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नर्मदासुंदरीकथा । तिसइ नमयानई मारतां शीलनई प्रमाणिइ हरिणी वेश्या मुई । पछई बीजी वेश्या भयभीत हूंती पगे लागी । नमयानइं मनावई "तूं अम्हारइ स्वामिनी था । प्रभुत्वपणई आपणी इच्छाई शील पालि।" पछई नमयासुंदरीइं ते वचन मानिउं । इम करतां प्रधानि नमयासुंदरीनउं रूप देखी प्रार्थना कीधी । पणि मानइ नहीं । तिवारइं प्रधानि राजा आगलि जई नमयाना रूपनी वर्णना कीधी । तेतलइ राजाई नमयासुंदरी भणी पालखी मोकली। तिसइ राजाने सेवके जई महाविस्तारि नर्मदासुंदरी सुखासनि बइसारी, माथइ छत्र धरी चलावी । एहवइ नमयासुंदरी शीलनी रक्षा भणी गहिली हुई । मोटउ एक नगरनउ खाल तेहमांहि ऊलली पडी । लोकानई कहइ "अहो लोको ! माहरइ शरीरि यक्षकर्दम कहतां सूकडि कपूर केसर कस्तूरी लागी छइ ।" इम कहती सघलाई लोकानई कादमसिउं छांटइ अनइं आपणा वस्त्र फाडइ । वली लोक साम्ही धूलि नांखइ । इसइ प्रधानि राजानई कहिउँ "खामी ! न जाणियइ छलभेद हूओ किंवा दृष्टि लागी; तिम ते गहिली थई ।" तेतलइ राजाई मंत्रवादी तेड्या । जेतलइ मंत्र गुणी गुणी सरिसव नांखइ तेतलइ नमयासुंदरी ते साम्हा पाषाण नाखइ । तिम ते मंत्रवादी सर्व नासी गया । हिव नगरमांहि गहिलीनी परिइं फिरइ । वीतरागना गीत गावइ । ___ इसइ ते जिनदास श्रावक भरूवछहूंतउ आविउ । तीणइ ते नमियासुंदरीनई मुखि वीतरागना गीत सांभल्या । तिवारइं जिनदास आगलि आवी दयापरहूंतउ कहिवा लागउ "हे सुभगि ! तुझनई ए स्यउं थयउं ? तूं परम श्राविका जैन भक्ति दीसइ छइ ।" तिवारई नमिया कहइ "तूं जउ जैन श्रावक छइ तउ माहरउ खरूप एकांति पूछे पणि लोक देखता म पूछे ।" हिव अन्यदा गीत गावती वनमांहि जई नमिया देव वांदी गीत गावइ छइ । तिसइ जिनदास पणि केडइ लागउ वनमांहि गयउ । तिहां तेहनइ 'वांदू' इम कही जिनदास पूछिवा लागउ "तूं कउणि ?" तिवारई नमयाइं आपणऊं सर्व वृत्तांत श्रावक आगलि कहिउं । तिवारइं जिनदास कहइ "वत्सि ! ताहरी मोटी वात । जिम तई शील राखिउ तिम बीजउं कोई न राखइ । हिव हूं ताहरइ कीधइ भरूवछहूंतउ आविउ छउं । वीरदास मित्रई हूं मोकलिउ । तउ हिव तूं खेद म धरिसि । जिम रूडउ हुस्याइ तिम हूं करिसु । पणि आज पछई राजमार्गि जेतला पाणीना घडा आवइ तेतला तूं भांजे ।" इम संकेत करी बेऊ नगरमांहि आव्या । पछई नमया पाषाण नांखइ, हांडला फोडइ, लोकनइं संतावइ । इसइ नगरनउ राजा नीकलिउ । तिणि ते गहिली दीठी । तिसइ जिनदास आगलि ऊभओ हूंतउ तेहनई कहिउँ "जउ इणि इ स्त्रीइं नगर सघलउ वानरानी परिई संताविउं । हिव तिम करि जिम प्रवहणि बइसारी एहनइं परद्वीपि लेई जा; जिम व्याधि तूटइ ।" तिसइ जिनदासि वचन पडिवजिउं । मनमांहि हर्खिउ । पछई लोहार तेडी नमयानइं पगि अठीलि घाती प्रवहणि बइसारी, सर्व वाखर प्रवहण भरी, अनेक वस्त वाना घाती, पछई आप प्रवहणि बइसी चालिउ । मार्गि जातां अठीलि भांजी । वस्त्र आभरण पहिरावी नर्मदापुरि आणी । तिसइ पिताइं पुत्री आवी जाणी पिता सामुहउ आविउ । पछई नमयासुंदरी माता-पितानई पगि लागी । तारखरि रुदन करिवा लागी । तिसइ रुषभसेनादिक कहिवा लागा "भलउ हूउं जे अम्हे बेटी
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