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प्राचीन गुजराती गधमय किम देस्यइ ?" इम कहती रोवा लागी । तेतलइ रुद्रदत्त आविउ । तिणि पूछिउं "तूं असमाधि कांइ करइं?" तिवारई रुषिदत्ताई सर्व वृत्तांत कहिउँ । एहवइ महेश्वरदत्त पुत्र मा-बापनी वात सांभली कहिवा लागउ "तात मझनई तिहां मोकलउ । जिम सघलाई आवर्जी माउलानी पुत्री परिणी मानइं हर्ष ऊपजावउं ।" पछई पिताई महेसरदत्त चलाविउ । थोडे दिहाडे पंथ अवगाही नर्मदापुरि आविउ । तिहां सहदेवनई मिलिउ । हिव महेसरदत्त तिम बोलइ तिम चालइ जिम सहदेवादिक सहू मनि चमत्कर्या । पछई उत्संगि वइसारी कहिवा लागा "वत्स तइं अम्हारा चित्त आवा जिम जांगली विद्याई करी साप वशि थाइ तिम अम्हे तई वशि कीधा । तउ वत्स मागि जि कांई मांगइ ते आपउ ।" तिवारई महेसरदत्ति नर्मदासुंदरी मांगी । पछइं माता-पिताए दीधी । तिहां महेसरदत्ति जिनधर्म पडिवजिउं । शम-शपथ कीधा जु इणि भवि जिनधर्म टाली अवरधर्म न करउं । पछइं महाआनंदि महोत्सवि नर्मदासुंदरीनउं पाणिग्रहण कीधउं । केतलाएक दिन तिहां रहिउ । हिव नर्मदासुंदरीइं तिम जिनधर्मना उपदेस दीधा जिम महेसरदत्त जिनधर्मनई विषइ गाढउ निश्चल हुओ। पछइं केतलेएक दिहाडे ससुरानइं कही भार्या सहित महेश्वरदत्ति आवी मातापितानई प्रणाम कीधउ । तिसइ रुषिदत्ता नर्मदासुंदरीनइं उत्संगि बइसारी कहइ “वत्सि तई तिम करिवउं जिम मिध्यात्वनउं नाम घरमा न रहइ ।"
हिव महेसरदत्त नर्मदासुंदरी सुखिइं काल गमाडतां सर्व खजननई मान्य हुआ । अन्यदा नर्मदासुंदरी गउखि बइठी आरीसह आपणउ मुख जोवती, तंबोल खाती, अनेक चित्रम करती लीलालगी तंबोल वारणइ नांखिउ । इसइ महातमा, एक तलई जातउ हूंतउ तेहनइ माथइ तंबोल पडिउ । तेतलइ महातमाई कहिउँ "इम जे रुषिनी आशातना करइ ते भर्तारनउ वियोग पामइ ।" इस ते महातमानउ सकोपवचन सांभली विषादपर नमयासुंदरी गउखिहूंती ऊतरी महातमाने पगे लागी, कहिवा लागी "हे महात्मन् ! हूं वरासी जे हूं जिनधर्म जाणतीहूंती एवडउ अविनय कीधउ । तउ हिव तुम्हे विश्वनई वत्सल छउ । मझ ऊपरि क्षमा करउ । तुम्हेतउ वहरीई ऊपरि कोप न करउ । पछई मझ ऊपरि किम करिस्यउ । तथापि मझ अभागणी ऊपरि शराप परहउ करउ ।" तिसह मुनि बोलिउ "हे वत्सि! सांभलि, खेद म धरिजे । जे महातमा हुई ते शाप अनई अनुग्रह न करई । पणि न जाणउं माहरा मुखहूंतउ एहवउ वचन किमहीं नीकलिउ। अथवा वली जे नींबनइं कडुअपणउ हुइ ते कोई करइ छइ सिउंना; ते तउ स्वभावई जि हुइ।" इम प्रतिबोधी महातमा आपणइ ठामि गयओ । नमयासुंदरी पाछी घरि आवी । सुखिइं घरि रहइ छ ।
इसइ अनेरइ दिवसि महेसरदत्त व्यवसाय भणी जवनद्वीप भणी चालिवा लागउ । तेतलइ नमयासुंदरी कहइ "स्वामी ! हूं पणि साथि आविसु ।" पछई नमयासुंदरी संघाति चाली । हिव समुद्रमांहि प्रवहणि बइसी चालतां अर्धपंथ अवगाहिउ जेतलइ, तेतलई रात्रिनइ समइ कुणही एकणि गीत गायउं । ते गीत सांभली नमयासुंदरी खरना लक्षण जाणती हूंती भरिनई आश्चर्य ऊपजावा भणी कहिवा लागी "खामीन् ! जे ए गीत गाइ छइ ते सामलइ वर्णि छइ । स्थूल हाथ छई । कृश देह छई । गुह्यप्रदेशि मश
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