Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 97
________________ नम्मयासुंदरीए दिक्खागहणं। [९४९-९६२ . 'भयवं! एसा अम्हं अइप्पिया नम्मया वरा धूया । संसारभउबिग्गा इच्छइ संजमभरं' वोढुं ।। एयं सीसिणिभिक्खं तं गेण्ह[ह] दिजमाणमम्हेहिं । तुम्ह सरणागयाए जं जुत्तमिमीए तं कुणह ॥ ९५० आह गुरूं- 'जुत्तमिणं धन्ना एसा पुरा सुकयपुन्ना । तुब्भे वि नूर्ण धन्ना जाण कुले वड्डिया एसा ॥ दिना य तो दिक्खा तीए पञ्चक्खमेव सयणाणं । जिणभासिएण विहिणा सुहत्थिनामेण मुणिवईणा ।। ९५२ अभिवंदिया य विहिणा तत्तो सयणेहिँ मुइयहियएहिं। दिन्नो आसीवाओ- 'नित्थारगपारगा होसु ॥ ९५३ देवगुरुपसायाओ संपुन्नमणोरहा तुम जाया । अम्हाण वि संपत्ती एरिसिया होज कइया वि ॥ ९५४ उववूहिऊण बहुसो पुणो पुणो वंदिऊण भत्तीए । वड्डियहरिसविसाओ सयणगणो पडिगओ गेहं ॥ ९५५ इयरी वि वसुमईए पवत्तिणीए समप्पिया गुरुणा । दुविहपयारं सिक्खं पगिन्हिया विणयनयनिउणा ॥ तूसइ सारिजंती अणुग्गहं मुणई वारिया संती । चोइजंती वि खरं न चेव पडिचोयणं कुणइ ॥ ९५७ दिवसेण वि जिट्ठाए विणीयवयणा करेइ सा विणयं । तवमाणगुणट्ठा(ड्डा?)णं गुरुबुद्धीए कुणइ किचं ।। ९५८ छट्टमाइरूवं तवइ तवं गुरुजणस्स आणाए । सोसेइ नियं देहं सुमरंती पुवदुक्खाई॥ ९५९ पत्ता(ना)इसया तुरियं अहिया[३] विजियदुजयपमाया । एक्कारस अंगाई पवित्तिणीए पसाएण ॥ ९६० भरभावियसुत्तत्था संतत्थाऽऽसवभवाण य दुहाणं । संजाया गुरुगोरवपयं विसेसेण समणीणं ॥ पावियसुहपरिणामा जा नम्मयसुंदरी तवं चरइ । एत्थंतरम्मि वसुमइपवत्तिणी [प. ३१ ० ] पाविया सग्गं ॥ ९६२ ९५६ 20 25 ९६१ १ गंजभसर. २ त. ३ °ममीए. ४ गुरु. ५ बुज्झे. ६ तूण. ७ वयणा. ८ मत्तो. ९ मुयहहि. १० जासी. ११ पगिम्हिया. १२ मुइणइ. For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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