Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 73
________________ धणेसरकहाणयं । [६८७-६९३] सो तिलोत्तमाईणमच्छराईणमन्नयरी, सुरवइसावेण निवडिया न कस्स वि अप्पाणं दंसेइ । मन्ने पयावइणा तुह निमित्तमेव रक्खिजइ । ता किं देव ! रूवेण जोवणेण रजेण जीविएण वा जइ सा लच्छि व सयलसुहखाणी मयरद्धयमहानरिंदराय[प. २२ A ]हाणी अंतेउरं नालंकरेइ । राइणा भणियंB'का सा इयरेण भणियं- 'जा सा हरिणीठाणसन्निविद्रा।। सुओ एस वइयरो नम्मयासुंदरीए, चिंतियं च 'सच्चे केणावि पढियं आसासिजइ चक्को जलगयपडिबिंबदसणसुहेण । तं पि हरंति तरंगा पिच्छह निउणत्तणं विहिणो ॥ ६८७ वच्चामि जा न पारं दुक्खसमुदस्स कह वि एगस्स । ताऽनयरमपुवं उवडियं दारुणं वसणं ॥ ६८८ खुद्दो रुद्दो चंडो निद्धम्मो नारओ महापावो । एसो बब्बरराया गहिओ को छुट्टइ इमेण ॥ ६८९ ता इन्हि किं करेमि? कत्थ गच्छामि ? कस्स साहेमि ? के सरणं पवजामि ? सबहा नत्थि मे जीवमाणीए सीलरक्खा । हा हा कयंत ! निग्घिण! जई ता हं दुक्खभायणं रइया ।। ता कीस इमं रूवं निम्मवियं वेरियं' मज्झ१॥ ६९० सुहिए कीरइ रूवं दुहियमरूवं ति एत्थ जुत्तमिणं । लोहीए पक्कन्नं रज्झइ नहु( तह ) खप्परे छगणं ॥ ६९१ पुनस्स य पावस्स [य] वासो एगस्थ एस कीस कओ। सवगुणसंपउत्ते भत्ते विसखेवणमुजुत्तं ॥ ६९२ एवमणेगहा विलविऊण परिभाविउं पवत्ता 'मरणमेवोसहमिमस्स दुक्खस्स, नऽनहा सीलरक्खा होइ । तं पुण विहाणसेण वा विसेण वा झत्ति संभवइ । अनं च सुयपुवं मे साहुणीणं समीवे अक्खाणयं 1 [धणेसरकहाणयं] 25 वसंतपुरे नयरे धणवइसिडिसुओ धणेसरो अहेसि । सो जणणिजणए कालगए तहाविहकम्मदोसेण गहिओ दारिदविहिणा चिंतिउं पवत्तो 'चिरकालियवेरग्गो कयाइ उच्छामिया पणस्संति (१)। इय नासइ दालिदं कयाइ देसंतरगयस्स ॥ ६९३ . सा. २माईणिम'. ३ °अंतेउर. ४ रायणा. ५ सर्व. ६ बिहिणा. ताप. .. . जय. ९बेरियं. १० वामो. ११°म्मिमस्स. 15 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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