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________________ १८ 10 15 20 25 Jain Education International नम्मयासुंदरीरुववण्णा । सो वि महेसरदत्तो रिसिदत्तानंदणो निययपिउणा । बावरीकलाओ पढाविओ लोगपयडाओ ॥ [ नम्मयासुंदरी रूववण्णणा ] अह नम्मयापुराओ केई वणिया कयाणगमपुखं । घे तूण लाहहेउं संपत्ता कूवचंद्रम्म || रिसिदत्ताए पुट्ठा - 'नम्मयपुरवासिणो फुडं तुब्भे । तो उस भदासमिब्भं परियाणह निच्छ्यं नो वा ? ॥ सहदेव - वीरदासा तस्स सुया विस्सुया पुहवीढे । ते परियाणह तुम्भे तह तेसिं पुत्तभंडाई ? ||' हसिऊण तेहि भणियं - 'चंदं गुरुसुक्कसंगयगयाणं । को न वियाण सुंदरि ! जं भणियवं तयं भणसु ॥' तीए भणियं - 'नम्मय सुंदरिनामा सुबह सहदेववल्लहा धूया | वयरुवाई तीसे जड़ जाणह तो फुडं कहह ।' वणिएहिं वृत्तं' - [१९३-२०५] 'तारुन्नयकय सोहं तीसे रूवं न वनिउं सका | ताणं नियमा अलियपलावत्तणं होई || जइ सुंदरि ! भासेमो' छत्तं पिव मेहडंबरं सीसं । ता सीमंतयसोहा तीसे वि निवारिया होई || छणचंदसमं वयणं तीसे जइ साहिमो सुर्य [णु !] तुज्झ । तो तकलंकको तम्मि समारोविओ होइ ॥ संबुसमं गीवं रेहातिगसंजय ति जइ भणिमो । कर्णं सा दूसियत्ति मन्नइ जणो सो || करिकुंभविभमं जइँ तीसे वच्छत्थलं च जंपामो । तो चम्मथोरयाफासफरुसया ठाविया होई || विल्लहलकमलनालोव माउ बाहाउ तीऍ जो कहइ । सो तिक्खकंटाहिट्ठियत्तदोसं पयासेइ || किंकिल्लिपल्लवेहिं तुला करपल्लवत्ति वितेहिं । नियमा निम्मलनहमणिमंडणयं होइ अंतरियं ॥ १ नम्म ८ तुछ. ९ विहिं. For Private & Personal Use Only १९३ १९४ १९५ १९६ १९७ १९८ १९९ २०० २०१ २०२ २०३ २०५ २ ब्वुत्तं. ३ भासेसो. ४ संवुक्क° ५ ° इगमंजुय. ६ पंकसणेण ७ नह २०४ www.jainelibrary.org
SR No.002782
Book TitleNammayasundari Kaha
Original Sutra AuthorMahendrasuri
AuthorPratibha Trivedi
PublisherSinghi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
Publication Year1948
Total Pages142
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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