Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
View full book text
________________
[ ७७५-७८७ ]
नम्मयासुंदरीकहा |
७७७
चिंतेइ नम्मया विहु 'जम्मंतरबंधवो इमो नूणं । नरया उद्धरिऊणं जेणाहं ठाविया सग्गे ॥' एवं पमोयसागरपडियाण परोप्परं दुविन्हं पि । सुहावराणं वोलीणो वासरो झंति ॥ तत्तो जिर्णदेवेणं खणेण पउणीकओ निययपोओ । रयणहिचिय तहियं आरूढो नम्मयासहिओ ॥ 'पच्छायावी कयाइ भुजो वि कहं पि मा हु तु (मु ? ) चेजा ।' इय संकाय सहसा मुको पोओ महावेगो || कम्मम्मिं समर्णुकूले सवं जीवस्स होइ अणुकूलं । तत्तो य तक्खणं अणुकूलो मारुओ लग्गो || वसंतसयल विग्घो जिणदेवो वासरे हिँ थेवेहिं । संपत्ती भरुच्छे बंधवजणकय महाणंदो ||
७७८
१ ज्झ. ८ लहो. १४ बोतंतं.
२ जिणं.
९ स्थ
Jain Education International
७१
७७५
For Private & Personal Use Only
७७६
७८२
[ नम्मयासुंदरीए सयणाण सह मिलणं ] पट्टाविओ य तुरियं लेहो नम्मयपुरम्मि सयणाणं । लाभेण नम्मयासुंदरीवि (ऍ ? ) वद्धावणनिमित्तं ॥ परिओसनिब्भरा ओलंघि ( १ ) उ ( तु १) रंगेहि पत्रणजवणेहिं । सहदेव - वीरदासा सबंधवा तत्थ संपत्ता || सम्माणिया य सबे जिणदेवेणावि हट्टतुद्वेण | मिलिया य नम्मयाए तुट्ठा उक्कंठियमणाए ॥ काउं कंठग्गहणं परोप्परं रोवियं च तह करुणं" । उग्गिलियमणोदुक्खा जिणदेवेणावि ते भणिया ॥ 'जे समझते रुने को इत्थ किर गुणो होइ । अजं खु नम्मयासंगमम्मि नणु होह साणंदा ॥' कयवयणधोवणाई सवेसि सुहासणेसु बइठाणं । जिणदेवो वृत्तंतं" जहदिट्ठसुयं कहइ तेसिं ॥ जह हरिया दासीहिं सुचिरं सेहाविया य हरिणीए । जह सामित्तं पत्ता तासिं कवडग्गहो य कओ ॥
७७९ 10
७८०
७८१ 15
७८३
७८४
७८५
5
७८७
३ रेयणि सुहि. १४ आरुहो. ५५ कम्ममि. ६ समण'. ७ मारूओ. १० सिलिया. ११ करणं. १२ संगमि. १३ वइहाणं,
७८६ 25
20
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142