ दुक्कम्मह । ता नहु पिच्छइ नमयासुंदरि । भरुच्छि गउ कयबुद्धि सरिद्धि । जाणिउ वीरु गयउ अह दंसइ । करउँ होसि जइ वेसा भामिणि । हरिणिवयणु निसुणिवि नमया लड्डु | " मह जीवन्ति सीलु न नस्सइ । सीलु सिद्धिसुरलच्छिहि कम्मणु । उत्तमनिन्दितसु किं वन्नणु" । । ४ पमोईउ. ३ वईअरं. १० 'जीवन्तीअ ५ बव्वरि. ११ क्खयकारणु. ३१ ६ पूईउ. १२ निन्दीअ ८ ९ १० ११ १२ १३ १४ १५ १६ १७ १८ १९ २० २१ २२ २३ २४ ७ सील. Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमयासुंदरिसंधि । १२१ तं निसुणिवि तच्छइ निब्भच्छह हरिणी कणइरकम्बिहि कुट्टइ। जइ जलनिहि मजाया मिल्हइ तह वि न नम्मय सीलह चल्लइ।। जाइ धरणितलु जइ पायालह तुहिउ पडइ गयणु जइ मूलह ।। तिमिरु तरणि जइ ससि विसु वरिसइ तह वि न नम्मयसीलु विणस्सइ। इयं अचलंती बहुहा ताडइ स(ल)ट्ठि मुट्टि पुण सत्त न पाडइ । कुणइ सई परमिट्टिहि सरणं तसु पभावि हुइ हरिणीमरणं। जाणिउ सद्धि नरिन्द निवेसह तसु पदि नमया कारणि मन्नइ। चिन्तइ “मज्झ सील नहु भंजइ इंदु वि" अह निवु तहिँ हक्कारइ । वेसागिह निग्गमु सुंदरु मणि । जाणिवि निवपेसिअसुक्खासणि । आरोहिवि पहतडि उग्घडियह जन्ती पडइ मज्झि सा खालह । कद्दमि तणु लिम्पणमिसि नि अहिअ गहिअ सीलरक्खणि सन्नाहि । सहमयणिहिँ पत्तइँ किर फाडइ वत्थमिसिण सा पमुइ हि अडइ । लंखइ धूलि भूअङ्गत्तासणि नच्चइ गायइ सतीसिरोमणि । सार मुणिवि निवु गुणिआ पेसइ पाहणलंखणि ते वि तासइ । ॥ घत्ता ॥ इय गहिली जाणिय बुद्धि पहाणिअ सीलसकलडिम्भिहि कलिअ । निवपमुहिहिं लोइहि मुक्क अमोहिहि भणइ थुणइ जिणु अक्खलिय ।। [४] मित्तह जिणदेवह कहइ वीरु नम्मयवइअरुं तसु खिवइ भारु । भरुअच्छह गच्छइ नियपुरम्मि जिणदेव पत्तु अह कूलि तम्मि । दिट्ठा नञ्चन्ती विगलरूव जिणदेवि पुट्ठ "तउ किं सरूव"। सा भणइ “कहिसु वणचेइअम्मि" अन्नोन्न कहिउ वइअरु वणम्मि । सो बुद्धि देइ सा धरह चित्ति अह घयघड फोड गहिलिअ त्ति । घयवणि कुणइ निवपासि राव जिणदेवह कहइ नरिंदु ताव।। "ए करइ उवद्दवु घणउ देसि पवहणि आरोहिवि लइ विदेसि"। नरनाहवयणु मन्नेवि नियलि बंधिवि चडावि पवहणि विसालि । भरुयछि वन्दाविवि देव नीअ जिणदेवि नमय पिअहरि विणी। रोअन्त कहइ वुत्तन्तु सयलु पियरिहिं पुरि उच्छवु विहिउ अतुल । १० नमयापुरिअ दसपुव्वधारि सिरिअजसुहत्थि संपत्तु सूरि । वंदइ सहदेवु कुडुम्बकलिउ निसुणेवि धम्मु नमयाइ सहिउ । अह वीरदासु पुच्छइ मुणिंदु "किं नम्मयाइ किउ कम्मविन्दु । पुग्विल्लजम्मि जं दुक्खजुत्त पइचत्त जिअन्ती कह वि पत्त।" अह कहर मुणीसरु “नम्मयाई एयाइ विंझगिरिनिग्गयाइ। अहिठायग देवय आसि एह पुग्विल्लजम्मि मिच्छत्तगेह । पडिमापडिवनह मुणिवरस्स एगस्स नईतडि निसि ठिअस्स। एए नइन्हाणह निन्दग त्ति। पढमं पडिकूलुवसग्ग गत्ति। १८ १ नमय. २ ईय. ३ °मिसिणि. ४ पमुईअ. ५ बुद्धि. ६ अमोहिंहिं. ७°वाई अरु. ८ नचन्ति. ९ वई अरु. १० °बिन्दु. ११ नम्मयाई. १२ गति. नम० १६ arm 389 VAAMAJ . Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२२ जिणप्पहसूरिरइया पच्छाणुकूल थीरूषपमुह कय खोभहेउ देवीह दुसह । अक्खुहिउ खमावइ सा वि साहु मुणि कहिअ धम्मि तसु बोहिलाहु। २० सा देवि चविवि सहदेवधू हुय नमयासुन्दरि गुणिहि गरुय । पडिकूलिहि तसु हुउ पइविओगु अणुकूलि सीलखोहणपओगु"। इय निअभवु निसुणि[वि भव] विरत्त चारितु लेह नम्मय पवित्त । इक्कारसङ्गधरगणहरेण सा ठविय महत्तरपदि कमेण । फुडअवहिनाणजुये सह मुर्णिदि विहरंत पत्त पुरि कूवचन्दि। कउ तीउ(इ) महेसरु निवियप्पु सरलक्खणेण निदेइ अप्पु । "जाणिजइ सत्थपमाणि सव्वु तउ नमया जाणिउ पुरिसरूवु। म. दुष्टि निकिट्टि सुसील चत्त कंता तसु पावह दिक्ख जुत्त"।। नम्मयमुवलक्खिवि चरणु लेइ रिसिदत्तसहिउ सो तवु तवेइ ।। आराहिवि अणसणु सम्गि जंति तिन्नि वि अणुवमु सुहु अणुहवंति। ३० ॥ घत्ता ॥ कल्लाणह कुलहर होअउ जयकर नमयासुंदरिसंधि वर।। अब्भत्थणि सङ्घह रइओ अणग्घह पढत-सुणन्तह उदयकर ॥ ३१ सरिया वि सीलजुन्हा जीसे सुकयामएण तियलो। सिंचइ बीइन्दुकल व्व नम्मया जयइ अकलङ्का ॥ तेरससय-अ.वीसे वरिसे सिरिजिणपहुप्पसारण । एसा सन्धी विहिया जिणिन्दवयणाणुसारेणं ॥ ॥ श्रीनर्मदासुन्दरीमहासतीसन्धी[:] समाता ॥ १ जूय. २ कूविचन्दि. ३ अणुसणु. ४ रईअ. ५°पसाएण. Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीन गुजराती गद्यमय नर्मदा सुन्दरी कथा ॥ ६ ॥ हिव नर्मदासुंदरीनी कथा कहर || एह जि जंबूद्वीपमाहि वर्धमानपुर नगर । तिहां संप्रति राजा राज करइ । तीणइ नगरि रुषभ सार्थवाह वसइ । तेहनी भार्या वीरमती । तेहनइ वि (बि) पुन (त्र) एक सहदेव १ बीजउ वीरदास २ । अनई रुषिदत्ता एहवइ नामि पुत्री महारूपवंति यौवनावस्थाइं आवी । तेतलइ घणा महर्द्धिक व्यवहारीया मांग । पणि श्रेष्ठ मिथ्यात्वीनइ आप नही । इसइ महर्द्धिक रुद्रदत्त नामि वणिगपुत्र वाणिज्यनइ हेति रूपचंद्रपुरहूंतउ तीणइ नगरि आविउ । पणि ते कुवेरदत्त मित्रन घरि आवी ऊतरिओ । अनेक व्यवसाय करइ । आपणा घरनी रीति तिहां रहइ । अन्यदा रुषित्ता सखीइं परिवरी वारणइ रमती दीठी । हित्र रुद्रदत्त मित्र आगलि कहइ "ए कन्या कुमारिका छइ किंवा मांगी छन्” । तिवारई कुवेरदत्त कहइ "ए कुमारिका छइ । पणि ए श्रेष्टि जिनधर्म टाली अनेरा कुणहींनई न आपइ" । तिवारई रुद्र मिथ्यात्वीइं थकउ रुषिदत्तानई लोभई कपटश्राव [क] थई जैनधर्म पडिवजिउं । कांइ माया लई गाढाइ विवेकीना चित्त आवर्जियइ । पछइ रुषभसेन सार्थवाहि श्रावक भणी आपणी पुत्री रुषिदत्ता रुद्रदत्तनई दीधी । तिहां पाणिग्रहण महोत्सव हूओ । केतला - एक मास तिहां अतिक्रम्या । तिसइ रुद्रदत्त ससुरानई पूछी प्रिया सहित आपणइ नगरि आविउ । तिसइ रुद्रदत्तनउ पिता वधूनइ आगमनि महाहखि (खि) ओ । इम घरि रहतां रुद्रदत्ति जिनधर्म छांडिउ । रुषिदत्ताई पणि भर्तारना संसर्ग लगइ जिनधर्म छांडिउ । क्रमिदं महेश्वरदत्त पुत्र रुषिदत्ताइं जन्मिउ । क्रमिदं सर्व कला अभ्यसी मोटर हूओ । इसइ रुषित्तानउ वडउ बांधव सहदेव भार्या सुंदरी सहित सुखिई रहइ छ । एहवइ तिणि सुंदरीइं अपूर्व सउंणउं देखिउं । तेहनइ योगि आधान धरिवा लागी । क्रमि वृद्धि पामतइं एहवउ डोहलउ ऊपनउ । जाणइ जउ नर्मदानदी मोहि जई स्नान करउं । ए वात भर्तार आगलि कही । पछई सहदेव संवातनी रचना करी सुंदरीनई साथि लेई चालिउ । हिव नर्मदानई कांठइ आत्री पूजा अर्चा करी नर्मदामांहि पइसी जलक्रीडा कीवी । पछईं सहदेव व्यवसायनइ सुखिइं तिहां नगरनी स्थापना कीधी । नर्मदापुर नाम दीघउं । तिहां जिनमंदिर कराविउं । सम्यक्स्वपिंड पोषिवा भणी पछई सघलाई व्यवहारिया आपणा नगर मूंकी तिहां आवी वस्या | इस पूरे दिवसे पुत्री जन्मी । पणि पुत्रजन्मनी परिहं उत्सव कीधउ । नर्मदासुंदरी ए नाम दीधरं । क्रमिदं क्रमिदं सघलीइ कला अभ्यसी यौवनवस्थाइं आवी । इस नर्मदा सुंदरीनउं रूप सांभली रुषिदत्ताइं चींतविउ "जउ माहरउ पुत्र महेसरदत्त तेन हेति एनमयासुंदरी मागीइ । अथवा मुझनई धिग् धिक्कार हुउ । जे मइ जिनधर्म छांडत हूं कुटुंबियई छाडी । जे हूं पर्वतिथिना नामहं न जाणउ ते माहरा पुत्रनई 1 1 Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४ प्राचीन गुजराती गधमय किम देस्यइ ?" इम कहती रोवा लागी । तेतलइ रुद्रदत्त आविउ । तिणि पूछिउं "तूं असमाधि कांइ करइं?" तिवारई रुषिदत्ताई सर्व वृत्तांत कहिउँ । एहवइ महेश्वरदत्त पुत्र मा-बापनी वात सांभली कहिवा लागउ "तात मझनई तिहां मोकलउ । जिम सघलाई आवर्जी माउलानी पुत्री परिणी मानइं हर्ष ऊपजावउं ।" पछई पिताई महेसरदत्त चलाविउ । थोडे दिहाडे पंथ अवगाही नर्मदापुरि आविउ । तिहां सहदेवनई मिलिउ । हिव महेसरदत्त तिम बोलइ तिम चालइ जिम सहदेवादिक सहू मनि चमत्कर्या । पछई उत्संगि वइसारी कहिवा लागा "वत्स तइं अम्हारा चित्त आवा जिम जांगली विद्याई करी साप वशि थाइ तिम अम्हे तई वशि कीधा । तउ वत्स मागि जि कांई मांगइ ते आपउ ।" तिवारई महेसरदत्ति नर्मदासुंदरी मांगी । पछइं माता-पिताए दीधी । तिहां महेसरदत्ति जिनधर्म पडिवजिउं । शम-शपथ कीधा जु इणि भवि जिनधर्म टाली अवरधर्म न करउं । पछइं महाआनंदि महोत्सवि नर्मदासुंदरीनउं पाणिग्रहण कीधउं । केतलाएक दिन तिहां रहिउ । हिव नर्मदासुंदरीइं तिम जिनधर्मना उपदेस दीधा जिम महेसरदत्त जिनधर्मनई विषइ गाढउ निश्चल हुओ। पछइं केतलेएक दिहाडे ससुरानइं कही भार्या सहित महेश्वरदत्ति आवी मातापितानई प्रणाम कीधउ । तिसइ रुषिदत्ता नर्मदासुंदरीनइं उत्संगि बइसारी कहइ “वत्सि तई तिम करिवउं जिम मिध्यात्वनउं नाम घरमा न रहइ ।" हिव महेसरदत्त नर्मदासुंदरी सुखिइं काल गमाडतां सर्व खजननई मान्य हुआ । अन्यदा नर्मदासुंदरी गउखि बइठी आरीसह आपणउ मुख जोवती, तंबोल खाती, अनेक चित्रम करती लीलालगी तंबोल वारणइ नांखिउ । इसइ महातमा, एक तलई जातउ हूंतउ तेहनइ माथइ तंबोल पडिउ । तेतलइ महातमाई कहिउँ "इम जे रुषिनी आशातना करइ ते भर्तारनउ वियोग पामइ ।" इस ते महातमानउ सकोपवचन सांभली विषादपर नमयासुंदरी गउखिहूंती ऊतरी महातमाने पगे लागी, कहिवा लागी "हे महात्मन् ! हूं वरासी जे हूं जिनधर्म जाणतीहूंती एवडउ अविनय कीधउ । तउ हिव तुम्हे विश्वनई वत्सल छउ । मझ ऊपरि क्षमा करउ । तुम्हेतउ वहरीई ऊपरि कोप न करउ । पछई मझ ऊपरि किम करिस्यउ । तथापि मझ अभागणी ऊपरि शराप परहउ करउ ।" तिसह मुनि बोलिउ "हे वत्सि! सांभलि, खेद म धरिजे । जे महातमा हुई ते शाप अनई अनुग्रह न करई । पणि न जाणउं माहरा मुखहूंतउ एहवउ वचन किमहीं नीकलिउ। अथवा वली जे नींबनइं कडुअपणउ हुइ ते कोई करइ छइ सिउंना; ते तउ स्वभावई जि हुइ।" इम प्रतिबोधी महातमा आपणइ ठामि गयओ । नमयासुंदरी पाछी घरि आवी । सुखिइं घरि रहइ छ । इसइ अनेरइ दिवसि महेसरदत्त व्यवसाय भणी जवनद्वीप भणी चालिवा लागउ । तेतलइ नमयासुंदरी कहइ "स्वामी ! हूं पणि साथि आविसु ।" पछई नमयासुंदरी संघाति चाली । हिव समुद्रमांहि प्रवहणि बइसी चालतां अर्धपंथ अवगाहिउ जेतलइ, तेतलई रात्रिनइ समइ कुणही एकणि गीत गायउं । ते गीत सांभली नमयासुंदरी खरना लक्षण जाणती हूंती भरिनई आश्चर्य ऊपजावा भणी कहिवा लागी "खामीन् ! जे ए गीत गाइ छइ ते सामलइ वर्णि छइ । स्थूल हाथ छई । कृश देह छई । गुह्यप्रदेशि मश Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नर्मदासुंदरीकथा। १२५ छइ । शेण लांछन छइ । बावीस वरसनउ छइ । हीयउ पिडुलउ छइ ।" इत्यादि स्त्रीना वचन सांभली महेसरदत्त मनमांहि चीतवइ “ए नमयासुंदरी कुसीलिनी संभावियइ । अन्यथा एतली वात किम जाणइ । तउ हिव परीक्षा कर।" पछइं प्रभाति ते पुरुष तेडी सर्व अहिनाण जोई मनि निश्चय कीधउ "तां सही ए कुसीलिनी जि छइ । इहां संदेह कांई नहीं।" पछइं गूढ कोप धरतउ चींतवइ "एतला दिन हूं इम जाणतउ जु ए महासती छइ । पणि तउ आज पारिखउं दीठउं । तउ हिव एहनइ समुद्रमांहि ठेली दिउं । अथवा खड्गकरी केलिनी परिई विखंड करडं।" इम जेतलइ चीतवइ छइ तेतलइ अकस्मात् निर्यामक कूआखंभा ऊपरि चडीनई कहइ “अरे लोको ! प्रवहण राखउ । सिढ पाडउ । नागर मूंकउ । राक्षसउं द्वीप आविडं। जल-इंधणनी सामग्री लिउ ।" इम कही आपणउं प्रवहण राखिउ । सर्व संग्रह कीधउं । इसइ महेसरदत्त मायालगइं गूढ कोप धरतउ नर्मदासुंदरीनइ वनमांहि लेई गयउ । अनेक तलाव देखाड्या । वली सर्व वन देखाडी संध्याई किहां एक वननिकुंजमांहि जई सूता । तेतलइ पूर्वोपार्जित दुःकर्मलगइं नर्मदानई निद्रा आवी । तेतलइ महेसरदत्त नमया सूती जि मूकीनइ प्रवहणि आविउ । लोकानई कहइ "अहो ! लोको नासउ नासउ; कांता तउ राक्षसई खाधी । हूं नासी आविउ । तुम्हे चालउ, नहींतर राखिस आवी खासीइ ।" तिवारई बीहता लोक प्रवहणि चडी चाल्या । पछई महेसरदत्त चीतवइ "मई बिन्हइ वात कीधी । दुःसीलिनी स्त्री पणि छांडी अनई लोकनउ ई अपवाद राखिउ ।" हिव क्रमई क्रमई जवनद्वीप आविउ । तिहां घणउ धन उपार्जी आपणइ नगरि आविउ । अनइं प्रियानउं खरूप कहिउं । जु राक्षिसई प्रिया भरखी । पछई असमाधि करी नमियाना प्रेत कार्य कीधा । वली महेसर नवी वार परणाव्यउ । हिव नमयासुंदरी वनमांहि जिम सूती हूती तिम जि पुकार करती जागी । पणि आगलि भर्तार न देखइ । तिसइ नमया भोलपण लगई कहइ "खामी ! एहवउ हासउं न कीजइ ।" तउ ही पति नावइ । तेतलइ ऊठी वनमांहि जोवा लागी । पणि भर्ता न देखइ । तिवारइ नमया रोवा लागी । तिणि रोवतां जे वनमाहि खापद छइ ते ही रोवा लागा । पछई लताना घरमांहि रात्रिइं रही । पणि रात्र सउ वर्ष समान हुई । वली प्रभाति रुदन करती, वन जोवती, पांच दिन अतिक्रमावी, छट्टइ दिनि जिहां प्रवहण हूंता तिहां आवी । देखइ तउ आगलि प्रवहण नहीं । तिवारई गाढेरी निरासथकी रुदन करती ते मुनिनउ वचन चीति आविउ । पछइं थोडेरी असमाधि करिवा लागी । इम आपणउं पूर्वोपार्जित कर्म भोगवती, आत्मानइं प्रतिबोध देती, महासतीइं सरोवरि स्नान करी, वनमांहि देव वांदी, फलाहार करीनइं तापसी हुई । पछई गुफामांहि माटीनी प्रतिमा करी, मननई स्थिरता भणी फलफले पूजी, आगलि बइठी सिझाय करइ । एकाग्रचित्त दीक्षाना ध्याननई तत्पर हूंती रहइ । इसइ ते नमयानउ पीतरियउ वीरदास बब्बरकूल भणी जातउ हूंतउ तीणइं प्रदेशि जिहां गुफामांहि खामीनी स्तुति करइ छइ तिहां आविउ । पछई ते स्तुति सांभली वीरदास गुफामांहि पइठउ । तिसइ साश्चर्यरूपि वीरदासई भत्रीजी देखी कंठि आलिंगी शोक Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६ प्राचीन गुजराती गद्यमय अनइं हर्ष धरतउ पूछिवा लागउ "हे वत्सि ! तूं एकाकिनी इहां कांई अथवा तूं किम आवी ?" इम पूछिइ हूंतइ नमयाई आपणउ सर्व वृत्तांत कहिउं । पछई वीरदास दैवनइं उलंभा देतउ हूंतउ नर्मदासुंदरीनई संघाति लेई बब्बरकूल आविउ । तिसइ नमयासुंदरी ऊतारई मूंकी पछई वीरदास मेटि लेई राजानई मिलिया गयउ । राजाई बहुमान देई अर्थदाण मूकिउं । पछई वीरदास क्रियाणा वेचिवा लागउ । हिव तिहां हरिणी नामि पणांगना वसइ । पणि ते प्रवहणी लोककन्हलि सहस्र दीनार लिइ । ते लेवा भणी दासी एक वीरदासनई उतारइ मोकली । तिणि दासीई नमयासुंदरी दीठी रूपवंति । तिणि जई हरिणीनइ कहिउं "जु एहवउं रूप पृथ्वीमांहि नथी । ए जउ ताहरइ घरि आवइ तउ जाणे कल्पवेलि आवी । तीणई द्रव्यनी कोडि ऊपार्जिइं ।” पछई हरिणिइं धन मांगिवानइ मिसि तेह वीरदासनउ चरित्र जोवा भणी वली तेह जि मोकली । तिसइ वीरदासि सहस दीनार दीधा । तिसइ दासी पाछी आवी हरिणिनई कहइ "न जाणियइ वीरदासनी बहिन छइ, अथवा सगी छइ, किंवा दासी छइ । ते जाणियइ नहीं ।" तिवारई हरणी तेहनइ घरि आवी । पछई वीरदासनई बलात्कारि आपणइ घरि लेई गई । मिषांतर करी वीरदास भोलवी हाथनी वींटी नामांकित लीधी । ते लेई वली हरिणीइं दासी हाथि नमयासुंदरीकन्हई मोकली । नामांकित मुद्रा देखाडी नमयानई घरि आणी भउंहरइ लेई घाली । मुद्रिका वलि पाछी आपी । पछई अखंडव्रत वीरदास पाछउ घरि आविउ । जइ ऊतारइ जोवइ तउ नमयानई न देखइ । पछई सर्व नगर जोतउ जोतउ सासंक हरिणीनइं घरि आविउ; पूछइ जु "नमिया किहाँ ?" तिवारई ते कपटपंडिता न मानइ; कहइ "हूं स्यउं जाणउ ।" तिसइ वीरदास चीतवइ "एक कारेली अनई नीबि चडी । तिम एक वेश्या अनइं राजानउ बहुमान । तउ ए साथि न पहुचियइ । एक परदेस; बीजउं जीणइ गोपवी ते किम आपिस्यइ ।" इम घणी असमाधि कीधी । पछई आपणी वस्तु लेई घणउ लाभ ऊपार्जी पाछउ चालिउ । भरूअचि नगरि आविउ । तिहां आव्या पछई परममित्र परमश्रावक जिणदास ते आगलि सर्व वात कही । नर्मदासुंदरीनी सुद्धिनई हेति बब्बरकूल भणी आपणइ ठामि मित्र मोकलिओ। हिव हिरणीई वीरदास चाल्या पछई नमयासुंदरीनई कहिउँ "हे सुभगि! सौभाग्यनउ निधान वेश्यापणउ आदरि । यौवननउं फल लिइ ।" ए वचन जेतलइ हरिणी कहिवा लागी तेतलइ नमयाई कान ढांकी नई कहिलं "ए वात आज पछइ म कहिसि । हूं आजन्म शीलनी खंडना नहीं करउं।" तिवारइं वेश्या कहइ “अम्हारउ जन्म सफल, जे आपणी इच्छाइं विलसउं, भोग भोगवउं ।" तेतलइ नर्मदा कहइ "इणई सुखिई संसारना सुख कउण हारवइ । जां मझनई जीवितव्य तां माहरउ शीलरत्न कुण हरी सकइ । कदापि मेरु पर्वतनी चूलिका चालइ अनई कदापि पश्चिमई सूर्य ऊगइ; पणि माहरउ शील भंग न करउं ।" पछई हरिणीइं अनेक दीन बोल बोल्या लोभ देखाडिउ । पणि तउ ही न मानइ । तिवारइं हराइं पांचसइ नाडी नमयानइं देवरावी । पणि लगारइ ते सतीनङ [मन ? ] शीलनई प्रमाणि खुभिउ नहीं । अनइ शील पणि राखिउं । Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नर्मदासुंदरीकथा । तिसइ नमयानई मारतां शीलनई प्रमाणिइ हरिणी वेश्या मुई । पछई बीजी वेश्या भयभीत हूंती पगे लागी । नमयानइं मनावई "तूं अम्हारइ स्वामिनी था । प्रभुत्वपणई आपणी इच्छाई शील पालि।" पछई नमयासुंदरीइं ते वचन मानिउं । इम करतां प्रधानि नमयासुंदरीनउं रूप देखी प्रार्थना कीधी । पणि मानइ नहीं । तिवारइं प्रधानि राजा आगलि जई नमयाना रूपनी वर्णना कीधी । तेतलइ राजाई नमयासुंदरी भणी पालखी मोकली। तिसइ राजाने सेवके जई महाविस्तारि नर्मदासुंदरी सुखासनि बइसारी, माथइ छत्र धरी चलावी । एहवइ नमयासुंदरी शीलनी रक्षा भणी गहिली हुई । मोटउ एक नगरनउ खाल तेहमांहि ऊलली पडी । लोकानई कहइ "अहो लोको ! माहरइ शरीरि यक्षकर्दम कहतां सूकडि कपूर केसर कस्तूरी लागी छइ ।" इम कहती सघलाई लोकानई कादमसिउं छांटइ अनइं आपणा वस्त्र फाडइ । वली लोक साम्ही धूलि नांखइ । इसइ प्रधानि राजानई कहिउँ "खामी ! न जाणियइ छलभेद हूओ किंवा दृष्टि लागी; तिम ते गहिली थई ।" तेतलइ राजाई मंत्रवादी तेड्या । जेतलइ मंत्र गुणी गुणी सरिसव नांखइ तेतलइ नमयासुंदरी ते साम्हा पाषाण नाखइ । तिम ते मंत्रवादी सर्व नासी गया । हिव नगरमांहि गहिलीनी परिइं फिरइ । वीतरागना गीत गावइ । ___ इसइ ते जिनदास श्रावक भरूवछहूंतउ आविउ । तीणइ ते नमियासुंदरीनई मुखि वीतरागना गीत सांभल्या । तिवारइं जिनदास आगलि आवी दयापरहूंतउ कहिवा लागउ "हे सुभगि ! तुझनई ए स्यउं थयउं ? तूं परम श्राविका जैन भक्ति दीसइ छइ ।" तिवारई नमिया कहइ "तूं जउ जैन श्रावक छइ तउ माहरउ खरूप एकांति पूछे पणि लोक देखता म पूछे ।" हिव अन्यदा गीत गावती वनमांहि जई नमिया देव वांदी गीत गावइ छइ । तिसइ जिनदास पणि केडइ लागउ वनमांहि गयउ । तिहां तेहनइ 'वांदू' इम कही जिनदास पूछिवा लागउ "तूं कउणि ?" तिवारई नमयाइं आपणऊं सर्व वृत्तांत श्रावक आगलि कहिउं । तिवारइं जिनदास कहइ "वत्सि ! ताहरी मोटी वात । जिम तई शील राखिउ तिम बीजउं कोई न राखइ । हिव हूं ताहरइ कीधइ भरूवछहूंतउ आविउ छउं । वीरदास मित्रई हूं मोकलिउ । तउ हिव तूं खेद म धरिसि । जिम रूडउ हुस्याइ तिम हूं करिसु । पणि आज पछई राजमार्गि जेतला पाणीना घडा आवइ तेतला तूं भांजे ।" इम संकेत करी बेऊ नगरमांहि आव्या । पछई नमया पाषाण नांखइ, हांडला फोडइ, लोकनइं संतावइ । इसइ नगरनउ राजा नीकलिउ । तिणि ते गहिली दीठी । तिसइ जिनदास आगलि ऊभओ हूंतउ तेहनई कहिउँ "जउ इणि इ स्त्रीइं नगर सघलउ वानरानी परिई संताविउं । हिव तिम करि जिम प्रवहणि बइसारी एहनइं परद्वीपि लेई जा; जिम व्याधि तूटइ ।" तिसइ जिनदासि वचन पडिवजिउं । मनमांहि हर्खिउ । पछई लोहार तेडी नमयानइं पगि अठीलि घाती प्रवहणि बइसारी, सर्व वाखर प्रवहण भरी, अनेक वस्त वाना घाती, पछई आप प्रवहणि बइसी चालिउ । मार्गि जातां अठीलि भांजी । वस्त्र आभरण पहिरावी नर्मदापुरि आणी । तिसइ पिताइं पुत्री आवी जाणी पिता सामुहउ आविउ । पछई नमयासुंदरी माता-पितानई पगि लागी । तारखरि रुदन करिवा लागी । तिसइ रुषभसेनादिक कहिवा लागा "भलउ हूउं जे अम्हे बेटी Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२८ प्राचीन गुजराती गद्यमय जीवती दीठी । तउ आज पुत्रीनई नवउ जन्म हूओ।" तेह भणी महामहोत्सव करिवा लागा । जैनप्रासादि पूजापूर्वक साधर्मिक वात्सल्यादिक कीधा । केतलाएक दिन साधर्मि जिनदास तिहां रही वीरदासनई पूछी भरूवछ आविउ । - इसइ एकदा आर्य सुहस्तिसूरि दशपूर्वधर विहार करता नर्मदापुरि आव्या । तिवारई नमयासुंदरी मा-बाप पीतरिआ सहित आचार्य समीपि आवी प्रणाम करी आगलि बइठी । तेतल[इ ] श्री सुहस्तिसूरी धर्मलाभ कही धर्मोपदेश दीधउ । तिवार पछई देशनानई अंति वीरदास गुरुनई प्रणमीनई पूछिवा लागउ "खामिन् ! नर्मदासुंदरी भवांतरि कउण कर्म उपार्जिङ जे निर्दोषइ सुसीलथकी एवडां कष्ट पाम्या ?" तिवारई भगवंत श्रुतनउ उपयोग देई पूर्वभव कहिवा लागा- "इणइं पृथ्वीपीठि वंध्यगिरि । तेहमांहि थकी नर्मदा नीकली छइ । तेहनी अधिष्ठायिका मिथ्यात्वनी देवताई एकदा महातमा एक धर्मरुचि प्रतिमाई रहिउ देखी घणा उपसर्ग कीधा । तउ ही धर्मरुचि महातमा ध्यान हूंतउ न चूकइ । तिसइ देवताए महातमानी क्षमा देखी प्रतिबूझीहंती सम्यक्त्ववंति हुई । हिव ते मरी तुम्हारी पुत्री नर्मदा हुइ । अनई पूर्विला अभ्यासलगी नर्मदास्ना[न] नउ डोहलउ ऊपनउ । वली जे महातमानइं उपसर्ग कीधा तेह भणी दुविखणी हुई।" ए वात सांभली नर्मदाई दीक्षा लीधी । तिसइ जातीस्मरण ऊपनउं । पछई चारित्र पालतां वली अवधिज्ञान ऊपनउं । पछइं पवतिणिपद पामी रूपचंदपुरि आवी । पणि तप लगी कालक्रमई कृशदेह हुई छइ । पणि तिहां कुणही ऊलखी नहीं । पछई ते नर्मदासुंदरी पर्व(व)तिणि महासतीने वृंदे परिवरी रुषिदत्तानई घरि आवी धर्मलाभ कहिउ । तिसइ रुषिदत्ताइं उपाश्रय दीधउं । तिहां महासती रही । हिव धर्मनउ उपदेस महासती सदा दिई अनई महेसरदत्त रुषिदत्तातउ उपदेस सांभलइ । पणि कोई महासतीनई ऊलखइ नहीं । इम अन्यदा संवेगरंग ऊपाइवा भणी महेसरदत्तनइं खरलक्षण जणाविउ । ते खरलक्षणोपदेस सांभली ते नर्मदासुंदरी चीति आवी । पछइं पश्चात्ताप करिवा लागउ “धिग् धिक्कार मझनइं, जे मई एहवीइ सती वनमांहि मूंकी; तर ते नमयाना कुण हाल होस्यई ।" इम आपहणी शोक करतउ देखी दया लगई महासती कहइ "ते हूं नमयासुंदरी जे तुझ आगलि बइठी छउं ।" तिवारइं महेसरदत्त चीतवइ “ए किसउं आश्चर्य । जोउ सघलइ कर्म जि प्रधान सबल जिम नचावइ तिम नाचीयइ । इहां किहनउ दोस नहीं ।" पछइं ऊठी महासतीने पगे लागी, आपणउ अपराध खमावी करी, वैराग्यरंगपूरित हूंतउ श्री सुहस्तिन् आचार्य समीपि जई व्रत लीधउं । अनइं रुषिदत्ताई पणि चारित्र लीधउं । पछइं बेहूं तप तपी चारित्र पाली स्वर्गनई भाजन हुआ। अनई नमयासुंदरी पणि प्रांतसमउ जाणी संलेखनापूर्वक अणसण पाली देवलोकि पुहुती । पछई वली महाविदेहि क्षेत्रि ऊपजी दीक्षा लेई मोक्षि पहुचिस्पइ ॥ श्री ॥ ॥ इति श्री शीलोपदेशमाला बालावबोधस्य वा० श्री. मेरुसुंदर० शीलोपरि नमयासुंदरीकथा ॥ श्री॥ Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PR Ik