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नर्मदासुंदरीकथा।
१२५ छइ । शेण लांछन छइ । बावीस वरसनउ छइ । हीयउ पिडुलउ छइ ।" इत्यादि स्त्रीना वचन सांभली महेसरदत्त मनमांहि चीतवइ “ए नमयासुंदरी कुसीलिनी संभावियइ । अन्यथा एतली वात किम जाणइ । तउ हिव परीक्षा कर।" पछइं प्रभाति ते पुरुष तेडी सर्व अहिनाण जोई मनि निश्चय कीधउ "तां सही ए कुसीलिनी जि छइ । इहां संदेह कांई नहीं।" पछइं गूढ कोप धरतउ चींतवइ "एतला दिन हूं इम जाणतउ जु ए महासती छइ । पणि तउ आज पारिखउं दीठउं । तउ हिव एहनइ समुद्रमांहि ठेली दिउं । अथवा खड्गकरी केलिनी परिई विखंड करडं।" इम जेतलइ चीतवइ छइ तेतलइ अकस्मात् निर्यामक कूआखंभा ऊपरि चडीनई कहइ “अरे लोको ! प्रवहण राखउ । सिढ पाडउ । नागर मूंकउ । राक्षसउं द्वीप आविडं। जल-इंधणनी सामग्री लिउ ।" इम कही आपणउं प्रवहण राखिउ । सर्व संग्रह कीधउं । इसइ महेसरदत्त मायालगइं गूढ कोप धरतउ नर्मदासुंदरीनइ वनमांहि लेई गयउ । अनेक तलाव देखाड्या । वली सर्व वन देखाडी संध्याई किहां एक वननिकुंजमांहि जई सूता । तेतलइ पूर्वोपार्जित दुःकर्मलगइं नर्मदानई निद्रा आवी । तेतलइ महेसरदत्त नमया सूती जि मूकीनइ प्रवहणि आविउ । लोकानई कहइ "अहो ! लोको नासउ नासउ; कांता तउ राक्षसई खाधी । हूं नासी आविउ । तुम्हे चालउ, नहींतर राखिस आवी खासीइ ।" तिवारई बीहता लोक प्रवहणि चडी चाल्या । पछई महेसरदत्त चीतवइ "मई बिन्हइ वात कीधी । दुःसीलिनी स्त्री पणि छांडी अनई लोकनउ ई अपवाद राखिउ ।" हिव क्रमई क्रमई जवनद्वीप आविउ । तिहां घणउ धन उपार्जी आपणइ नगरि आविउ । अनइं प्रियानउं खरूप कहिउं । जु राक्षिसई प्रिया भरखी । पछई असमाधि करी नमियाना प्रेत कार्य कीधा । वली महेसर नवी वार परणाव्यउ ।
हिव नमयासुंदरी वनमांहि जिम सूती हूती तिम जि पुकार करती जागी । पणि आगलि भर्तार न देखइ । तिसइ नमया भोलपण लगई कहइ "खामी ! एहवउ हासउं न कीजइ ।" तउ ही पति नावइ । तेतलइ ऊठी वनमांहि जोवा लागी । पणि भर्ता न देखइ । तिवारइ नमया रोवा लागी । तिणि रोवतां जे वनमाहि खापद छइ ते ही रोवा लागा । पछई लताना घरमांहि रात्रिइं रही । पणि रात्र सउ वर्ष समान हुई । वली प्रभाति रुदन करती, वन जोवती, पांच दिन अतिक्रमावी, छट्टइ दिनि जिहां प्रवहण हूंता तिहां आवी । देखइ तउ आगलि प्रवहण नहीं । तिवारई गाढेरी निरासथकी रुदन करती ते मुनिनउ वचन चीति आविउ । पछइं थोडेरी असमाधि करिवा लागी । इम आपणउं पूर्वोपार्जित कर्म भोगवती, आत्मानइं प्रतिबोध देती, महासतीइं सरोवरि स्नान करी, वनमांहि देव वांदी, फलाहार करीनइं तापसी हुई । पछई गुफामांहि माटीनी प्रतिमा करी, मननई स्थिरता भणी फलफले पूजी, आगलि बइठी सिझाय करइ । एकाग्रचित्त दीक्षाना ध्याननई तत्पर हूंती रहइ ।
इसइ ते नमयानउ पीतरियउ वीरदास बब्बरकूल भणी जातउ हूंतउ तीणइं प्रदेशि जिहां गुफामांहि खामीनी स्तुति करइ छइ तिहां आविउ । पछई ते स्तुति सांभली वीरदास गुफामांहि पइठउ । तिसइ साश्चर्यरूपि वीरदासई भत्रीजी देखी कंठि आलिंगी शोक
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