Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 71
________________ 10 ५८ हरिणीमरणं, नम्मयासुंदरीए वेसाण सामिणिकरणं च । [६६१-६७४ ] भणियं- 'जा तुम्हाणं पडिहासइ रूलक्खणेहि जुया। तीसे करेह टिक' हरिणीठाणम्मि वेसाए॥ कयसिंगारो मिलिओ वेसावग्गो तहिं निरवसेसो। अहमहमियाऍ पंचउलगाण देहं पयासिंतो॥ ६६२ तेसि निरूविताणं संपत्ता दिहिगोयरं कह वि । सहस त्ति नम्मयासुंदरि उ मलमलिणतणुवसणा॥ ६६३ रूवसरूवं तीसे दट्टणं विम्हिएहि तो वुत्तं । 'धूली(लिं?)तरियं रयणं भो ! एयं किं न पेच्छेहँ ॥ ६६४ लक्खणरूवसणाही अन्ना न हि अत्थि महिलिया एत्थ । कीस निरूवह अग्गि दीवेण करम्मि गहिएण?॥ भणियाओ चेडीओ- 'उच्चट्टियमजियं इमं कुणह । परिहावेह य तुरियं वत्थाभरणाणि हरिणीए॥ ६६६ विहियं च चेडियाहिं अणिच्छमाणीए नम्मयाए तं । 'हद्धी किमेयमवरं उवट्टियमिमं ति चिंतेइ ॥ ६६७ ठविऊण हरिणियाविट्टरम्मि पंचउलिएहिँ तो तीए । मंगलतूररवड्डे कयं सिरे राणियाटिंकिं ।। भणियं च'जं किंचि हरिणितणयं भवणं दवं तहेव परिवारो। आहवं चिय सत्वं तं दिन्नं तुह नरिंदेण ॥ इय जंपिऊण ताहे पत्ता पंचउलिया नियं ठाणं । इयरी वि देवया इव दिप्पंती चिंतए एवं ॥ 'एयाहि सहायाहिं [प. २१ B] होही सवं पि सुंदरं मज्झ । तम्हा करेमि इण्हि सबाओ सुप्पसनाओं ॥ ६७१ आय(वाह ?)रिऊणं ताहे सबाओ गोरवेण भणियाओ। 'जं नियविढत्तभागं दितीओ आसि हरिणीए ॥ ६७२ सो सबो वि इयाणिं मए पसाएण तुम्ह परिमुक्को । जं पुण रन्नो देयं तं दिजह हरिणिकोसाओ ॥' ६७३ परितुट्ठाओ ताओ सबाओ नियसिरेण पयकमलं । फुसिऊण बिंति - 'सामिणि ! कम्मयरीओ वयं तुज्झ ॥ ६७४ टिकं. २ निरूचिंताणं. ३ °णमणु. ५ पेच्छेहा. ५ °सणहो. ६ ट्ठियं मिति, ७ रवटुं. ८ सुप्पसुनाओ. ९ °रिऊण. १० विति. ६६९ ६७० 25 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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