Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
View full book text
________________
[ ६१८-६३१ ]
१ वाहइ.
नमयासुंदरीकहा |
६१९
होउ सरीरे पीडा नाहं पीलेमि अप्पणो सीलं । अकलंकियसीलाए मरणं पि [न] बाहए मज्झ ॥ बाई पुण जं एसा अयाणमाणी मणोगयं मज्झ । संतावर अप्पाणं इमे वि आणाकरे पुरिसे ॥' वारं वारं पुच्छर हरिणी - ' किं रमसि अम्ह मग्गम्मि १ ।' 'न हि न हि नहि' त्ति जंपइसा वि दढं हम्ममाणा वि ।। ६२० पण हरिणी - 'पहणह मारह चूरेह निग्विणा होउं । मुच्च जेण हयासा छिजंती अप्पणो गाहं ।' salsहिँ हि वि तह तह [ सा ] निद्दयं हया बाला । जह संपत्ता मुच्छं खणेण सुनिरुद्धनीसासा |
६२१
२ पुरिसो. ३ इह.
५५
६२२ 10
६२३
' मा मरिहि' त्ति पुणो वि हु सित्ता सलिलेण दाविओ पवणो । कहकह विलसन्ना पुट्ठा तं चैव सा भणइ ॥ 'वीसमउ' ति विमुका मज्झण्हे तह पुणो दढं पहया । अवर वि तव य पहया जा पाविया मुच्छं ॥ इय कित्तियं व भन्नइ तीए पावाइ निग्विणमणाए । बहुहा कयत्थिया सा संपुन्ना तिनि जा मासा ॥ [ करिणीकयं नम्मयासुंदरी दुक्खमोयणं ] अह अस्थि तत्थ वेसा करिणी नामेण भद्दियो किंचि । दडुं कत्थणं तं जाया करुणावरा धणियं ॥ ता एगंते तीए संलत्ता नम्मया - 'तुमं भद्दे ! | किं सहसि जायणाओं एयाओ घोररूवाओ ॥
Jain Education International
६१८
For Private & Personal Use Only
६२४
६२५
B. ]ह ? |
॥
कीर हरिणीवणं कुट्टिजसि दुकरं तुमं किमि प. २० कीर सुहिओ लोओ जेण इमा हरिणिया बड्ड ( ? ) तंबोलकुसुमपमुहो भोगो सो वि सुंदरी अम्ह । ता कीस तुमं मुद्धे ! एवं वंचेसि अप्पाणं ? ॥' वजरई नम्मया तो - 'पियसहि ! नेहेण देसि मह सिक्खं । ता सामि फुडं तुह पच्छन्नं नत्थि सहियाणं ॥ जावज्जीवं गहिओ नियमो मे सुयणु ! पुरिससंगस्स । नियवायापडिवनं जीवंतो को जए चयइ १ ॥
६३०
६३१
४ पधणो. ५ भट्टिया. ६ जायणाउ. ७ मुद्दे.
६२६
६२७
55
६२८
15
20
६२९ ३
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142