Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
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नम्मयासुंदरीए राइणो निमंतणं गहेल्लचेडुयकरणं य । [७००-७१३ ]
अह सा पञ्चयहेउं जस्स गहचेट्टियं पयासेइ । हिंडइ घरं घरेणं पप्फोडंती कुलालाई । कत्थई खप्परहत्था भिक्खं मग्गइ कहिंचि जइ लहइ । छड्डाविजइ सहसा सह हिंडतेहिं डिमेहि ॥ चेक्खल्लं दढणं लिंपइ अंगं पुणो पुणो धणियं । सीसे खिवइ कयारं छारेण य गुंडइ सरीरं ।। जरचीरचीरियाहिं वेढइ अंगाइँ दुगुणतिगुणाई । दट्टण य निम्मल्लं मुंडे माली(लं?) सिरे कुणइ ॥ जं जं रच्छाचीरं तं तं सवं पि निवसइ कडीए । कत्थई गया य नच्चइ कत्थइ फेकारवं कुणइ ॥
७०४ गायई हसइ य कत्थइ अन्नत्थ करेइ घोरधाहाओ। नारीए पुरिसस्स व निवडइ चलणेसु पहसंती ॥ दिवसम्मि भमइ नयरे सुन्नघरे जुन्नदेउले वा वि। रत्तिं गंतुं छन्नं करेइ जिणवंदणाईयं ॥
७०६ 'रे जीव ! मा किलम्मसु एयाए लजणेजकिरियाए । जि चिय सहिति दुक्खं ति चिय सुहभायणं होति ॥ ७०७ सीलरयणं महग्धं किच्छेण वि जइ तरिज रक्खेउं । ता होज मज्झ तुट्ठी तिहुयणरजोवलंभे व ॥
७०८ जइ जत्थ व तत्थ व जह व तह व रे हियय ! निवुई कुणसि । ता दुकह तुह जम्मंतरे वि दुक्खं चिय न होइ ॥ ७०९ रे जीव ! भवे आसिर जत्थ व तत्थ व सुही य गयनिंद! । जेण व तेण व संतुट्ठ जीव! मुणिओ सि तं अप्पा ॥ ७१० जं सोढं जीव ! तुमे दुक्खं सुन्नम्मि तम्मि दीवम्मि । भावेसु इमं सवं कित्तियभागो इमो तस्स ॥ ७११ हरिणीगेहम्मि तुमे सोढाउँ कयत्थणाउ भीमाउ। ताओ संभरमाणो मा झूरसु जीव ! एत्ताहे ॥' । ७१२ एवं अणुसासंती अप्पाणं जामिणि' गमेऊण ।
पुणरवि पभायसमए जिणमुणिगुणसंथवं कुणइ ॥ ७१३ १ कथइहस्थ ख. २ मीसे. ३ मध्वं, ४ गायई. ५ निवुयं. ६ सुणिमो. ७ सोढ़ाओ. 4 °सामंती. ९ जामिणी.
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