Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
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नम्मयासुंदरीए दिक्खागहणं । [९२१-९३३ चेइयन(ज)इपडणीयं उवसामइ देवसत्तिओ सवं । कुणइ जिणचेइएसुं तिकालं पूयमणुदियहं ॥ वेयावच्चं निच्चं वच्छल्लं तह समाणधम्माणं । कुवंतीए सावग! पुन्नं समुवजियं तीए । साहूवसग्गपभवं खवियं पावं पि ताव अइबहुयं । किंचि पुण सावसेसं न निट्ठियं चिक्कणत्तेण ॥ एत्थंतरम्मि आउक्खएण सा देवया चुया तत्तो। उववन्ना कुच्छीए एसा सहदेवघरणीए । जं नम्मयानई पइ पडिबंधो आसि तम्मि कालम्मि । तेणं चिय जणणीए जाया तम्मजणे सद्धा॥ एवं दुन्नि वि सावग! कयाइँ एयाए पुनपावाई। अइबलवंतं पुन्नं पावं पुण तारिसं नासि ॥ जेऊण आवयाओ मिलिया तुम्हाण पुन्नमाहप्पा । बलिएण दुब्बलो जं जिप्पइ तं किमिह चोजं [व?] ॥ ९२० पावं ति(वि) पुत्वभवियं इमीऍ जायं निकाइयत्तेण । जं वावियं सुपत्ते मज(हा ? )फलं होइ दाणिं च ॥ ९२८
[नम्मयासुंदरीए दिक्खागहणं] एवं च निसामिती सहस चिय नम्मया गया मोहं । जाया य समासत्था [चे]लंचलपवणसंगेण ॥ ९२९ भाणी य पणमिऊणं- 'भयवं ! तुम्भेहिँ सुट्ठ उवलद्धो।। निम्मलनाणच्छीए जहडिओ मज्झ वुत्तंतो ॥ केवलिजिणाण विरहे जुगप्पहाणेहिँ दाणि तुब्भेहिं । धा(धी?)रिजइ तत्थमणं संसयवोच्छेयदच्छेहिं ॥ ९३१
गुरुणा भन्नइ - 'सुन्नम्मि तम्मि व(र ?)न्ने सुंदरि! हिययम्मि आसि जे धरिया । तेसिं मणोरहाणं पत्थावो सुंदरो एसो ॥
९३२ वियसंतवयणकमला वंदित्ता वयइ नम्मया- 'भयवं!। जह आणवेह तुब्भे वसइ [इमं माणसे मझं ॥ ९३३
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पावाए. २पमासत्था.
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