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प्राचीन गुजराती गद्यमय
नर्मदा सुन्दरी कथा
॥ ६ ॥ हिव नर्मदासुंदरीनी कथा कहर || एह जि जंबूद्वीपमाहि वर्धमानपुर नगर । तिहां संप्रति राजा राज करइ । तीणइ नगरि रुषभ सार्थवाह वसइ । तेहनी भार्या वीरमती । तेहनइ वि (बि) पुन (त्र) एक सहदेव १ बीजउ वीरदास २ । अनई रुषिदत्ता एहवइ नामि पुत्री महारूपवंति यौवनावस्थाइं आवी । तेतलइ घणा महर्द्धिक व्यवहारीया मांग । पणि श्रेष्ठ मिथ्यात्वीनइ आप नही । इसइ महर्द्धिक रुद्रदत्त नामि वणिगपुत्र वाणिज्यनइ हेति रूपचंद्रपुरहूंतउ तीणइ नगरि आविउ । पणि ते कुवेरदत्त मित्रन घरि आवी ऊतरिओ । अनेक व्यवसाय करइ । आपणा घरनी रीति तिहां रहइ । अन्यदा रुषित्ता सखीइं परिवरी वारणइ रमती दीठी । हित्र रुद्रदत्त मित्र आगलि कहइ "ए कन्या कुमारिका छइ किंवा मांगी छन्” । तिवारई कुवेरदत्त कहइ "ए कुमारिका छइ । पणि ए श्रेष्टि जिनधर्म टाली अनेरा कुणहींनई न आपइ" । तिवारई रुद्र मिथ्यात्वीइं थकउ रुषिदत्तानई लोभई कपटश्राव [क] थई जैनधर्म पडिवजिउं । कांइ माया लई गाढाइ विवेकीना चित्त आवर्जियइ । पछइ रुषभसेन सार्थवाहि श्रावक भणी आपणी पुत्री रुषिदत्ता रुद्रदत्तनई दीधी । तिहां पाणिग्रहण महोत्सव हूओ । केतला - एक मास तिहां अतिक्रम्या । तिसइ रुद्रदत्त ससुरानई पूछी प्रिया सहित आपणइ नगरि आविउ । तिसइ रुद्रदत्तनउ पिता वधूनइ आगमनि महाहखि (खि) ओ । इम घरि रहतां रुद्रदत्ति जिनधर्म छांडिउ । रुषिदत्ताई पणि भर्तारना संसर्ग लगइ जिनधर्म छांडिउ । क्रमिदं महेश्वरदत्त पुत्र रुषिदत्ताइं जन्मिउ । क्रमिदं सर्व कला अभ्यसी मोटर हूओ ।
इसइ रुषित्तानउ वडउ बांधव सहदेव भार्या सुंदरी सहित सुखिई रहइ छ । एहवइ तिणि सुंदरीइं अपूर्व सउंणउं देखिउं । तेहनइ योगि आधान धरिवा लागी । क्रमि वृद्धि पामतइं एहवउ डोहलउ ऊपनउ । जाणइ जउ नर्मदानदी मोहि जई स्नान करउं । ए वात भर्तार आगलि कही । पछई सहदेव संवातनी रचना करी सुंदरीनई साथि लेई चालिउ । हिव नर्मदानई कांठइ आत्री पूजा अर्चा करी नर्मदामांहि पइसी जलक्रीडा कीवी । पछईं सहदेव व्यवसायनइ सुखिइं तिहां नगरनी स्थापना कीधी । नर्मदापुर नाम दीघउं । तिहां जिनमंदिर कराविउं । सम्यक्स्वपिंड पोषिवा भणी पछई सघलाई व्यवहारिया आपणा नगर मूंकी तिहां आवी वस्या | इस पूरे दिवसे पुत्री जन्मी । पणि पुत्रजन्मनी परिहं उत्सव कीधउ । नर्मदासुंदरी ए नाम दीधरं । क्रमिदं क्रमिदं सघलीइ कला अभ्यसी यौवनवस्थाइं आवी ।
इस नर्मदा सुंदरीनउं रूप सांभली रुषिदत्ताइं चींतविउ "जउ माहरउ पुत्र महेसरदत्त तेन हेति एनमयासुंदरी मागीइ । अथवा मुझनई धिग् धिक्कार हुउ । जे मइ जिनधर्म छांडत हूं कुटुंबियई छाडी । जे हूं पर्वतिथिना नामहं न जाणउ ते माहरा पुत्रनई
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