Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
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[५९१-६०३) नम्मयासुंदरीकहा।
भणिउं च पवत्ता'जं जस्स जणे रूढं जुञ्जइ तस्सेव मामि! दं(तं) कम्मं । न सहइ चलणाभरणं सीसम्मि निवेसियं कह वि॥ ५९१
भणियं चजं जसु घडियं तं तसु छाइ उट्टह पाइ कि नेउरु बज्झइ । । सुङ वि भुक्खइ भुल्लउ न कुणइ कइय वि चम्मयरत्तणु गिहिवह ॥५९२
तुम्हाणं चिय सोहइ एसायारो न जाउ अम्हाणं । लजाए मह हिययं फुट्टइ व इमं सुणंतीए ॥ जं जस्स कुले रूढं तं तस्सासुंदरं न पडिहाइ । भणइ जणे चम्मयरो सुड्ड सुयंधं घरं मज्झ ।। ५९४० वुत्ता सि भए भामिणि ! सवं काहामि जं तुम भणसि । एसंजली कओ मे मा गणियत्तं समाइससु॥ पुणरवि भणेइ धुत्ती- 'एसो धम्मो जयम्मि सुपहाणो। जं बहुनराण सोक्खं कीरइ अंगप्पयाणेण ॥ अहवा धम्मे दिजइ निययसरीरेण अजिओ अत्थो। एसो वि महाधम्मो जइ कजं तुज्झ धम्मेण ॥' पडिभणइ नम्मया तं- 'धम्मो पाविजएं ण विभवेण । उप्पजह इह भामिणि ! सुणेहि इत्थं पि दिटुंतं ॥ ५९८ धत्तुरीयेबीयाओ न होइ अंबस्स उग्गमो लोए।। एवेजियदवाओ एवं धम्मो वि ना होइ ॥
५९९० पुणरवि हरिणी' जंपइ - 'नूणं अइपंडिया सि तं बाले!। न मुणसि अत्थेण विणा कह पूरिजइ जठरपिठरी ॥ ६०० अत्थस्सेसोवाओ किलेसरहिओ सरीरसुहजणओ। विहिणा अम्हं सिद्धो तम्हा इत्थं समुञ्जमसु ।' भणियं च नम्मयाए- 'अत्थमुवजेमि जइ तुम भणसि। 15 कत्तेमि लण्हसोत्तं करेमि गंधि व धूयं वा ॥ जाणामि रसवइविहिं पक्कन्नविहिं च बहुविहं काउं। दंसेहि कंचि कम्मं एगं गणियत्तणं मोनुं ॥'
15
५९७
हम. २ पाविजिए. ३ धुत्तीरय. ४ अवस. ५ एय?. ६ हारिणी. ."मोबालो. ९ मत्थसु. १० लण्हमोसं.
. विण.
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