Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 85
________________ ७८८ ७८९ 1१९० 10 ७९२ नम्मयासुंदरीए सयणाण सह मिलणं । [७८८-८०२] दुक्खेण परिन्नाया दुक्खं मोयाविया य मेच्छाओ। जिणदेवेण सवित्थरमक्खायं जा गिहागमणं ॥ तो नम्मयाइ दुक्खं सवेसु वि बंधवेसु संकंतं । ऊससियरोमकूवा सव्वे पलवंति तो एवं ॥ 'भो सोमालसरीरे ! कह एयं विसहियं तुमे दुक्खं । कन्नविवरे पइटुं अम्हे सोढुं न हि तरामो॥ सुहलालिया वि सुहपालिया वि सयणा[ प. २६ B]ण सुड्डु इट्ठा वि । हा! कह कम्मवसेणं वसणसमुद्दम्मि बुड्डा सि ॥ ७९१ किं नाम सा हयासा हरिणी तुह पुत्ववेरिणी आसि । इयनिंदियहिययाए जीए सेहाविया तं सि ॥ एरिसनिग्घिणहियया दीसइ नारी न काइ जियलोए । सा उ अणज्जा पावा संजाया एरिसी कह णु ॥ ७९३ कह बालिसंभावाए सहिया तह तारिसी तए पीडा। कह नियजणरहियाए पाणा संधारिया तुमए ॥ ७९४ कह बालिसभावाए तुमए संपाविया इमा बुद्धी । अगणियतणुदुक्खाए कवडगहो' जं कओ तुमए ॥ ७९५ धन्ना सि तुमं वच्छे ! अम्ह वि पुवाइँ अत्थि पुन्नाई। जमखंडियवयनियमा मिलिया अम्हाण जीवंती ॥ ७९६ इय सोऊणं बहुहा बहुसो उववूहिऊण गुणनिवहं । तं ठविया रुयमाणी सा बाला अंबताएहिं ॥ ७९७ अह जिणदेवो भणिओ- 'सजण ! जिणदेव ! साहु साहु कयं । अवहत्थिऊण तत्तियवित्तं जं मोइया एसा ॥ ७९८ सुयणाण तुमं सुयणो उत्तमपुरिसाण उत्तमो तं सि । धम्मीण धम्मिओ तं साहम्मियवच्छलो तं सि ॥ तुह सुंदर ! सवगुणा एगेण मुहेण वनिमो कह णु १ । जलहिम्मि व रयणाणं जेसि न पाविजई अंतो॥ साहम्मियधुरधवलो तं खलु सवस्स पूणिज्जो सि । इय गिण्हसु एयाओ बत्तीस हिरनकोडीओ ॥' इय भणिरो सहदेवो पडिओ चलणेसु बंधुणा सद्धिं । जिणदेवो वि पयंपइ - 'मा बंधव ! एकमाइसK॥ ८०२ १ गो. २ वालिस'. ३ राहो. ४ पुत्ताई. ५ पुन्नाइं. ६ जलहम्मि. ७ °माइसुसु. ७९९ ८०१ 30 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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