Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
View full book text
________________
10
[९६३-९७३ ] नमयासुंदरीकहा।
[ नम्भयासुंदरीए पवत्तिणीपयठवणा] जोग्ग त्ति' जाणिऊणं ठविया गुरुणा पवत्तिणी एसा । जणयंती आणंदं समणीसंघस्स सयलस्स ॥ तो गुरुणाणुनाया साहुणिजणउचियउजय विहारा । गामनगरेसु विहरइ बोहंती धम्मिए लोए ॥
९६४ सव्वत्थ निययचरियं सवित्थर साहिऊण संविग्गा । समणीण सावियाण य विसेसओ देइ उवएसं ॥ साहूसु साहुणीसु य- 'वयभंगमणं पि मा करेज्जासु । दुक्खेहि दारुणेहिं जइ ता पत्तेहिं न हु कजं ॥ अन्नाणमोहियाए पुत्वभवे मुणिवरो मए एगो । काउस्सग्गम्मि ठिओ खुब्भइ तवत(न य वत्ति कोडेण ॥ ९६७ उवसग्गिओ महप्पा खुभिओ मणयं पि नेव झाणाओ। बद्धं च मए पावं जस्स विवागो इमो जाओ। ९६८ वयपरिणामतवेहि किसियंगी सा चिरेण कालेण । तारिसिया संजाया सयणा वि जहा न लक्खंति ॥ ९६९1० जे आसि सिरे केसा अइकुडिलतरंगसच्छहच्छाया । ते कासकुसुमधवला विरल च्चिय केइ दीसंति ॥ आयंससमच्छाया आसि कवोला वि जे समुत्ताणा । तवसोसियदेहाए जाया खल्ला दढं ते वि ॥ सोमालमंग(स)लाओ अंगुलिओ आसि हत्थवाए । परिसुक्कक हवडिय व अन्नरूवं गया ताओ ॥
९७२ सेयपडपाउयंगी तणुई थूलं व मुणइ न हि कोइ । सद्दो वि तारमहुरो न अन्नभावं गओ तीए ॥ ९७३
[नम्मयासुंदरीए कूवचन्द्रगामं पइ विहरणं ] इओ य जप्पभिई जाणिओ जणएहिं नम्मयापरिचागवुत्तो तप्पभिई चेव 25 अवहत्थिओ कूवचंद्रोदंतो । रिसिदत्ता वि अन्नायपुत्तावराहा न कोइ तत्ति करेइ त्ति माणेण न तेसिं वत्तमनिस्सइ । चिरस्स समागएण महेसरदत्तेण रुयमाणेण साहियं सयणाणं जहा- 'सुन्नदीवे रक्खसेण खइया मम दइया, अहं पि किच्छेण वारिवसहं सरिऊण पलाणो तेण जीविओ इन्हि ।' एयं
९७०
20
१ जोगच्छि. २ संत्रिगो. ३ सगुइ.
पभियं. ५ जाणिउं. ६ °चंडोदंतो.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142