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________________ ८८० ८८१ ८८२ 10 [८७८-८९१] नम्मयासुंदरीकहा। इय पालिजइ बंभं दुहियाण जियाण कीरइ परित्ता । तप्पिजइ निच्चग्गी नवनवसमिहाहिँ पईदियह ॥ कायबा गुरुभत्ती गुरुआणापालणम्मि जइयवा(?)। इच्चाइ अम्ह धम्मो सुहकरणेजो सुहफलो य॥ एमाइ भणंतीहिं सिरिप्पभा बोहिया तहा ताहिं। जह तासिं चिय मूले सयराहं तावसी जाया ॥ तो पयणुरागदोसा परिसुद्धायारपालणुजुत्ता। विहिणा कयसन्नासा उववना वंतरनिकाए । सअगाढियपरिवारे नम्मयनइरक्खणम्मि अभिउत्ता। परिहिंडइ सच्छंदा कीलंती नम्मयतडेसु ॥ कारंडहंससारसरहंगपमुहेहि बहुविहंगेहिं । चिंतइ य जलं रेवं निज्झायंती सुहं लहइ ॥ उच्छलिय विलिजंते पिटुंती नम्मयाइ कल्लोले । चिट्ठइ पलोयमाणी अतित्तचित्ता चिरं तं पि ॥ कत्थइ हत्थिकुलाई वणमहिसिकुलाइ नम्मयजलम्मि । उब्बुड्डनिब्बुडणवावडाइँ तूसइ पलोयंती ॥ आरुहइ विंझसेले पेच्छइ विंझाडवि विसेसेण । रुरुरुज्झगवयेसूयरकुलेहिँ परिमंडिउद्देसं ॥ सर्लसरहचित्तयसीहाइजिएहिँ भीमरूवेहि । घेप्पंतपलायंतेहिँ संकुलं तं महारत्नं ॥ इच्छाएं रमइ विसे(सऍ) नचंतसिहंडिमंडलीरम्मे । निज्झायइ संझगिीरं कीलइ तत्थैव गंतूण ॥ सुचिरं परिब्भमंती केलिकि(पि)या सा कयाइ दच्छीय । विंझगिरिस्स नियंबे झाणत्थं मुणिवरं एगं ॥ नासानिरुद्धदिलु संवरियासेसइंदियपयारं । मेरुमिव निप्पकंपं एगग्गमणं महासमणं ॥ जाईए पच्चएणं कीलारसिया तओ तयं दटुं। सा परिचिंतइ 'एयं चालेमि कहंचि झाणाओ॥ ૮૮૪ 18 ८८६ ८८७20 ८८८ ८८९ 25 ८९१ १ इया. २ पयदि. ३ स्सअणा. ४ अप्पट्टनिप्पुटण. ७ तश्चत. ८संचरिया'. ९कहिंचि. ५ गयवयं. ६ इहाए. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002782
Book TitleNammayasundari Kaha
Original Sutra AuthorMahendrasuri
AuthorPratibha Trivedi
PublisherSinghi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
Publication Year1948
Total Pages142
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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