Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
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नया सुंदरीका |
भणिया य विसेसेणं करिणी - 'सहि ! वल्लहा अहं तुज्झ । जाणासि य मह चित्तं ता चेट्ठसु मज्झ ठाणम्मि || सवं हरिणीकिच्चं करेज सेवागयाण पुरिसाण |
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अयं तु तुह पसाया छन्ना' चिट्ठामि गिहमज्झे ॥ ' ' एवं ' ति तीय भणिए संतुट्ठा नम्मया हिययमज्झे । नियधम्मकम्म निरया सुहझाणगया गमइ कालं ॥ [ असंतुकामुकरस राइणो कन्ने पर्जपणं ] अन्नदिवसम्म एगो कयसिंगारो नवम्मि तारुन्ने | संपत्ती तीय गिर्ह अइधणवं कामुओ' पुरिसो | पुच्छर - 'सा कत्थ गया तुम्हाणं राणिया अचिरठविया ? ।' करिणी भइ - 'अहं सा पञ्चभियाणेसि नो मुद्ध ! ॥ सो पभणइ - ' नवदिणयरसमाणतेयं मणोहरं अंगं । ती कमलच्छीए दिट्ठ चेट्ठइ मणे मज्झ || लक्खसेण वि तुला न तुमं तीए कहेहि ता सवं । अच्छा सा कम्मि गिहे संपइ दंसेहि वा झ त्ति ॥ ती कजेण मए दुक्करकम्मेहिँ अजिओ अत्थो । ता मह दंसेहि तयं पुत्रंति मणोरहा जेण || ' करिणी पुणो वि जंप - 'तुमए पच्छादिया तथा दिट्ठा । संपर सहावरूवा गामिल्लय ! कीस भुल्लो सि ? ॥' सो भइ - 'नत्थि जई सा सट्टाणं जामि तो अहं इन्हि ।' करिणी भणs - 'न अम्हे वारेमो कुणसु जं रुयइ ॥' गच्छंतेण यमग्गे कम्मयरो को वि पुच्छिओ छन्नं । 'जण सवण सविओ कहेहि सा राणिया कत्थ ? ॥' कहियं च तेण छन्नं - 'कहिंचि अच्छइ अहं न याणामि । सा कुलनारी नूणं परिवालइ अप्पणो सीलं ॥'
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तओ सो आसा मंगसमुपाहय महाकोवा नलडज्झमाणमाणसो तीए सीलमंडखंडणोवायमलहंतो, रायाणमुवसपिऊणे जंपिउं पवत्तो - 'देव ! निवेएमि किं पि. पियकारयं देवस्स अच्चन्भुयं ।' राइणा भणियं - ' किं तयं ?' ति । तओ सो पावकम्मो नम्माकम्मचोइओ वञ्जरिउमादत्तो - 'अत्थि इह नयरे एगा नारी । २ जाण'. ३. कासुओ. ४ नइ. ५ मुवसमपिकण.
१ छिना.
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