Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
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जिणदेव कयं नम्मयासुंदरीमोयणं । [ ७४१-७५१ ]
अंतरा य मम पोओ पडिकूलपवणेण दीवंतरं' नीओ । चिरकालेणाणुकूलपवणो पाविओ । तेण चिरेणेह पत्तो म्हि । अन्नेसिया मए तुमं इत्थ, न कत्थई उवलद्धा सि । अञ्ज पुणासंभावणिजरूवा वि 'अणवजेभिक्खं माएमि त्ति सोऊण, कुओ इत्थ अणवजसो त्ति संकिरण पुच्छिया सि । तुमं पि साहेहि एत्तियदियहिं किं सुहमणुभूयं किं वा गहिल्लचेडएणं हिंडसि ?' । एवं पुट्ठाए सिद्धं नम्म [य] हरिणीओ आरम्भ वट्टमाणदिवसावसाणं नियचरियं । तं सोऊण समुट्ठियसिय (?) रोमेण भणियं जिणदेवेण -
'धन्ना सि तुमं वच्छे अइदुक्करगारिए महासत्ते ! | सोमालसरीराए जं विसहियमेरिसं दुक्खं ॥ सच्चो जण पवाओ मरइ अखुट्टे न जीवए को वि । जं तह ताडितं पाणेहि न वज्जियं अंगं ॥ धीराण तुमं धीरा जीए तह दारुणं महावसणं । सम्म महियासि सि ( ? ) न बालमरणे कया वंछा ॥ तं धना धन्नयरी धम्मीणं धम्मिणी तुमं चेव । जीए वसणसमुद्दे धम्मतरंड न परिचत्तं ॥ सीलवईणं मज्झे पढमा लेहा लिहिज्जए तुज्झ । जीए नि[य] बुद्धी मेच्छाओ रक्खिओ अप्पा ॥ [ जिणदेवकयं नम्मयासुंदरीमोयणं ]
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१ दीवंतर.
७ ओ.
८ सुयह.
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संप सुणेहि सुंदरि ! जाया तुह मोयणम्मिँ मह बुद्धी । वित्तवयभीरूणं न हु सिज्झइ एरिसं कजं ॥ कलं च मए निसुयं एसा इट्ठा दर्द' नरिंदस्स | नयरा दूरं जंती रक्खिजइ रायपुरिसेहिं || रुम व वराहे एईए विप्पियं कुणइ जो उँ । देइ तणुं च पहारं सो पावइ दारुणं दंड ||
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ता हरिउँ न हि तीरसि धणेण बहुणा वि मुयई न हु मुच्छा । नवरं तु पक्खवाई दढमेसो पोयवणियाणं ॥ तेसु सुहिएस तूसह दूमेअइ ताण दुक्खलेसेण तेसुमवराहकारिसु गाढं कोयाउरो होइ || ता हं सुणु ! पहाए रायघरासन्नचचरे भद्दे ! | ठाविस्समगाईं घयकुंभसयाइँ पंतीए ॥ २ अणविज्ज'. ३ महिलचिड्ड एण ४ 'सवणं.
५ सोयणम्मि.
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६ दहं.
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