Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 67
________________ 5 10 ६४ 15 20 25 हरिणीकया नम्मयासुंदरीकयत्थणा । [ हरिणीकया नम्मयासुंदरीकयत्थणा ] ६०४ ६०५ इय सोउं आरुट्ठा पाविट्ठा निरेहिं' वयणेहिं । हिययगयकालकुट्टे' सहसा उग्गरिउमारा || 'पावे ! सामेण मए भणिया न करेसि तह वि मह वयणं । नूर्ण पडदंड अज वि मग्गेसि निब्भग्गे ? | संप तं मज्झ वसे कारिस्समवस्स तो मणोभिङ्कं । किं कइया वि हासे ! लुजइ अह गड्डरा सक्सा | ' पडिभ प. २० A ]इ नम्मया तं- 'जीवंती न हु करेमि गणियतं । मारेसु व चूरेसु व जं वा रोयइ तयं कुणसु ॥' तो ती क ( दु ) डाए आरुट्ठो कामुओ समाहूओ । ६०६ ६०७ ६०९ भणिओ - 'बला वि भुंजसु इह भवणे महिलियं एगं ॥ ६०८ आलवर सुंदरी तं - 'भाय ? अहं तुज्झ भइणिया एसा । माकुणसु मज्झ दोहं जणणीसवहेण सविओ सि ॥' सो वि विलक्खो नो अने अन्ने वि सा महापावा । जे जे पेसेइ नरे ते वारइ नम्मया एवं ॥ सुअरं सा पावा कुविया दंडाहया पुयंगे व । आणवइ निययदासे' - 'रे रे ! आणेह कंवाओ ।' आणीयाओ तेहिं कणवीराईण लंबकंबाओ । भणिया - 'पहणह एयं जह चयइ पइवयावायं ॥ ते विचिरवेरिया इव तामाहंतुं तहा समारद्धा | जह सुकुमाöसरीरे तीसे तार्डिति मम्माई || जह जह सरइ सरीरा रुहिरं रत्तीभवंति कंबाओ । तह तह सा हरिसिज पावा खट्टिकघरणि व ॥ भइ य - 'अज वि पहणह जेणं सा मुयइ कुलवहूवायं । ते व जह नरयपाला तह तह ताडिंति नितिंसा || न मुई सेक्कारं पि हु ताडिजंती वि नम्मया तेहिं । चिंत 'मए वि एवं केइ जिया ताडिया विं ॥ aar yaकयाणं कम्माणं पावए फलविवागं । अवराहेसु गुणेसु य निमित्तमत्तं परो होइ ॥ ६१४ ६१५ ६१६ ६ दोसे. १ निरेहिं. २ कुटुं. ३ °भि. ४ हायासे. ५ कासुओ. ८ मंसाई. ९ 'बहू. माल.. १० सुयइ. Jain Education International For Private & Personal Use Only [६०४-६१७] ६१० ६११ ६१२ ६१३ ६१७ ུ་ www.jainelibrary.org

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