Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

View full book text
Previous | Next

Page 102
________________ [१००७-१०२१] नम्मयासुंदरीकहा। वाहरिया य सवेगं संपत्ता तो पवत्तिणी भणइ । 'किमियमयंडे चंड' सावग! वसणं समुप्पन्नं ॥ १००७ काऊण य एगंतं पभणइ - 'भयवइ ! उवढियं मरणं । देहि पसायं काउं पजंतालोयणं मज्झ ॥ १००८ [वो]त्तुमजुत्तं अन्नस्स जं पुरो निययदुक्कयमण। । तं पि गुरू[ प. ३२ B]णं नियमा साहिजइ भरणसमयम्मि ॥ १००९ इय भणियम्मि निसन्ना पवत्तिणी साहियं तओ तेण । सयल जहट्टियं जाव नम्मया उज्झिया सुत्ता ॥ 'सरमंडलसज्झायं अज सुणंतस्स मज्झ संभरियं । सा वि पढंती एवं विनायं तेण तं चिंधं ॥ १०११10 अजे ! जाणामि अहं असमिक्खिययारओ महापावो। दुक्कडमिणं सरंतो पाणे धरिलं न याएमि ॥ १०१२ ता देहि अणसणं मे कन्नेसु जवेसु जिणनमोक्कारं । . मा तुज्झ पसायाओ पाविज पुणो वि जिणधम्मं ॥ १०१३ भणई पवत्तिणी तो- 'बालुल्लावेहिँ सावग ! इमेहिं । 15 सिज्झइ न किंचि कर्ज परमत्थवियारणं कुणसु॥ १०१४ न हि मरणमित्तसज्झं एयं तुह संतियं महापावं । सुज्झइ नियमा तवसंजमेहिँ जिणवीरभणिएहिं ॥ १०१५ अन्नं चनूणं पुराणमसुहं कम्ममुइन्नं तया तुह पियाए । 20 तवसओ से नूणं समुट्टिओऽलिंजरे अग्गी ॥ पंडिय! सुसिक्खिओ तं गुरुजणउवएससा(भा ?)वियमणो हं(य)। नूणं तीए कम्मेहिं चोइओ निदओ जाओ। किं बहुणा भो सावग ! उच्वेयं मा करेसु तसिए। दुकयसुकयं च निययं भोत्तवं सबजीवेहिं ।' १०१८25 भणइ महेसरदत्तो- 'भगवइ ! तं भणसि अवितहं सर्व ।। तह वि न तरामि धरित्रं पाणे तीए अदिवाए ॥ १०१९ विनायनिच्छया तो ईसि हसंती पवित्तिणी भणइ ।। 'उवलक्खेसि न दिटुं तहावि तुह इत्तिओ नेहो ॥ १०२० नणु होमि नम्मया हं न मया निरुवकमाउया नूणं । सावय ! तुज्झ पसाया सामन्नसिरी मए पत्ता ॥ १०२१ १चंडे. २ मणज्जा. ३ °धारओ. ४ पखायाओ. ५ भणइ. ६ नहि. नम० १२ 30 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142