Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
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५७९
[५७९-५८४] नम्मयासुंदरीकहा । चिंतेमो । किं तु सो तुह वाणियगो अम्ह संतियं किं' पि आहवं न देइ तेण तुममवरुद्धा सि । जया सो दाही तया तुमं पि मुच्चिहिसि । मा मन्नेसि "सो मम दत्तं न याणई" जाणेइ चेव । किं तु वणियाणं जणयाओ तणयाओ जणणीओ घरणीओ वि सयासाओ अत्थो अचंतवल्लहो होइ । तेण दायचं पि दुक्खेण देति । जइ तस्स तुमं पिया ता सिग्घमेव दाही । तुम पि मुचिहिसि ।। एस परमत्थो ।' तओ नम्मयाए चिंतियं
'एसा जंपइ महुरं हियए हालाहलं विसं वसइ । को पत्तियइ खलाए पावाए चप्फलगिराए ॥ न कयाइ मज्झ ताओ न देइ आहव्वयं मुहत्तं पि।
एवभणियस्स उचियं करेमि पडिउत्तरं किं पि॥ ५८०॥ एवमालोचिऊणे भणियं नम्मयासुंदरीए- 'भोइणि! जइ एवं ता मुंचाहि मं जेण अजेव तुह [आ]हत्वं दुगुणं तिगुणं वा दवावेमि । देमि तुह दाहिण[हत्थं, अनं [प. १९ A ] वा दुक्करं सवहं कारेहि ।' तओ तीए भणियं- 'भुंजाहि जइ ते इच्छा । नाहं सवहेहि पत्तियामि त्ति भणंती उद्विऊण निग्गया हरिणी। न भुत्तं नम्मयाए । तयइदेहम्मओ( तइयदियहे मरउ ?) ताव छुहाए ति ॥ भाविती न पत्ता चेव तीए सगासं हयासा नोवणीयं च भोयणं । पुणो चउत्थे दिणे 'मा मरिहि' त्ति संकाए समागया भणिउं च पवत्ता-'निब्भग्गे ! करेहि कवलग्गहणं । जीवंतो जीवो कल्लाणभायणं भवइ त्ति ।' ताहे 'अणुकूलो" मम एस वाइओ सउणो । नूणं भविस्सइ मे जीयमाणीए सामन्नसंपत्ती । एसा वि अणुवत्तियवयणा सिसिरहियया होइ' त्ति कलिऊण वत्ताजुत्ताजुत्तवियारिणीए-2c 'मम एगंतहियया लक्खिजसि ता करेमि तुहाएसं जेण अन्नं पि में हियं तुमए चिंतियछ ति बितीएं अट्ठमभत्ताओ पाणधारणनिमित्तं भुत्तं नम्मयाए ।
एवं अट्ठमभत्ता पुणो पुणो पारण करेमाणी।। तम्मि घरयम्मि चिट्ठई" रुयमाणी नरयसारिच्छे ॥ ५८१ हंसी पंजरछूढा सरइ जहा अविरयं कमलसंडं । तह नम्मया वि सुमरइ निरंतर जणणिजणयाणं ॥ ५८२ न तहा बाहई तीए नियअंगे उठिया महापीडा। जह पित्तियस्स हियए भाविंतीए विरहदुक्खं ॥ पच्चासन्नावासा वग्घीए कंपइ(ए) जहा हरिणी ।
तह कंपमाणहियया भएण एसा वि हरिणीए ॥ ५८४ 30 .१ कि. २ सुविहिसि. ३ याणाइ. ४ उच्चियं. ५ °मालोविजण. ६ नियया. ७ भलुकूलो. ८ सम. ९ से. १० वींतीए, ११ चिट्टइ. १२ वाहइ. १३ एभा.
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