Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 100
________________ [ ९७८-९९२ ] नमयासुंदरीका | झिजहाए मज्झिमं तु नासाऍ पंचमं जाण । रेवय दंतो वह भमुहखे दे (वे) सायं ॥ सरवर मयूरो रिसहं पुण कुक्कुडो सरं* रवइ । हंसो गंधारसरं मज्झं तु गवेलया रवइ || पंचमयं परपुट्ठा छटुं पुण सारसा य कुंचा य । सत्तमयं तु गयंदा सत्तसरा जीवनिस्साओ || सजं वह मुहंगो गोमुह रिसहं च नदइ गंभीरं । संखो विय गंधारं मज्झिमयं झल्लरी रसइ ॥ चउचरणगोहिया पंचमं तु आडंबरो य रेवययं । सत्तमयं पुण भेरी भणिया अजीवनिस्साओ || सण सुहपवित्ती बहुपुत्तो वल्लो' य जुवईणं । रिसणं धणवंतो भणिओ सेणावई चेव || विविधण रयणभागी भणिओ गंधपिओ य गंधारे । पक्खिण कवी व य एयम्मि सरे समक्खाओ || मज्झिमसरप्पलावी सुहजीवी बहुधणो य दाया य । पंचमसर मंता पुण पुह [ई] वई हुंति सूराय || छट्ठे कुच्छिवित्ती कुवसणकुभोयणा कुजोणीया । कलहकरलेहवाहयदुहजीवां सत्तमे भणिया || पईकसिणोस अवस्स भावेइ जइ वि य समत्तं । असमत्तेessकालो गुज्झम्मि य लक्खणं रत्तं ॥ रिसहं मरगयगोरो [प. ३२ 4 ] अवस्स भावेइ परमगोरो वा । ते य सिरम्मिं तस्स य विवरीयं लक्खणं भवइ ॥ धवल गंधारसरं अवस्स भावेइ किंचि भावेण । तेय तं विवरीयं दाहिणओ लक्खणं होइ ॥ कणय हो मज्झिमयं अवस्स भावेइ जइ वि न विस ( सम ? ) त्तं | 25 तेण उदरम्मि बिंबं तविवरीयं वियाणेजा || आलोहियधवलवन्नो अवस्स भावेइ पंचमं सो उ । होय सिरम्मि पिप्पो पंकयदलसप्पभो तस्स ॥ छ कंबोय वडू (?) अवस्स भावेइ चित्तवन्नो य । तेणावि रत्तवन्नो अवस्स लिंगे मसो होइ ॥ ९८७ 20 ९८८ ९८९ ९९० १ तज्झिम. ८ कुतोयण ९ २ सज्झिमं. ३ ठवहं. ४ इसंर. ५ तलहो, ६ वद्द. जीव. १० मिरम्मि. Jain Education International For Private & Personal Use Only ८७ ९७८ ९७९ ९८० ९८१ 5 ९८२10 ९८३ ९८४ ९८५ ९८६ ९९१ 15 ९९२३० ७ कुच्छीय.. www.jainelibrary.org

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