Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
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[ ९०६-९२० ]
नमयासुंदरीकहा ।
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डज्झइ मणो महायस ! दुच्चरियमहानलेण एएणं । विज्झवसु तं सुसंजय ! मं भीमसु ( सीचसु ? ) वारिधाराए ।। ९०६ अन्नाणमोहियाए बालिसभावाइ खमसु मे दोसं । बालकओ अवराहो कोवं म जणेइ जणयाणं ॥ ९०७ खम खमसु मर्हरिसि ! तुमं खमिउं जाणासि तं चिय न अन्नो । 5 नहि चंदमंडलाओ पडंति अंगारधाराओ ||' एवमणेगपयारं खामिति पासिऊण मुणिवसभो' । उवसंतो उवसग्गो त्ति पारए झाणमइपुनं ॥ पभणइ - 'सुसाविगे' ! मा बीहसु साहूण होइ न हु कोवो । सहयारपायवाओ न निंबगुलियाण उप्पत्ती ॥ किं च निसामेहि फुडं उवएसं वज्जरेमि जिणभणियं । जिणसाहुचेइयाई आसायंतो जणो मूढो || अजे महामोहं अनंतसंसारकारणं घोरं । जेण न पावइ अन्नं नारइतिरियाइदुरियाणं || हास जयं पि कम्मं वेयइ दुक्खेण कह वि रोयंतो । अन्नजणस्स वि विसए विसेसओ जिणमयवस || एक्कासि कए वि दोसे अणुहवइ जिओ असंखदुक्खाई । जिण साहुचेइयाणं पडणीओ होज मा कोइ ॥ जइ वि तुह नासि रो (दो १) सो तहा वि तुमए उवज्जियं पावं । इय [ पच्छ ] यापराऍ नवरं उवसामियं बहुयं ॥ तो हो इओ सुंदरि ! जिणमुणिभत्ता विसुद्धसम्मत्ता । झोसेसि जेण सवं पावं एवं पि अन्नं पि ॥' उप्पाइयसम्मत्तो सो साहू नम्मयाइ देवीए । काऊण धम्मलाभं चलिओ नियवंछियविहारं ॥ देवी संवेगपरा भवभमण भएण भावियसुभावा । सवं मुणिवरभणियं आयरइ जहट्टियं तुट्ठा ॥ पंथ परिभट्टाणं मग्गं दंसेइ समणसमणीणं । तक्करवरघाइभया सा रक्खर निच्च सन्निहिया || तण्हाछुहा[प. ३० A भिभूयं संघ द अविमज्झमि । निम्मे गोउलाई विउलाई भत्तपाणट्ठा ॥
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९१५२०
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४ सुसावगे.
५ फयं.
२ महि. नम० ११
१ महा.
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३ 'वसभा.
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९२०३०
६ याउप ७ झाले सि.
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