Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
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नम्मयासुंदरीए जिणदेवेण सह मिलणं। [७२७-७४०] नयरस्स नाइदूरे जिन्नुजाणे जणागमविहीणे । नागंघरयम्मि पत्ता उवविट्ठा बोहए जीवं ॥ 'रे जीव ! मा धरिजसु निवेयं माणसे मणागं पि। दुहरूवं पि सुह च्चिय भावेजसु सम्ममेवं च ॥ ७२८ एयाई रच्छाचीवराइँ मनिज देवदूसाई। रक्खेजइ जेहिं दढं सबावायाण तुह देहो ॥
७२९ जं पि य अंगे लग्गं कुहियं कद्दमविलेवणं एयं । सुट्ट सुयंधं नाणसु सीलंगं कुणइ जं सुरहिं॥
७३० एयं पि अंतपत्तं(पंत) [ अन्नं] भावेज अमयरस[ स ]रिसं ।। एएण उवग्गहिओ जं देहगिहे तुमं वससि ॥ भणउ जणो एस गहो तं चिय भावेसु एस मोक्खो त्ति । एयपसाएण तुमं जओ विमुको सि मिच्छाओ॥ ७३२ सोढवं दुहमेयं पाविजइ जा न निग्गमोवाओ। एवं वि सहतीए मे होही सुंदरं सर्च ॥
७३३ भणियं चता निति किं पि कालं भमरा अवि कुडयवच्छेकुसुमेसु । कुसुमंति जाव चूया मयरंदुद्दामनिस्संदा ॥'
७३४ इय भाविऊण सुइरं सम्मं वेरग्गमग्गगहिया य । भुवणगुरूण जिणाणं संथवणं काउमारद्धा ॥
७३५ 'निम्महियमोहमल्ला बंधवभूया जणाण सवेसि । जम्मजरमरणरहिया जयंतु तित्थेसरा सवे ॥
७३६ भत्तिजुयाण जिणाणं जेसिं पयपंकयं थुणंताणं । वचंति दुरंताई दूरंदूरेण दुरियाई॥ निद्ववियकम्मरिउणो केवलवरनाणदंसणसमिद्धा । सासयसुहसंपत्ता जयंतु ते जिणवरा सवे ॥
७३८ सवेसि सिद्धाणं आयरियाणं च गुणस[ प.२४ B]मिद्धाणं । तह य उवज्झायाणं नमो नमो होउ मे निचं ॥ ७३९ मोक्खपहसाहगाणं पाए पणमामि सवसाहूणं ।
सिवमग्गे सुहियस्स य नमो नमो समणसंघस्स ॥ ७४० १ नाइट्रे. २ नग'. ३ एयांई. ४ गिच्छाओ. ५ °वस्थ. ६ °रियणो.
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