Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 88
________________ ७५ ८२९ 15 [८२९-८४३ ] नम्मयासुंदरीकहा। सोउं तस्सागमणं सकोउहल्लो खणेण संचल्लो । सयलो नरनारिगणो वंदणहेउं मुणिवरस्स ॥ सिट्ठी वि उसभदत्तो पमोयसमुल्लसियबहलरोमंचो। सयणसुहिपुत्तजुत्तो सविड्डीएं समुच्छलिओ॥ चलिया य नम्मयासुंदरी वि जणणीपुरस्सरा तुरियं ।। उच्छलियमहामोया रविउग्गमणे कमलिणि व॥ तिपयाहिणि करित्ता पंचंगपणामपुवयं सवे।। संसंति समणसीह कयकरयलसंपुडा एवं ॥ 'जय मुणिमहुयरसेवेजमाणलक्खणसणाहपयपउम! । दंसणमेत्तपणासियनयजणनीसेसपावमल!॥ ८३३10 संघसरोवरवररायहंस ! मिच्छत्तकोसियदिणेस । दुक्खत्तसत्तबंधव ! धवलजसापूरियदियंत ! ॥ बहुकालाओ अजं अंकुरिओ पुनपायवो अम्ह । जं दिट्टो सि महायस ! अइदुल्लहदसणो नाह ! ॥ एवं गुरु थुणंता वंदित्ता सेसमुणिवरे विहिणा। उवविट्ठो गुरुमूले वंदारुजणो जहाठाणं ॥ ८३६ उवविट्ठाण य गुरुणा नवजलहरगहिरमहुरघोसेण । पारद्धा धम्मकहा मयरसनिस्संदसुंदेरा॥ ८३७ 'भो भो ! सुणेह सम्मं चउगइसंसारसायरे बुड्डा । विसहंति जेण जीवा तिक्खाइं दुक्खलक्खाई॥ ८३८20 जह जच्चंधो पुरिसो पवंचिओ निदएहिँ धुत्तेहिं । पडइ गहिरंधकूवे कंटयमज्झम्मि जलणे वा ॥ ८३९ एवं अन्नाणंधा जीवा धुत्तेहिँ रागदोसेहिं। कयसंमोहा बहुसो नारयतिरिएसु हिंडंति ॥ ८४० पाणवहासच्चगिराचोरेकाबंभपरिगहासत्ता। अज्जियबहुपावमली पडति नरयावडे केवि ॥ ८४१ निस्सीमारंभपरिग्गहेसु गिद्धा असंति गिद्ध छ । मंसवससोणियाई के वि नरा जंति तो नरए॥ ८४२ तत्थ य छिंदणभिंदणउक्त्तणफालणाइ वि सहति । पचंति कुंभियाए वेयरणिजलम्मि छुब्भंति ॥ ८४३ 30 .. . सुकोउ'. २ सुविड्डीए. ३ °हिणी. ४ °संपुढा. ५ दुक्खंत. ६ धुत्तेहं. ७ अजिय'. ८°पावकमला. ९ हसंति. 25 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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