Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 69
________________ 5 10 15 20 25 ५६ 30 करिणीकयं नम्मयासुंदरीए दुक्खमोयणं । [ ६३२-६४६ ६३० ६३३ कस्स व न होइ मरणं जियलोओ कस्स सासओ होइ ? | अंगीक मरणाए पियसहि ! जं होइ तं होउ ॥' पुणरवि पुच्छर करिणी - 'सुंदरि ! किं होइ तुज्झ सो वणिओ ? इयरी पभणइ - 'सुहए ! पित्तियओ मज्झ सो होइ ॥ 'जइ एवं सुविसत्था चिट्ठसु मोएमि अज दुक्खाणं ।" इय जंपिऊण पत्ता करिणी हरिणीसमीवम्मि || पभणइ - 'सामिणि ! एसा मारिज कीस बंदिणी दीणा ? । किं वस तुज्झ हियए एसा वणियस्स तस्स पिया १ ।। ६३५ सा भइ - 'सच्चमेयं एयाए मोहिएण वणिएण । नाहं खणं पि भुत्ता ता एसा वेरिणी मज्झ ॥' ६३१ Jain Education International ६३६ ६३७ करिणी पभणइ - 'सामिणि । मा कुणसु मणम्मि एरिसं संकं । जेण सहोयरधूया एसा भत्तिजिया तस्स || कयपुरिससंगनियमा बंभवया निच्छिएण' हियएण । अब्भुवगच्छइ मरणं न य करणं पुरिसभोगस्स || तिहि मासेहिँ न भिन्नं चित्तं एयस्स अन्नहा काउं । एत्तो' ताडिती मरइ च्चिय सवहा एसा ॥ ता मुय ईसादोसं उवरिं एईऍ कुणसु कारुनं । कुणमाणी घरकम्मं धारउ पाणे तुह पसाया | अम्हाहि एत्तियाहिं भंडागारं न पूरियं तुज्झ । किं पूरिस्सर एसा अंगीकयतणुपरिच्चाया ? | सुबह इत्थवज्झा बहुदोसा सवधम्मसत्सु । ता माकुणसु कलंकं मह विन्नत्तिं कुणसु एयं ॥' तीसे सोऊण गिरं मणयं उवसंतमच्छरा हरिणी । वाहरs' तक्खणं चिय नम्मयमेवं च भाणीया ॥ 'जइ ता घयपुन्नेहिं गल्ला फुङ्कंति तुज्झ निब्भग्गे १ । ता चेट्ठ मज्झ गेहे रसवइकिच्चाइँ कुवंती ॥' हिre अणुग्गहं सा मनंती भगइ 'होउ एवं' ति । तो तीऍ अणुन्नाया पारद्धा रंधिउं भत्तं ॥ सा आहार साहइ जह सो परियणो भणइ तुट्ठो । 'ताई चिय दबाई नजइ अमिरण सित्ताई || ४ उवएसत. ५ बाहरइ. १ नच्छिण २ पत्तो. ३ गिरिं. For Private & Personal Use Only ६. ६३८ ६३९ ६४० ६४१ ६४२ ६४३ ६४४ ६४५ ६४६ www.jainelibrary.org

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