Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
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सुहत्थिसूरिणो नम्मयपुरे ओसरणं। [८१८-८२८] सो वि तयं पडिजंपइ - 'वत्थालंकारभूसियं काउं। पुत्ति ! पयट्टसु मग्गे होज विणीया गुरुजणस्स ॥ ८१८ घेत्तण नम्मयं तो सहदेवो पडिगओ सनयरम्मि । नम्मयजम्मदिणम्मि व वद्धावणयं तओ विहियं ॥ नाणाविहकोसल्लियहत्था पत्ता समत्तपुरपुरिसा । आसीवायपवत्ता अक्खयहत्था य नारिगणा ॥ पणमंति नम्मयाए पाए केई वियासिमुहकमला । कुणइ पणामं केसिंचि नम्मया नमणजोग्गाण ॥ ८२१ जो जत्तियस्स जोग्गो सम्माणं तस्स तत्तियं कुणइ । सहस त्ति वीरदासो मणपरिओसं विवāतो ॥ अट्ठाहिया य महिमा पवत्तिया जिणहरेसु ससु । पडिलाभिया य मुणिणो फासुयघयणतमा(गा)ई हिं॥ ८२३ कासी य नम्मया वि हु जिणचणं पइँदिणं तिसंझ पि । आवस्सगकरणेजं करेइ समणीण सन्निहिया ॥ ८२४ सरियअणुहूयदुक्खा अणुसमयं वड्डमाणसंवेगा। संजमगहेंणेकमणा चेइ गुरुसंगमा एसा ॥ ८२५
[सुहत्थिसूरिणो नम्मयपुरे ओसरणं ] अह अन्नया कयाई चउदसपुविस्स थूलिभद्दस्स । सीसो दसपुत्वधरो तवतविओ उज्जयविहारी ॥ ८२६ संपइरायस्स गुरू गामागरनगरपट्टणपसिद्धो ।
विहरंतो ओसरिओ सुहत्थिसूरी तहिं नयरे ॥ ८२७ जो सोमो वि णिकलंको, सूरो वि तवे अमंदों, समुद्दो वि खाररहिओ, मंदरागो वि जडत्तवजिओ । तहा सूरो इव पयावी, चंदो इव सोमदंसणो, सागरो इव गंभीरयाए, मंदरो इव धीरयाए, पईवो इव अन्नाणतिमिरमोहियाणं, कप्प25 पायवो धम्मोवएसफलदाणे, सारमोसहं मोहमहारोगस्स, घणाघणो कोवदावानलस्स, कुलिसपाओ माणमहीधरस्स, पक्खिराओ मायाँभुयंगीए, पवणो लोहमेह[ प. २७ B]पडलस्स । तहा संजओ वि अबंधणो, सुगुत्तो वि सयलजणपयडो, समिइपहाणो [वि] अवहत्थियपहरणो त्ति । अविय
धम्माधम्मविहन्नू बंधवभूओ जियाण सवेसि ।
परहियकरणेकरसो जुगप्पहाणो विमलनाणो॥ १ जोगाण. २ मम्माण. ३ पयदिगं. ४ तिसज्झं. ५ °महणे. ६ पुब्धिसा. ७ रायास्स. ८ अमंढो. ९ °पाइवो. १० साया'. ११ समीइ. १२ अथह. १३ नियाण.
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