Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 63
________________ हरिणीए नम्मयासुंदरि पइ कवडसं भासणं । [ ५६८- ५७८ ] ताहे पेच्छेसामो' वियरंति नम्मयं न संदेहो । परियाणियपरमत्था जं जुत्तं तं करीहामो ॥' सोऊण मित्तवयणं उवायमन्नं अपिच्छमाणेण । तमि ति कलित्ता पडिवनं वीरदासेण | विणिओइऊण खिष्पं नियभंडं' गहियपउरपडिभंडा । चलिया पडिप्पणं संपत्ता नम्मयानयरं ॥ सिड्डा य बंधवाणं वत्ता मेत्तेहिं जा जहावत्ता । जो वि वीरदासो घणं परुनो सयणसहिओ ॥ रोइ चिरं सयणा सोयंता संलवंति अन्नोन्नं । 'हा ! निग्विणो हयासो पुत्ती सो रुद्ददत्तस्स || नत्थ वयणे पट्ठ एयाण कुले य निच्छओ चेव । astra (2) वि वयं पयारिया तेण पावेण ॥ अहवा सो चैव खलो निहओ केणावि असुहकम्मेण । एरिसमित्थीरंयणं उज्झइ कहमन्नहा मूढो || मा गेहह से नामं न कजमम्हाण तस्स तत्तीए । सोमी तं बालं निदोसं आवयावडियं ॥ सा पररंसंपत्ता सहिही नूणं कयत्थणा भीमा । काही न सीलभंगं पाणचाएं वि नियमेण ॥ अवि य - अवि कंपइ कणयगिरी उदेई सूरो वि पच्छिमदिसाए । उ जलम्मि अग्गी न हु खंडइ नम्मया सीलं ॥ उइयं न णु पुवक कम्मं तीए महाणुभावाए । उवरुवरिमावयाओ उवेंति जं सुसीलाए ||' ५७८ एवं च नम्मयासुंदरी दुक्खदावानलडज्झमाणमाणसो" सवो वि नम्मयापुर25 जणो दुक्खेण कालं गमंतो चिट्ठह । 5 10 15 ५० 20 Jain Education International ९ ५६८ ५६९ For Private & Personal Use Only ५७० ५७१ ५७२ ५७३ ५७४ ५७५ • [ हरिणीए नम्मयासुंदरिं पइ कवडसंभासणं ] सा वि पुणे नम्मयासुंदरी तम्मि य चारगगिहे रुयमाणी विलवमाणी, दिवसे चेडीहिं उवणीयं भोयणं [ अ ] भुंजमाणी, बहुकूडकवडभरियाए हरिणी [ भणिया ] - 'वच्छे ! भुंजाहि भोयणं । न किंचि अम्हे तुहासुंदरं" २ वियरंती. ३ हियभडं. ४ घण. ५ तोइत्तु. ६ पयट्टा ७ नेच्छभो. 'सित्थी'. १ पेच्छेसामो. ८ निओ. ११ च ९. १२ उवेइ. १० परधूर. १६ सुंदर. १३ सुट्ट. १४ माणसा १५ वीय'. ५७६ ५७७ www.jainelibrary.org

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